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नाबालिग बलात्कार पीड़िता को मिली गर्भपात की अनुमति

रितिका
२२ अप्रैल २०२४

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात की इजाजत दी है. कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि ऐसे मामलों में पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

 एक गर्भवती महिला की प्रतीकात्मक तस्वीर
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक 14 साल की नाबालिग रेप पीड़िता को गर्भपात की इजाजत दी हैतस्वीर: Donatella Giagnori/MAXPPP/Eidon/picture alliance

30 हफ्ते की नाबालिग गर्भवती के साथ बलात्कार हुआ था. उसकी उम्र 14 साल बताई गई है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह प्रेग्नेंसी पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामले बेहद असाधारण होते हैं, जहां हमें बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है. हर गुजरता घंटा पीड़िता के लिए बेहद अहम है.

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक कोर्ट ने यह फैसला एक मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सुनाया है. मुंबई के सायन अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में गर्भपात का समर्थन किया था. पीड़ित के साथ बलात्कार हुआ था, इसलिए कोर्ट ने अस्पताल को आगे भी इस प्रेग्नेंसी के असर पर नजर रखने का निर्देश दिया है.

क्या कहता है भारत में गर्भपात का कानून

सुप्रीम कोर्ट से पहले पीड़िता की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पिछले हफ्ते तत्काल सुनवाई की. कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया. यह अनुच्छेद कोर्ट को किसी भी लंबित मामले में न्याय सुनिश्चित करने का अधिकार देता है.

भारत में गर्भपात का अधिकार मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत मिलता है. 2021 में इस एक्ट में जरूरी संशोधन भी किए गए थे. बलात्कार के मामलों में गर्भपात की समय सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई थी. तब इन संशोधनों को बेहद प्रगतिशील माना गया था.

इस मामले में नाबालिग पीड़िता करीब 30 हफ्ते की गर्भवती थी. इस एक्ट के अनुसार 24 हफ्ते के बाद गर्भपात के लिए एक मेडिकल बोर्ड की इजाजत लेनी होती है. इसलिए कोर्ट ने सायन अस्पताल की रिपोर्ट के आधार पर फैसला लिया.

रेप के मामले में गर्भपात का अधिकार और अदालतों के फैसले

सुप्रीम कोर्ट के इस हालिया फैसले को भविष्य में उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जहां अदालत ने पीड़िता के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है. इससे पहले कई भारतीय अदालतों ने ऐसे मामलों में गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया था.

राजस्थान हाई कोर्ट ने इसी साल एक 11 साल की बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी. पीड़िता 32 हफ्ते की गर्भवती थी. उसने कोर्ट में दलील दी कि वह इसलिए गर्भपात करवाना चाहती है क्योंकि वह बच्चा उसके साथ हुए अपराध की हमेशा याद दिलाता रहेगा. दूसरी तरफ कोर्ट ने दलील दी कि एक पूरी तरह से विकसित भ्रूण के पास भी जीने का अधिकार है.

2023 में गुजरात हाई कोर्ट ने एक 25 साल की बलात्कार पीड़िता को भी गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद पीड़िता को गर्भपात की इजाजत दे दी गई थी. इसी साल बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने भी एक 15 साल की बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी. डॉक्टरों ने कहा था कि पीड़िता 28 हफ्ते की गर्भवती है और ऐसी स्थिति में गर्भपात करने पर भ्रूण के जिंदा होने की संभावना है.

अमेरिका के टेक्सस में अबॉर्शन के अधिकार की मांग करती महिलाएंतस्वीर: Shelby Tauber/REUTERS

बलात्कार की पीड़िता को प्राथमिकता

संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समिति यह कहती है कि अगर एक बलात्कार पीड़िता गर्भपात करवाना चाहती है तो ऐसी स्थिति में पीड़िता की मांग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. अधिकतर देशों में जहां गर्भपात के कठोर कानून हैं,  वहां भी बलात्कार के मामलों में पीड़ित को गर्भपात का अधिकार मिला है. हालांकि, अदालती कार्यवाही में देरी पीड़ितों के सामने एक कड़ी चुनौती होती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि बलात्कार के मामलों में पीड़ितों को सबूतों और पुलिस की जांच की बजाय पीड़ित की शिकायत के आधार पर जल्द से जल्द गर्भपात की सुविधा देने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए. संगठन का कहना है कि पुलिस रिपोर्ट और सबूतों की कानूनी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगता है, जिससे अधिकतर मामलों में पीड़िता की प्रेग्नेंसी गर्भपात की समय सीमा को पार कर जाती है.

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