चीनी गतिविधियों से निपटने के लिए भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात रहने वाले अपने जवानों और अधिकारियों को तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण दे रही है.
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भारत और चीन के बीच जारी तनाव अब उत्तरी से पूर्वी सीमा तक पहुंच गया है. इस बीच, भारतीय सेना जवानों को तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण दे रही है ताकि उनमें तिब्बती संस्कृति, लोगों, रहन-सहन और समाज की बेहतर समझ पैदा हो. इसके लिए देश भर के सात संस्थानों को चुना गया है. इनमें से एक सिक्किम में है और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में. यह दोनों राज्य तिब्बत की सीमा से लगे हैं. वहां सीमा के दोनों ओर भारी तादाद में तिब्बती आबादी है.
पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू इस योजना के तहत फिलहाल छह सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. लेकिन जल्दी ही इसकी अवधि बढ़ा कर तीन महीने करने का प्रस्ताव है. कोलकाता स्थित सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय के एक अधिकारी कहते हैं, "एलएसी पर तैनात जवानों और अधिकारियों में तिब्बत की संस्कृति की समझ विकसित करने और सूचना युद्ध में पारंगत बनाने के लिए यह प्रशिक्षण बेहद अहम है. इससे पूर्वी सीमा पर चीन के कुप्रचार से निपटने में सहायता मिलेगी."
हिमाचल और तिब्बती संस्कृति का मिलन
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क्यों है अहम पायलट प्रोजेक्ट?
तिब्बत के अध्ययन का प्रस्ताव पहली बार बीते साल अक्टूबर आयोजित सैन्य कमांडरों के सम्मेलन में पेश किया गया था. सेना के एक अधिकारी बताते हैं, "सैन्य अधिकारी आम तौर पर पाकिस्तान के बारे में बहुत कुछ जानते है. लेकिन उनमें चीन और चीनी मानसिकता की ऐसी समझ की कमी है. चीन को बेहतर तरीके से समझने वाले अधिकारियों की तादाद बहुत कम है. तिब्बत को समझने वाले तो और भी कम हैं. बदलते हालात में इन कमियों को दूर करना जरूरी और समय की मांग है." सेना का कहना है कि इसके लिए चुने जाने वाले अधिकारियों को पाकिस्तान के साथ पश्चिमी मोर्चे के बजाय एलएसी पर लंबे समय तक तैनाती दी जाएगी.
अरुणाचल प्रदेश के टेंगा स्थित 5 माउंटेन डिवीजन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था, "तिब्बती परंपराओं, सांस्कृतिक विशिष्टताओं, लोकतंत्र और राजनीतिक प्रभाव आदि को समझने से हमें अपने कामकाज की दिशा और कमियों की जानकारी मिलेगी. इस कोर्स के लिए संबंधित इलाकों में तैनात अधिकारियों को बारी-बारी प्रशिक्षण के लिए को चुना जाएगा. प्रशिक्षित अधिकारी अपने बटालियनों में प्रशिक्षकों के तौर पर कार्य करेंगे और कुछ साल में सेना में तिब्बती विषयों को समझने वाले लोगों की एक बड़ी तादाद हो जाएगी." उनका कहना है कि एलएसी पर तैनात अधिकारियों और जवानों के सिर्फ चीनी यानी मंदारिन भाषा सीखने से काम नहीं चलेगा.
सेना के सूत्रों ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चर स्टडीज में पहले बैच में इस साल मार्च से जून के बीच 15 अधिकारी और पांच जवानों का प्रशिक्षण पूरा हो गया है. अब दूसरा बैच नवंबर में शुरू होगा.
कितनी जानकारी है आपको बौद्ध धर्म के बारे में?
बौद्ध लोगों के बारे में आप क्या क्या जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि दुनिया में इस धर्म को मानने वाले कितने लोग हैं और ये कहां कहां तक फैले हुए हैं?
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धर्म नहीं, जीने का तरीका
एशिया में ऐसे भी बहुत लोग हैं जो धर्म से तो बौद्ध नहीं है लेकिन बौद्ध धर्म का पालन जरूर करते हैं. ऐसे लोगों के लिए ये जीने का एक तरीका है, गौतम बुद्ध की एक सीख है.
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दुनिया की 7 प्रतिशत आबादी
2015 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया की कुल आबादी में तकरीबन सात फीसदी हिस्सा बौद्ध लोगों का है. लेकिन कुछ शोध अनुमान लगाते हैं कि 2060 तक वे सिर्फ पांच फीसदी ही रह जाएंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी संख्या में लोग बौद्ध भिक्षु बन जाते हैं और सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हैं.
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चीन में सबसे ज्यादा
दुनिया के आधे बौद्ध लोग चीन में रहते हैं. लेकिन चीन की कुल आबादी में वे 18 फीसदी ही हैं. इसके अलावा अधिकतर बौद्ध लोग पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में बसते हैं. 13 फीसदी थाईलैंड में और नौ फीसदी जापान में. वैसे थाईलैंड की 93 फीसदी आबादी बौद्ध है.
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नेपाल और भारत
सिद्धार्थ गौतम का जन्म नेपाल में लुंबिनी के एक हिंदू परिवार में हुआ. बिहार के गया में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ. बावजूद इसके भारत में महज एक प्रतिशत लोग ही बौद्ध धर्म से नाता रखते हैं. वहीं नेपाल में यह संख्या 10 प्रतिशत है.
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अमेरिका में भी?
भारत की तरह अमेरिका की भी एक प्रतिशत आबादी बौद्ध है. ये अधिकतर वे लोग हैं जो एशिया से आ कर अमेरिका में बस गए. इनमें ज्यादातर वियतनाम, दक्षिण कोरिया और जापान के लोग हैं.
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धर्म गुरु दलाई लामा
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध लोगों के प्रमुख धर्म गुरु हैं. वो 14वें दलाई लामा हैं और उन्हें एक जीवित बोधिसत्व के रूप में माना जाता है.
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बूढ़ी आबादी?
दुनिया के अन्य धर्मों की तुलना में बौद्ध लोगों की मध्य आयु काफी ज्यादा है. जहां मुसलमानों की मध्य आयु 24 साल, हिंदुओं की 27 साल और ईसाईयों की 30 साल है, वहीं बौद्ध लोगों की मध्य आयु 36 साल है.
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कोलकाता स्थित पूर्वी कमान के एक अधिकारी कहते हैं, "कई चीजें ऊपर से सामान्य नजर आ सकती हैं. लेकिन उससे स्थानीय लोगों की भावनाओं के आहत होने का खतरा है. प्रशिक्षण के बाद तिब्बती संस्कृति को बेहतर तरीके से समझने के साथ स्थानीय लोगों के साथ संबंधों को भी मजबूत किया जा सकेगा."
पूर्वी कमान ने इस पाठ्यक्रम की अवधि डेढ़ से बढ़ा कर तीन महीने करने का प्रस्ताव भेजा है. इसके साथ ही भविष्य में प्रमोशन और पोस्टिंग के साथ भी इस प्रशिक्षण को जोड़ा जा सकता है. सेना ने अरुणाचल के बोमडिला स्थित एक बौद्ध मठ के साथ भी गठजोड़ किया है ताकि तिब्बती मामलों के विशेषज्ञ लामा भी अतिथि प्रशिक्षण के तौर पर कुछ गूढ़ विषयों को पढ़ा सकें.
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सीमा पर बढ़ती गतिविधियां
लद्दाख में हुई हिंसक झड़प के बाद चीनी सेना अब पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां लगातार तेज कर रही है. अरुणाचल प्रदेश से लगी तिब्बत की सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक तक रेलवे लाइन और हाइवे समेत दूसरे आधारभूत ढांचे को मजबूत करने और नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के आरोप लगाते रहे हैं. चीन अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है.
पूर्वी मोर्चे पर चीन की सक्रियता का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार ने हाल में इलाके में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने का काम शुरू किया है. इसके तहत ब्रह्मपुत्र पर नए ब्रिज के अलावा सुरंग और सड़कें बनाने का काम शुरू हुआ है. अब तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण भी भारत की इसी रणनीति का हिस्सा है.
भारत चीन का सीमा विवाद
भारत और चीन का सीमा विवाद दशकों पुराना है. तिब्बत को चीन में मिलाये जाने के बाद यह विवाद भारत और चीन का विवाद बन गया. एक नजर विवाद के अहम बिंदुओं पर.
तस्वीर: Reuters/Handout
लंबा विवाद
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका. दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है.
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अक्साई चीन
काराकाश नदी पर समुद्र तल से 14000-22000 फीट ऊंचाई पर मौजूद अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा वीरान है. 32000 वर्ग मीटर में फैला ये इलाका पहले कारोबार का रास्ता था और इस वजह से इसकी काफी अहमियत है. भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू कश्मीर के अक्साई चीन में उसकी 38000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है.
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अरुणाचल प्रदेश
चीन दावा करता है कि मैकमोहन रेखा के जरिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में उसकी 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा ली है. भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद को निपटाने के लिए 1914 में भारत तिब्बत शिमला सम्मेलन बुलाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dinodia
किसने खींची लाइन
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया. चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है.
तस्वीर: Imago
अंतरराष्ट्रीय सीमा
1947 में आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को आधिकारिक सीमा रेखा का दर्जा दे दिया. हालांकि 1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद भारत और चीन के बीच ऐसी साझी सीमा बन गयी जिस पर कोई समझौता नहीं हुआ था. चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी, औपनिवेशिक और पारंपरिक मानता है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा का दर्जा देता है.
तस्वीर: Reuters/D. Sagol
समझौता
भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत के इलाके में व्यापार और आवाजाही के लिए समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत ने समझा कि अब सीमा विवाद की कोई अहमियत नहीं है और चीन ने ऐतिहासिक स्थिति को स्वीकार कर लिया है.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online
चीन का रुख
उधर चीन का कहना है कि सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ और भारत तिब्बत में चीन की सत्ता को मान्यता दे. इसके अलावा चीन का ये भी कहना था कि मैकमोहन रेखा को लेकर चीन की असहमति अब भी कायम है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Baker
सिक्किम
1962 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई. महीने भर चली जंग में चीन की सेना भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुस आयी. बाद में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वापस लौटी. यहां भूटान की भी सीमा लगती है. सिक्किम वो आखिरी इलाका है जहां तक भारत की पहुंच है. इसके अलावा यहां के कुछ इलाकों पर भूटान का भी दावा है और भारत इस दावे का समर्थन करता है.
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मानसरोवर
मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ है जिसकी यात्रा पर हर साल कुछ लोग जाते हैं. भारत चीन के रिश्तों का असर इस तीर्थयात्रा पर भी है. मौजूदा विवाद उठने के बाद चीन ने श्रद्धालुओं को वहां पूर्वी रास्ते से होकर जाने से रोक दिया था.
तस्वीर: Dieter Glogowski
बातचीत से हल की कोशिश
भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं. हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. चीन कई बार ये कह चुका है कि उसने अपने 12-14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद बातचीत से हल कर लिए हैं और भारत के साथ भी ये मामला निबट जाएगा लेकिन 19 दौर की बातचीत के बाद भी सिर्फ उम्मीदें ही जताई जा रही हैं.