अमेरिकी राजनीति में भारतीयों के उभार का ऐतिहासिक क्षण
१६ जनवरी २०२४
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में विवेक रामास्वामी और निकी हेली भारतीय-अमेरिकी समाज के दो अलग-अलग हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं. आप्रवासी समुदाय के राजनीतिक उभार की यात्रा में यह एक ऐतिहासिक क्षण है.
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भारतीय मूल के अमेरिकी विवेक रामास्वामी ने डॉनल्ड ट्रंप के समर्थन में चुनावी मुकाबले से हटने का फैसला किया है. भले ही रामास्वामी अब दौड़ में नहीं हैं लेकिन निकी हेली के साथ मिलकर वह भारतीयों के अमेरिकी राजनीतिक में उभार का प्रतीक साबित हुए.
इस बार अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सबसे तीखी आलोचनाएं और हमले जिन उम्मीदवारों ने झेले हैं, उनमें विवेक रामास्वामीऔर निकी हेली हैं जो रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं. इनमें दोनों द्वारा एक दूसरे पर किए गए जबानी हमले भी शामिल हैं. रामास्वामी तो यहां तक चले गए कि उन्होंने एक आम बहस के दौरान एक पोस्टर हाथ में उठा लिया जिस पर लिखा था कि निकी हेली भ्रष्ट हैं. जवाब में साउथ कैरोलाइना की पूर्व गवर्नर और यूएन में राजदूत हेली ने रामास्वामी को कहा कि वह भरोसे के लायक नहीं हैं. अपने बच्चों पर टिप्पणी को लेकर तो वह रामास्वामी पर आग-बबूला हो गई थीं.
अमेरिकी राजनीति में निजी हमले कोई नई बात नहीं हैं. हेली और रामास्वामी दोनों में बड़ा फर्क ये है कि हेली राजनीति में लंबे समय से हैं जबकि 38 साल के रामास्वामी एक उद्योगपति हैं जिन्होंने अब तक कभी चुनावी राजनीति में कोई पद नहीं संभाला है. लेकिन दोनों के ही सामने राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवारी पाने की चुनौती बहुत बड़ी है क्योंकि एक-दूसरे से पार पाने के बाद उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंपका सामना करना है.
भारतीय मूल के उम्मीदवार
इन दोनों नेताओं में एक समानता और है. दोनों ही भारत से आकर अमेरिका में बसे माता-पिता की संतान हैं. अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के बीच हेली और रामास्वामी को लेकर राय बहुत अधिक बंटी हुई है. हालांकि बहुत से मुद्दों और राजनीतिक विचारधारा को लेकर बंटा भारतीय-अमेरिकी समाज पहले से ही अंदरूनी तनाव से ग्रस्त है.
किस देश में चुनावों पर होता है सबसे ज्यादा खर्च
लोक सभा चुनाव हों या विधान सभा चुनाव या स्थानीय निकायों के चुनाव, भारत में चुनावों में बेतहाशा खर्च किया जाता है. लेकिन क्या ऐसा सिर्फ भारत में होता है? आइए जानते हैं इस मामले में बाकी दुनिया का हाल.
तस्वीर: Raminder Pal Singh/NurPhoto/imago images
भारत का सबसे महंगा चुनाव
कुछ लोगों का मानना है कि भारत में 2019 में हुए लोक सभा चुनाव देश के इतिहास में सबसे महंगे चुनाव थे. निजी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक इन चुनावों में 600 अरब रुपये, या उस समय के हिसाब से आठ अरब डॉलर से थोड़ा ज्यादा, खर्च हुए.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
अमेरिका, 2016
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2016 में हुए चुनावों में लगभग भारत जितना ही, यानी करीब आठ अरब डॉलर, खर्च हुआ.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP/Getty Images
अमेरिका, 2020
सीआरपी के अनुमान के मुताबिक 2020 में अमेरिका में हुए चुनावों में 16 अरब डॉलर से भी ज्यादा खर्च हुए. यह संभवतः पूरी दुनिया में सबसे महंगे चुनाव थे.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
अमेरिका, 2022
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2022 में हुए मध्यावधि चुनावों में करीब नौ अरब डॉलर खर्च हुए हैं. इसमें से जॉर्जिया में सीनेट की सीट के लिए हुआ चुनाव सबसे ज्यादा महंगा रहा. यहां 40 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा खर्च किया गया.
तस्वीर: Oliver Contreras - Pool via CNP/picture alliance
ब्राजील
ब्राजील में 2022 में हुए चुनावों में वहां की स्थानीय मुद्रा रियाइस में 12.6 अरब खर्च हुआ, जो करीब 2.4 अरब डॉलर के बराबर है. अनुमान है कि वोटरों को लुभाने के लिए जो रकम खर्च हुई उसे मिला दें तो यह धनराशि काफी ज्यादा हो जाएगी.
तस्वीर: Andre Penner/AP Photo/picture alliance
ब्रिटेन
इन सबकी तुलना में कई अमीर देशों में चुनावी अभियान पर इतना खर्च नहीं होता. जैसे ब्रिटेन में 2019 में हुए संसदीय चुनावों में अभियान बस महीने भर से थोड़े ज्यादा समय तक चला और उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर कड़ा नियंत्रण रखा गया. ब्रिटेन के चुनाव आयोग के मुताबिक 2019 के चुनावों में करीब 5.6 करोड़ पौंड या करीब 6.8 करोड़ डॉलर खर्च हुए.
तस्वीर: Frank Augstein/AP Photo/picture alliance
फ्रांस
फ्रांस में भी चुनावी खर्च पर कड़ा नियंत्रण है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2022 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनावों में सभी उम्मीदवारों ने कुल मिला कर 8.3 करोड़ यूरो या करीब 8.8 करोड़ डॉलर खर्च किए. राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने सबसे ज्यादा, 1.67 करोड़ यूरो, खर्च किए. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Thomas Coex/AFP/Getty Images
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इसके बावजूद एक बात पर राय बिल्कुल बंटी हुई नहीं है कि इस बार के चुनाव में जिस तरह भारतीय मूल के उम्मीदवारों की ताकत दिखी है, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. अमेरिका के सबसे धनी आप्रवासी समुदाय के रूप में जाने जाने वाले भारतीय-अमेरीकियों की सफलता का यह एक और प्रतीक बन गया है.
इंडियन-अमेरिकन इंपैक्ट नामक संगठन के संस्थापक और कैन्सस में पूर्व विधायक राज गोयल कहते हैं कि अन्य आप्रवासी समुदायों को अमेरिकी राजनीति में इस तरह सक्रिय होने से पहले कहीं ज्यादा मजबूत होना पड़ा है.
वह कहते हैं, "जहां तक राजनीतिक सफलता की बात है तो अन्य आप्रवासीय समुदायों की तुलना में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की यात्रा ज्यादा तेज रही है.”
गोयल कहते हैं कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय कई मायनों में दूसरों से अलग है क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित और पेशेवर भारतीय अमेरिका रहने आए हैं और अन्य अमेरिकी समुदायों में उनका बड़ा सम्मान है.
गोयल बताते हैं, "जब समुदाय के लोग पहली बार चुने गए थे तो हमें सोचना पड़ता था कि हमारे मूल को लेकर लोग क्या सोचेंगे. हालांकि अब भी नस्लवाद मौजूद है लेकिन अब यह आगे बढ़ने के लिए एक बड़ा तर्क बन गया है.”
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धार्मिक पहचान का सवाल
वैसे बहुत कम लोग ही ऐसा मानते थे कि विवेक रामास्वामी के राष्ट्रपति बनने की कोई संभावना है. लेकिन अपने धर्म को लेकर जिस तरह से रामास्वामी मुखर रहे, उसे अमेरिकी राजनीति में एक ऐतिहासिक पल माना जा रहा है. आयोवा में एक बहस के दौरान जब उनसे उनके धर्म के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैं हिंदू हूं. मैं अपनी पहचान छिपाऊंगा नहीं.”
अपने हिंदू धर्म को रामास्वामी ने ईसाइयत के मूल्यों से जोड़ते हुए कंजर्वेटिव विचारधारा में जगह बनाने की कोशिश की है. डॉनल्ड ट्रंप की तरह उन्होंने भी कथित ‘वोक पॉलिटिक्स' की आलोचना की है और समलैंगिक शादियों जैसे मुद्दों पर वही रुख अपनाया है जो रूढ़िवादी ईसाई समाज का है.
भारतीय मूल के नेता जो विश्व भर में छाए
अब तक कई भारतीय मूल के लोग दुनिया भर की सरकारों में तमाम अहम पद संभाल चुके हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा से लेकर मॉरीशस, फिजी, गुयाना जैसे देशों में भी भारतवंशी नेताओं का लंबा इतिहास रहा है.
तस्वीर: Kirsty Wigglesworth/AP/dpa
ऋषि सुनक
ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री बन रहे हैं जो भारतीय मूल के हैं. कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य ऋषि सुनक फरवरी 2020 से ब्रिटिश कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे हैं. इसके पहले वह ट्रेजरी के मुख्य सचिव थे. ऋषि सुनक 2015 में रिचमंड (यॉर्क) से संसद सदस्य के रूप में चुने गए थे. सुनक भारत की कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और लेखिका सुधा मूर्ति के दामाद हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/S. Rousseau
कमला हैरिस
अमेरिका में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रैट पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार चुनी गई हैं कमला हैरिस. वह डेमोक्रैट पार्टी की ओर से अमेरिकी कांग्रेस में पांच सीटों पर काबिज भारतीय मूल के सीनेटरों में से एक हैं. कमला हैरिस की मां का नाम श्यामला गोपालन है. किशोरावस्था तक कमला हैरिस अपनी छोटी बहन माया हैरिस के साथ अकसर तमिलनाडु के अपने ननिहाल में आया करती थीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Kaster
निक्की हेली
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की दूत रह चुकीं निक्की हेली का नाम बचपन में निमरता निक्की रंधावा था. 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन में जगह पाने वाली वह भारतीय मूल की पहली राजनेता बनीं. इससे पहले वह दो बार साउथ कैरोलाइना की गवर्नर रह चुकी थीं. उनके पिता अजीत सिंह रंधावा और मां राजकौर रंधावा का संबंध पंजाब के अमृतसर जिले से है. शादी के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Pal Singh
बॉबी जिंदल
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक के रूप में सबसे पहले बॉबी जिंदल लुइजियाना के गवर्नर बने थे. इस तरह निक्की हेली अमेरिका में किसी राज्य की गवर्नर बनने वाली भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी नागरिक हुईं. जिंदल एक बार रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी भी पेश कर चुके हैं. उनके माता पिता भारत से अमेरिका जाकर बसे थे.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press
प्रीति पटेल
ब्रिटेन की पहली भारतीय मूल की गृह मंत्री बनीं पटेल हिंदू गुजराती प्रवासियों के परिवार से आती हैं. माता-पिता पहले अफ्रीका के युगांडा जाकर बसे थे जहां उनका जन्म हुआ. 1970 के दशक में उनका परिवार ब्रिटेन आकर बसा. 2010 में कंजर्वेटिव पार्टी से चुनाव जीतकर ब्रिटिश संसद पहुंची प्रीति पटेल खुद बाहर से आकर देश में शरण लेने के इच्छुकों के प्रति काफी सख्त रवैया रखती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA Wire/S. Rousseau
अनीता आनंद
कनाडा की कैबिनेट में भारतीय मूल के लोगों की भरमार है. पब्लिक सर्विसेज एंड प्रोक्योरमेंट की केंद्रीय मंत्री अनीता इंदिरा आनंद कनाडा की कैबिनेट में शामिल होने वाली पहली हिंदू महिला हैं. इससे पहले वह टोरंटो विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर थीं. भारत से आने वाले इनके माता पिता मेडिकल पेशे से जुड़े रहे. मां स्वर्गीया सरोज राम अमृतसर से और पिता एसवी आनंद तमिलनाडु से आते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/A. Wyld
नवदीप बैंस
ट्रूडो कैबिनेट में साइंस, इनोवेशन एंड इंडस्ट्री मंत्री नवदीप बैंस कनाडा के ओंटारियो प्रांत में जन्मे थे. सिख धर्म के मानने वाले इनके माता पिता भारत से वहां जाकर बसे थे. 2004 में केवल 26 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता और कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के सबसे युवा सांसद बने. अपने राजनीतिक करियर में बैंस ने हमेशा इनोवेशन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की दिशा में काम किया है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/The Canadian Press/D. Kawai
हरजीत सज्जन
भारत के पंजाब के होशियारपुर में जन्मे हरजीत सज्जन इस समय कनाडा के रक्षा मंत्री हैं. कनाडा की सेना में लेफ्टिनेंट-कर्नल के रूप में सेवा दे चुके सज्जन इससे पहले 11 सालों तक पुलिस विभाग में भी काम कर चुके हैं. पंजाब में ही जन्मे नेता हरबंस सिंह धालीवाल 1997 में कनाडा की केंद्रीय कैबिनेट के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय-कनाडाई थे.
तस्वीर: Reuters/C. Wattie
महेन्द्र चौधरी
दक्षिणी प्रशांत महासागर क्षेत्र में बसे द्वीपीय देश फिजी में भारतीय मूल के लोग ना केवल सांसद या मंत्री बल्कि देश के प्रधानमंत्री तक बने हैं. यहां की 38 फीसदी आबादी भारतीय मूल की ही है. लेबर पार्टी के नेता चौधरी को 1999 में देश का प्रधानमंत्री चुना गया. लेकिन एक साल के बाद ही एक सैन्य तख्तापलट से सरकार गिर गई. एक बार फिर 2006 के संसदीय चुनाव जीत कर वह वित्त मंत्री बने.
तस्वीर: Getty Images/R. Land
लियो वरादकर
2017 में आयरलैंड के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने लियो वरादकर कंजरवेटिव फिन गेल पार्टी से आते हैं. डब्लिन में पैदा हुए और पेशे से डॉक्टर वरादकर 2007 में पहली बार सांसद बने. 2015 में समलैंगिक विवाह पर आयरलैंड में हुए जनमत संग्रह के दौरान उन्होंने सार्वजनिक तौर पर घोषित किया कि वे खुद समलैंगिक हैं. उनके पिता अशोक मुंबई से आए एक डॉक्टर थे और आयरलैंड में मिरियम नाम की एक नर्स के साथ शादी कर वहीं बस गए.
तस्वीर: DW/G. Reilly
एंतोनियो कॉस्ता
पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंतोनियो कॉस्ता भारत में गोवा से ताल्लुक रखते हैं. 2017 में वह प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजे गए थे. खुद सोशलिस्ट विचारधारा के समर्थन कॉस्ता ज्यादा से ज्यादा प्रवासियों के अपने देश में आने का स्वागत करते हैं. पहले उनके पिता गोआ से मोजाम्बिक गए और फिर उनका परिवार पुर्तगाल में बसा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Tribouillard
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हालांकि किसान-बहुल रूढ़िवादी राज्य आयोवा में वह लोगों के सामने यह कहने से भी नहीं झिझके कि वह ‘अपने धर्म के कारण शाकाहारी हैं.' ऐसा तब हुआ जब ट्रंप के प्रचार-सहयोगी क्रिस ला सीविटा ने रामास्वामी को "फ्रॉड” कहते हुए मतदाताओं से उनके "खान-पान को लेकर सचेत” रहने की बात कही.
विवेक रामास्वामी ने अपने अलग होने को लेकर जिस तरह की मुखरता दिखाई है, वैसा पहले नहीं हुआ था. अब तक अधिकतर लोग अमेरिकी मूल्यों को अपना लेने की बात पर जोर देते रहे हैं. जैसे कि निकी हेली ईसाइयत अपना लेने को अपना मूल तर्क बनाती हैं. निमरता निकी रंधावा के नाम से साउथ कैरोलाइना में जन्मीं हेली ने अपने पति का उपनाम अपनाया है.
इससे पहले लुइजियाना के पूर्व गवर्नर और कभी राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर चुके बॉबी जिंदल ने भी ईसाई धर्म अपनाने की बात पर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की थी. अमेरिकी राजनीति में एक और बड़ा भारतीय-अमेरिकी नाम मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने अपनी अश्वेत पहचान को तर्क बनाया था. हालांकि उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को भी ना छोड़ने की बात कही थी. 2020 के चुनाव में उनका एक वीडियो जारी किया गया था जिसमें वह अपने घर में मसाला डोसा बनाती नजर आई थीं.
2020 की ये तस्वीरें रहेंगी याद
कोरोना महामारी 2020 में दुनिया भर में तबाही मचाती रही. लेकिन इस साल में और भी बहुत कुछ घटा, देखिए कुछ दिलचस्प तस्वीरों के जरिए.
तस्वीर: Kathleen Flynn/REUTERS
ऑस्ट्रेलिया की आग
जनवरी 2020 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में भीषण आग लगी. न्यू साउथ वेल्स में रहने वाले नैंसी और ब्रायन एलन के घर के पीछे धुएं का गुबार उसी की निशानी है. इस आग में 34 लोग मरे और यूरोपीय देश आयरलैंड के आकार जितना जंगल जलकर खाक हो गया.
तस्वीर: Tracey Nearmy/REUTERS
नफरत का शिकार
चेचिन गुल्टेकिन अपने 37 वर्षीय भाई गोखन को याद कर रहे हैं जो आठ दूसरे लोगों के साथ जर्मनी के हनाऊ में एक नस्लीय हमले में मारे गए. हमलावर ने खुद की और अपनी मां की जान भी ले ली. हमले में मारे गए लोगों के चित्र कुछ कलाकारों ने 27 मीटर लंबी इस दीवार पर उकेरे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
इंसानियत की मिसाल
लंदन में ब्लैक लाइव्स मैटर प्रदर्शन के दौरान ली गई यह तस्वीर इंसानियत की मिसाल बन गई. इसमें पैट्रिक हचिंसन एक घायल प्रदर्शनकारी को सुरक्षित जगह पर ले जा रहे हैं. यह प्रदर्शनकारी धुर दक्षिणपंथियों का विरोध करने वहां पहुंचा था. इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर बहुत सराहना मिली.
तस्वीर: Dylan Martinez/REUTERS
जीवित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी
पौलैंड की राजधानी वारसा में अपने मोबाइल की टॉर्च को जलाकर प्रदर्शन कर रही इस महिला को कई लोगों ने जीवित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी कहा. वह बेलारूस के विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद विपक्षी उम्मीदवार से एकजुटता जताने के लिए बेलारूसी दूतावास के सामने प्रदर्शन के लिए जमा लोगों में शामिल थी.
तस्वीर: Kacper Pempel/REUTERS
मलबे से संगीत
लेबनान की राजधानी बेरुत में अगस्त में एक जोरदार धमाका हुआ, जिससे 200 लोग मारे गए और बहुत से लोग बेघर हो गए. संगीतकार रेमंड एसयान का घर भी तहस नहस हो गया. लेकिन उन्होंने मलबे से अपने पियानों के हिस्से निकालकर उन्हें जोड़ा. इसके बाद बनाया उनका म्यूजिक वीडियो तेजी से वायरल हो गया.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
जादू की झप्पी
जोफेस वैरोन अमेरिका के टेक्सस में कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे थे कि एक बुजुर्ग व्यक्ति उनसे आकर लिपट गया. वैरोन ने पूछा, "आप क्यों रो रहे हैं?" बाद में उस व्यक्ति ने मीडिया को बताया, "मैं अपनी पत्नी से मिलना चाहता था. इसीलिए मैं उनसे लिपट गया और जकड़ लिया."
तस्वीर: Go Nakamura/Getty Images
व्हेल की पूंछ ने बचा लिया
नहीं, यह नजरों का धोखा नहीं है. नीदरलैंड में नवंबर के महीने में एक ट्रेन पटरी से उतरी तो वहां बनी व्हेल की एक विशाल मूर्ति ने उसे थाम लिया. शुक्र है कि उस वक्त ट्रेन में कोई व्यक्ति नहीं था. इस हादसे में कोई घायल नहीं हुआ. लेकिन तस्वीर दुनिया भर में वायरल हो गई.
तस्वीर: Robin Utrecht/ANP/AFP
मास्क वाली पहचान
एमटीवी यूरोप म्यूजिक अवॉर्ड्स में अपनी वर्चुअल परमॉर्मेंस के लिए अमेरिकी गायिका एलिसिया कीज ने साइबोर्ग की तरह कपड़े पहने. परफॉर्मेंस के आखिर में ही उन्होंने अपनी पहचान दुनिया को दिखाई. सबसे पॉपुलर इवेंट्स में एक में उनकी इस परफॉर्मेंस के खूब चर्चे हुए.
तस्वीर: Rich Fury/MTV/Getty Images
कोई चांस नहीं लेना
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान यह तस्वीर बहुत मशहूर हुई. इसमें डाना क्लार्क अपने 18 महीने के बेटे साथ वोट डालने के लिए लाइन में खड़ी हैं. उन्होंने खुद को और अपने बच्चे को महामारी से बचाने के लिए ऐसा किया. उन्हें भरोसा नहीं था कि पोलिंग बूथ पर कितने लोग मास्क पहनेंगे या कितने नहीं.
तस्वीर: Kathleen Flynn/REUTERS
अमेरिकी चुनाव, भारत में दुआ
अमेरिकी चुनाव के दौरान दक्षिण भारत के इस गांव में डेमोक्रैटिक उम्मीदवारों की जीत के लिए पूजा अर्चना हो रही थी. यह गांव अमेरिका की नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की मां के पूर्वजों का है. यह गांव तमिलनाडु में पड़ता है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हेल्दी क्रिसमस
डेनमार्क के आलबोर्ग चिड़ियाघर में एक सेंटा ने बर्फ के गोले के भीतर से बच्चों को क्रिसमस की शुभकामनाएं दीं. ऐसा इसलिए ताकि सेंटा और बच्चों को कोरोना वायरस से बचाया जा सके. साल 2020 ने बहुत कुछ बदल दिया. हमारी जीने के अंदाज और तौर तरीके भी.
तस्वीर: Henning Bagger/REUTERS
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अमेरिकन यूनिवर्सिटी में स्कॉलर और भारतीय-अमेरीकियों की राजनीति पर शोध करने वालीं मैना चावला सिंह कहती हैं कि अपनी पहचान को लेकर भारतीय मूल के उम्मीदवार कई तरह के प्रयोग करते रहे हैं. सिंह के मुताबिक भारतीय-अमेरिकी समुदाय के राजनीतिक उभार में बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने का बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिन्होंने अपने चुनाव प्रचार के लिए टीम में बहुत से भारतीयों को शामिल किया था.
सिंह कहती हैं, "भारतीय-अमेरीकियों ने बहुत से क्षेत्रों में अपने आपको स्थापित किया है और शायद यह आखिरी क्षेत्र है जिसे उन्हें जीतना है.”
एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि भारतीय मूल के लोगों को आमतौर पर डेमोक्रैटिक पार्टी का पक्षधर माना जाता है. ऐसा तब है जबकि बॉबी जिंदल, निकी हेली और विवेक रामास्वामी जैसे कई बड़े नेता रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े रहे हैं.
बंटे हुए अमेरिकी-भारतीय
भारतीय मूल के अमेरिकी लेखिका दीपिका भंभानी कहती हैं कि रामास्वामी और हेली के बीच जो विवाद है, वह भारतीय समुदाय के बीच बंटवारे का ही प्रतीक है. निकी हेली अपने माता-पिता की कपड़े की दुकान में मदद करते हुए बड़ी हुई हैं जबकि रामास्वामी एक इंजीनियर पिता और मनोवैज्ञानिक मां के बेटे हैं, जिन्होंने आईवी लीग से शिक्षा हासिल की.
वॉशिंगटन में रहने वालीं भंभानी कहती हैं, "जब मैंने हेली के लिए रामास्वामी की चिढ़ देखी तो मैं समझ गई कि यह कहां से आई है. वे धनी भारतीय हैं जो अमेरिकी मूल्यों को अपनाने वाले, अमेरीकियों से शादी करने वाले, दूसरी पद्धतियों से पूजा करने वाले अन्य भारतीयों से चिढ़ते हैं. रामास्वामी जिस तरह हेली की आलोचना करते हैं वह हम बहुत से भारतीयों को क्रोधित करता है. इस देश में दूसरे रंग के लोगों को और बहुत कुछ झेलना पड़ता है. क्या एक भारतीय बहन पर छींटाकशी करने के लिए एक भारतीय की ही कमी रह गई है?”
वैसे, भंभानी कहती हैं कि भारतीय मूल के अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार भी आखिर अमेरिकी ही हैं, चाहे वे परिवार के लिए प्रतिबद्धता जैसे भारतीय मूल्यों पर कायम हैं. वह कहती हैं, "एक ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर देखना सुखदायक होगा जो उन मूल्यों में विश्वास करता है.”