मोदी सरकार ने जिस काले धन को खत्म करने के लिए नोटबंदी की, उसमें से लगभग सारा पैसा वापस देश के वित्तीय तंत्र में आ गया है. भारतीय रिजर्व बैंक ने यह बात कही है. ऐसे में आलोचक पूछ रहे हैं कि फिर नोटबंदी का फायदा क्या हुआ.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2016 में अचानक टीवी पर पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की, ताकि अरबों डॉलर मूल्य के काले धन को खत्म किया जा सके. इस कदम से ना सिर्फ अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ी, बल्कि करोड़ों लोगों को अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए हफ्तों तक लाइन में खड़े होना पड़ा.
सरकार ने घोषणा की कि अगर किसी ने ढाई लाख रुपये से ज्यादा मूल्य के नोट बैंक में जमा किए तो उससे धन का स्रोत पूछा जाएगा. इस कदम का मकसद उन व्यापारियों और राजनेताओं को निशाना बनाना था, जिन्होंने अरबों का काला धन जमा कर रखा था.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, "कुछ लोग अपने फायदे के लिए भ्रष्टाचार फैला रहे हैं. एक समय आता है जब आप महसूस करते हैं कि आपको समाज में कुछ बदलाव करना चाहिए और बदलाव करने का यह हमारा समय है."
इन देशों ने की नोटबंदी
इन देशों ने की है नोटबंदी
भारत समेत कई देश नोटबंदी का तरीका आजमा चुके हैं. कहीं इसने काम किया, तो कहीं नहीं भी. जानिए कहां कहां हुआ ऐसा.
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वेनेजुएला (2018)
देश की मुद्रा से तीन शून्य हटाने का फैसला लिया गया है. इससे पहले 2008 में भी ऐसा किया जा चुका है लेकिन तब भी अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं हुआ था. वेनेजुएला में सबसे बड़ा नोट एक लाख बोलिवर का होता है, जो अब 100 के नोट में तब्दील हो जाएगा. एक किलो चीनी ढाई लाख बोलिवर की मिलती है, जिसकी कीमत अब ढाई सौ हो जाएगी.
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भारत (2016)
देश में झटपट हुई नोटबंदी सफल रही या विफल, इस पर मतभेद हैं. कई रिपोर्टें इसे गैरजरूरी कदम बताती हैं, तो सरकार काले धन को खत्म करने पर अपनी पीठ थपथपाती दिखती है. अचानक ही लिए इस कदम से नागरिकों को मुश्किलें तो हुई ही.
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पाकिस्तान (2016)
भारत से एक साल पहले पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी नोट बदले. हालांकि यहां भारत जैसा असमंजस का माहौल नहीं दिखा. 10,50,100 और 1,000 के पुराने नोटों की जगह नए नोट बाजार में आए. 18 महीने पहले इसकी तैयारी शुरू हुई और नागरिकों को नोट बदलने के लिए अच्छा खासा वक्त दिया गया.
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जिम्बाब्वे (2015)
आपको जान कर हैरानी होगी कि जिम्बाब्वे का सबसे बड़ा नोट एक लाख अरब का हुआ करता था. 2015 में पुरानी मुद्रा को हटा दिया गया और उसकी जगह अमेरिकी डॉलर ने ले ली. इस बदलाव में कुल तीन महीने का वक्त लगा.
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उत्तर कोरिया (2010)
देश के तत्कालीन नेता किम जोंग इल ने इस उम्मीद में मुद्रा के दो शून्य हटा दिए कि अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा. लेकिन देश पर उल्टा ही असर देखने को मिला. महंगाई और बढ़ गई, देश में खाने के सामान की भी किल्लत पैदा हो गई.
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यूरो जोन (2002)
यहां केवल नोट ही नहीं, पूरी मुद्रा ही बदल गई. यूरो जोन ने 1 जनवरी 2002 से यूरो को लागू किया. यह एक बेहतरीन उदाहरण है कि मुद्रा के साथ बदलाव में किस तरह की तैयारियों की जरूरत पड़ती है. चार साल पहले ही नोटों की छपाई शुरू हो गई थी, यूरोपीय सेंट्रक बैंक ने तीन साल पहले से अपने सिस्टम में बदलाव लाना शुरू कर दिया था.
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ऑस्ट्रेलिया (1996)
काले धन से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने 1996 में कागज के नोट हटा कर प्लास्टिक के नोट जारी किए. 1992 में ऑस्ट्रेलिया पहली बार प्लास्टिक के नोट बाजार में लाकर उन्हें टेस्ट कर चुका था. देश की अर्थव्यवस्था पर इस कदम का अच्छा असर देखने को मिला.
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सोवियत संघ (1991)
मिखाइल गोर्बाचोव के नितृत्व में सरकार ने 50 और 100 के नोटों को बंद करने का फैसला किया. दिक्कत यह थी कि ये सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले नोट थे और बाजार में मौजूद कुल मुद्रा का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं का था. इसके बाद अर्थव्यवस्था ऐसी चरमराई कि लोगों का सरकार पर से भरोसा ही उठ गया. कुछ इतिहासकार इसे सोवियत संघ के विघटन की एक बड़ी वजह भी मानते हैं.
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म्यांमार (1987)
काले धन पर काबू पाने के लिए 1987 में म्यांमार की सेना ने देश की 80 फीसदी मुद्रा को अवैध घोषित कर दिया. इस कदम का असर यह हुआ कि देश ने पहला बड़ा स्टूडेंट आंदोलन देखा. देश में हिंसा भड़की जिसमें हजारों लोगों की जान गई.
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नाइजीरिया (1984)
मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व में सैन्य सरकार ने नए नोट जारी किए. उद्देश्य था कर्ज में डूबे हुए देश को एक बार फिर ऊपर उठाना. लेकिन बुहारी को मुंह की खानी पड़ी. अगले ही साल जनता ने उनका तख्ता पलट कर दिया.
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घाना (1982)
यह भी नोटबंदी का एक विफल प्रयास था. लोगों को नोट बदलवाने के लिए गांवों से चल कर शहर तक आना पड़ता था. समय सीमा खत्म हो जाने के बाद पुराने नोटों को अवैध घोषित कर दिया गया, जबकि बहुत से लोग उन्हें बदलवा नहीं पाए थे.
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ब्रिटेन (1971)
इस साल ब्रिटेन ने डेसिमल सिस्टम अपनाया. पहले 12 पेनी की एक शिलिंग और 20 शिलिंग का एक पाउंड होता था. इस बदलाव के बाद से 100 पेनी का एक पाउंड स्टर्लिंग बना.
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आम तौर पर कैश पर निर्भर रहने वाले भारतीय समाज, खास कर गरीबों, मध्य वर्गों और छोटे व्यापारियों को नोटबंदी से बहुत परेशानी हुई. महीनों तक अफरा तफरी का आलम रहा. हालांकि अमीर लोगों ने अपने पैसे को बदलाव का तरीका तलाश लिया.
अब भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के बाद सवाल उठ रहे हैं कि इस पूरी कवायद का फायदा क्या हुआ. रिपोर्ट कहती है कि 217 अरब डॉलर मूल्य के जो नोट बाजार से हटाए गए थे, उसमें से 99.3 प्रतिशत वापस अर्थव्यवस्था में आ गए हैं. पहले कुछ अधिकारियों का अनुमान था कि यह आकंड़ा 60 प्रतिशत से कम रहेगा.
लेखक और भारत में प्रोक्टर एंड गैम्बल कंपनी के पूर्व प्रमुख गुरचरण दास कहते हैं, "मुझे लगता है कि नोटबंदी एक गलती थी." वह कहते हैं कि इससे सरकार को मिलने वाले टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, उल्टा कैश पर निर्भर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के लिए यह भयानक सपना साबित हुई.
दुनिया के सबसे महंगे 10 नोट
ये हैं दुनिया के 10 सबसे महंगे नोट
भारत समेत दुनिया भर की मुद्राओं के उतार-चढ़ाव को डॉलर के मुकाबले मापा जाता है. इससे साफ है कि डॉलर दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्रा है. लेकिन जहां तक बात सबसे अधिक मूल्य वाली मुद्रा की है, उसमें डॉलर काफी पीछे है.
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स्विस फ्रैंक (71,86 रुपये)
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अमेरिकी डॉलर (70,89 रुपये)
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यूरोपीय संघ यूरो (79.13 रुपये)
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ब्रिटिश पाउंड (91,86 रुपये)
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जिब्राल्टर पाउंड (87.21 रुपये)
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जॉर्डन दीनार (100.05 रुपये)
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लात्विया लात (112.07 रुपये)
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ओमान रियाल (184.42 रुपये)
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बहरीन दीनार (188.08 रुपये)
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कुवैत दीनार (233.77 रुपये)
(सभी मुद्राओं की कीमत 1 नवंबर 2019 पर आधारित)
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वह कहते हैं, "आप रातों रात ऐसे देश में सब कुछ नहीं बदल सकते हैं जो गरीब और निरक्षर है. इसलिए मेरे लिए यह सिर्फ आर्थिक नाकामी नहीं बल्कि नौतिक विफलता भी है."
वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नोटबंदी को लेकर फिर सरकार को निशाना बनाया है. उन्होंने कहा है कि नोटबंदी न सिर्फ बड़ी विफलता है बल्कि यह आम लोगों पर सोचा समझा हमला था ताकि बड़े उद्योगपतियों की जेबों को भरा जा सके. उन्होंने नोटबंदी को एक बड़ा घोटाला बताया.
दूसरी तरफ, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में नोटबंदी का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि इससे अर्थव्यवस्था को एक औपचारिक स्वरूप मिला है और टैक्स कलेक्शन बढ़ने के साथ साथ आर्थिक वृद्धि भी बढ़ी है.