एथेनॉल मिले पेट्रोल को लेकर परेशान लोग
३१ अगस्त २०२५
भारत में 20 फीसदी एथेनॉल मिले पेट्रोल (ई20) ने उपभोक्ताओं और वाहन उद्योग के बीच बहस छेड़ दी है. ऑटोमोबाइल कंपनियों का कहना है कि इस ईंधन से वाहनों का माइलेज 2 फीसदी से 4 फीसदी तक घटता है, लेकिन सुरक्षा को लेकर कोई जोखिम नहीं है. दूसरी ओर, पुराने वाहनों के मालिक बड़ी गिरावट की शिकायत कर रहे हैं और अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सार्वजनिक हित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है.
"माइलेज घटा, पर सुरक्षा चिंता नहीं”
भारत ने 2025 तक 20 फीसदी एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य तय किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छ ऊर्जा योजना के तहत इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया. लेकिन हाल के हफ्तों में देशभर के लगभग 90,000 पेट्रोल पंपों पर अब केवल ई20 ही उपलब्ध है. पहले जिन पुराने मिश्रणों (ई5 और ई10) को पुराने वाहनों के लिए अधिक अनुकूल माना जाता था, उन्हें बंद कर दिया गया है.
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के कार्यकारी निदेशक पीके बनर्जी ने शनिवार को कहा कि पुराने वाहनों में भी ई20 सुरक्षित है, भले ही माइलेज पर असर पड़ता हो. उन्होंने कहा, "लाखों वाहन लंबे समय से ई20 पर चल रहे हैं. अब तक एक भी इंजन के फेल होने या वाहन खराब होने की घटना सामने नहीं आई है. यदि कोई समस्या आती है तो कंपनियां वॉरंटी और बीमा दावे पूरी तरह मानेंगी.”
बनर्जी ने यह भी साफ किया कि सोशल मीडिया पर फैली 50 फीसदी माइलेज गिरने की आशंकाएं गलत और भ्रामक हैं. उन्होंने कहा कि नियंत्रित माहौल में किए गए वैज्ञानिक परीक्षणों में अधिकतम 2-4 फीसदी कमी पाई गई है. हालांकि, वास्तविक परिस्थितियों में गिरावट इससे थोड़ी अधिक हो सकती है क्योंकि यह वाहन की स्थिति और ड्राइविंग के तरीके पर निर्भर करती है.
मारुति सुजुकी के मुख्य तकनीकी अधिकारी सीवी रामन ने कहा, "सड़क पर नतीजे अलग हो सकते हैं. वाहनों की देखरेख कैसे की जाती है और वे कैसे चलाए जाते हैं, इससे फर्क पड़ता है.”
मारुति सुजुकी, हुंडई, महिंद्रा, टाटा मोटर्स और टोयोटा जैसी प्रमुख वाहन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने ईंधन खुदरा विक्रेताओं और उद्योग संगठनों के साथ मिलकर एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह संदेश देने की कोशिश की कि उपभोक्ताओं को डरने की जरूरत नहीं है.
उपभोक्ता की उलझन और कानूनी चुनौती
फिर भी, कई वाहन मालिकों का कहना है कि उनके वाहनों का माइलेज अचानक काफी घट गया है. एक्स और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं ने शिकायतें दर्ज की हैं और कंपनियों की बदलती बयानबाजी को लेकर गुस्सा भी जताया है. शुरू में कुछ कार निर्माताओं ने कहा था कि पुराने वाहनों के लिए ई20 सही है या नहीं, इसका परीक्षण नहीं हुआ है, लेकिन बाद में बयान बदलते हुए इसे सुरक्षित बताया.
ऑटो उद्योग पहले से ही घटती बिक्री और रेयर-अर्थ मैग्नेट की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है. अब ईंधन विकल्प खत्म होने से उपभोक्ताओं की नाराजगी और बढ़ गई है. कई ड्राइवर कह रहे हैं कि उनसे "चुनने का अधिकार छीन लिया गया है” और वे मजबूरी में ई20 का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इसी पृष्ठभूमि में अब ई20 की अनिवार्यता को चुनौती देते हुए एक सार्वजनिक हित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है. याचिका में दलील दी गई है कि सरकार ने उपभोक्ताओं को विकल्प दिए बिना नए ईंधन को थोप दिया है और इससे लाखों वाहन मालिकों पर आर्थिक बोझ पड़ेगा. अदालत इस पर सोमवार को सुनवाई करेगी.
सरकार की ओर से तर्क है कि एथेनॉल मिश्रण से आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता घटती है, पर्यावरण प्रदूषण कम होता है और गन्ना उत्पादक किसानों को भी लाभ मिलता है. लेकिन उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि बिना व्यापक परीक्षण और विकल्प दिए इसे लागू करना जल्दबाजी है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है. ऐसे में यहां के ड्राइवरों की चिंताएं और कंपनियों की सफाई सिर्फ घरेलू स्तर पर नहीं, बल्कि वैश्विक ऑटो उद्योग पर भी असर डालती हैं. आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का रुख और सरकार की नीति ही तय करेगी कि ई20 कार्यक्रम को लेकर उपभोक्ता असंतोष किस तरह दूर किया जा सकता है.