गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत ने दिनेश यादव नाम के एक युवक को पांच साल की सजा सुनाई है. दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगों में यह पहली सजा है.
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गुरुवार को दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने 2020 में हुए दंगों के मामले में पहली सजा का ऐलान किया. दिनेश यादव नाम के एक युवक को 5 साल की जेल और 12,000 रुपये के जुर्मान की सजा दी गई है. दिल्ली दंगों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे जिनमें से ज्यादातर मुसलमान थे.
दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगे शहर में दशकों की सबसे घातक सांप्रदायिक हिंसा थी. महीनों तक जारी रहे नए नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों के बाद ये दंगे हुए थे, जिनमें अल्पसंख्यकों के घरों पर बलवाइयों की भीड़ ने आगजनी और मारकाट मचाई थी.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
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दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
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दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
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अदालत में गवाहों और सरकारी वकील ने कहा कि दिनेश यादव 200 से ज्यादा लोगों की उस भीड़ का हिस्सा था जिसने दिल्ली में मनोरी नाम की एक महिला के घर पर हमला किया था. यादव की वकील शिखा गर्ग ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जाएगी.
छह लोगों को जमानत
इससे पहले इसी हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट ने सांप्रदायिक हिंसा के दौरान गोकुलपुरी में हुई एक युवक दिलबर नेगी की हत्या के मामले में मंगलवार को छह लोगों को जमानत दे दी थी. आरोपियों के खिलाफ गोकुलपुरी थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज थी.
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने मंगलवार को मोहम्मद ताहिर, शाहरुख, मोहम्मद फैजल, मोहम्मद शोएब, राशिद और परवेज को जमानत दे दी. इन सभी आरोपियों पर मिठाई की दुकान में तोड़फोड़ और आग लगाने से संबंधित एक मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसके चलते 22 वर्षीय दिलबर नेगी की की जलने से मौत हो गई थी.
फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा हुई थी. दंगे 23 से 29 फरवरी तक चले थे और इनमें कम से कम 50 लोग मारे गए थे. इसके अलावा हजारों लोग बेघर भी हो गए थे.
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सबसे घातक दंगे
पिछले साल मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी ने दंगाग्रस्त इलाकों में पड़ताल और 50 लोगों से बात के बाद एक रिपोर्ट जारी की थी. दंगों में अपनी जान बचा लेने वाले, चश्मदीद गवाह, वकील, डॉक्टर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त पुलिस अफसर आदि से बातचीत के बाद तैयार रिपोर्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों ने कई जगहों पर अपने सामने हो रही हिंसा को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया, जब हस्तक्षेप किया भी तो नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन वाले लोगों पर हमला करने के लिए या उन्हें गिरफ्तार करने के लिए. कई मामलों में पुलिस ने पीड़ितों की शिकायतें दर्ज करने से भी इनकार कर दिया.
राहत शिविर में दंगा पीड़ितों का दर्द
दिल्ली में पिछले महीने हुए दंगों के बाद उत्तर-पूर्वी इलाका अब पटरी पर लौट आया है लेकिन जो लोग कैंपों में रह रहे हैं उन्हें मजबूरी के साथ अपना वक्त काटना पड़ रहा है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
अनिश्चितता का शिविर!
मुस्तफाबाद की ईदगाह में बने कैंप में एक हजार के करीब हिंसा पीड़ित रह रहे हैं. दंगों में उनका घर जल गया, दुकान जल गई और भविष्य पर संकट खड़ा हो गया. बस आंखों में नमी बची है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
भविष्य की चिंता!
ये लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. घर की मरम्मत कैसे होगी, शिविर में कब तक रहना है या फिर उन्हें आगे कहां जाना है. उन्हें इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं पता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
मानसिक आघात
राहत शिविर में आने वाले डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर दंगा पीड़ित मानसिक आघात से पीड़ित हैं. ऐसे पीड़ितों में बच्चे भी शामिल हैं. बच्चों की काउंसलिंग के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
हंसी की क्लास
दंगों के बाद बच्चों की मानसिक स्थिति पर जोर पड़ा है. उन्हें इस हालात से निकालने के विशेष कार्यशाला की व्यवस्था की गई है.
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चिकित्सा शिविर में महिलाएं
महिलाओं के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ मौजूद हैं जो उन्हें साफ-सफाई के बारे में बताती हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
उम्मीद बाकी है!
दंगों में लोगों की मौत हुई और लोग घायल भी हुए. अब लोग राहत कैंप में रहने को मजबूर हैं. यहां उन्हें सहायता तो मिल रही है लेकिन घर और रिश्तेदार से दूर होने का गम सताता रहता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
चलती रहे जिंदगी
राहत शिविर में रहने वाले कुछ लोग बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं तो कुछ लोग काम पर भी जाने लगे हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
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26 फरवरी के एक वीडियो में पुलिस को सड़क पर चलते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता खालिद सैफी को हिरासत में लेते हुए देखा जा सकता है. खालिद के परिवार का कहना है कि उन्हें हिरासत में यातनाएं दी गईं, अस्पताल ले जाया गया और उसी रात कड़कड़डूमा अदालत परिसर की पार्किंग में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल में डाल दिया गया.
11 मार्च को जब खालिद को फिर अदालत में पेश किया गया, तब वो व्हीलचेयर पर थे. बाद में उन पर आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला कानून यूएपीए लगा दिया गया. खालिद आज भी जेल में हैं. उनकी पत्नी का कहना है कि उन्हें हिरासत में बहुत ही क्रूरता से यातनाएं दी गईं.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)
दिल्ली हिंसा की भयावह तस्वीरें
दिल्ली की हिंसा में चार दिनों तक दंगाइयों ने तांडव मचाया. हालांकि अब हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन लोगों के मन में अब भी सुरक्षा को लेकर शंकाएं हैं. देखिए दंगों के बाद कैसे हैं हालात.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
मलबे का ढेर
चार दिनों की हिंसा में मकान जला दिए गए. सड़क पर खड़ी गाड़ियां खाक कर दी गईं और आस-पास की दुकानों में लूटपाट के बाद आग लगा दी गई. यह तस्वीर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के शिव विहार इलाके की है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
कभी यह घर था
कुछ दिन पहले तक इस मकान में हंसता खेलता परिवार रहता था लेकिन अब यह किसी खंडहर की तरह हो गया है. हिंसा के बाद यहां रहने वाले पलायन कर गए.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
आधी रात को हमला
दंगाइयों ने इस घर पर आधी रात के बाद हमला किया, सब कुछ तहस-नहस करने के बाद इसको आग के हवाले कर दिया गया.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
पत्थरबाजी
सड़क पर चारों तरफ पत्थर पड़े हुए हैं. दंगा भड़कने के तीन दिन बाद तक कोई सफाई करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
फूंक डाली गाड़ियां
तस्वीर में दिख रही जलाई गई कारों में कुछ तो बिल्कुल नई थीं तो कुछ बड़े परिवारों का एकलौता सहारा. दंगाइयों ने यहां खड़ी कारों पर भी अपना गुस्सा निकाल डाला.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
किसकी तस्वीर?
आग और कालिख के बीच तस्वीरें निकालते रैपिड एक्शन फोर्स के जवान.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
चाय की दुकान
यह कभी एक छोटी सी चाय की दुकान हुआ करती थी, लेकिन अब यहां कुछ नहीं बचा है. इस दुकान को एक महिला चलाती थी और वह चार दिन बाद यहां आने का हिम्मत जुटा पाई.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
सड़क का मंजर
सड़क पर जगह-जगह मोटरसाइकिलें और कारें जली पड़ी हुईं हैं. हवा में अब भी राख की दुर्गंध फैली हुई है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
रसोई में अब कुछ नहीं बचा
कभी इस रसोई में खाना बनता था लेकिन अब यह खाक में तब्दील हो चुका है. लोग यहां से जा चुके हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
मदद का हाथ
इलाके के लोगों को एक साथ रखा गया है. इस घर में हिंदू और मुसलमान एक परिवार की तरह साथ रह रहे हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
पुलिस की तैनाती
इलाके के लोगों में विश्वास बहाली के लिए जगह-जगह पर पुलिस की तैनाती की गई है. (एए/आरपी)