नोबेल विजेता भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को इस साल के जर्मन बुक ट्रेड के शांति पुरस्कार से नवाजा गया है. 86 वर्षीय प्रोफेसर सेन को विश्व भर में फैले सामाजिक अन्याय को उजागर करने के उनके काम के लिए सम्मानित किया गया.
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जर्मनी के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं के संगठन, जर्मन बुक ट्रेड ने भारतीय अर्थशास्त्री और दार्शनिक अमर्त्य सेन को 2020 के शांति पुरस्कार के लिए चुना है. साल 2020 का यह जर्मन पुरस्कार "सामाजिक न्याय के सवाल पर उनके कई दशक लंबे काम के लिए" दिया जा रहा है. जर्मन बुक ट्रेड के बोर्ड ने ट्विटर पर अपने संदेश में इसी का उल्लेख किया है.
अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अमर्त्य सेन को 1998 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. जर्मन बुक ट्रेड के बोर्ड ने सेन के काम को "पहले के मुकाबले अब और भी ज्यादा प्रासंगिक बताया." बोर्ड का मानना है कि आज की तारीख में दुनिया भर में सामाजिक असमानताओं से उभरे अन्याय को लेकर संघर्ष कहीं ज्यादा अहम मुद्दा बन गया है. आम तौर पर यह पुरस्कार समारोह हर साल फ्रैंकफर्ट बुक फेयर के समापन पर होता आया है. इस साल इसके 18 अक्टूबर को फ्रैंकफर्ट में होने की उम्मीद है जिसका सीधा प्रसारण भी किया जाएगा.
इन भारतीयों को मिला है नोबेल पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार को दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है. चलिए जानते हैं अलग अलग क्षेत्रों में अब तक कितने भारतीय या भारतीय मूल के लोगों को यह पुरस्कार मिला है.
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रवींद्रनाथ टैगोर
टैगोर एक कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे. गुरुदेव के नाम से मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. उनके कविता संग्रह गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में यह पुरस्कार दिया गया. 1901 में उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की, जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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चंद्रशेखर वेंकटरमन
डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. तमिलनाडु के तिरुवाइक्कावल में जन्मे वेंकटरमन ने बताया कि जब कोई प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ में से होकर गुजरता है तो कुछ परावर्तित प्रकाश अपना तरंगदैर्ध्य बदल लेता है. इस खोज को 'रमन प्रभाव' का नाम दिया गया और इसी के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला.
हरगोबिंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. भारतीय मूल के डॉ. खुराना का जन्म पंजाब में रायपुर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. 1960 में वह विस्कॉसिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने. उन्होंने अपनी खोज से आनुवांशिक कोड की व्याख्या की और प्रोटीन संश्लेषण में इसकी भूमिका का पता लगाया.
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मदर टेरेसा
मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला. उनका जन्म अल्बानिया में हुआ था. 1928 में वह मिशनरी बनकर 1929 में कोलकाता आ गईं. गरीब और बीमार लोगों की सेवा के लिए उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी नाम की संस्था बनाई. कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार और दीन-दुखियों के लिए निर्मल हृदय नाम की संस्था बनाई.
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सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर
1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता बने भारत के डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर. वह नोबेल विजेता सर सीवी रमन के भतीजे थे. उनकी शिक्षा चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई. बाद में चंद्रशेखर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने खगोल शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं.
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अमर्त्य सेन
1998 में अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र का नोबेल दिया गया. यह पुरस्कार पाने वाले न सिर्फ पहले भारतीय, बल्कि पहले एशियाई भी रहे. उन्होंने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है. उन्होंने कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक किताबें लिखी हैं. इसके अलावा उन्होंने गरीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर काफी काम किया.
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वी एस नायपॉल
मूल के ब्रिटिश लेखक वीएस नायपॉल को 2001 में साहित्य के नोबेल से नवाजा गया. उनका जन्म त्रिनिडाड में हुआ जहां भारत से जाकर उनके पू्र्वज बसे थे. 2008 में द टाइम्स ने उन्हें 50 महान ब्रिटिश साहित्यकारो की सूची में सातवां स्थान दिया. ए हाउस फॉर मिस्टर विस्वास, इन फ्री स्टेट, ए बेंड इन द रिवर और द एनिग्मा ऑफ अराइवल उनकी मशहूर कृतियां हैं.
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वेंकटरमण रामकृष्णन
मूल के अमेरिकी विज्ञानी वेंकटरमण रामकृष्णन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में साल 2009 का नोबेल पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार उन्हें अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस ए. स्टेट्ज और इस्राएल की अदा ई. योनथ के साथ संयुक्त रूप से दिया गया. इन वैज्ञानिकों को राइबोसोम की संरचना और कार्यप्रणाली पर अध्ययन के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया.
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कैलाश सत्यार्थी
भारत में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी को 2014 में शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन नाम की संस्था बनाई है. उन्हें पाकिस्तान में लड़कियों के हक की आवाज उठाने वाली मलाला यूसुफजई के साथ साझा तौर पर यह सम्मान दिया गया.
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अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवंबर, 1933 को पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन में हुआ था. 1940 के दशक में भारत में चल रहे आजादी के आंदोलनों के साये में उनका बचपन बीता. सन 1943 में बंगाल का अकाल और 1947 में भारत की आजादी के समय हिंदू-मुसलमानों के बीच खूनी संघर्ष और दंगों के गवाह रहने वाले सेन ने 1959 में कोलकाता के ही प्रेसीडेंसी कालेज से अर्थशास्त्र में बैचेलर डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने लंदन के ट्रिनिटी कालेज से पीएचडी किया और 1960 के दशक से ही विश्व भर के तमाम बड़े शिक्षण संस्थानों में पढ़ाते आए हैं. सन 2004 से वह अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र और दर्शन की शिक्षा दे रहे हैं. सेन ने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा दी और समाज कल्याण और विकास के कई पहलुओं पर अनेक किताबें लिखी. उन्होंने गरीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर काफी गंभीरता से लिखा है.
सन 1950 से ही हर साल जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार दिया जाता रहा है. इसमें उपाधि के अलावा विजेता को 25,000 यूरो (यानि करीब 21 लाख रूपये) का नकद पुरस्कार भी दिया जाता है. इसका लक्ष्य उन हस्तियों को सम्मानित करना है "जो साहित्य, विज्ञान और कला के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट काम से शांति के विचारों को सच करने में बड़ा योगदान देते हों." पिछले साल यह पुस्कार ब्राजील के मशहूर फोटोग्राफर और फोटोपत्रकार सेबास्तियाओ सालगादो को दिया गया था. इससे पहले 2017 में कनाडा की मशहूर लेखिका मार्गेट एटवुड को भी यह पुरस्कार दिया जा चुका है.