एक बार फिर विपक्ष ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. नई नियुक्तियां ऐसे समय पर हो रही हैं जब लोकसभा चुनावों की घोषणा होने ही वाली है.
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चुनाव आयुक्तों को चुनने वाली समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि केंद्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों को चुन लिया है लेकिन नियुक्ति के लिए तय की गई प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया है.
भारत के चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं. फरवरी, 2023 में चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय की सेवानिवृत्ति के बाद आयोग में दो ही आयुक्त रह गए थे. 10 मार्च को अरुण गोयल के अचानक इस्तीफा दे देने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार आयोग में अकेले रह गए थे.
विपक्ष के आरोप
लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कभी भी हो सकती है. ऐसे में आयोग के रिक्त स्थानों को लेकर चिंताएं बनी हुई थीं. नए आयुक्तों की नियुक्ति की जानकारी सामने आने से ये चिंताएं तो मिट गई हैं, लेकिन चौधरी ने आरोप लगाया है कि नियुक्ति में तय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है.
उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार को बतौर चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के लिए चुन लिया गया है. सरकार ने अभी तक इन दोनों नामों की घोषणा नहीं की है.
मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि दोनों अधिकारी 1988 बैच के अफसर हैं. एनडीटीवी के मुताबिक संधू उत्तराखंड कैडर के हैं और उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहने के अलावा राष्ट्रीय राज्यमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके हैं. कुमार केरल कैडर के हैं और संसदीय मामले मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं.
पूरी प्रक्रिया पर सवाल
चौधरी ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें बुधवार को 212 उम्मीदवारों की एक सूची दी गई थी और उन्होंने कहा था कि उन्हें संक्षिप्त सूची भी दी जाए. लेकिन संक्षिप्त सूची उन्हें गुरुवार को दिल्ली में समिति की बैठक शुरू होने से बस 10 मिनट पहले दी गई.
चुनावी बॉन्ड से किस पार्टी को मिला कितना चंदा
चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में राजनीतिक पार्टियों की कमाई को लेकर कई रोचक तथ्य सामने आए. जानिए किस पार्टी को कितना चंदा मिला और कैसे मिला.
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करीब 9,000 करोड़
सुप्रीम कोर्ट से मिले डाटा के मुताबिक 2017-18 से 2022-23 तक अलग अलग राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल मिलाकर 8,970.3765 करोड़ रुपयों का चंदा मिला.
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16,000 करोड़ से ज्यादा
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाने वाली गैर सरकारी संस्था एडीआर के मुताबिक एसबीआई से आरटीआई के जरिए हासिल किया गया डाटा दिखाता है कि मार्च, 2018 से जनवरी, 2024 के बीच 16,518.1099 करोड़ रुपयों के मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए.
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बीजेपी सबसे आगे
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक 8,970 करोड़ में से अकेले बीजेपी को 6,566.1249 करोड़ रुपए चंदा मिला. यह कुल धनराशि का करीब 73 प्रतिशत है.
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कांग्रेस अगले नंबर पर
कांग्रेस को 8,970 करोड़ में से 1,123.3155 रुपए चंदा मिला. यह कुल धनराशि का करीब 12 प्रतिशत है.
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तृणमूल को भी लाभ
सुप्रीम कोर्ट के डाटा के मुताबिक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 8,970 रुपयों में से 1,092.988 करोड़ रुपए मिले. बीजेडी को 774, डीएमके को 616.5, टीआरएस को 383.653, वाईएसआर कांग्रेस को 382.44, टीडीपी को 146, शिवसेना को 101.38 और 'आप' को 94.285 करोड़ रुपए मिले.
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सीपीएम ने नहीं लिया चंदा
सीपीएम ऐसी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी रही जिसने चुनावी बॉन्ड से चंदा नहीं लिया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि डाटा साफ दिखा रहा है कि इन बॉन्ड के जरिए अधिकांश चंदा उन्हीं पार्टियों को गया है जो केंद्र में और राज्यों में सत्ता में हैं.
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कॉर्पोरेट घरानों ने ज्यादा किया इस्तेमाल
डाटा ने यह भी दिखाया कि एक करोड़ मूल्य के बॉन्ड सबसे ज्यादा बिके. कुल बिके बॉन्ड में एक करोड़ मूल्य के बॉन्ड की संख्या में 54 प्रतिशत और मूल्य में 94 प्रतिशत हिस्सा था. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि यह इस बात का संकेत है कि इस गुमनाम चंदे के पीछे कॉर्पोरेट घरानों का बड़ा हाथ है.
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कॉर्पोरेट घरानों की पसंद
एडीआर ने अदालत को बताया कि कॉर्पोरेट घरानों से मिले चंदे में भी बीजेपी ही सबसे आगे है. अकेले 2022-23 में ही बीजेपी को कॉर्पोरेट घरानों से 1,294.1499 करोड़ रुपए मिले. इसके मुकाबले कांग्रेस को 171.0200 करोड़ रुपए मिले.
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चौधरी ने कहा कि यह स्पष्ट था कि जिन्हें चुन लिया गया है उन्हीं को नियुक्त किया जाएगा, फिर भी उन्होंने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए एक डिस्सेंट नोट दिया है. उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कानून की भी आलोचना की जिसके तहत आयुक्तों को नियुक्त करने वाली समिति में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को डाल दिया गया था.
चौधरी ने पत्रकारों से कहा, "इस समिति में सरकार का बहुमत है. जो वो चाहते हैं, वही होता है." हालांकि इस प्रक्रिया में लाए गए बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी. अभी तक ये मामले लंबित थे, लेकिन शुक्रवार, 15 मार्च को ही इन याचिकाओं पर सुनवाई होनी है.