इस्राएल में निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले फलीस्तीनियों की जगह तेजी से भारतीय मजदूर भर रहे हैं. वहां मिलने वाला ज्यादा पैसा उन्हें युद्धग्रस्त क्षेत्रों में काम करने के डर पर भारी पड़ रहा है.
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सेफ्टी बेल्ट, हेलमेट और काम के लिए इस्तेमाल होने वाले जूते पहनकर, 35 वर्षीय राजू निषाद नई कॉलोनी के निर्माण स्थल पर एक मचान पर काम कर रहे हैं. वह हथौड़ा मारकर ब्लॉक को ठीक कर रहे हैं, जो इस इमारत का हिस्सा बनेगा.
राजू और उनके साथ काम कर रहे भारतीय मजदूर साइट पर बिल्कुल फिट लगते हैं, लेकिन ये इस्राएल के निर्माण उद्योग के लिए नए हैं. ये मजदूर उस कमी को पूरा कर रहे हैं, जो 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद हजारों फलीस्तीनी मजदूरों के इस्राएल में प्रवेश पर प्रतिबंध के कारण हुई थी.
अगर वह हमला नहीं हुआ होता, तो इस साइट पर उभरती इमारतों, घरों, सड़कों और फुटपाथों पर अरबी बोलने वाले मजदूर होते. अब यहां हिंदी, हिब्रू और कभी-कभी मैंडरिन सुनाई देती है.
कमाई का मौका
हमास के हमले के बाद गाजा पट्टी में युद्ध छिड़ गया था. यह लड़ाई बाद में हिज्बुल्लाह (लेबनान), हूथी विद्रोही (यमन) जैसे ईरान समर्थित गुटों और यहां तक कि ईरान तक फैल गई. लेकिन इसने राजू निषाद को इस्राएल आने से नहीं रोका.
दुनिया की सबसे कड़ी सीमाएं
धरती के सीने पर खींची गई सरहदें कई बार देशों के साथ साथ दिलों को भी बांट देती हैं. दुनिया के कुछ ऐसे ही कठोर बॉर्डर...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
पाकिस्तान-भारत: 'लाइन ऑफ कंट्रोल'
1947 में ब्रिटिश शासकों से मिली आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध 1949 तक चला था. तभी से कश्मीर इलाके को दोनों देशों के बीच एक लाइन ऑफ कंट्रोल से बांटा गया. मुस्लिम-बहुल आबादी वाला पाकिस्तान अधिशासित हिस्सा और हिन्दू, बौद्ध आबादी वाला भारत का कश्मीर. इस लाइन के दोनों ओर पूरे कश्मीर को हासिल करने का संघर्ष आज भी जारी है. 1993 से अब तक यहां हुई हिंसा में 43,000 लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Singh
सर्बिया-हंगरी: बाल्कन रूट के केंद्र में
2015 के शरणार्थी संकट के प्रतीक बन चुके हैं ऐसे दृश्य. सर्बिया और हंगरी के बीच बिछी रेल की पटरियों पर चलकर यूरोप में आगे का सफर करते लोग. सितंबर में इस क्रासिंग को बंद कर दिया गया लेकिन यूरोप के भीतर खुली सीमा होने के कारण ऐसे और रूटों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
तस्वीर: DW/J. Stonington
कोरिया का अंधा पुल
पिछले 62 सालों से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच की सीमा बंद है और उस पर कड़ा सैनिक पहरा रहता है. दक्षिण कोरिया की तरफ से जाते हुए अगर आपको ऐसा साइन बोर्ड दिखे तो वहां से आगे बढ़ने के बाद आप वापस इस तरफ नहीं आ सकेंगे. 1990 के दशक के अंत से करीब 28,000 उत्तर कोरियाई अपनी सीमा पार कर दक्षिण कोरिया में आ चुके हैं.
तस्वीर: Edward N. Johnson
अमेरिका-मैक्सिको का लंबा बॉर्डर
मैक्सिको से लगी इस सीमा को अमेरिकी "टॉर्टिया वॉल" कहते हैं. यहां दीवार और बाड़ खड़ी कर करीब 1126 किलोमीटर लंबा बॉर्डर खड़ा किया गया है. पूरी पृथ्वी में इतनी कड़ी निगरानी वाली कोई दूसरी सीमा नहीं है. यहां करीब 18,500 अधिकारी बॉर्डर सुरक्षा में तैनात हैं.
तस्वीर: Gordon Hyde
हर दिन 700 को देश निकाला
कड़ी सुक्षा व्यवस्था के बावजूद गैरकानूनी तरीके से मैक्सिको से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों की संख्या काफी बड़ी है. केवल 2012 में ही लगभग 67 लाख लोगों ने सीमा पार की. हर दिन ऐसी कोशिश करने वाले करीब 700 लोग मैक्सिको वापस लौटाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/G. Ketels
मोरक्को-स्पेन: गरीबी और गोल्फ कोर्स
मोरक्को से लगे स्पेन के दो एन्क्लेव मेलिया और सिउटा को लोग यूरोप पहुंचने का रास्ता मानते हैं. अफ्रीका के कई देशों से लोग अच्छे जीवन की तलाश में इसी तरफ से यूरोप पहुंच कर शरण मांगने की योजना बनाते हैं. कई लोग सीमा पर बड़ी बाड़ों को चढ़ कर पार करने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्राजील-बोलीविया: हरियाली किधर?
उपग्रह से मिले चित्र दिखाते हैं कि वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ब्राजील के अमेजन के जंगल काफी कम हो गए हैं. पिछले पचास सालों में जंगलों के क्षेत्रफल में करीब 20 फीसदी कमी आई है. हालांकि अब बोलीविया में भी वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है.
तस्वीर: Nasa
हैती-डोमिनिक गणराज्य: एक द्वीप, दो विश्व
देखिए एक ही द्वीप पर स्थित दो देश इतने अलग भी हो सकते हैं. डोमिनिक गणराज्य पर्यटकों की पसंद रहा है जबकि हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है. बेहतर जीवन की तलाश में हैती से कई लोग डोमिनिक गणराज्य जाना चाहते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए 2015 में डोमिनिक गणराज्य ने आप्रवास के नियम सख्त किए हैं. तबसे करीब 40,000 हैतीवासी अपने देश वापस लौटे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Bueno
मिस्र-इस्राएल: एक तनावपूर्ण शांति
एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घनी आबादी - यह सीमा मिस्र की मुस्लिम-बहुल और इस्राएल की यहूदी-बहुल आबादी के बीच खिंची है. करीब 30 सालों से चली आ रही शांति के बाद हाल के समय में सीमा पर कुछ हिंसक वारदातों और कड़ी सैनिक निगरानी की खबर आई है. 2013 के अंत तक इस्राएल ने इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया था.
तस्वीर: NASA/Chris Hadfield
तीन देश, एक सीमा
दुनिया के कुछ हिस्सों में सीमाओं पर कोई दीवार, बाड़ या सैनिक निगरानी नहीं होती. जर्मनी, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य की इस सीमा पर एक तीन-तरफा पत्थर इसका सूचक है. शेंगेन क्षेत्र के इन तीनों देशों के बीच खुली सीमाएं हैं. फिलहाल शरणार्थी संकट के चलते यहां अस्थाई बॉर्डर कंट्रोल लगाना पड़ा है.
तस्वीर: Wualex
इस्राएल-वेस्ट बैंक: पत्थर की दीवार
साल 2002 से इस 759 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादित दीवारें और बाड़ें बनाई गई हैं. येरुशलम के इस घनी आबादी वाले क्षेत्र (तस्वीर) में दोनों के बीच कंक्रीट की नौ मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है. 2004 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार खड़ी करने को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
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वह कहते हैं, "यहां डरने की कोई बात नहीं है." हालांकि चेतावनी के लिए सायरन बजने पर उन्हें शरण के लिए भागना पड़ता है. वह बताते हैं, "जैसे ही सायरन बंद होता है, हम फिर से अपना काम शुरू कर देते हैं."
इस्राएल में वेतन काफी ज्यादा है. कई मजदूर यहां अपने देश की तुलना में तीन गुना ज्यादा कमा सकते हैं. राजू बताते हैं, "मैं भविष्य के लिए बचत कर रहा हूं. अच्छी योजनाएं बनाकर अपने परिवार के लिए कुछ बड़ा करना चाहता हूं."
राजू उन 16,000 भारतीय मजदूरों में से एक हैं, जो पिछले साल इस्राएल आए हैं. इस्राएल अभी और हजारों मजदूरों को लाने की योजना बना रहा है.
कड़ी मेहनत और उम्मीद
तेल अवीव में कई भारतीय मजदूर मिलकर एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं. यहां वे अपने घर जैसा तीखा, मसालेदार खाना भी बनाते हैं.
39 साल के सुरेश कुमार वर्मा उत्तर प्रदेश से आए हैं. वह कहते हैं, "इस्राएल में कम समय में ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. पैसा कमाना जरूरी है. परिवार के भविष्य के लिए मेहनत करना जरूरी है."
इस्राएल में हुए अध्ययनों के मुताबिक अभी निर्माण क्षेत्र में भारतीय मजदूरों की संख्या फलीस्तीनियों जितनी नहीं है. बैंक ऑफ इस्राएल के एयाल अर्जोव ने बताया, "हमास के हमले से पहले लगभग 80,000 फलीस्तीनी निर्माण क्षेत्र में काम करते थे. अब कुल विदेशी मजदूरों की संख्या 30,000 है. इस्राएल की आबादी हर साल 2 फीसदी बढ़ रही है. अगर निर्माण में देरी होती है, तो आवास की कमी हो सकती है."
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भारत-इस्राएल संबंध
भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. हालांकि यहां करोड़ों लोगों के लिए स्थायी नौकरियां उपलब्ध कराना एक चुनौती है. भारतीय लोग दशकों से इस्राएल में काम कर रहे हैं. कुछ बुजुर्गों की देखभाल करते हैं, तो कुछ आईटी और डायमंड ट्रेडिंग में लगे हैं.
गाजा युद्ध शुरू होने के बाद भारतीय मजदूरों को निर्माण उद्योग में लाने की मुहिम शुरू हुई. दिल्ली की कंपनी डायनामिक स्टाफिंग सर्विसेस के चेयरमैन समीर खोसला 30 देशों में 5 लाख से अधिक भारतीयों को भेज चुके हैं. उन्होंने अब तक इस्राएल में 3,500 मजदूर भेजे हैं.
वह कहते हैं, "यह हमारे लिए नया बाजार है." खोसला का मानना है कि भारत और इस्राएल के अच्छे संबंधों के कारण भारतीय मजदूर इस्राएल के लिए स्वाभाविक पसंद हैं.
एक साल पहले भारत और इस्राएल के बीच श्रमिकों को वहां भेजने के लिए एक समझौता हुआ था. इसके बाद भारत में कई भर्ती अभियान चलाकर मजदूरों को भर्ती किया गया. कठोर चयन प्रक्रिया के बाद उत्तर प्रदेश से 5,087, हैदराबाद से 900 और हरियाणा से 530 उम्मीदवारों को नौकरी के लिए चुना गया था.
इस्राएल पर हमास के हमले का एक साल
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तेलंगाना में भर्ती किए गए मजदूर बढ़ई, सिरेमिक टाइलिंग, पलस्तर और लोहे को मोड़ने का काम करते हैं. युद्धग्रस्त क्षेत्र में जाने वाले भारतीयों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण इस्राएल के निर्माण उद्योग में मिलने वाला उच्च वेतन है. भर्ती टीम के मुताबिक प्रत्येक मजदूर 1.2 लाख से लेकर 1.38 लाख रुपये प्रति माह पाता है, जो भारत में ऐसे कुशल श्रमिकों के लिए बाजार दरों से कई गुना अधिक है.