भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली पिछले कुछ महीनों से कोरोना वायरस से जूझ रही है. ऐसे में डॉक्टर गैर कोविड-19 मरीजों का इलाज करने के लिए ऑनलाइन तरीका अपना रहे हैं.
विज्ञापन
भारत में इस वक्त स्वास्थ्य सेवा पर कोरोना वायरस के कारण अतिरिक्त भार आया हुआ है. डॉक्टर भी ऐसे में समय में तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करते हुए कम गंभीर और क्रोनिक बीमारियों के लिए ऑनलाइन सलाह दे रहे हैं. दो महीने से अधिक समय के बाद भारत लॉकडाउन से बाहर आने की तैयारियों में जुटा हुआ है. क्लीनिक में भीड़ बढ़ने से रोकने के लिए और संक्रमण के खतरे से बचने के लिए डॉक्टर वीडियो कॉल और व्हॉट्सऐप चैट का सहारा ले रहे हैं. इसके अलावा नियमित फोन कॉल पर भी ऐसे मरीजों का इलाज किया जा रहा है जिन्हें डायबीटीज या किडनी से जुड़ी बीमारी है.
दिल्ली के पास गुरुग्राम में मेदांता अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन की निदेशक सुशीला कटारिया के मुताबिक, "इस वक्त लॉकडाउन है, मरीज आ नहीं सकते हैं लेकिन बीमारी इंतजार नहीं करेगी." कटारिया अब 80 फीसदी मरीजों को ऑनलाइन देखती हैं. शारीरिक जांच सिर्फ अति आवश्यक मामलों तक सीमित है. दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन होने के बावजूद भारत में शुक्रवार 29 मई तक कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले 1,65,799 से ज्यादा हो गए और 4,706 लोगों की मौत हो गई.
कोरोना वायरस के संक्रमण ने पहले से ही बेड और डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे अस्पतालों के लिए नया संकट खड़ा कर दिया था. सामान्य समय में भी भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई रहती है. ऐसे में सरकार ने टेलीमेडिसिन से जुड़े दिशा-निर्देश जारी किए जिससे इंटरनेट के जरिए लोग डॉक्टरों से सलाह ले सकें.
मरीज ऑनलाइन जाकर टेलीमेडिसिन के लिए अपाइंटमेंट बुक कर सकता है और एडवांस भुगतान कर सकता है, महामारी के पहले भी इस तरह की सेवा दी जा रही थी लेकिन अब इस सेक्टर को यह प्रक्रिया औपचारिक बनाने में मदद कर रही है. जनरल फिजिशियन देवेंद्र तनेजा बताते हैं कि इमरजेंसी वीडियो कॉल सबसे महंगे होते हैं, पहले से बुक किए हुए वीडियो कॉल सस्ते पड़ते हैं जबकि फोन कॉल पर कम पैसे देने पड़ते हैं और व्हॉट्सऐप चैट सबसे सस्ता है. रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करा चुके डॉ. तनेजा के 69 साल के मरीज प्रदीप कुमार मलहोत्रा के मुताबिक, "डॉक्टर के पास जाने के लिए कोई भी डरता है. अस्पताल में संक्रमण का खतरा बना रहता है. यह एक बड़ी समस्या है."
फिर भी डॉक्टरों को खराब इंटरनेट कनेक्शन के साथ मरीजों का विश्वास जीतने के उपायों पर काम करना पड़ रहा है. स्त्रीरोग विशेषज्ञ मुक्ता कपिला कहती हैं कि गर्भवती महिलाओं का शारीरिक परीक्षण करने में असमर्थ होना निराशाजनक होता है. वह कहती हैं, "इस तरह के समय में हीलिंग टच देने में सक्षम नहीं होना एक डॉक्टर के रूप में थोड़ा अधूरापन का एहसास दिलाता है."
देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्या और उन पर आई विपत्ति को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को 28 मई को बड़ा आदेश सुनाया है. कई महीनों से मजदूर जहां-तहां फंसे हुए हैं. ऐसे में उनके लिए आदेश राहत लेकर आया है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
किराया नहीं लिया जाएगा
प्रवासी मजदूरों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा लॉकडाउन के दौरान घर जाने के लिए संघर्ष करते लोगों से राज्य सरकार किराया ना ले और साथ ही ऐसे लोगों को रास्ते में भोजन दिया जाए. कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कपिल सिब्बल के बीच तीखी बहस हुई. कोर्ट ने कहा कि जहां से यात्रा शुरू होगी वहां की सरकार खाना-पानी देगी और बस में भी इंतजाम किए जाएं.
तस्वीर: DW/M. Kumar
ट्रेनों का इंतजाम
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य की सरकारें ट्रेन का किराया देंगी और प्रवासियों को घर पहुंचाने की व्यवस्था करेंगी. अदालत के मुताबिक राज्य सरकारें ट्रेन और बसों का खर्च आपस में उठाएंगी. राज्यों की मांग के मुताबिक रेलवे को ट्रेन उपलब्ध करानी होगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि जो लोग सड़क पर पैदल जा रहे हैं, उन्हें तुरंत आश्रय केंद्रों में लाकर उनकी मदद की जाए.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
शेल्टर-खाना दे सरकार
दरअसल पिछले दो महीने से अधिक समय से प्रवासी मजदूर, दिहाड़ी कर्मचारी और अन्य लोग शहरों से निकलकर अपने गांवों की तरफ लौट रहे हैं. कई लोग पैदल या फिर अवैध तरीके से राज्य की सीमा पार करने की कोशिश भी कर रहे हैं और ऐसे में हादसे भी हो रहे हैं. कोर्ट ने कहा है कि राज्य प्रवासियों को उन स्थानों पर खाना-पानी मुहैया करवाएंगे, जहां पर वे फंसे हुए हैं. यात्रा के दौरान रेलवे भी भोजन-पानी का इंतजाम करेगा.
तस्वीर: DW/A.Ansari
मजदूरों का रजिस्ट्रेशन
कोर्ट ने कहा कि मजदूरों के घर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन राज्य सरकार करेगी. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए वहीं पर सहायता डेस्क लगाकर उनका पंजीकरण करें जहां वे फंसे हुए हैं और उन्हें ट्रेन और बस पर चढ़ने की पूरी जानकारी दें. कोर्ट ने सूचना के प्रसार पर जोर दिया.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
91 लाख मजदूर जा चुके वापस
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रेलवे ने 1 मई से 27 मई तक 3,700 श्रमिक स्पेशल टेनें चलाई हैं और इनसे करीब 50 लाख प्रवासियों को घर भेजा गया है. कुछ राज्यों गुजरात, राजस्थान ने पड़ोसी राज्यों के मजदूरों को बसों से भी भेजा है. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 1 मई से 27 मई के बीच 91 लाख प्रवासियों को घर भेजा गया.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
कोर्ट का संज्ञान
मजदूरों की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया था और केंद्र, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था. उत्तर प्रदेश की सरकार ने कोर्ट को बताया कि 18 लाख लोग वापस लौटे हैं, बिहार ने कहा कि 10 लाख लोग प्रदेश वापस आ चुके हैं.