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विज्ञानउत्तरी अमेरिका

नासा के मिशन के लिए चुना गया भारतीय मूल का डॉक्टर

८ दिसम्बर २०२१

नासा ने निकट भविष्य के अपने अंतरिक्ष मिशनों के लिए 10 नए नामों की घोषणा की है, जिनमें एक भारतीय मूल के डॉक्टर भी शामिल हैं. ये लोग चांद और मंगल ग्रह पर जाने वाले मिशनों का हिस्सा बनेंगे.

अनिल मेननतस्वीर: Thomas Shea/AFP/Getty Images

45 वर्षीय डॉक्टर अनिल मेनन स्पेसएक्स के पहले फ्लाइट सर्जन थे. उसके पहले वो नासा के लिए भी इसी भूमिका में अंतरिक्ष मिशन पर यात्रियों के स्वास्थ्य की देखभाल कर चुके हैं. वो इससे भी चार बार आवेदन कर चुके थे. उनका पांचवां आवेदन सफल रहा.

अनिल के माता पिता भारत और यूक्रेन से अमेरिका जा कर बस गए थे. अनिल का जन्म अमेरिका में ही हुआ और वो वहीं पले बढ़े. उन्हें आपात स्थितियों में भी काम करने का अनुभव है. 2010 में उन्होंने हैती में आये विध्वंसकारी भूकंप के बाद पीड़ित लोगों की मदद की थी.

"आर्टेमिस पीढ़ी"

फिर 2015 में वो संयोग से नेपाल में आए एक बड़े भूकंप से बस कुछ ही मिनटों पहले वहां पहुंचे थे. वहां भी उन्हें भूकंप पीड़ितों की मदद करने का मौका मिला.

नासा 2025 में अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारना चाहती हैतस्वीर: Marc Schmerbeck/Zoonar/picture alliance

नवंबर में स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के सदस्य जब अंतरिक्ष में छह महीने बिता कर धरती पर वापस लौटे थे, तब फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेस्के को अनिल ने ही समुद्र में तैर रहे उनके कैप्सूल से बाहर निकाला था. उन्होंने कहा, "इसे खुद महसूस करना एक अविश्वसनीय अनुभव होगा."

अनिल और बाकी नौ लोग जिस टीम में शामिल होंगे उसे नासा "आर्टेमिस पीढ़ी" कहती है. इसका नाम संस्था के आर्टेमिस कार्यक्रम के नाम पर रखा गया है जिसका उद्देश्य है कुछ ही सालों में चांद पर और फिर मंगल ग्रह पर कदम रखना.

इन 10 लोगों को 12,000 आवेदकों में से चुना गया. यह सब विविध पृष्ठभूमि के हैं और इन्हें मानव इतिहास के अभी तक से सबसे कठिन खोजी मिशनों को पूरा करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए चुना गया है.

दो साल लंबा प्रशिक्षण

इनमें उच्च स्तरीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं. 38 साल के क्रिस विलियम्स एक मेडिकल फिजिसिस्ट और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उनका शोध कैंसर के इलाज के लिए इमेज गाइडेंस के तरीके ईजाद करने पर केंद्रित था.

यह टीम अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भी चलाएगीतस्वीर: NASA/Roscosmos/Reuters

35 वर्षीय क्रिस्टीना बर्च ने एमआईटी से बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की है. अंतरिक्ष के जाने की प्रेरणा उन्हें अपने ही उस काम से मिलीं जो वो अपनी प्रयोगशाला में कर रही थीं. वो एक सफल ट्रैक साइक्लिस्ट भी रह चुकी हैं. उन्होंने ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई भी कर लिया था और विश्व कप में मेडल भी जीते हैं.

नासा का लक्ष्य है 2025 में अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारना. लेकिन अपोलो युग की तरह इस बार संस्था यह काम अकेले नहीं करेगी और स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों की भी मदद लेगी.

जनवरी में सभी लोग टेक्सास के ह्यूस्टन स्थित जॉनसन अंतरिक्ष केंद्र पहुंचेंगे और उसके बाद वहां उनका दो साल लंबा प्रशिक्षण शुरू होगा.

उन्हें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को चलाने और उसकी देखरेख करने, स्पेसवॉक करने, रोबॉटिक कौशल, एक ट्रेनिंग जेट को सुरक्षित तरीके से चलाने और अपने रूसी सहयोगियों से बात करने के लिए रूसी भाषा का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

सीके/एए (एएफपी)

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