इसरो ने कहा है कि उसके चंद्रयान ने चांद के दक्षिण ध्रुव पर सल्फर समेत कई तत्वों के होने की पुष्टि की है. पिछले हफ्ते चांद पर उतरने के बाद चंद्रयान का रोवर वहां सतह का मुआयना कर रहा है.
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इसरो के मुताबिक चंद्रयान ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सल्फर मौजूद है. सोमवार को जारी एक बयान में इसरो ने कहा, "चंद्रयान-3 के साथ भेजा गये लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (LIBS) ने दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रमा की सतह पर नमूनों की पहली जांच की है. इस जांच में पुष्टि हुई है कि उस इलाके में सल्फर मौजूद है."
इसरो ने यह भी कहा कि यह जांच चंद्रमा की कक्षा में मौजूद उपग्रहों के जरिये संभव नहीं थी. जांच में चांद पर एल्युमिनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम और टाइटेनियम के होने की भी पुष्टि हुई है. इसके अलावा मैंगनीज, सिलिकन और ऑक्सीजन के अंश भी मिले हैं.
चंद्रयान 3 की ऐतिहासिक कामयाबी पर दुनियाभर की मीडिया ने क्या लिखा
चंद्रयान-3 मिशन कामयाब रहा. भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्षयान उतारने वाला पहला देश बन गया है. देखिए, अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने चंद्रयान 3 की ऐतिहासिक कामयाबी पर क्या लिखा है.
तस्वीर: ISRO/AFP
"दी गार्डियन" की हेडिंग: इन वर्ल्ड फर्स्ट...
ब्रिटिश अखबार "दी गार्डियन" ने लिखा: दुनिया में पहली बार भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतारा अंतरिक्षयान
तस्वीर: R. Satish Babu/AFP/Getty Images
"दी न्यू यॉर्क टाइम्स" की हेडलाइन: इंडिया लैंड्स फर्स्ट...
अमेरिका के अखबार "दी न्यू यॉर्क टाइम्स" ने लिखा: चांद की ताजातरीन दौड़ में सबसे पहले भारत हुआ दक्षिण ध्रुवीय हिस्से में लैंड
तस्वीर: various sources/AFP
"दी टाइम्स" का शीर्षक: इंडिया मेक्स हिस्ट्री...
ब्रिटिश अखबार "दी टाइम्स" ने लिखा है: चंद्रमा के डार्क साइड पर लैंड करके भारत ने बनाया इतिहास
तस्वीर: Qianlong/dpa/picture alliance
"दी वॉशिंगटन पोस्ट" का शीर्षक: इंडिया बीकम्स फर्स्ट...
अमेरिकी अखबार "दी वॉशिंगटन पोस्ट" ने लिखा है: चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास अंतरिक्षयान उतारने वाला पहला देश बना भारत
तस्वीर: Aijaz Rahi/AP Photo/picture alliance
"क्रोनेन त्साइंटुग" की हेडलाइन: ग्रेट जॉय...
ऑस्ट्रिया के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबार क्रोनेन त्साइंटुग की हेडलाइन: ग्रेट जॉय: भारत की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग
तस्वीर: Aijaz Rahi/AP Photo/picture alliance
बीबीसी की हेडलाइन: इंडिया मेक्स हिस्ट्री...
ब्रिटिश प्रसारक बीबीसी ने लिखा है: भारत ने बनाया इतिहास, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंड हुआ चंद्रयान-3
तस्वीर: StockTrek Images/IMAGO
"दी जेरुसलेम पोस्ट" का शीर्षक: हिस्टोरिक मोमेंट फॉर इंडिया
इस्राएल के अखबार "दी जेरुसलेम पोस्ट" ने लिखा है: चंद्रयान-3 चंद्रमा पर उतरा, भारत के लिए ऐतिहासिक पल
तस्वीर: R. Satish Babu/AFP/Getty Images
"फ्रांस 24" की हेडिंग: इंडिया बीकम्स फर्स्ट नेशन...
"फ्रांस 24" ने लिखा है: भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्षयान उतारने वाला पहला देश बना
तस्वीर: Saurabh Sirohiya/ZUMA Wire/IMAGO
श्पीगल का शीर्षक: इंडियन प्रोब लैंडेड ऑन मून
जर्मनी की न्यूज वेबसाइट श्पीगल ने लिखा: भारतीय अभियान चंद्रमा पर उतरा. भारत के प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के लिए प्रभावशाली कामयाबी
तस्वीर: ISRO/AFP
"दी डॉन" का शीर्षक: इंडियाज चंद्रयान 3...
पाकिस्तान के अखबार "दी डॉन" ने लिखा है: भारत का चंद्रयान-3 अंतरिक्षयान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा
तस्वीर: Toby Melville/REUTERS
"आफटेनपोस्टन" की हेडलाइन: स्पेसक्राफ्ट लैंडेड सेफली...
नॉर्वे के अखबार "आफटेनपोस्टन" की हेडलाइन: चांद के दक्षिणी हिस्से में पहली बार सफलता से उतरा यान
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
एबीसी न्यूज की हेडिंग: इंडिया बीकम्स द फोर्थ कंट्री...
ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टर एबीसी न्यूज ने लिखा है: चांद पर सफलतापूर्वक अंतरिक्षयान उतारने वाला चौथा देश बना भारत
तस्वीर: Michael Probst/AP Photo/picture alliance
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चंद्रयान का छह पहिये वाला प्रज्ञान रोवर सतह के नमूने जमा कर रहा है. यह रोवर उस इलाके में घूम रहा है, जिसके बारे में अब तक कमोबेश कोई जानकारी नहीं है. रोवर को दो हफ्ते तक चंद्रमा की सतह पर काम करना है. इस दौरान वह तस्वीरें और वैज्ञानिक डेटा भेज रहा है.
रोवर की चुनौतियां
बीते गुरुवार को उसने अपने प्रयोग शुरू किये थे. रोवर पर दो विशेष उपकरण लगे हैं जिनका मकसद रासायनिक संरचना से जुड़े प्रयोगों के अलावा एक रास्ते की योजना बनाना भी है, जिस पर भविष्य में अनुसंधान किया जा सके.
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
तस्वीर: MARTIN BERNETTI/AFP
गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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रोवर के सामने कई चुनौतियां भी हैं. इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने पिछले हफ्ते बताया था कि अपने पहले मिशन में रोवर को कई मुश्किलों का सामना करना होगा जिनमें चांद पर धूल और तापमान प्रमुख हैं जिनके कारण प्रज्ञान की आवाजाही पर असर पड़ सकता है.
समाचार चैनल सीएनएन टीवी18 से बातचीत में उन्होंने कहा, "मेकैनिक पार्ट्स, यानी वे हिस्से जो चलते हैं, धूल के कारण जाम हो सकते हैं. इस कारण मोटर या बेयरिंग काम करना बंद कर सकते हैं.”
चांद की धूल धरती की धूल से अलग है. चूंकि चंद्रमा पर हवा नहीं है इसलिए यह धूल उपकरणों के पुर्जों में फंस सकती है और उसके कामकाज को प्रभावित कर सकती है.
सोमनाथ ने कहा, "इस कारण मेकनिज्म में दिक्कतें हो सकती हैं, तो देखते हैं कि क्या होता है. हमें इसका सामना करना पड़ेगा और इसी कारण हम अनुसंधान कर रहे हैं. अगर सब कुछ पता होता तो फिर उसके करने में मजा ही क्या था.”
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भारत की बड़ी योजनाएं
23 अगस्त को चंद्रयान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा था. किसी यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने वालाभारत दुनिया का एकमात्र देश है. गड्ढों से भरे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर आज तक कोई इंसानी मशीन नहीं पहुंची थी. 2019 में भारत का चंद्रयान 2 इसी कोशिश के दौरान क्रैश हो चुका था. इस ऐतिहासिक लैंडिंग से तीन दिन पहले रूस का लूना-25 मिशन भी दक्षिणी ध्रुव पर उतरने से ठीक पहले क्रैश हो गया था.
भारत ने यह उपलब्धि सिर्फ 6.15 अरब रुपये के बजट में हासिल की है. 2014 में भारत मंगल की कक्षा में यान स्थापित करने वाला पहला एशियाई देश बन गया था. सितंबर में इसरो सूरज के अनुसंधान के लिए एक यान, आदित्यभेजने जा रहा है. अगले साल उसकी धरती की कक्षा में इंसान भेजने की योजना है.
इसके अलावा 2025 में उसने जापान के साथ मिलकर चंद्रमा पर एक अन्य यान भेजने की योजना पर भी काम शुरू कर दिया है. दो साल के भीतर वह शुक्र ग्रह की कक्षा में यान भेजने पर काम कर रहा है.