भारत सरकार ने बताया कि विक्रम लैंडर के साथ क्या हुआ
ऋषभ कुमार शर्मा
२१ नवम्बर २०१९
भारत सरकार ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जानकारी दी है कि चंद्रयान 2 मिशन के विक्रम लैंडर के साथ क्या हुआ था. इसरो ने इससे पहले आधिकारिक रूप से सिर्फ संपर्क टूटने की ही बात कही थी.
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लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर की चांद पर हार्ड लैंडिंग की बात मानी है. अभी तक विशेषज्ञों ने ही विक्रम की हार्ड लैंडिंग की बात कही थी लेकिन सरकार या इसरो ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया था. अंतरिक्ष मंत्रालय से पूछे गए एक सवाल के जवाब में पीएमओ में राज्यमंत्री जीतेंद्र सिंह ने जवाब दिया, "चांद पर उतरने के आखिरी चरण में विक्रम लैंडर की रफ्तार तय की गई रफ्तार से ज्यादा थी. इसका परिणाम ये हुआ कि विक्रम की चांद पर हार्ड लैंडिंग हुई. यह हार्ड लैंडिंग पहले से तय जगह के 500 मीटर के आसपास में ही हुई. विक्रम की रफ्तार पहले चरण में चांद की सतह से 30 किलोमीटर की ऊंचाई से 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक पूर्व निर्धारित ही रही. लेकिन दूसरे चरण में इसके उतरने की रफ्तार पूर्व निर्धारित रफ्तार से तेज थी. इसका परिणाम ये हुआ कि इसकी हार्ड लैंडिंग हुई. "
7 नवंबर को विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर उतरना था. उतरने के आखिरी चरण के दौरान इसरो का इससे संपर्क टूट गया था. तब से अनुमान लगाया जा रहा था कि इसकी हार्ड लैंडिंग हुई. इसरो ने इसकी पुष्टि नहीं की थी. इसरो का कहना था कि विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया है और फिर से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है. 10 नवंबर को इसरो ने कहा था कि चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर मिशन सही तरीके से काम कर रहा है. इस ऑर्बिटर ने चांद की सतह पर विक्रम लैंडर को खोज लिया है और उसके थर्मल इमेज लिए हैं. हालांकि तब भी इसरो ने लैंडर की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं दी थी. तब भी इसरो ने कहा था कि लैंडर से फिर से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है.
विशेषज्ञों के मुताबिक विक्रम लैंडर चंद्रयान 2 ऑर्बिटर से पहले ही अलग होकर चांद की सतह की ओर आगे बढ़ रहा था. चांद की सतह के 30 किलोमीटर ऊपर से इसने अपनी रफ्तार को कम करना शुरू किया. 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक इसकी रफ्तार करीब 6000 किमी प्रति घंटा थी. सॉफ्ट लैंडिंग यानी सुरक्षित लैंडिंग के लिए चांद पर उतरते समय इस रफ्तार को पांच से सात किलोमीटर प्रति घंटा तक लेकर आना था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक इसकी रफ्तार को कम नहीं किया जा सका. जब यह चांद की सतह से 355 मीटर ऊपर था तो इसरो का इससे संपर्क टूट गया और यह चांद पर लगभग 200 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से गिरा. जबकि यह अधिकतम 18 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गिरने को ही झेल सकता था.
सरकार के जवाब में बताया गया है कि विक्रम लैंडर के अलावा बाकी चंद्रयान 2 मिशन पूर्व निर्धारित तरीके से ही काम कर रहा है. विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग के अलावा के चरण ठीक तरीके से पूरे हुए थे. ऑर्बिटर मिशन के सभी आठों वैज्ञानिक उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं. ये सभी उपकरण वैज्ञानिकों के लिए जरूरी डाटा भेज रहे हैं. इस मिशन की समयसीमा को भी बढ़ाकर सात साल किया गया है. चंद्रयान 2 ऑर्बिटर से मिल रही जानकारी का इस्तेमाल भविष्य की योजनाओं के लिए किया जाएगा.
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
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1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
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1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
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1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
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1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
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1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
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1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
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1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
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1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
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2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
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2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
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2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
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2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.