भारत का नागरिक कौन कौन हो सकता है
२३ अगस्त २०१९31 अगस्त को भारत सरकार असम में नागरिकता से जुड़ा हुआ नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस जारी करेगी. यह असम के लोगों की नागरिकता से संबंधित फाइनल ड्राफ्ट होगा जो तय करेगा कि असम का कौन नागरिक भारतीय है और कौन नहीं. बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्या ने लोकसभा में सरकार से मांग की है कि उनके संसदीय क्षेत्र बेंगलुरू में एनआरसी लागू किया जाए. भारत के गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कह चुके हैं कि पूरे भारत में एनआरसी लागू किया जाएगा. इसके बाद भारत में अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर किया जाएगा. भारत में एकल नागरिकता प्रणाली चलती है. भारत के संविधान में नागरिकता को लेकर अलग-अलग अनुच्छेद हैं जिनमें कुछ संशोधन भी किए जाते रहे हैं. असम के मामले में राजीव गांधी सरकार द्वारा किया गया असम समझौता भी शामिल है.
नागरिकता को लेकर दुनियाभर में दो तरीके चलते हैं. दोनों के लिए लैटिन भाषा के दो शब्द काम में आते हैं. पहला जूस सैंग्युनिस- इसके मुताबिक नस्ल या रक्त संबंध के हिसाब से नागरिकता दी जाती है. दूसरा जूस सोली- इसके मुताबिक जमीन के आधार पर यानी उस देश की जमीन पर पैदा हुए हर बच्चे को नागरिकता मिलती है. भारत पहले जूस सोली के सिद्धांत पर नागरिकता देता था लेकिन अब जूस सोली और जूस सैंग्युनिस दोनों सिद्धांत काम आते हैं.
कौन होगा भारत का नागरिक
नागरिकता और इससे जुड़े हुए कानून केंद्र सूची के विषय हैं. इसलिए इन पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से अनुच्छेद 11 तक नागरिकता के बारे में कानून बनाए गए हैं. अनुच्छेद 5 से 10 नागरिकता की पात्रता को परिभाषित करते हैं. अनुच्छेद 11 नागरिकता के मामलों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्रदान करता है.
अनुच्छेद 5 के मुताबिक, "यदि कोई व्यक्ति भारत में जन्म लेता है और उसके माता-पिता दोनों या दोनों में से कोई एक भारत में पैदा हुआ हो तो वह भारत का नागरिक होगा. भारत का संविधान लागू होने के पांच साल पहले से भारत में रह रहा हर व्यक्ति भारत का नागरिक होगा."
अनुच्छेद 6 पाकिस्तान से भारत आए लोगों की नागरिकता के संबंध में जानकारी देता है. इसके मुताबिक, "19 जुलाई 1948 से पहले पाकिस्तान से भारत में आकर रह रहे लोग भारत के नागरिक होंगे. 19 जुलाई 1948 के बाद आए लोगों को अपना पंजीकरण करवाना होगा. पंजीकरण के लिए कम से कम छह महीने भारत में रहना जरूरी है. दोनों ही परिस्थितियों में नागरिकता पाने वाले व्यक्ति के मां, पिता, दादा या दादी का भारत में जन्म हुआ होना जरूरी है."
अनुच्छेद 7 पाकिस्तान जाकर वापस लौटने वाले लोगों से संबंधित है. इसके मुताबिक, "यदि कोई व्यक्ति 1 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तान चला गया और थोड़े समय बाद वापस आ गया तो उसे 19 जुलाई 1948 के बाद आए लोगों के लिए बने नियम मानने होंगे. मतलब उसे भारत में कम से कम छह महीने तक रहकर अपना पंजीकरण करवाना होगा. तब उसे भारत का नागरिक माना जाएगा."
अनुच्छेद 8 विदेशों में रह रहे भारतीय लोगों के बच्चों की नागरिकता के बारे में है. इसके मुताबिक, "विदेश में पैदा हुए किसी भी बच्चे को भारत का नागरिक माना जाएगा अगर उसके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई भारत का नागरिक हो और उसका विदेश में मौजूद भारतीय दूतावास या कौंसलावास में भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकरण करवाना होगा."
अनुच्छेद 9 भारत के एकल नागरिकता कानून के बारे में है. इसके मुताबिक, "अगर कोई भारतीय नागरिक किसी दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप ही खत्म हो जाएगी."
अनुच्छेद 10 के मुताबिक, "अनुच्छेद 5 से अनुच्छेद 9 के बीच के नियमों का पालन कर रहे लोग भारत के नागरिक हैं. इसके अलावा संसद के पास अधिकार होगा कि वह नागरिकता संबंधी जो भी नियम बनाएगी उनके आधार पर नागरिकता दी जा सकेगी."
अनुच्छेद11 के मुताबिक, "इन अनुच्छेदों के अनुसार किसी तो नागरिकता देना या उसकी नागरिकता समाप्त करने से संबंधी कानून बनाने का अधिकार भारत की संसद के पास सुरक्षित होगा."
नागरिकता कानून में संशोधन
संविधान में नागरिकता के कानूनों में सरकार द्वारा संशोधन भी किए जाते रहे हैं. 1986 में हुए संशोधन में कहा गया, "26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में पैदा हुए लोग जन्म से भारत के नागरिक होंगे. लेकिन 1 जुलाई 1987 से 4 दिसंबर 2003 तक भारत में जन्मे लोग तब ही भारत के नागरिक होंगे जब उनके माता-पिता में से कोई एक भारत में पैदा हुआ हो."
इस संशोधन के बाद फिर 2003 में नागरिकता से जुड़े कानूनों में संशोधन किया गया. इस संशोधन के मुताबिक, "4 दिसंबर 2003 के बाद से वे लोग भारत के नागरिक होंगे जो भारत में पैदा हुए हों. साथ ही उनके माता-पिता दोनों या दोनों में से कोई एक भारत का नागरिक हो और माता-पिता में से कोई भी अवैध प्रवासी ना हो." इस कानून के मुताबिक किसी भी अवैध प्रवासी को भारत में लंबे समय तक रहने या पंजीकरण करा लेने के आधार पर नागरिकता नहीं मिल सकती.
इस संशोधन के बाद नरेंद्र मोदी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लेकर आई जिसका पूर्वोत्तर के राज्यों खासकर असम में भारी विरोध हुआ. इस संशोधन के मुताबिक, "पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 14 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को छह साल भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दे दी जाएगी. इसके लिए उन्हें कोई दस्तावेज भी नहीं देने होंगे."
विदेशी नागरिकों द्वारा भारत की नागरिकता लेने के लिए पहले उन्हें 14 साल भारत में रहना होता था. बाद में इसे कम कर 11 साल किया गया. नागरिकता संशोधन विधेयक में आने वाले विदेशी लोगों के अलावा सभी विदेशी लोगों को 11 साल भारत में स्थायी निवास करना होता है. इसके बाद वो भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
असम का मामला कैसे अलग है
असम में भारत की आजादी के बाद से अब तक बांग्लादेश से आने वाले प्रवासियों की समस्या बनी हुई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बांग्लादेश के देश बनने से पहले तक भारत में एक करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी आ चुके थे. बांग्लादेश बनने के बाद भी ये सिलसिला नहीं रुका. बांग्लादेश से सटे हुए असम के जिलों में प्रवासियों की आबादी मूल निवासियों से ज्यादा हो गई. इसके चलते वहां बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. इंदिरा गांधी ने इस समस्या का हल निकालने की कोशिश में अवैध प्रवासी कानून, 1983 बनाया था. ये कानून सिर्फ असम के लिए लागू होता था. बाकी देश के लिए विदेशी अधिनियम 1946 लागू होता था. लेकिन इससे बात नहीं बनी. 14 अगस्त 1985 में असम में शांति के लिए राजीव गांधी सरकार ने असम के नेताओं के साथ असम समझौता किया. इसी असम समझौते की परिणति एनआरसी के रूप में सामने आई. इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 6 ए जोड़ा गया.
असम समझौते के मुताबिक ऐसे विदेशी लोग जो असम से निकाल दिए गए लेकिन वो फिर वापस आ गए उन्हें फिर से वापस भेजा जाएगा. 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 तक असम में आए नागरिकों को विदेशी नागरिक माना जाएगा. इनके पास 10 साल (समझौता लागू होने के) तक वोटिंग का अधिकार नहीं होगा. लेकिन इन्हें भारतीय पासपोर्ट मिल सकेगा. विदेशी नागरिकों को देश से बाहर निकालने के लिए 1967 की मतदाता सूची को आधार माना जाएगा. जिनका नाम 1967 की मतदाता सूची में है उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा. 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाएगा. इसके लिए ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी का गठन किया गया है. एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट 31 अगस्त को जारी होगा.
______________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay |