शादीशुदा महिलाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ती संख्या दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की तस्वीर पेश करती है. कोविड महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.
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पिछले साल अप्रैल में, मध्य प्रदेश में अपने प्रियजनों को कोरोनावायरस महामारी से खो देने वाली दो महिलाओं ने आत्महत्या कर ली. रायसेन जिले की एक औद्योगिक बस्ती में एक महिला की अपने बहुमंजिली अपार्टमेंट से कूदने के बाद मौत हो गई. महिला अपनी मां की मौत के बाद से बहुत आहत थी.
वहां से करीब 200 किलोमीटर दूर देवास शहर में भी, एक अन्य महिला ने उसी दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, जब उसके परिवार के तीन सदस्यों की एक सप्ताह के भीतर कोविड से मृत्यु हो गई.
जीवन सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "इन दोनों महिलाओं की शादी हो चुकी थी. वे पहले से ही अवसाद से पीड़ित थीं जिसका उपचार नहीं किया गया था. महामारी ने उनकी हालत को और खराब कर दिया.”
हर 25 मिनट में एक आत्महत्या
ये अकेली घटनाएं नहीं हैं. भारत में आत्महत्या करने वाली शादीशुदा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ओर से हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी. यह हर दिन औसतन 61 यानी हर 25 मिनट में एक आत्महत्या के बराबर है.
साल 2020 में इस दक्षिण एशियाई देश में दर्ज की गई कुल 1,53,052 आत्महत्याओं में से 14.6 फीसदी आत्महत्याएं शादीशुदा महिलाओं ने की थी. आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में शादीशुदा महिलाओं की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा थी.
विश्व स्तर पर, भारत में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. दुनियाभर में आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या में भारतीय पुरुषों की संख्या एक चौथाई है जबकि 15-39 आयु वर्ग में दुनिया भर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 36 फीसदी महिलाएं भारतीय होती हैं.
महामारी के पहले साल में आत्महत्याओं में 10 प्रतिशत उछाल
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखा रहे हैं कि 2020 में भारत में आत्महत्या के मामलों में 10 प्रतिशत का उछाल आया. कहां और किस पृष्ठभूमि के लोगों में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं पाई गईं इसे लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
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महामारी का असर?
2020 में देश में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या की. यह आंकड़ा 2019 के आंकड़ों के मुकाबले 10 प्रतिशत ज्यादा है. इसी के साथ आत्महत्या की दर यानी हर एक लाख लोगों पर आत्महत्या करने वालों की संख्या 8.7 प्रतिशत बढ़ गई.
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कहां हुई ज्यादा आत्महत्याएं
सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र में हुईं (19,909). उसके बाद स्थान है तमिल नाडु (16,883), मध्य प्रदेश (14,578), पश्चिम बंगाल (13,103) और कर्णाटक (12,259) का. पूरे देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से 50 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं पांच राज्यों में होती हैं.
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आत्महत्या के कारण
सबसे अधिक यानी 33.6 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या का कारण 'पारिवारिक समस्याएं' पाई गईं. उसके बाद स्थान है 'बीमारी' (18 प्रतिशत), 'ड्रग्स की लत' (छह प्रतिशत), शादी से जुड़ी समस्यायों (पांच प्रतिशत), प्रेम संबंध (4.4 प्रतिशत), दिवालियापन या कर्ज (3.4 प्रतिशत), बेरोजगारी (2.3 प्रतिशत), परीक्षाओं में असफलता (1.4 प्रतिशत), पेशेवर/करियर की समस्या (1.2 प्रतिशत) और गरीबी (1.2 प्रतिशत) का.
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लैंगिक अनुपात
2020 में कुल आत्महत्याओं में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 70.9: 29.1 था, जो 2019 में इससे कम था (70.2: 29.8). महिला पीड़ितों का अनुपात 'शादी से संबंधित समस्याओं' (विशेष रूप से दहेज से जुड़ी समस्याओं) और शक्तिहीनता/जनन अक्षमता के मामलों में ज्यादा था.
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युवाओं में ज्यादा मामले
सबसे ज्यादा मामले 18 से 30 साल की उम्र (34.4 प्रतिशत) और 30 से 45 साल की उम्र (31.4 प्रतिशत) के लोगों में पाए गए. 18 साल से कम उम्र के बच्चों में भी आत्महत्या के मामले पाए गए. इनमें सबसे ज्यादा यानी 4,006 मामलों का कारण पारिवारिक समस्याएं, 1,337 मामलों का कारण प्रेम संबंध और 1,327 मामलों का कारण बीमारी पाया गया.
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गृहणियों में ज्यादा मामले
कुल महिला पीड़ितों (44,498) में से 50.3 प्रतिशत (22,372) गृहणियां पाई गईं. इनकी संख्या कुल पीड़ितों में 14.6 प्रतिशत के आस पास पाई गई. इनमें से 5,559 पीड़ित छात्राएं थीं और 4,493 दिहाड़ी मजदूर थीं. कुल 22 ट्रांसजेंडरों ने आत्महत्या की.
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पेशों से संबंध
सरकारी अधिकारियों में 1.3 प्रतिशत (2,057) मामले पाए गए, जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में 6.6 प्रतिशत (10,166) मामले पाए गए. छात्रों में 8.2 प्रतिशत (12,526) मामले और बेरोजगार लोगों में 10.2 प्रतिशत (15,652) मामले पाए गए. स्वरोजगार श्रेणी में 11.3 प्रतिशत (17,332) मामले पाए गए.
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किसानों में आत्महत्याएं
कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों में कुल 10,677 मामले पाए गए. इनमें 5,579 मामले किसानों के और 5,098 मामले कृषि मजदूरों के थे. यह संख्या देश में कुल आत्महत्याओं के सात प्रतिशत के बराबर है. आत्महत्या करने वाले किसानों में 5,335 पुरुष थे और 244 महिलाएं. कृषि मजदूरों की श्रेणी में 4,621 पुरुष थे और 477 महिलाएं.
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दिहाड़ी मजदूरों में ज्यादा आत्महत्याएं
आत्महत्या करने वाले कुल 1,08,532 पुरुषों में सबसे ज्यादा मामले (33,164) दिहाड़ी मजदूरों के, 15,990 मामले स्वरोजगार करने वाले लोगों के और 12,893 बेरोजगार लोगों के थे.
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सामाजिक स्थिति
आत्महत्या करने वालों में 66.1 प्रतिशत (1,01,181) शादीशुदा थे और 24 प्रतिशत (36,803) अविवाहित थे. विधवा/विधुर लोगों में 1.6 प्रतिशत (2,491) मामले, तलाकशुदा लोगों में 0.5 प्रतिशत (831) मामले और अलग लोगों में 0.6 प्रतिशत (963) मामले पाए गए.
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आर्थिक स्थिति
आत्महत्या करने वालों में 63.3 प्रतिशत (96,810) लोगों की सालाना आय एक लाख रुपए से कम और 32.2 प्रतिशत (49,270) लोगों की सालाना आय एक लाख से पांच लाख रुपयों के बीच थी.
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शिक्षा का स्तर
आत्महत्या करने वाले अधिकतर यानी 35,771 (23.4 प्रतिशत) लोगों का शिक्षा का स्तर मैट्रिक या माध्यमिक शिक्षा तक, 29,859 लोगों (19.5 प्रतिशत) का स्तर पूर्व माध्यमिक तक, 24,242 (15.8 प्रतिशत) लोगों का प्राथमिक तक, 24,278 (15.9 प्रतिशत) लोगों का उच्च माध्यमिक तक था. 12.6 प्रतिशत यानी 19,275 पीड़ित अशिक्षित थे. सिर्फ चार प्रतिशत (6,190) पीड़ितों ने स्नातक या उससे ऊपर की शिक्षा पाई थी.
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कोविड की वजह से स्थिति बिगड़ी
जानकार और महिला अधिकार समूह इस प्रवृत्ति के लिए घरेलू हिंसा, कम उम्र में विवाह और मातृत्व के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता की कमी जैसे कई कारणों की ओर इशारा करते हैं. इस स्थिति को कोरोना वायरस महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है जिसकी वजह से सार्वजनिक समारोहों में आने-जाने और अपनी बातें साझा करने के लिए अन्य महिलाओं से जुड़ने के मौके कम हो गए.
घरेलू हिंसा के मामलों में कई महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद फंसी रहीं. सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेज डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "कोविड के दौरान हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल के साथ-साथ अन्य सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”
मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान में विशेषज्ञता रखने वाली एक मशहूर मनोचिकित्सक अंजलि नागपाल जोर देकर कहती हैं कि कोविड की वजह से स्थिति बहुत खराब हुई, "कोविड ने स्थिति को और खराब कर दिया. कोविड के दौरान, हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल और सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”
घरेलू हिंसा पर क्या कहती हैं भारतीय महिलाएं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा से पता चलता है घरेलू हिंसा के बारे में महिलाओं की क्या सोच है और वे इसे कितना जायज मानती हैं.
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घरेलू हिंसा जायज?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा सर्वे के मुताबिक तीन राज्यों तेलंगाना (84 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (84 प्रतिशत) और कर्नाटक में (77 प्रतिशत) से अधिक महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया.
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महिलाओं और पुरुषों की राय
एनएफएचएस ने 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों और महिलाओं की घरेलू हिंसा पर राय ली. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की 83 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने खुद माना है कि पति द्वारा उनके खिलाफ हिंसा सही है. कर्नाटक की 80 प्रतिशत महिलाओं का ऐसा ही मानना है.
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पिटाई पर पुरुषों का पक्ष
घरेलू हिंसा पर इसी सवाल के जवाब में सबसे अधिक कर्नाटक में (81.9 प्रतिशत) पुरुषों ने इसको जायज माना है. पत्नियों की पिटाई को सबसे कम (14.2 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश के पुरुषों ने जायज माना.
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हिमाचल में सबसे कम सहमति
पतियों द्वारा पिटाई को जायज ठहराने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या हिमाचल प्रदेश में 14.8 प्रतिशत थी.
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क्या था सवाल?
इस सर्वे में सवाल किया गया था: "आपकी राय में पति का अपनी पत्नी को पीटना या मारना जायज है?" इस सर्वे में कई तरह की परिस्थितियों को भी शामिल किया गया था.
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घरेलू हिंसा का आम कारण
सर्वे के मुताबिक घरेलू हिंसा को सही बताने वाले सबसे आम कारणों का हवाला दिया गया. सबसे आम कारण जो सामने आए वे थे ससुराल वालों का अनादर करना और घर व बच्चों की उपेक्षा करना.
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घरेलू हिंसा एक वैश्विक समस्या
भारत ही नहीं कई विकसित देशों में भी घरेलू हिंसा आम समस्या है. अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी महिलाएं इसकी शिकार होती हैं. हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. इस दिन को दुनिया भर में महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिंसा की शिकार होतीं महिलाएं
लैंगिक बराबरी के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक दुनिया भर में हर तीसरी महिला के साथ शारीरिक या यौन हिंसा हुई है.
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बेइज्जती और शर्म का सामना
भारत में कुछ महिलाएं जो अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं, वे पेशेवर विशेषज्ञों की मदद लेती हैं लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी बीमारियों में शर्म और कलंक के डर से पेशेवर चिकित्सकों के पास नहीं जातीं. कई महिलाएं बेझिझक अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में खुलकर बात करती हैं.
मनोचिकित्सक टीना गुप्ता कहती हैं कि सार्वजनिक जागरूकता की कमी और अवसाद की खराब समझ ने समस्या में और योगदान दिया है. डीडब्ल्यू से बातचीत में टीना गुप्ता कहती हैं, "आत्महत्या के विचार या अत्यधिक निराशा, लाचारी ऐसे संकेतक हैं जो पिछले वर्ष आत्महत्या के मामलों में स्पष्ट रूप से देखे गए थे. शादीशुदा महिलाएं ऐसे समूह से आती हैं जो कम जागरूक हैं और इलाज के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, ऐसे में वो अवसाद और चिंता के साथ अकेले संघर्ष करने के लिए छोड़ दी जाती हैं. यही वजह है कि भारत में शादी शुदा महिलाओओं में आत्महत्या की दर अधिक देखी गई."
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समाज में बदलाव की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या का मुकाबला करने के लिए, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ अधिक जुड़ाव, सामाजिक समर्थन और वित्तीय स्वतंत्रता में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए.
नेल्सन मोजेज कहते हैं कि इसके अलावा, समाज में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में भी बदलाव की जरूरत है. उनके मुताबिक, "हमें इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए कि निरंतर देखभाल, पहचान का संकट और परिवार या दोस्तों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने का बोझ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है.”