ऑस्ट्रेलिया के 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा में अब भारत भी
विवेक कुमार, सिडनी से
१६ सितम्बर २०२४
अपने वादे को पूरा करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने वीजा नियमों में ऐसे बदलाव कर दिए हैं जिनके तहत 1,000 भारतीयों को ऑस्ट्रेलिया में छुट्टी मनाते हुए काम करने का अधिकार मिलेगा.
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यूरोपीय देशों के निवासियों की तरह अब भारतीयों को भी ऑस्ट्रेलिया में छुट्टी के दौरान काम करने के लिए वीजा मिलेगा. ऑस्ट्रेलियाई गृह मंत्रालय ने वीजा नियमों में महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है, जिसके तहत भारत को सबक्लास 462 (वर्क एंड हॉलीडे) वीजा कार्यक्रम में शामिल किया गया है. इस बदलाव का मकसद युवा भारतीयों के लिए ऑस्ट्रेलिया में मौके बढ़ाना और ऑस्ट्रेलिया व प्रमुख साझेदार देशों, जैसे भारत, चीन और वियतनाम के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंधों को मजबूत करना है.
हाल ही में माइग्रेशन ऐक्ट में जोड़े गए एक संशोधन के तहत भारत को आधिकारिक रूप से 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया है. 16 सितंबर 2024 से भारत के पासपोर्ट धारक नागरिक इस वीजा के लिए आवेदन कर सकेंगे. यह वीजा 18 से 30 साल के युवाओं को ऑस्ट्रेलिया में काम करते हुए घूमने और अपने खर्चों को पूरा करने का मौका देगा.
वे देश जहां वर्क वीजा मिलना आसान है
बहुत से भारतीय काम के लिए विदेश जाना चाहते हैं. ये उन देशों की सूची है, जहां का वर्क वीजा मिलना अन्य देशों की तुलना में आसान है.
तस्वीर: DW
कनाडा
इमिग्रेशन नीतियों के मामले में कनाडा दुनिया के सबसे लचीले देशों में से एक है. वहां हर साल बड़े पैमाने पर कुशल प्रवासी कामगारों को वर्क वीजा दिया जाता है. इनमें बहुत से भारतीय होते हैं.
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया का जनरल स्किल्ड माइग्रेशन प्रोग्राम विदेशों से कुशल कामगारों को आकर्षित करने के लिए ही बनाया गया है. हर साल करीब दो लाख लोगों को वर्क और फैमिली वीजा दिया जाता है. हाल के सालों में भारतीयों को मिलने वाले वीजा अन्य देशों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं.
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जर्मनी
जर्मनी में कुशल कामगारों की मांग बहुत ज्यादा है. आईटी, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुशल लोगों के लिए यहां बहुत मौके हैं और कई तरह के वीजा उपलब्ध हैं. साथ ही अत्यधिक होनहार लोगों के लिए ईयू ब्लूकार्ड भी है.
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न्यूजीलैंड
ऑस्ट्रेलिया की तरह न्यूजीलैंड में भी हर साल उन स्किल्स की सूची जारी होती है, जिनकी देश की अर्थव्यवस्था को जरूरत है. इस आधार पर सालाना वर्क वीजा दिए जाते हैं. बड़ी संख्या में भारतीयों के ये वीजा मिलते हैं.
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सिंगापुर
अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था और विदेशियों के लिए अच्छे माहौल के लिए जाना जाने वाला सिंगापुर कई तरह के वर्क वीजा देता है जिनमें इंपलॉयमेंट पास, एस पास, वर्क हॉलीडे पास और ट्रेनिंग इंपलॉयमेंट पास शामिल हैं.
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आयरलैंड
आयरलैंड में क्रिटिकल स्किल्स इंपलॉयमेंट परमिट दिया जाता है, जिसका मकसद स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए विदेशों से कुशल कारीगरों को आकर्षित करना है. इसके जरिए स्थायी नागरिकता भी हासिल की जा सकती है.
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संयुक्त अरब अमीरात
यूएई भारतीयों के लिए काफी समय से एक आकर्षक विकल्प रहा है. वहां के आसान वीजा नियम भारतीयों के लिए दुबई जाना और काम करना आसान बनाते हैं.
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नीदरलैंड्स
विदेशों में काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीयों के लिए नीदरलैंड्स भी एक विकल्प है जो वर्क या बिजनस वीजा देता है.
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चमन प्रीत, मेलबर्न स्थित 'माइग्रेशन एंड एजुकेशन एक्सपर्ट्स' की निदेशक हैं. यह कंपनी आप्रवासन और नागरिकता संबंधी सेवाएं देती है. 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा कार्यक्रम में ताजा बदलाव पर वह कहती हैं कि भारत को इस कार्यक्रम में शामिल करके ऑस्ट्रेलिया अपने सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय साझेदारों में से एक के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत कर रहा है.
डॉयचे वेले से बातचीत में चमन प्रीत ने कहा, "यह संशोधन भारतीय यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण मौका हो सकता है, जिससे वे ऑस्ट्रेलिया में घूमते हुए काम करने का लाभ उठा सकेंगे.”
भारतीय आवेदकों के लिए नियम
जो भारतीय नागरिक इस वीजा के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उन्हें कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी. खास बात यह है कि भारतीय आवेदकों को विदेशी सरकार के समर्थन का सबूत देने की शर्त में छूट दी गई है, जो कि आमतौर पर अन्य देशों के आवेदकों से मांगा जाता है.
पढ़ाई के लिए कौन सा देश जाना पसंद करते हैं भारतीय छात्र
2019 में उच्च शिक्षा के लिए 7,70,000 भारतीय छात्र विदेश गए थे और 2024 तक यह संख्या लगभग 18 लाख बढ़ने का अनुमान है. जानते हैं भारतीय छात्रों को कौन सा देश भा रहा है.
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कनाडा है पहली पसंद
विदेश में उच्च शिक्षा पर कंसल्टिंग फर्म रेडसीर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में उच्चा शिक्षा हासिल करने के लिए 2,20,000 भारतीयों ने कनाडा की यात्रा की, इसके बाद भारतीय छात्रों की पसंद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया है.
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अमेरिका में बेहतर भविष्य की तलाश
अच्छी शिक्षा और बेहतर भविष्य की तलाश में लाखों भारतीय छात्र विदेश पढ़ने जाते हैं. साल 2019 में 2,02,000 छात्रों ने पढ़ाई के लिए अमेरिका को चुना.
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ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा छात्र ऑस्ट्रेलिया में भी पढ़ना पसंद करते हैं. 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 1,43,000 छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया.
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क्या पढ़ते हैं भारतीय छात्र
विदेश में उच्च शिक्षा का विकल्प चुनने वाले अधिकांश भारतीय छात्र स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए वहां जाते हैं.
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अरबों डॉलर होते हैं खर्च
विदेश में पढ़ने वाले ये छात्र सामूहिक रूप से वार्षिक आधार पर अनुमानित 28 अरब डॉलर खर्च करते हैं.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW
पंजाब और आंध्र प्रदेश से सबसे ज्यादा छात्र जाते हैं विदेश
देश के सभी राज्यों के मुकाबले पंजाब और आंध्र प्रदेश से सबसे अधिक 12 फीसदी छात्र विदेश पढ़ने के लिए गए थे. अन्य राज्यों में महाराष्ट्र से 11 फीसदी छात्र विदेश गए. वहीं गुजरात से 8, कर्नाटक से 5 और तमिलनाडु से 7 और बाकी राज्यों से 45 फीसदी छात्र विदेशों में पढ़ने गए.
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हालांकि, भारतीय आवेदकों के लिए शैक्षिक योग्यता की कुछ शर्तें रखी गई हैं. यह सुनिश्चित किया गया है कि केवल वे उम्मीदवार आवेदन करें, जो जरूरी शैक्षिक योग्यताएं रखते हैं.
ऑस्ट्रेलियाई गृह मंत्रालय के मुताबिक भारतीय, चीनी और वियतनामी नागरिकों के लिए एक नई पूर्व-आवेदन प्रक्रिया (लॉटरी सिस्टम) शुरू की गई है. इसके जरिए इन देशों के नागरिक इस वीजा आवेदन के लिए चुने जाएंगे. इस पूर्व-आवेदन प्रक्रिया के तहत वीजा आवेदन के लिए उम्मीदवारों को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होगा और लॉटरी के जरिए उनका चयन किया जाएगा. मंत्रालय के मुताबिक, ऐसा आवेदन प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए है.
चुने हुए उम्मीदवारों को इसकी सूचना दी जाएगी. हालांकि, यदि कोई उम्मीदवार 31 वर्ष की आयु से पहले चुने नहीं जाते, रजिस्ट्रेशन वापस ले लेते हैं, या उनकी मृत्यु हो जाती है, तो उनका नाम सूची से हटा दिया जाएगा.
भारत के साथ समझौते का नतीजा
भारत को 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा कार्यक्रम में शामिल करने का निर्णय 2022 में ‘ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते‘ (ईसीटीए) के तहत लिया गया था. इस ऐतिहासिक समझौते में ऑस्ट्रेलिया ने हर साल 1,000 भारतीय युवाओं को 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा देने का वादा किया था. इसका उद्देश्य क्षेत्रीय पर्यटन और कामगारों को बढ़ावा देना और दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को गहरा करना है.
अब खाड़ी के देशों में कम जा रहे हैं केरल के लोग
केरल प्रवासन सर्वे 2023 की रिपोर्ट दिखा रही है कि जहां राज्य से प्रवासन करने वालों की संख्या में मामूली इजाफा हुआ है, वहीं घर वापस लौटने वालों की संख्या भी बढ़ी है. इसके अलावा खाड़ी के देशों का आकर्षण भी कम हुआ है.
तस्वीर: P.P. Afthab/AP
थोड़ा कम हुआ है प्रवासन
केरल प्रवासन सर्वे 2023 के मुताबिक, पिछले साल केरल से 22 लाख लोगों ने प्रवासन किया. यह संख्या 2018 में 21 लाख थी. 1998 में जब यह सर्वे शुरू हुआ था, तब केरल से 14 लाख लोगों ने प्रवासन किया था. 2013 में यह संख्या बढ़ कर 24 लाख हो गई थी, लेकिन उसके बाद से यह धीरे-धीरे घट रही है. अनुमान है कि करीब 50 लाख मलयालम-भाषी लोग भारत से बाहर रहते हैं.
दिलचस्प यह है कि रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में जहां 12 लाख मलयालम-भाषी भारत लौटे थे, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 18 लाख हो गई. बीते पांच सालों में वापस लौट आने वाले केरल के लोगों की संख्या 38.3 प्रतिशत बढ़ी है. वापस आने वालों में करीब 18.4 प्रतिशत लोगों ने लौटने का कारण नौकरी छूट जाना, 13.8 प्रतिशत ने कम वेतन, 11.2 प्रतिशत ने बीमारी या हादसा, 16.1 प्रतिशत ने केरल में काम करने की इच्छा को वजह बताया.
तस्वीर: UNI
खाड़ी के देशों का आकर्षण गिरा
मलयालम-भाषी प्रवासियों के बीच बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई का आकर्षण घटा है और इनके मुकाबले दूसरे देशों का चाव 19.5 प्रतिशत बढ़ा है. यानी 80.5 प्रतिशत मलयाली प्रवासी आज भी खाड़ी देश जाना ही पसंद करते हैं, लेकिन 1998 में यह आंकड़ा 93.8 प्रतिशत था. 2023 में खाड़ी देशों के बाद मलयालम-भाषी प्रवासियों ने ब्रिटेन (छह प्रतिशत), कनाडा (2.5 प्रतिशत), अमेरिका (2.2 प्रतिशत) और ऑस्ट्रेलिया को चुना.
तस्वीर: Jon Gambrell/AP/picture alliance
प्रवासी छात्रों की संख्या बढ़ी
प्रवासन करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है. 2023 में प्रवासन करने वाले सभी मलयालम-भाषियों में से 11.3 प्रतिशत छात्र थे. यह 2018 के मुकाबले दोगुनी संख्या है. छात्र खाड़ी देश जाना पसंद नहीं करते हैं.
तस्वीर: NurPhoto/picture alliance
महिलाओं की संख्या ज्यादा
महिला प्रवासियों की संख्या भी बढ़ी है. 2018 में जहां महिला प्रवासियों की हिस्सेदारी 15.8 थी, वहीं यह 2023 में बढ़कर 19.1 हो गई. इनमें 71.5 महिलाएं स्नातक थीं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा सिर्फ 34.7 प्रतिशत है. प्रवासी मलयाली महिलाओं में से 51.6 प्रतिशत बतौर नर्स काम करती हैं. करीब 40.5 प्रतिशत प्रवासी मलयाली महिलाएं पश्चिमी देशों में हैं.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture alliance
हिंदुओं से ज्यादा मुसलमान प्रवासी
प्रवासी मलयालम-भाषियों में 41.9 प्रतिशत मुसलमान हैं और 35.2 प्रतिशत हिंदू. केरल की आबादी में 26 प्रतिशत मुसलमान हैं और 54 प्रतिशत हिंदू. आबादी में 18 प्रतिशत ईसाई हैं, जबकि प्रवासियों में ईसाईयों की हिस्सेदारी 22.3 प्रतिशत है.
तस्वीर: R S Iyer/AP/picture alliance
विदेश से भेज रहे धन
रेमिटेंस (विदेश से अपने देश भेजा हुआ धन) में भी काफी बढ़ोतरी आई है. जहां 2018 में 85,092 करोड़ रुपए भेजे गए थे, वहीं 2023 में 2,16,893 करोड़ रुपए वापस भेजे गए, यानी 154.9 प्रतिशत ज्यादा. प्रति प्रवासी परिवार को 2023 में औसत 2.24 रुपए रेमिटेंस मिले. प्रवासी परिवारों ने इसमें से 15.8 प्रतिशत धन मकानों या दुकानों की मरम्मत पर, 14 प्रतिशत बैंक लोन चुकाने पर और 10 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया.
तस्वीर: PETA India
1998 से हो रहा है सर्वे
केरल सरकार द्वारा जारी किए गए इस सर्वे को इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट और गुलाटी इंस्टिट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन ने करवाया था. यह हर पांच साल पर करवाया जाता है. इस बार सर्वे में केरल के सभी 14 जिलों में से 20,000 परिवारों ने हिस्सा लिया है.
तस्वीर: Creative Touch Imaging Ltd/NurPhoto/IMAGO
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यह व्यापार समझौता दिसंबर 2022 में लागू हुआ था. इसके तहत ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर 85 फीसदी तक शुल्क समाप्त कर दिया गया था और कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया गया, जिनमें शिक्षा और सेवाएं भी शामिल हैं. यह वीजा कार्यक्रम अब उसी समझौते की प्रतिबद्धता को पूरा करता है.
उस समय ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने कहा था, "ईसीटीए ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण इलाकों में पर्यटन और कामगारों की जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा. इसके तहत भारतीय युवाओं के लिए 1,000 जगहें उपलब्ध कराई जाएंगी. ऑस्ट्रेलिया और भारत अब ईसीटीए के आधार पर एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते को आगे बढ़ा रहे हैं. ऑस्ट्रेलियाई सरकार कपड़ा और सेवाओं के क्षेत्र में और अधिक अवसर हासिल करने के साथ-साथ डिजिटल व्यापार, सरकारी खरीद और नए सहयोग क्षेत्रों में भी नई प्रतिबद्धताओं की दिशा में काम कर रही है.”
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भारत के लिए बड़ा बदलाव
इस बदलाव से ऑस्ट्रेलिया उन युवा, कुशल और उत्साही यात्रियों को आकर्षित कर रहा है, जो काम और यात्रा के अवसरों की तलाश में हैं. इसके तहत अब भारतीय पासपोर्ट धारक इस वीजा के जरिए ऑस्ट्रेलिया में 12 महीने तक काम कर सकते हैं. इस अवसर की मदद से उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में काम का अनुभव हासिल करने, अपने खर्चों को पूरा करने और ऑस्ट्रेलियाई संस्कृति में घुलने-मिलने का मौका मिलेगा.
एक ही वीजा पर पांच देशों की यात्रा
दक्षिणी अफ्रीका के पांच देशों ने विशेष सामान्य वीजा के इस्तेमाल को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है ताकि क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही आसान हो सके.
तस्वीर: ARTUSH/Zoonar/picture alliance
यूनीवीजा को बढ़ावा
अफ्रीकी देश अंगोला, बोत्सवाना, नामीबिया, जाम्बिया और जिम्बाब्वे के अधिकारी सैद्धांतिक रूप से विशेष वीजा के इस्तेमाल का विस्तार करने पर सहमत हुए हैं, जिसे यूनीवीजा के नाम से जाना जाता है. इस वीजा के तहत पर्यटक कई देशों में प्रवेश कर सकते हैं. ये पांच देश, जिन्हें कावांगो-जम्बेजी या काजा कहा जाता है, अफ्रीका में ट्रांसफ्रंटियर संरक्षण क्षेत्र बनाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/N. Bothma
इस तरह से बढ़ेंगे पर्यटक
यूनीवीजा वर्तमान में जाम्बिया और जिम्बाब्वे में इस्तेमाल किया जाता है जबकि यह वीजा बोत्सवाना में दिन के समय यात्रा की अनुमति देता है.
तस्वीर: DW
वीजा का दायरा
हाल ही में जाम्बिया में काजा प्रमुखों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य क्षेत्रीय नेता भी विशेष वीजा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं. वे इस वीजा का दायरा अन्य राज्यों के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीकी आर्थिक ब्लॉक तक भी बढ़ाना चाहते हैं.
तस्वीर: ARTUSH/Zoonar/picture alliance
नामीबिया की सैर
नामीब मरुस्थल, अटलांटिक तट और कालाहारी के रेगिस्तान देखने हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग नामीबिया पहुंचते हैं. खनन और मछली पालन के बाद यहां पर्यटन तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है
तस्वीर: imago/Xinhua
पर्यटकों को लुभाते अफ्रीकी देश
अफ्रीका एक विशाल महाद्वीप है. यह 50 देशों का समूह है और अलग-अलग देश के पर्यटकों के लिए कुछ खास पेश करते हैं. जंगल, द्वीप, तट और बड़े शहरों को देखने दुनिया भर से लोग यहां पहुंचते हैं.
तस्वीर: A.L.
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यह वीजा आम टूरिस्ट वीजा से यह अलग है क्योंकि इस वीजा पर आने वाले लोग काम करने और पढ़ने के अधिकार रखते हैं. देश के गृह मंत्रालय के मुताबिक, 'वर्क एंड हॉलीडे' वीजा चुनिंदा देशों के 18 से 30 साल के युवाओं को (कनाडा, फ्रांस और आयरलैंड के मामले में यह आयु सीमा 18 से 35 वर्ष है) काम करने और चार महीने तक पढ़ाई करने का अधिकार देता है.
ऑस्ट्रेलिया का बैकपैकर्स वीजा अब तक बेल्जियम, कनाडा, साइप्रस, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, आयरलैंड, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, माल्टा, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, स्वीडन, ताइवान और युनाइटेड किंग्डम, यानी सिर्फ 19 देशों के लोगों को मिल सकता था. इनमें से अधिकतर यूरोप के थे.