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समाजएशिया

भारत में शादीशुदा महिलाओं की खुदकुशी क्यों बढ़ी?

मुरली कृष्णन
२४ दिसम्बर २०२१

शादीशुदा महिलाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ती संख्या दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की तस्वीर पेश करती है. कोविड महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.

Symbolbild Indien Frauen Selbstmord
तस्वीर: Ritesh Shukla/imago images

पिछले साल अप्रैल में, मध्य प्रदेश में अपने प्रियजनों को कोरोनावायरस महामारी से खो देने वाली दो महिलाओं ने आत्महत्या कर ली. रायसेन जिले की एक औद्योगिक बस्ती में एक महिला की अपने बहुमंजिली अपार्टमेंट से कूदने के बाद मौत हो गई. महिला अपनी मां की मौत के बाद से बहुत आहत थी.

वहां से करीब 200 किलोमीटर दूर देवास शहर में भी, एक अन्य महिला ने उसी दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, जब उसके परिवार के तीन सदस्यों की एक सप्ताह के भीतर कोविड से मृत्यु हो गई.

जीवन सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "इन दोनों महिलाओं की शादी हो चुकी थी. वे पहले से ही अवसाद से पीड़ित थीं जिसका उपचार नहीं किया गया था. महामारी ने उनकी हालत को और खराब कर दिया.”

हर 25 मिनट में एक आत्महत्या

ये अकेली घटनाएं नहीं हैं. भारत में आत्महत्या करने वाली शादीशुदा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ओर से हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी. यह हर दिन औसतन 61 यानी हर 25 मिनट में एक आत्महत्या के बराबर है.

साल 2020 में इस दक्षिण एशियाई देश में दर्ज की गई कुल 1,53,052 आत्महत्याओं में से 14.6 फीसदी आत्महत्याएं शादीशुदा महिलाओं ने की थी. आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में शादीशुदा महिलाओं की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा थी.

विश्व स्तर पर, भारत में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. दुनियाभर में आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या में भारतीय पुरुषों की संख्या एक चौथाई है जबकि 15-39 आयु वर्ग में दुनिया भर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 36 फीसदी महिलाएं भारतीय होती हैं.

कोविड की वजह से स्थिति बिगड़ी

जानकार और महिला अधिकार समूह इस प्रवृत्ति के लिए घरेलू हिंसा, कम उम्र में विवाह और मातृत्व के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता की कमी जैसे कई कारणों की ओर इशारा करते हैं. इस स्थिति को कोरोना वायरस महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है जिसकी वजह से सार्वजनिक समारोहों में आने-जाने और अपनी बातें साझा करने के लिए अन्य महिलाओं से जुड़ने के मौके कम हो गए.

घरेलू हिंसा के मामलों में कई महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद फंसी रहीं. सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेज डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "कोविड के दौरान हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल के साथ-साथ अन्य सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”

मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान में विशेषज्ञता रखने वाली एक मशहूर मनोचिकित्सक अंजलि नागपाल जोर देकर कहती हैं कि कोविड की वजह से स्थिति बहुत खराब हुई, "कोविड ​​​​ने स्थिति को और खराब कर दिया. कोविड के दौरान, हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल और सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”

बेइज्जती और शर्म का सामना

भारत में कुछ महिलाएं जो अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं, वे पेशेवर विशेषज्ञों की मदद लेती हैं लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी बीमारियों में शर्म और कलंक के डर से पेशेवर चिकित्सकों के पास नहीं जातीं. कई महिलाएं बेझिझक अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में खुलकर बात करती हैं.

मनोचिकित्सक टीना गुप्ता कहती हैं कि सार्वजनिक जागरूकता की कमी और अवसाद की खराब समझ ने समस्या में और योगदान दिया है. डीडब्ल्यू से बातचीत में टीना गुप्ता कहती हैं, "आत्महत्या के विचार या अत्यधिक निराशा, लाचारी ऐसे संकेतक हैं जो पिछले वर्ष आत्महत्या के मामलों में स्पष्ट रूप से देखे गए थे. शादीशुदा महिलाएं ऐसे समूह से आती हैं जो कम जागरूक हैं और इलाज के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, ऐसे में वो अवसाद और चिंता के साथ अकेले संघर्ष करने के लिए छोड़ दी जाती हैं. यही वजह है कि भारत में शादी शुदा महिलाओओं में आत्महत्या की दर अधिक देखी गई."

समाज में बदलाव की जरूरत

विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या का मुकाबला करने के लिए, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ अधिक जुड़ाव, सामाजिक समर्थन और वित्तीय स्वतंत्रता में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए.

नेल्सन मोजेज कहते हैं कि इसके अलावा, समाज में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में भी बदलाव की जरूरत है. उनके मुताबिक, "हमें इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए कि निरंतर देखभाल, पहचान का संकट और परिवार या दोस्तों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने का बोझ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है.”

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