भारत के राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख ने उस मुहिम का समर्थन किया है जिसमें महिला खतने को गैरकानूनी करार देने की मांग की गई है. पहली बार भारत में ऐसी कोशिशों को सरकारी समर्थन मिला है.
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महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की इस परंपरा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) का नाम दिया गया है जिसे आम बोलचाल में अकसर महिला खतना कहा जाता है. एमजीएम महिलाओं में कई तरह की सामाजिक और मानसिक समस्याओं को जन्म देता है.
जब भी इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियानों की बात होती है, तो अकसर अफ्रीकी देश ही चर्चा के केंद्र में रहते हैं. लेकिन भारत के दाऊदी बोहरा समुदाय में भी महिला खतना का चलन पाया जाता है. भारत में शिया मुसलमानों के इस समुदाय की संख्या दस लाख के आसपास है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि तीन चौथाई से ज्यादा बोहरा लड़कियों का खतना किया जाता है.
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख ललिता कुमारमंगलम को तीन ज्ञापन सौंपे गए हैं जिन पर 85 हजार लोगों ने हस्ताक्षर कर एफजीएम पर रोक लगाने की मांग की है. कुमारमंगलम ने कहा, "यह एक बर्बर काम है और बहुत से देश इस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. कोई चीज इसलिए सही नहीं हो जाती कि वह होती आई है." उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय महिला आयोग एफजीएम को खत्म करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों का समर्थन करता है."
जानिए महिला खतना के डरावने सच
महिला खतने के डरावने सच
महिला खतना मुस्लिम बहुल देशों की एक खतरनाक और दर्दनाक सच्चाई है. इंडोनेशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुल्क है जहां खतना प्रचलित है. वहीं से कुछ भयावह सच्चाइयां...
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कहां-कहां
दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है. इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया.
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बच्चियां सबसे ज्यादा
यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं और इन तीन देशों से आती हैं: गांबिया, मॉरितानिया और इंडोनेशिया. इंडोनेशिया की आधी से ज्यादा बच्चियों का खतना हुआ है.
क्यों होता है खतना?
खतना कराने की वजहों में परंपरा सबसे ऊपर है. उसके बाद धर्म, फिर साफ-सफाई और बीमारी से बचने आदि के नाम पर भी लड़कियों का खतना किया जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी तर्क देते हैं कि युवा होने पर लड़कियों की सेक्स की इच्छा कम करने के मकसद से भी ऐसा किया जाता है.
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क्या फायदा है?
इंडोनेशिया की यारसी यूनिवर्सिटी की डॉ. आर्था बदुी सुशीला दुआरसा कहती हैं कि महिला खतने का कोई फायदा नहीं है. बल्कि इसके उलट इसके बहुत नुकसान हैं जिनमें मौत भी एक है.
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मौत भी हो सकती है
महिला खतने से कई तरह की मानसिक और शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि कुछ मामलों में तो मौत तक हो सकती है. खतने के दौरान या उसके बाद अत्याधिक खून बहने से या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से मौत हो सकती है.
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कैसे-कैसे खतने
संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक महिला खतना चार तरह का हो सकता है. पूरी क्लिटोरिस को काट देना, कुछ हिस्से काटना, योनी की सिलाई और छेदना या बींधना.
यौन हिंसा का एक प्रकार
महिला कार्यकर्ता मानती हैं कि महिलाओं का खतना एक तरह की यौन हिंसा है जिसमें पीड़ित को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के तनाव से गुजरना पड़ता है. कई संस्थाएं इसे महिलाओं के खिलाफ हिंसा में जोड़ चुकी हैं.
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राष्ट्रीय महिला आयोग सरकार को महिलाओं से संबंधित नीतियों पर सलाह देता है और उसका मकसद यौन उत्पीड़न से लेकर महिला सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों पर महिलाओं के आधिकारों की पैरवी करना है.
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है कि क्या एफजीएम के खिलाफ कोई कानून बनाने पर विचार हो रहा है. लेकिन बोहरा समुदाय में इसके खिलाफ काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि राष्ट्रीय महिला आयोग का समर्थन मिलने से उनकी कोशिशों को मजबूती मिलेगी. कुछ बोहरा महिलाओं के समूह 'स्पीक आउट एफजीएम' की संस्थापक मासूमा रानाल्वी कहती हैं, "यह हमारे लिए एक शुरुआती बिंदु है. वह (कुमारमंगलम) सरकार की तरफ से पहली अधिकारी हैं जो हमारे समर्थन में बोली हैं."
दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ लड़कियों का खतना हुआ है. अफ्रीका में यह समस्या बहुत व्यापक है जबकि मध्य पूर्व के कुछ इलाकों में भी यह चलन आम है. भारत के दाऊदी बोहरा समुदाय में महिला खतने का मामला नवंबर 2015 में उस समय सुर्खियों में आया जब ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मूल के दो लोगों को अपनी दो बेटियों का खतना करने का दोषी पाया गया. एक धार्मिक नेता को भी इस मामले में मदद करने का दोषी पाया गया.
भारत में दाऊदी बोहरा अकेला मुस्लिम समुदाय है जिसमें महिलाओं के खतने का चलन है. हालांकि कुरान में इसका कोई उल्लेख नहीं है लेकिन बोहरा लोग इसे एक धार्मिक जिम्मेदारी मानते हैं. एफजीएम विरोधी समूह साहियो की एक रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में बोहरा समुदाय की 80 फीसदी महिलाओं का खतना होता है.
अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और मध्यपूर्व में रहने वाली 385 बोहरा महिलाओं ने एक ऑनलाइन सर्वे में कहा कि महिलाओं का खतना करने के लिए जो कारण गिनाए जाते हैं उनमें धर्म, यौन उत्तेजना को कम करना और परंपरा को बनाए रखना शामिल है. साथ यह भी कहा जाता है कि इससे साफ सफाई रखने में मदद मिलती है. सर्वे में शामिल 82 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे अपनी बेटियों का खतना नहीं कराएंगी. साफ तौर पर इससे बदलाव के रास्ते खुलते नजर आते हैं.
एके/वीके (रॉयटर्स)
देखिए जननांगों की विकृति की परंपरा
जननांगों की विकृति की परंपरा
आधिकारिक रूप से लगी रोक के बावजूद कई अफ्रीकी देशों में महिलाओं के जननांगों को विकृत किया जाना बंद नहीं हुआ है. घुमक्कड़ जीवन जीने वाले केन्या के पोकोट कबीले में लड़कियों को आज भी ये दर्दनाक रस्म सहनी पड़ती है.
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सबके लिए एक ही ब्लेड
केन्या की रिफ्ट घाटी में यह महिला अब तक चार लड़कियों का खतना कर चुकी है, वो भी एक ही रेजर से. पोकोट लोगों की मान्यता है कि खतने किसी लड़की के महिला बनने की प्रक्रिया का प्रतीक है. कई देशों में इस पर पाबंदी लगी होने के बावजूद आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में चलन जारी है.
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'समारोह' की तैयारी
खतने की रस्म वाली एक ठंडी सुबह को पोकोट महिलाएं और बच्चे आग के आस-पास इकट्ठे होकर गर्म होते हैं. जिन महिलाओं का खतना ना हो उनकी शादी होना मुश्किल हो जाता है. अगर कोई खतने के लिए मना करे तो उस पर भारी दबाव डाला जाता है और कई बार समुदाय से बाहर भी निकाल दिया जाता है.
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विरोध है नामुमकिन
खतने से पहले लड़कियों के कपड़े उतरवाए जाते हैं और उन्हें नहलाया जाता है. सबको पता होता है कि इस रस्म के बाद वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहेंगी. जैसे उनकी मांएं पूरे जीवन सिस्ट, संक्रमण और बच्चे को जन्म देने से जुड़ी तकलीफें झेलती रही हैं. खतने की परंपरा 28 अफ्रीकी देशों में जारी है. यूरोप में रह रहे इन इलाकों के आप्रवासियों में भी ये किया जाता है.
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डरावना इंतजार
पोकोट समुदाय की लड़कियां रिफ्ट वैली के बारिंगो काउंटी की झोपड़ी में बैठी उस दर्दनाक घड़ी के पल गिनती हैं. केन्या में इसे 2011 में बैन कर दिया गया था. यूनीसेफ बताता है कि देश की 15 से 49 साल के बीच की उम्र वाली करीब 27 फीसदी महिलाओं का खतना हो चुका है. आमतौर पर खतना बेहोशी की दवा दिए बिना ही किया जाता है. साफ औजारों का इस्तेमाल ना होने के कारण महिलाएं जीवन भर कई तरह के संक्रमण झेलती हैं.
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सूक्ष्म पर्यवेक्षण
लड़कियों को बिना चीखे चिल्लाए उनके जननांगों को विकृत किए जाने का दर्द सहना होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस प्रक्रिया के दौरान करीब 10 फीसदी लड़कियां तुरंत दम तोड़ देती हैं, जबकि दूसरी 25 फीसदी इससे पैदा हुई तकलीफों के कारण कुछ समय बाद मारी जाती है. मौत के असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने का अनुमान है.
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पत्थर पर खून
अलग अलग कबीलों में खतने के तरीकों में अंतर है. पोकोट समुदाय में योनि का मुंह सिल दिया जाता है. डब्ल्यूएचओ ने तीन तरह के तरीकों का उल्लेख किया है. पहले में क्लिटोरिस को निकाल दिया जाता है, दूसरे में लेबिया माइनोरा को भी काट देते हैं और तीसरे तरीके में लेबिया मेजोरा को भी निकाल दिया जाता है और केवल एक छेद छोड़कर बाकी घाव को सिल देते हैं.
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सफेद रंग की पुताई
पोकोट परंपरा में लड़की का शरीर सफेद रंग से रंगा जाता है. ये पहले से ही मान के चलते हैं कि इस प्रक्रिया के कारण लड़की की मौत होने की काफी संभावना है. कई देशों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. 2014 में केन्या में एक स्पेशल पुलिस टुकड़ी बनाई गई और इन मामलों की रिपोर्ट देने के लिए हॉटलाइन भी बनी है.
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जीवन भर का सदमा
इस दर्दनाक प्रक्रिया के बाद सदमे से ग्रस्त लड़की को ले जाकर जानवर की खाल में लपेटा जाता है. पोकोट अब इस लड़की को शादी के लायक मानते हैं. ऐसी लड़की के मां बाप उसकी शादी के लिए ऊंची कीमत मांग सकते हैं. इनका मानना है कि इससे महिला ज्यादा साफ, ज्यादा बच्चे पैदा करने लायक और पति के लिए ज्यादा वफादार हो जाती है.
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मां से बेटी को?
कोई लड़की कभी वह दर्दनाक अनुभव नहीं भूल सकती. ये छोटी सी लड़की जो खुद खतने को मजबूर थी क्या अपनी बेटी को बचा पाएगी? कुछ देशों में बहुत छोटे बच्चों का खतना किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगहों पर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है और जब एक छोटा बच्चा रोता है तो वह कम ध्यान खींचता है.