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भारत में अभी से लू जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चेतावनी

४ अप्रैल २०२२

आने वाले दशकों में दक्षिण एशिया में गर्म हवाओं के कारण और अधिक चरम मौसम का अनुभव होने की संभावना है. मार्च में, उत्तरी भारत के बड़े क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक बार गर्म हवाओं की लहरों का अनुभव हो चुका है.

भारत में हीटवेव
भारत में हीटवेवतस्वीर: Vishal Bhatnagar/NurPhoto/picture alliance

मार्च के महीने में उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में एक दर्जन से ज्यादा गर्म हवाओं के झोंके आ चुके हैं और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यानी आईएमडी का अनुमान है कि असामान्य रूप से यह गर्म मौसम अप्रैल महीने में भी जारी रहेगा. इस मौसम में इतनी गर्म हवाएं इससे पहले दुर्लभ थीं लेकिन भारत में अब हर साल मौसम ऐसाही होता जा रहा है.

2022 में लू यानी गर्म हवाएं समय से पहले ही शुरू हो गई हैं. मौसम विभाग यानी आईएमडी ने 11 मार्च को भारत की पहली हीट वेव घोषित की और तब से अब तक कई हीट वेव्स को ‘गंभीर' घोषित किया गया है. कम ऊंचाई वाले क्षेत्र में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104 फॉरनहाइट से ऊपर होने पर मौसम विभाग लू की घोषणा करता है. लू की स्थिति तब भी मानी जाती है जब तापमान, औसत से कम से कम 4.5 डिग्री ऊपर पहुंच जाता है. मौसम विभाग के अनुसार, यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री से ज्यादा है तो यह लू चलने की गंभीर स्थिति के तौर पर घोषित की जाती है.

अब ज्यादा दिन रहती है लू

गर्म हवाओं से भारत का उत्तर-पश्चिमी राज्य गुजरात सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. राज्य के कुछ हिस्सों में मार्च में 11 दिनों तक लू का प्रकोप रहा. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर भारत के ठंडे क्षेत्र माने जाते हैं लेकिन यहां भी मार्च के महीने में गर्म हवाएं चल रही थीं.

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिओरोलॉजी के वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक आर कृष्णन ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस तरह की गर्मी की लहरें अतीत में देखी जरूर गई हैं, लेकिन अब वे अधिक गंभीर और लंबे समय तक चलने वाली लगती हैं. वह कहते हैं, "किसी क्षेत्र में कुछ दिनों के लिए तापमान में वृद्धि होती है और फिर यह सामान्य हो जाता है. लेकिन हाल के वर्षों में हमने जो देखा है, वह यह है कि गर्मी की लहरें आवृत्ति और गंभीरता दोनों ही मामले में बढ़ी हैं.”

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भारत ने 2022 में असामान्य मौसम की कुछ अन्य स्थितियों का भी अनुभव किया है. मुंबई के तटीय महानगर ने इस वर्ष असामान्य गर्मी की लहरों का अनुभव किया है और जनवरी और फरवरी में अफगानिस्तान और पाकिस्तान से मुंबई की ओर अरब सागर में धूल भरी आंधियां चली हैं. मार्च में भारत के आसपास के महासागरों में दो सबट्रॉपिकल चक्रवात भी बने जो कि साल की शुरुआत में बहुत ही दुर्लभ होते हैं.

दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन की चपेट में

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जारी 2021 और 2022 की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दक्षिण एशिया में गर्म हवाओं की लहरों और उमस भरी गर्मी का बढ़ना तय है. रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले दशकों में बार-बार और तीव्र गर्मी की लहरें, अत्याधिक या असामान्य वर्षा की घटनाएं और अन्य मौसम संबंधी अन्य प्रतिकूल घटनाएं और आपदाएं भारत के लिए संभावित हैं. आईपीसीसी की रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि पहले से ही शुष्क क्षेत्रों में सूखे की आशंका भी बढ़ गई है.

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आईपीसीसी का अनुमान है कि दक्षिण एशिया गर्मी की वजह से दुनिया के सबसे कठिन क्षेत्रों में से एक होगा और ‘घातक' गर्मी की लहरें मानव अस्तित्व को और मुश्किल में डाल सकती हैं. भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों ने भी 1982 और 2018 के बीच पश्चिमी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी के एक हिस्से में समुद्र की सतह के तापमान का विश्लेषण किया है. उन्होंने पाया कि जांच किए गए क्षेत्रों में 150 से ज्यादा गर्म समुद्री हवाओं की घटनाएं हुई हैं. इस अवधि के दौरान, हिंद महासागर में गर्म समुद्री लहरें चार गुना और बंगाल की खाड़ी में तीन गुना बढ़ गईं.

किसानों पर असर

भारत का एक बड़ा हिस्सा कृषि प्रधान समाज का है जो स्थिर मौसम पैटर्न पर निर्भर रहता है. इसलिए वहां गर्म हवाओं का अत्याधिक महत्व है. जमीन पर गर्म हवाओं की लहरें यानी लू कृषि उपज को बाधित करती हैं जो मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत में रहने वाले किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है.

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गर्म समुद्री लहरें, प्रवाल भित्तियों को रंगहीन बना देती हैं और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती हैं जिससे वो तटीय समुदाय प्रभावित होता है जिसकी आजीविका मछली पकड़ने पर ही निर्भर है. कृष्णन कहते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के कारण सतह के तापमान में मनुष्य की गतिविधियों की वजह से वृद्धि, मौसम की ऐसी असामान्य स्थितियों का एक संभावित कारण है.

वह कहते हैं, "कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की आयु लंबी होती है. भले ही हम उत्सर्जन में उल्लेखनीय रूप से कमी करें लेकिन हम आने वाले दशकों में इसके दुष्प्रभाव देख सकते हैं.”

रिपोर्टः सुष्मिता रामाकृष्णन

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