भारत की कुछ मुसलमान औरतों ने मर्दों की दुनिया को चुनौती देने की तैयारी कर ली है. वे काजी बनने वाली हैं. हालांकि मर्द ज्यादा खुश नहीं हैं.
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इन मुसलमान औरतों ने तैयारी कर ली है मर्दों को चुनौती देने की. अब ये काजी बनेंगी. इस्लाम में काजी बनना मर्दों का पेशा माना जाता है. लेकिन मुंबई की एक संस्था कुछ महिलाओं को इस पेशे के लिए तैयार कर रही है.
इस संस्था का नाम है भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए). यह संस्था 30 महिलाओं को कुरान के कानूनों की शिक्षा दे रही है. साथ ही इन्हें संविधान और महिला अधिकारों की जानकारी भी दी जा रही है. संस्था का मकसद है कि पूरे देश में महिला काजियों की एक पूरी जमात तैयार की जाए.
देखें, कहां कहां बैन है बुर्का
कहां कहां बैन है बुरका
दुनिया में ऐसे कई मुल्क हैं जहां बुरके या नकाब पर प्रतिबंध है. कहीं पूरी तरह तो कहीं आंशिक रूप से. जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/G.-G. Kitina
डेनमार्क
31 मई 2018 को डेनमार्क की सरकार ने एक नया कानून लागू किया है जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर चेहरा ढंकने की मनाही होगी. स्की मास्क और नकली दाढ़ी-मूछ लगाने पर भी रोक होगी. हालांकि बीमारियों से बचने के लिए पहनने वाले मास्क और मोटरसाइकल हेलमेट को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
फ्रांस यूरोप का पहला ऐसा मुल्क है जिसने बुरके को बैन करने का कदम उठाया. 2004 में इसकी शुरुआत हुई. पहले स्कूलों में धार्मिक चिन्हों पर रोक लगी. 2011 में सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर बुरके को पूरी तरह बैन कर दिया. ऐसा करने पर 150 यूरो का जुर्माना है. कोई अगर महिलाओं को जबरन बुरका पहनाएगा तो उस पर 30 हजार यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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बेल्जियम
फ्रांस के नक्श ए कदम पर चलते हुए बेल्जियम ने भी 2011 में बुरका बैन कर दिया. बुरका पहनने पर महिलाओं को 7 दिन की जेल या 1300 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
तस्वीर: AP
नीदरलैंड्स
2015 में हॉलैंड ने बुरके पर बैन लगाया. लेकिन यह बैन स्कूलों, अस्पतालों और सार्जवनिक परिवहन तक ही सीमित है. सभी जगहों पर इसे लागू नहीं किया गया है.
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स्विट्जरलैंड
1 जुलाई 2016 से स्विट्जरलैंड के टेसिन इलाके में बुरके पर प्रतिबंध लागू हो गया है. इसका उल्लंघन करने पर 9200 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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इटली
इटली में राष्ट्रीय स्तर पर तो बैन नहीं है लेकिन 2010 में नोवारा शहर ने अपने यहां प्रतिबंध लगाया. हालांकि अभी बुरका पहनने पर किसी तरह की सजा नहीं है. और कुछ राज्यों में बुरकीनी पहनने पर रोक है.
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जर्मनी
जून 2017 से जर्मनी में भी बुरके और नकाब पर रोक है लेकिन ऐसा सिर्फ सरकारी नौकरियों और सेना पर लागू होता है. इसके अलावा ड्राइविंग के दौरान भी चेहरा ढंकने की अनुमति नहीं है. जर्मनी की एएफडी पार्टी लगातार बुरके पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है.
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स्पेन
स्पेन के कैटेलोनिया इलाके में कई जिलों में बुरके और नकाब पर 2013 से ही प्रतिबंध है. कई राज्यों में कोशिश हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे धार्मिक आजादी का उल्लंघन मानते हुए पलट दिया. लेकिन यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट का फैसला है कि बुरके पर बैन मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है. इसी आधार पर कई जिलों ने इस बैन को लागू किया हुआ है.
तस्वीर: CLAUDE PARIS/AP/dapd
तुर्की
मुस्लिम बहुल आबादी वाले तुर्की में 2013 तक सरकारी संस्थानों में बुरका या हिजाब पहनने पर रोक थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. महिलाएं अपना सर और चेहरा ढंकते हुए भी वहां जा सकती हैं. बस अदालत, सेना और पुलिस में ऐसा करने की अनुमति अब भी नहीं है.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
चाड
अफ्रीकी देश चाड में पिछले साल बुरके पर प्रतिबंध लगाया गया. जून में वहां दो आत्मघाती बम हमले हुए जिसके बाद प्रधानमंत्री ने कदम उठाए. बाजारों में बुरके की बिक्री तक पर बैन है. पहनने पर जुर्माना और जेल होगी.
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कैमरून
चाड के प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद ही उसके पड़ोसी कैमरून ने भी नकाब और बुरका बैन कर दिए. हालांकि यह सिर्फ पांच राज्यों में ही प्रभावी है.
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निजेर
आतंकवाद प्रभावित दीफा इलाके में बुरका प्रतिबंधित है. हालांकि सरकार इसे पूरे देश में लागू करने की इच्छुक है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Sanogo
कॉन्गो
पूरे चेहरे को ढकने पर कॉन्गो ने बैन लगा रखा है. 2015 से यह प्रतिबंध लागू है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G.-G. Kitina
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भारत की सबसे बड़ी अल्पसंख्य आबादी मुसलमानों को भारतीय संविधान में बराबर के हक हासिल हैं लेकिन शादी, तलाक और विरासत आदि के मसलों पर वे अपने फैसले अपनी नागरिक संहिता के मुताबिक कर सकते हैं. इसलिए इस तरह के मामले काजियों के पास जाते हैं. हालांकि काजी आमतौर पर विरासत में मिला एक टाइटल होता है. शादियां और तलाक कराना और इन पर विवादों की सुनवाई करना उसका काम होता है. और यह काम पुरुष ही करते आए हैं. लेकिन बीएमएमए इस स्थिति को बदलना चाहती है. बीएमएमए की सह संस्थापक जाकिया सोमान बताती हैं, "पारंपरिक तौर पर तो काजी पुरुष ही होते हैं. और उनके फैसलों को कोई चुनौती भी नहीं दी जाती. भले ही फिर ये फैसले महिलाओं के साथ अन्याय ही क्यों न कर रहे हों." सोमान कहती हैं कि इसीलिए महिला काजियों का होना जरूरी हो गया है. उन्होंने कहा, "यह जरूरी है कि महिलाएं ऐसे मामलों को सुनें जिनमें कोई महिला ही मुश्किल स्थिति में है. और फिर कुरान में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि औरत काजी नहीं हो सकती."
बीएमएमए का यह कदम ऐसे वक्त में उठा है जबकि ऐसे कानूनों पर लगातार सवाल उठ रहे हैं जो महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं. संस्था ने पिछले साल एक सर्वे किया था जिसमें पता चला कि 90 फीसदी मुस्लिम महिलाएं चाहती हैं कि ट्रिपल तलाक की प्रथा बंद हो. इन महिलाओं ने एक से ज्यादा शादियों को भी गलत माना. ट्रिपल तलाक पर बैन लगाने संबंधी एक याचिका में पिछले महीने भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात की पड़ताल की जाएगी कि इस्लामिक कानूनों में किस हद तक दखल दिया जा सकता है.
देखें, पर्दे के पीछे कैसी है ईरानी औरतों की जिंदगी
पर्दे के पीछे कैसी हैं ईरानी औरतें
ईरानी महिला सुनते ही अगर आपके जहन में भी पर्दे में छिपी औरत की तस्वीर उभरती है तो ये तस्वीरें आपको चौंका देंगी. ईरानी फोटोग्राफर समाने खोसरावी ने पर्दे के पीछे की जिंदगी को कागज पर उतारा है, और हमने उसे इंटरनेट पर...
तस्वीर: Samaneh Khosravi
घर से बाहर जाना हो तो
ईरान की एक महिला जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह ढक लेती है. लेकिन इस ढकने में भी वह हॉलीवु़ड की नकल की कोशिश करती है. और पर्दे के भीतर कैसी है उसकी जिंदगी?
तस्वीर: Samaneh Khosravi
ढीले से नियम
1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. उसके बाद सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए अपना शरीर ढकना जरूरी हो गया. फिर भी युवतियां कई बार इन नियमों से खेल जाती हैं जैसे उत्तरी तेहरान के तोचल की ये लड़कियां. हालांकि यह जान पर खेल जाने जैसा है.
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चेहरा दिखना चाहिए
ईरान में हिजाब चलता है. यानी बाकी पूरा शरीर ढका होना चाहिए लेकिन चेहरा दिख सकता है. वैसे 1936 से 1941 के बीच रजा शाह पहलवी ने सार्वजनिक स्थानों पर पर्दा बैन कर रखा था.
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मर्लिन मुनरो जैकेट
ईरान में लड़कियां ऑनलाइन शॉपिंग खूब करती हैं. मर्लिन मुनरो जैकेट खूब चलती है. युवा डिजाइनर फेसबुक या इंस्टाग्राम के जरिए इन्हें बेचते हैं.
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प्लास्टिक सर्जरी
चेहरे-मोहरे पर बहुत पैसा खर्चते हैं ईरानी. प्लास्टिक सर्जरी खूब हो रही है. हर साल देश में 60-70 हजार लोग सर्जरी करवाते हैं.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
हर साल बढ़ती संख्या
आंकड़े बताते हैं कि जितनी प्लास्टिक सर्जरी ईरान में होती है, उससे वह सबसे ज्यादा सर्जरी कराने वाले देशों में शुमार हो गया है. और आंकड़े हर साल बढ़ते ही जा रहे हैं. जैसे इस लड़की ने नाक की सर्जरी करा ली है.
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आधुनिकता और परंपरा
ईरानी फैशन में आधुनिकता और परंपरा का संगम साफ दिखता है. खोसरावी के कैमरे की निगाह से देखिए.
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घर पर ब्यूटी ट्रीटमेंट
ब्यूटीशियन घर पर सर्विस देती हैं. खोसरावी कहती हैं कि महिलाओं में बालों को रंगवाने कराने का चलन बढ़ रहा है.
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मेनिक्योर, पेडिक्योर
ईरान में विशाल ब्यूटी सलून भी खूब चलते हैं. पुरुष इनके अंदर नहीं आ सकते. महिलाएं इस बंद कमरे में ज्यादा आजाद होती हैं.
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काला शा काला
ऐसा नहीं है कि ईरानी महिलाएं काला रंग ही पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. खोसरावी का कैमरा इसका गवाह है.
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एक्सरसाइज भी
ईरानी लड़कियां फिगर को लेकर वैसे ही चिंतित हैं जैसे कोई और भी. इसलिए वे वर्कआउट करती हैं. फिट रहती हैं.
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हुस्न का जश्न
खोसरावी कहती हैं कि युवतियां सामाजिक हदों का पालन करती हैं लेकिन इन हदों में रहकर हुस्न का जश्न मनाना इन्होंने सीख लिया है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
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भारत की 1.2 अरब आबादी में 13 फीसदी मुसलमान हैं. लेकिन सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि यह तबका सबसे ज्यादा पिछड़ा हुआ है और समाज में हाशिये पर है.
जिन महिलाओं को काजी बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है वे सामुदायिक कार्यकर्ता हैं. महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और बिहार की ये महिलाएं फिलहाल मुंबई में ट्रेनिंग ले रही हैं. वैसे, मुस्लिम देश इंडोनेशिया और मलेशिया में कुछ महिला काजी हैं. सोमान कहती हैं कि एक औरत अगर काजी बनेगी तो वह बाल विवाह रोक सकेगी, सुनिश्चित कर सकेगी कि औरत की शादी उसकी मर्जी से हो, और उसे तलाक के वक्त उसका पूरा हक मिले.
तस्वीरें: ऐसी थी पैगंबर मोहम्मद की बीवी
ऐसी थीं पैगंबर मोहम्मद की बीवी
पैगंबर मोहम्मद की पहली बीवी खदीजा बिंत ख्वालिद की इस्लाम धर्म में महिलाओं के अधिकार तय करवाने में अहम भूमिका मानी जाती है. कई मायनों में उन्हें मुस्लिम समुदाय की पहली फेमिनिस्ट भी माना जाता है.
पिता से सीखे व्यापार के गुर
खदीजा के पिता मक्का के रहने वाले एक सफल व्यापारी थे. कुराइश कबीले के पुरुष प्रधान समाज में खदीजा को हुनर, ईमानदारी और भलाई के सबक अपने पिता से मिले. उनके पिता फर्नीचर से लेकर बर्तनों और रेशम तक का व्यापार करते थे. उनका कारोबार उस समय के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों मक्का से लेकर सीरिया और यमन तक फैला था.
आजादख्याल और साहसी
खदीजा की शादी पैगंबर मोहम्मद से पहले भी दो बार हो चुकी थी. उनके कई बच्चे भी थे. दूसरी बार विधवा होने के बाद वे अपना जीवनसाथी चुनने में बहुत सावधानी बरतना चाहती थीं और तब तक अकेले ही बच्चों की परवरिश करती रहीं. इस बीच वे एक बेहद सफल व्यवसायी बन चुकी थीं, जिसका नाम दूर दूर तक फैला.
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ना उम्र की सीमा हो
पैगंबर मोहम्मद से शादी के वक्त खदीजा की उम्र 40 थी तो वहीं मोहम्मद की मात्र 25 थी. पैगंबर मोहम्मद को उन्होंने खुद शादी के लिए संदेश भिजवाया था और फिर शादी के बाद 25 सालों तक दोनों केवल एक दूसरे के ही साथ रहे. खदीजा की मौत के बाद पैगंबर मोहम्मद ने 10 और शादियां कीं. आखिरी बीवी आयशा को तब जलन होती थी जब वे सालों बाद तक अपनी मरहूम बीवी खदीजा को याद किया करते.
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आदर्श पत्नी, प्रेम की मूरत
अपनी शादी के 25 सालों में पैगंबर मोहम्मद और खदीजा ने एक दूसरे से गहरा प्यार किया. तब ज्यादातर शादियां जरूरत से की जाती थीं लेकिन माना जाता है कि हजरत खदीजा को पैगंबर से प्यार हो गया था और तभी उन्होंने शादी का मन बनाया. जीवन भर पैगंबर पर भरोसा रखने वाली खदीजा ने मुश्किल से मुश्किल वक्त में उनका पूरा साथ दिया. कहते हैं कि उनके साथ के दौरान ही पैगंबर पर अल्लाह ने पहली बार खुलासा किया.
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पहले मुसलमान
हजरत खदीजा को इस्लाम में विश्वास करने वालों की मां का दर्जा मिला हुआ है. वह पहली इंसान थीं जिन्होंने मोहम्मद को ईश्वर के आखिरी पैगंबर के रूप में स्वीकारा और जिन पर सबसे पहले कुरान नाजिल हुई. माना जाता है कि उन्हें खुद अल्लाह और उसके फरिश्ते गाब्रियाल ने आशीर्वाद दिया. अपनी सारी दौलत की वसीयत कर उन्होंने इस्लाम की स्थापना में पैगंबर मोहम्मद की मदद की.
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गरीबों की मददगार
अपने व्यापार से हुई कमाई को हजरत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं. उन्होंने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा.
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लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने महिलाओं को काजी बनाने के इस कदम की आलोचना की है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए जिम्मेदार इस गैरसरकारी संगठन का मानना है कि महिलाओं को काजी बनने का हक नहीं है. बोर्ड के सचिव मौलाना खालिद रश्दी फिरंगी महली कहते हैं, "महिलाओं को काजी बनने का कोई हक नहीं है. और फिर जरूरत भी नहीं है क्योंकि पहले ही पुरुष काजी काफी संख्या में हैं. इसलिए यह एक फिजूल का काम है."
लेकिन ट्रेनिंग ले रहीं साफिया अख्तर इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. उनका कहना है कि महिला काजियों की सख्त जरूरत है. भोपाल में उन्होंने कहा, "मुस्लिम औरतों के साथ बहुत अन्याय होता है. जो मामले हमें प्रभावित कर रहे हैं, हमें उनमें अपनी बात कहने का पूरा हक है. अगर इस देश की औरतें पायलट और प्रधानमंत्री बन सकती हैं तो फिर काजी क्यों नहीं?"