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कारोबारभारत

गोफर्स्ट की हालत क्या कहती है भारत में विमानन के बारे में

चारु कार्तिकेय
३ मई २०२३

गोफर्स्ट एयरलाइंस ने स्वैच्छिक रूप से दिवालियापन की कार्यवाही के लिए आवेदन दायर किया है. हाल के सालों में किंगफिशर और जेट एयरवेज के बंद होने के बाद गोफर्स्ट बंद होने के कगार पर पहुंचने वाली तीसरी एयरलाइंस कंपनी है.

गोफर्स्ट
गोफर्स्ट, जो पहले गोएयर थीतस्वीर: Rafiq Maqbool/AP Photo/picture alliance

लंबे समय से पैसों की तंगी का सामना कर रही गोफर्स्ट ने राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) को स्वैच्छिक रूप से दिवालियापन की कार्यवाही के लिए आवेदन दिया है. कंपनी ने अपनी बुरी माली हालत का जिम्मेदार हवाई जहाजों के इंजन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी को ठहराया है.

नुस्ली वाडिया समूह की कंपनी गोफर्स्ट का आरोप है कि लंबे समय से प्रैट एंड व्हिटनी द्वारा उपलब्ध कराए गए इंजन फेल हो रहे थे जिसकी वजह से गोफर्स्ट के 25 विमान बेकार पड़े हैं. ये कंपनी के कुल विमानों की आधी संख्या के बराबर है और कंपनी का कहना है कि इस वजह से उसे काफी वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ा है.

10,800 करोड़ रुपयों का घाटा

कंपनी ने कहा कि यह समस्या जनवरी 2020 से चल रही है और तब से लेकर अभी तक प्रैट एंड व्हिटनी के खराब इंजनों की वजह से बेकार पड़े जहाजों की संख्या सात प्रतिशत से 50 प्रतिशत पर पहुंच गई. गोफर्स्ट ने यह भी कहा कि सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर ने प्रैट एंड व्हिटनी को आदेश दिया था कि वो 27 अप्रैल तक कम से कम 10 अतिरिक्त इंजन लीज पर और फिर दिसंबर तक हर महीने 10 अतिरिक्त इंजन लीज पर भेज दे.

हाल में अकासा जैसी नई विमानन कंपनियां भी शुरू हुई हैंतस्वीर: Rafiq Maqbool/AP Pictures/picture alliance

लेकिन गोफर्स्ट के मुताबिक अगर प्रैट एंड व्हिटनी ने ऐसा किया होता तो कंपनी अगस्त या सितंबर तक पूरी तरह से अपना काम धाम फिर से शुरू कर सकती थी, लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हुआ इस वजह से गोफर्स्ट वित्तीय संकट में फंस गईहै. कंपनी के कहा कि उसके प्रोमोटर वाडिया समूह ने पिछले तीन सालों में कंपनी में करीब 3,200 करोड़ रुपए लगाए हैं.

इसके अलावा कंपनी को सरकार की इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना का भी लाभ मिला है. लेकिन कंपनी का कहना है कि इन सब कोशिशों के बावजूद प्रैट एंड व्हिटनी के खराब इंजनों की वजह से हुए बड़े घाटे को रोका नहीं जा सका और गोफर्स्ट को अभी तक खोई कमाई और अतिरिक्त खर्च मिला कर 10,800 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ है.

इन आरोपों का खंडन करते हुए प्रैट एंड व्हिटनी ने एक बयान में कहा है कि वो आर्बिट्रेशन के आदेश का पालन कर रही है और चूंकि यह मामला अब अदालत में है, वो इस संबंध में और कुछ नहीं कहेगी. 

गोफर्स्ट ने कहा कि एनसीएलटी जब आवेदन का निपटारा कर देगा तो उसके बाद एक अंतरिम समाधान अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा जो कंपनी को चलाएगा.

विमानन क्षेत्र की समस्याएं

मीडिया रिपोर्टों में अनुमान लगाया गया है कि कंपनी में अभी भी करीब 5,000 कर्मचारी काम करते हैं, लेकिन उन्हें हाल के सालों में कई बार वेतन को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ा है. कंपनी ने एनसीएलटी को आवेदन देने के साथ ही अपनी सभी उड़ानें भी रद्द कर दी हैं. हजारों यात्रियों को असुविधा तो हो ही रही है, कर्मचारियों के भविष्य के बारे में क्या होगा इसे लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है.

गोफर्स्ट के इस संकट को भारत के विमानन क्षेत्र की समस्याओं से जोड़ कर देखा जा रहा है. कंपनी जेट एयरवेज के बाद एनसीएलटी में आवेदन देने वाली दूसरी विमानन कंपनी बन गई है. जेट एयरवेज से पहले किंगफिशर भी बंद हो गई थी. हालांकि, भारत के विमानन क्षेत्र का पिछले कुछ सालों का इतिहास सिर्फ कंपनियों के बंद हो जाने की कहानी नहीं है.

इन सालों में एयर एशिया, विस्तारा और अकासा जैसी नई कंपनियां भी शुरू हुई हैं. जेट को भी दोबारा शुरू करने की कोशिशें चल रही हैं. एयर इंडिया को टाटा समूह द्वारा सरकार से खरीद लेने के बाद इस कंपनी ने भी विमानन क्षेत्र में नयी उम्मीदें जगाई हैं.

कंपनी ने एक बड़ा वैश्विक खिलाड़ी बनने की अपनी रणनीति के तहत फरवरी में 470 नए जहाज खरीदने का आर्डर भी दिया था. इन सभी जहाजों को आने में दो से तीन साल का समय लग सकता है.

विमान में उड़ना क्यों इतना नुकसानदेह है

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इंडिगो ने 300 जहाजों का आर्डर 2019 में ही दे दिया था लेकिन वो जहाज अभी तक नहीं आये हैं. इस बीच विमानन क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं. हवाई जहाज में यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

भारत आज अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक विमानन बाजार है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक उम्मीद है कि 2030 तक देश इस मोर्चे पर बाकी दोनों देशों को पीछे छोड़ देगा. एक और रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस समय करीब 14 करोड़ लोग हवाई यात्रा करते हैं लेकिन 2030 तक इनकी संख्या बढ़ कर 35 करोड़ हो सकती है.

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