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समाजभारत

स्त्री विरोधी सोच रखने वालों से जूझती भारत की महिलाएं

शकील सोभन
५ जून २०२५

सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्त्रीविरोधी सोच जड़ जमा रही हैं. महिलाओं को नियंत्रित करने की तरकीबें सीखने में लड़कों की दिचस्पी जगाई और बढ़ाई जा रही है. इसके नतीजे में महिलाओं के लिए खतरा बढ़ रहा है.

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सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर भी स्त्रीविरोधी सोच को बढ़ावा मिल रहा हैतस्वीर: NARINDER NANU/AFP via Getty Images

ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर ऐसे विचार तेजी से फैल रहे हैं, जहां लड़कों को सिखाया जा रहा है कि महिलाओं को कैसे 'कंट्रोल' किया जाए. जिसका असर ना केवल ऑनलाइन दिख रहा है बल्कि असल जिंदगी में भी रिश्तों, डेटिंग और कामकाजी माहौल को प्रभावित कर रहा है.

हर्षिता ने जब एक लड़के को ऑनलाइन डेट करना शुरू किया, तो शुरुआत में सब कुछ अच्छा लग रहा था. हालांकि फिर धीरे-धीरे असहज चीजें सामने आने लगी.

38 साल के ब्रिटिश-अमेरिकन सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, जो खुद को महिला-विरोधी कहने से भी नहीं हिचकते. उनकी और इशारा करते हुए हर्षिता ने बताया, "हम जब भी बात करते थे, वह हमेशा एंड्रयू टेट की बातें करने लगता था. पहले-पहले तो मैंने इस पर इतना ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे साफ हो गया कि वह भी एंड्रयू टेट की तरह ही स्त्री विरोधी सोच रखता है.”

एंड्रयू टेट "मैनोस्फेयर” का एक जाना-पहचाना नाम है. मैनोस्फेयर, ऑनलाइन दुनिया का वह हिस्सा है, जहां महिलाओं पर पुरुषों के नियंत्रण को बढ़ावा दिया जाता है.

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हर्षिता का पार्टनर भी टेट की "अत्यधिक मर्दाना” सोच से प्रभावित था. भले ही टेट पर मानव तस्करी और बलात्कार जैसे गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं और टेट महिलाओं के लिए अपमानजनक और हिंसक बातें करता है. फिर भी उसके फॉलोअर उसे आदर्श मानते हैं.

हर्षिता को केवल कुछ दिन के इस रिश्ते में काफी गहरे मानसिक शोषण और स्त्री के प्रति नकारात्मक सोच का सामना करना पड़ा.

वह बार-बार हर्षिता के सोशल मीडिया अकाउंट को देखता था और उस पर आरोप लगाता था कि वह "मर्दों का ध्यान खींचने की कोशिश कर रही है.” उसके पिछले रिश्तों में शारीरिक संबंध बनाने के लिए भी वह उनको ताने कसता था.

हर्षिता ने बताया, "वह कहता था कि ऐसी लड़कियां, जिनके अतीत में यौन संबंध रहे हो, वह सिर्फ डेटिंग के लिए होती हैं, शादी के लिए नहीं.” हर्षिता को यह दोहरा रवैया साफ दिखता था. वह खुद के कई पुराने रिलेशनशिप होने के बावजूद उसे जज करता था.

आखिरकार, एक बार जब हर्षिता ने उससे पूछा कि क्या वह किसी ऐसी लड़की को डेट करेगा, जिसके उतने ही पार्टनर रहे हों, जितने उसके खुद के हैं. तो उसने कहा, "नहीं, लड़कों का तो ऐसा चलता है, लेकिन लड़कियों के लिए यह ठीक नहीं.”

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इनसेल कल्चर क्या है?

भारत जैसे देश में, जहां महिलाओं के खिलाफ लगातार हिंसा बढ़ रही है. वहीं दूसरी ओर एक और खतरा तेजी से बढ़ रहा है. युवाओं के बीच मैनोस्फेयर और इनसेल कल्चर तेजी से फैल रहा है. भारतीय महिलाओं के लिए यह एक गंभीर चिंता बन गई है.

मैनोस्फेयर एक ऐसी ऑनलाइन दुनिया है, जहां अलग-अलग तरह के पुरुष केंद्रित समूह होते हैं. जिसमें से कुछ खुद को सुधारने की बात करते हैं. तो कुछ खुलकर महिलाओं के खिलाफ नफरत फैलाते हैं. जैसे एमआरए यानी पुरुष अधिकार कार्यकर्ता, पिकअप आर्टिस्ट्स, जो लड़कियों को 'फंसाने' की तरकीबें बताते हैं और रेड पिल इंफ्लुएंसर, जो खतरनाक मर्दानगी और स्त्रीविरोधी सोच को बढ़ावा देते हैं.

इसी मैनोस्फेयर का हिस्स्सा है, इनसेल. इसमें वह पुरुष आते हैं, जो मानते हैं कि वह रोमांटिक या शारीरिक संबंधो से इसलिए वंचित हैं क्योंकि अब महिलाएं स्वतंत्र हो गई हैं और उन्हें मना कर देती हैं.

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इनसेल विचारधारा के अनुसार, नारी सशक्तिकरण और महिलाओं की आजादी की वजह से ही पुरुषों को रिश्तों में "ना” सुनना पड़ता है. जिसके लिए वह फेमिनिज्म को दोषी मानते हैं.

इनसेल से जुड़ी ऑनलाइन कम्युनिटी अक्सर खतरनाक रूप ले लेती हैं. जैसे यह प्लेटफॉर्म महिलाओं के खिलाफ नफरत फैलाते हैं, महिलाओं को एक इंसान नहीं, बल्कि बस एक "उपयोग की चीज” समझते हैं और कई बार हिंसक सोच का रूप ले लेते हैं.

पांडिचेरी यूनिवर्सिटी में मनोवैज्ञानिक और असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. चिन्चू सी. ने बताया कि भारत में भी इनसेल और मैनोस्फेयर जैसी विचारधारा अब धीरे-धीरे आम होती जा रही है.

उन्होंने कहा, "मैनोस्फेयर विचारधारा पुरुषों को आसान जवाब दे देती है. जैसे कि यह कहना कि उनके रिश्ते इसलिए नहीं बन रहे हैं क्योंकि लड़कियां ब्रेनवॉश हो चुकी हैं और फेमिनिज्म ने उन्हें उकसावा दिया है.”

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आकाशदीप सिंह, जो खुद एंड्रयू टेट के विचारों से सहमत हैं और भारत में पुरुषों के लिए डेटिंग की दुनिया बहुत निराशाजनक लगती है.

उन्होंने कहा, "लड़कियां बस दूसरों का ध्यान खींचना चाहती हैं और लड़के सिर्फ सेक्स के पीछे भागते हैं. इस लड़ाई में हार तो पुरुषों की ही होती है. लड़के सेक्स पाने के लिए सिम्प बन जाते हैं और लड़कियां बस अपना मतलब निकालकर उन्हें छोड़ देती हैं.” सिम्प यानी ऐसे लड़के जो किसी लड़की को खुश करने के लिए खुद को जरूरत से ज्यादा समर्पित दिखाते है, खासकर जब वह लड़की उसमें कोई रुचि नहीं रखती.

आकाशदीप इसका दोष फेमिनिज्म पर मढ़ते हैं. उनके मुताबिक फेमिनिज्म असली बराबरी की बात नहीं करता, बल्कि केवल पुरुषों के खिलाफ नफरत फैलाता है और केवल "असामान्य या बहुत खुले व्यवहार” का समर्थन करता है.

उनके अनुसार, "टेट एक 'अल्फा' है, जो महिलाओं को उनकी सही जगह दिखाता है और नकली फेमिनिस्ट्स को लताड़ता है, जो कि मेरे हिसाब से गलत नहीं है.”

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आकाशदीप ने कहा, "अगर आप उसके बुरे कामों को नजरअंदाज कर दें. तो वो जो कहता है, खासकर रिलेशनशिप को लेकर, उसमें से काफी कुछ सही है. डेटिंग को लेकर उसकी सलाह काफी अच्छी होती है.”

आकाशदीप सिंह के अनुसार, आज के समय में कई पुरुष ऑनलाइन स्त्रीविरोधी ग्रुप्स और प्लेटफॉर्म्स की ओर इसलिए खिंच रहे हैं क्योंकि उन्हें आधुनिक डेटिंग, खासकर डेटिंग ऐप्स पर असफलता का सामना करना पड़ रहा है. वह कहते हैं कि डेटिंग ऐप्स पर महिलाओं के पास बहुत ज्यादा विकल्प हैं, क्योंकि ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर अधिकांश यूजर पुरुष ही होते हैं और वह सभी महिलाओं का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं.

एक हालिया रिसर्च के अनुसार, टिंडर पर 78 फीसदी पुरुष है जबकि केवल 22 फीसदी महिलाएं है.

सिंह बताते हैं, "यह वही बात साबित करता है कि जो मर्द कब से कह रहे हैं. आज की महिलाएं सिर्फ खुद के बारे में सोचती हैं और वह केवल ध्यान खींचना चाहती हैं.”

उनका आरोप है कि महिलाएं डेटिंग ऐप्स पर सिर्फ शीर्ष 10 फीसदी 'हाई वैल्यू' पुरुषों को पसंद करती हैं और बाकी सबको कचरे की तरह नजरअंदाज कर देती हैं. सिंह कहते हैं, "फिर 30 की उम्र में आकर वह  रोती हैं कि उन्हें कोई पार्टनर नहीं मिला. औरतों ने खुद ही यह गड़बड़ मचाई है और यह ‘बैंगनी बालों वाली' अपनी बिल्लियों के साथ अकेली मर जाएंगी, बिना किसी मर्द के.”

भारत में फैलता मैनोस्फेयर

डॉ. चिन्चू के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय मैनोस्फेयर शख्सियत जैसे एंड्रयू टेट, के भारत में भी बड़ी संख्या में युवा फॉलोअर हैं. हालांकि अब भारत में भी कुछ देसी इन्फ्लुएंसर इसी तरह की सोच और भाषा अपनाने लगे हैं.

वह कहते हैं, "जैसे देव त्यागी, जो खुद को डेटिंग कोच बताते हैं. इसके अलावा एलविश यादव और रणवीर इलाहाबादिया जैसे पॉपुलर इन्फ्लुएंसर भी अकसर अपनी बातों में मैनोस्फेयर की सोच और शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.”

देव त्यागी, जिनके इंस्टाग्राम और यूट्यूब अकाउंट अब डिलीट हो चुके हैं. वह पहले अपने 80,000 से ज्यादा सब्सक्राइबरों को यह बताते थे कि महिलाएं किस तरह के मर्दों के साथ शारीरिक संबंध बनाना पसंद करती हैं और यह भी कि महिलाएं सम्मान देने वाले लड़कों को नहीं चुनतीं, क्योंकि उन्हें "असली मर्द” पसंद आते हैं.

मिंट अखबार के मुताबिक उनकी एक वीडियो में उन्होंने कहा था कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड किसी लड़के से दोस्ती नहीं रख सकती. इंस्टाग्राम पर इस वीडियो को पांच लाख से भी अधिक लाइक्स मिले थे.

डॉ. चिन्चू का कहना है, "भारत में अभी तक मैनोस्फेयर की वजह से किसी तरह की शारीरिक हिंसा की खबरें तो सामने नहीं आई है या अभी तक तो हमें पता नहीं है. लेकिन इसका खतरा लगातार बना हुआ है.”

युवाओं को मदद की जरूरत

करीसेल: एक किताब के लेखक, डॉ. समीर एम. सोनी ने भारत और दुनिया में इनसेल कल्चर पर गहराई से अध्ययन किया है.

वह बताते हैं कि "करीसेल" एक ऐसा शब्द है, जो भारतीय इनसेल्स (अपनी इच्छा के बिना यौन संबंधो से वंचित) के लिए इस्तेमाल होता है. यह शब्द कई बार विदेशी नस्लवादियों द्वारा तिरस्कार के लिए और कई बार खुद भारतीय पुरुषों द्वारा अपने आपको नीचा दिखाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है.

इस पहचान को अपनाने वाले कई युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं होती हैं. वह खुद को "नाकाम मर्द" समझते हैं. खासकर तब जब उन्हें गुस्से के अलावा और कोई भी भावना जैसे दुख, डर या अकेलापन महसूस होता है. यौन अनुभव की कमी को वह अपनी व्यक्तिगत असफलता मान लेते हैं, जिससे उनकी निराशा और गहरी हो जाती है.

डॉ. सोनी मानते हैं कि इनसेल सोच और फेमिनिज्म विरोधी गुस्से के पीछे कुछ असली समस्याएं भी छिपी हो सकती हैं. जैसे रिश्तों की उलझन, पहचान की तलाश, या समाज की अपेक्षाएं.

समस्या तब बढ़ जाती है, जब ये युवा अपना गुस्सा महिलाओं और फेमिनिज्म पर निकालने लगते हैं. जबकि इसकी असली जड़ कुछ और है जैसे "आदर्श मर्द" की वह सोच, जो समाज ने गढ़ी है और जिसे हर पुरुष पर थोप दिया गया है.

2013 में अंतरराष्ट्रीय महिला अनुसंधान केंद्र के उत्तर भारत के 7 राज्यों में किये गए अध्ययन में सामने आया कि सर्वे में शामिल 9,000 में से 40 फीसदी पुरुषों के विचार बहुत सख्त और भेदभाव वाले थे. वह महिलाओं को कंट्रोल करने के पक्ष में थे. सबसे ज्यादा यह सोच 18–24 साल के युवाओं में देखी गई.

यह चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि सरकार की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा 25 साल से कम उम्र के पुरुषों का है.

डॉ. सोनी का कहना है, "यह युवा एक तरफ पितृसत्ता के नाम पर महिलाओं को तकलीफ देते हैं और दूसरी तरफ खुद भी जाने-अनजाने में उसी पितृसत्ता के शिकार बनते हैं.”

महिलाओं पर मानसिक दबाव

हर्षिता की तरह ही भारत की कई महिलाएं आज भी इस नई तरह की स्त्री विरोधी सोच का सामना कर रही हैं. यह सोच आज के कई युवा पुरुषों में सोशल मीडिया और मैनोस्फेयर जैसी ऑनलाइन विचारधाराओं के जरिये गहराई से उतर रहा है.

बाल और किशोर मनोचिकित्सक, अंबिका सिंह बताती हैं कि ऑनलाइन और असल जिंदगी दोनों में महिलाओं के प्रति जो अपमानजनक भाषा और व्यवहार दिखता है, चाहे वह मैनोस्फेयर से जुड़ा हो या नहीं. वह महिलाओं के मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर वही असर डालता है, जैसे कोई शारीरिक हिंसा करती है.

वह कहती हैं, "यह शरीर के नर्वस सिस्टम को हिला कर रख देता है. जिससे बेचैनी, डर, आत्म-संकोच, और रिश्तों में तनाव जैसी प्रतिक्रियाएं पैदा होती हैं.”

यह सब उस समय हो रहा है, जब भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले हर साल बढ़ते जा रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 23.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

जसलीन (बदला हुआ नाम) जैसी महिलाएं, जिन्होंने कभी एक "अल्फा मर्द” को डेट किया है, उनके लिए  भावनात्मक रूप से खुद को ऐसी स्थिति से अलग कर लेने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है.

जसलीन ने बताया, "उस रिश्ते के बाद मैंने सालों तक किसी को डेट नहीं किया. यह फैसला मैंने खुद लिया था ताकि रोमांटिक रिश्तों को मैं अपने जीवन का केंद्र ना बनाऊं. कभी-कभी अकेला जरूर लगता है लेकिन कम से कम सुकून रहता है.

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