भारत: क्विक ग्रॉसरी ऐप्स की भेंट ना चढ़ जाएं छोटे दुकानदार
११ जून २०२४
भारतीय ग्राहकों की बदलती आदतों का असर छोटे दुकानदार झेल रहे हैं. अब एक बोतल दूध भी ऐप से ऑर्डर हो रहा है और मोहल्ले के दुकानदार ऐप्स का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं.
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भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई के एक कस्बे में स्विगी के वेयरहाउस में भागमभाग मची है. हर कोई फटाफट सामान थैलों में डाल रहा है क्योंकि दस मिनट में ऑर्डर डिलीवर करना है. वहां काम कर रहे लोगों की रफ्तार को सेकंडों में मापा जाता है. अगर देर हो जाए तो स्क्रीन पर लाल बत्ती चमकने लगती है.
बाहर कहर बरपाती गर्मी में अपनी भीगी नारंगी टीशर्ट में इंतजार करते स्विगी के बाइकर ऑर्डर उठाने को बेसब्र हैं. उन्हें भी फटाफट डिलीवरी करनी है.
वेयरहाउस के मैनेजर प्रतीक सालुंके बताते हैं, "आदर्श स्थिति में ऑर्डर उठाने का काम डेढ़ मिनट में पूरा हो जाना चाहिए.”
पूरे भारत में प्रसार
स्विगी के ऐसे वेयरहाउस पूरे भारत में बन रहे हैं. इन्हीं वेयरहाउसों से दूध से लेकर केले तक और कॉन्डम से लेकर गुलाब के फूलों तक सब कुछ लोगों के घरों तक पहुंचाया जा रहा है. यह भारत में किराना बाजार की नई तस्वीर है.
इस तस्वीर से एक तरफ तो तकनीकी और वित्तीय बाजार की बांछें खिली हुई हैं, दूसरी तरफ एक तबका है जिसका दिल बैठा जा रहा है. दशकों से भारत के किराना बाजार पर कायम छोटे दुकानदारों को अपना धंधा बैठता दिख रहा है. पहले ही मॉल और सुपरबाजार उनके ग्राहकों का बड़ा हिस्सा निगल चुके हैं. अब 10 मिनट में घर बैठे सामान की डिलीवरी का वादा करने वाले ऐप्स का बड़ा हमला हो रहा है.
2021 के सबसे बड़े बदलावों में से एक भारत के किराना मार्केट में
भारत में घर पर बैठ कर खरीदारी करने के तरीकों में 2021 में कई बदलाव आए. अब आप नहाते-नहाते साबुन मंगवा सकते हैं और खाते-खाते नमक. लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ेगा?
तस्वीर: Abhiruo Roy/REUTERS
घर से खरीदारी
भारत में घर बैठे बैठे किराने का सामान मंगवा लेने का चलन कुछ साल पहले शुरू तो हो गया था लेकिन महामारी और तालाबंदी की वजह से 2020 और 2021 में यह चलन बहुत बढ़ गया. कंपनियों को भी किराना सामान बेचकर करोड़ों नए ग्राहकों को जोड़ने का अवसर मिला.
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बढ़ता चलन
अब कई कंपनियों को इसमें उज्ज्वल भविष्य नजर आ रहा है. रेडसियर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में भारत का किराना बाजार बढ़ कर 850 अरब डॉलर का हो जाएगा. इसमें ई-ग्रोसरी की हिस्सेदारी करीब तीन प्रतिशत यानी 25 अरब डॉलर से भी ज्यादा की हो जाएगी.
तस्वीर: Abhiruo Roy/REUTERS
बाजार में कई खिलाड़ी
स्टैटिस्टा के मुताबिक ई-ग्रोसरी बाजार में बिग बास्केट की 35 प्रतिशत हिस्सेदारी है, अमेजन पैंट्री/फ्रेश की 31 प्रतिशत, ब्लिंकिट (जो पहले ग्रोफर्स था) की 31 प्रतिशत और बाकियों की कुल मिला कर 2.5 प्रतिशत के आस पास. इन डिलीवरी कंपनियों के सामने साल 2020 में जो चुनौतियां आई थीं, वो भी साल 2021 में दूर की गईं. इससे डिलीवरी और तेज हुई.
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ग्राहक को लुभाने की होड़
ग्राहकों को और ज्यादा सुविधा देने की होड़ में कंपनियां व्यापार के मॉडल को बदलती जा रही हैं. पहले सामान ऐप पर आर्डर करने के बाद घर पहुंचने में कुछ दिन लगते थे, फिर कंपनियों ने उसी दिन डिलीवरी का मॉडल शुरू किया और अब तो सामान 10 मिनट में आपके घर पहुंचाने का वादा कर रही हैं. ई-कॉमर्स अब क्यू-कॉमर्स यानी क्विक कॉमर्स हो गया है.
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रोजगार का क्या
लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे एक तरफ तो व्हाइट कॉलर नौकरियों में वेतन बढ़ता जा रहा है, ज्यादा संख्या में नौकरियां सिर्फ डिलीवरी जैसे कम वेतन वाले और अस्थायी कामों में बन रही हैं. इसलिए यह सेक्टर भारत की बढ़ती बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं दे पा रहा है.
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एकाधिकार का खतरा
इसके साथ ही ये कंपनियां स्थानीय दुकानदारों और डिस्ट्रीब्यूटरों का धंधा भी बंद करवा रही हैं जिससे बेरोजगारी और बढ़ रही है. ऊपर से कंपनियों के एकाधिकार का खतरा अलग है. देखना होगा 2022 में इस क्षेत्र में किस तरह के बदलाव आते हैं.
तस्वीर: Abhiruo Roy/REUTERS
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भारत का ई-कॉमर्स बाजार छोटे-छोटे कस्बों और शहरों में घर-घर तक पहुंच रहा है. पहले एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि तक सीमित मानी जाती थीं. ये कंपनियां अगले दिन या उसी दिन डिलीवरी जैसी सेवाएं देती थीं. लेकिन स्विगी, जेप्टो और ब्लिंकिट जैसी कंपनियां 10 मिनट में डिलीवरी के नाम पर ई-कॉमर्स का चेहरा बदल रही हैं.
विशाल है बाजार
बीते अप्रैल में अमेरिकी बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि भारत में क्विक ई-कॉमर्स बाजार लगभग 5 अरब डॉलर का हो चुका है, जो देश के कुल ग्रॉसरी बाजार यानी 11 अरब डॉलर का 45 फीसदी है. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 2030 तक इस बाजार का आकार 60 अरब डॉलर पहुंच जाएगा.
स्विगी ने 2014 में खाने की डिलीवरी से काम शुरू किया था. कंपनी की कीमत 10 अरब डॉलर आंकी गई थी. अब कंपनी भारत में तेजी से डिलीवरी करने पर ध्यान दे रही है. इसका मकसद चीन और अमेरिका के बाद दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रीटेल बाजार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करना है.
पिछले साल दिसंबर में जारी स्विगी की एक रणनीतिक रिपोर्ट के हवाले से समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा था कि स्विगी "अपने आपको खाने से कहीं ज्यादा बड़े बाजार पर ध्यान देने के लिए तैयार कर रही है.” उस दस्तावेज के मुताबिक कंपनी उन 21 से 35 साल तक के शहरी ग्राहकों पर ध्यान देना चाहती है, जिनके पास समय की कमी है.
कंपनी ने इस बारे में कोई सार्वजनिक टिप्पणी तो नहीं की लेकिन पिछले साल उसने देशभर में अपने वेयरहाउसों की संख्या दोगुनी कर 25 शहरों में 500 कर ली है. एक अधिकारी के मुताबिक कंपनी का मकसद अप्रैल 2025 से पहले भारत में 750 वेयरहाउस खोलना है.
अलग है भारत का ग्राहक
कोविड महामारी के बाद पूरी दुनिया में क्विक ई-कॉमर्स का बाजार तेजी से बढ़ा था लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद के महीनों में तेजी से सामान डिलीवरी में ग्राहकों की दिलचस्पी घटती चली गई. इस कारण दुनियाभर के कई स्टार्ट अप बंद हुए.
लेकिन भारत में माहौल एकदम अलग है. कंसल्टेंसी फर्म किअर्नी में पार्टनर समुत चोपड़ा कहते हैं कि भारत में वेयरहाउस बहुत सस्ते हैं और ग्राहकों का व्यवहार अलग किस्म का है. वह बताते हैं कि भारत में ग्राहकों को पड़ोस की दुकान से फोन कर सामान मंगाने की आदत है और वे कई बार तो दो-चार चीजें भी फोन पर मंगवा लेते हैं.
ऑनलाइन शॉपिंग में महिलाओं से आगे हैं पुरुष
आईआईएम-अहमदाबाद के एक शोध के मुताबिक ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में पुरुष महिलाओं से आगे हैं.
तस्वीर: Bildagentur-online/Tetra/picture alliance
36 फीसदी ज्यादा खर्च
आईआईएम-अहमदाबाद के शोध के मुताबिक पुरुषों ने ऑनलाइन शॉपिंग पर औसतन 2,484 रुपये खर्च किए, जो महिलाओं द्वारा खर्च किए गए 1,830 रुपयों की तुलना में 36 फीसदी अधिक है.
तस्वीर: Bildagentur-online/Tetra/picture alliance
क्या खरीदते हैं पुरुष
सर्वे से पता चला कि 47 प्रतिशत पुरुषों ने फैशन के लिए खरीदारी की, इसके बाद 37 प्रतिशत ने यूटीलिटीज के लिए और 23 प्रतिशत ने इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए खरीदारी की.
तस्वीर: Daniel Kubirski/picture alliance
क्या खरीदती हैं महिलाएं
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 58 प्रतिशत महिलाओं ने फैशन के लिए खरीदारी की, उसके बाद 28 प्रतिशत ने इस्तेमाल में आने वाले सामान की शॉपिंग और 16 प्रतिशत महिलाओं ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की शॉपिंग की.
तस्वीर: Imago Images/Panthermedia/L. Chopan
समय कम खर्च करते हैं मर्द
पुरुषों द्वारा ऑनलाइन शॉपिंग में बिताया जाने वाला समय महिलाओं के मुकाबले कम है. जहां पुरुषों ने ऑनलाइन शॉपिंग पर 34.4 मिनट खर्च किए, वहीं महिलाओं ने 35 मिनट खर्च किए.
तस्वीर: Hannes P. Albert/dpa/picture alliance
कोविड के बाद बढ़ी ऑनलाइन शॉपिंग
शोध रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी ने 2020 से ऑनलाइन शॉपिंग की लोकप्रियता को काफी बढ़ा दिया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि ऑनलाइन खरीदारी के लिए 'पैसा वसूल' की भावना सबसे बड़े कारकों में से एक है. इसके बाद खरीदारी की प्रक्रिया में आसानी है.
तस्वीर: Jens Büttner/dpa ZB/picture alliance
35 हजार लोग सर्वे में शामिल
आईआईएम-अहमदाबाद ने अपने शोध के लिए 25 राज्यों के 35 हजार लोगों को सर्वे में शामिल किया. यह नतीजे आईआईएम अहमदाबाद की 'डिजिटल रिटेल चैनल्स एंड कंज्यूमर्स: द इंडियन पर्सपेक्टिव' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में प्रकाशित किए गए थे.
तस्वीर: Giorgio Fochesato/Westend61/IMAGO
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इस आदत को स्विगी ने पूरा भुनाया है. वह एक आम का भी ऑर्डर ले लेती है जबकि अगर चलकर आम लेने जाया जाए तो उसकी कीमत आधे से भी कम होती है. पर बहुत से ग्राहक समय बचाना चाहते हैं. 27 साल की नताशा कवालकट मुंबई में वकालत करती हैं. वह घर के सामान की खरीदारी के लिए स्विगी और जेप्टो जैसी ऐप्स का खूब इस्तेमाल करती हैं. वह कहती हैं, "पार्टी शुरू होने से ठीक पहले जूस के पैक घर पहुंच जाना बहुत बड़ी बात है. यह बहुत आरामदायक है.”
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छोटे दुकानदारों पर मार
ग्राहकों की इन बदलती आदतों की मार छोटे दुकानदारों पर बहुत बुरी पड़ रही है. बीते कुछ सालों से मुंबई के एक कस्बे में छोटी दुकान चलाने वाले प्रेम पटेल का धंधा चोखा चल रहा था. हाल ही में उन्होंने दुकान को नए सिरे से डिजाइन कराया और नया एसी भी लगवाया. लेकिन वह खुश नहीं हैं.
कभी 50 हजार रुपये रोजाना की बिक्री करने वाले पटेल की बिक्री अब आधी हो चुकी है. वह कहते हैं, "मॉल या सुपर बाजारों से दूध और ब्रेड कोई नहीं खरीदता. यह हमारा धंधा था. लेकिन इन ऐप्स ने खेल बदल दिया है.”
थाईलैंड के तैरते बाजार
राजधानी बैंकॉक के अलावा भी थाईलैंड में पर्यटकों के लिए कई आकर्षण हैं. इनमें से एक खास है - तैरता बाजार. नहरों में नावों पर बैठ दुकानदार सामान भेजते हैं, और खरीददार भी लहरों पर उतराते हुए ही चीजें देखते या खरीदते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Walton
सबसे लोकप्रिय बाजार
दामओएन सादुआ का बाजार बैंकाक से ज्यादा दूर नहीं है. इस कारण भी बहुत से पर्यटक यहां जाना पसंद करते हैं. थाईलैंड के इस तैरते बाजार में हस्तशिल्प से लेकर खाने पीने की चीजें तक सब मिलती हैं.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
सुहानी सुबह
सुबह जल्दी उठ कर बैंकॉक से करीब एक घंटे की दूरी पर स्थित इस बाजार तक पहुंच सकते हैं. वहां सजी धजी लेकिन पतली नावों से आप बाजार की सैर कर सकते हैं.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
पतले रास्ते
पतली नहर में कई सारी इंजिन से चलने वाली नावों का शोर तो होगा. लेकिन दोनों किनारों पर लगी दुकानें और लकड़ी के बने घरों को देखना बहुत सुंदर अनुभव होगा.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
दोमंजिला इमारतें भी
कुछ बाजार लकड़ी की दो मंजिला इमारतों में बसे हैं. यहां नाव को किनारे पर लगा कर उतरा जा सकता है और पैदल भी खरीदारी हो सकती है.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
रंगीन बाजार
नाव पर करीब 20 मिनट की यात्रा में ही आप तैरते बाजारों से होकर निकल चुके होते हैं. बाजार में सामान बेचने और खरीदने वालों की आवाजों और वहां मिलने वाली रंग बिरंगी चीजों से आपकी यात्रा में कई रंग भर जाते हैं.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
कला भी
ताजा खानपान के अलावा कला का भी बाजार सजता है. तस्वीरें, बर्तन, मूर्तियां और थाईलैंड की संस्कृति की छाप लिए कई सजावटी चीजें यहां के तैरते बाजार में बिकती हैं.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
देसी खाना
भीड़-भाड़ वाले इलाके से निकल कर एक ऐसी जगह आती है जहां खाने की तमाम चीजें बिक रही होती हैं. केवल कच्चे फल और सब्जियां ही नहीं बल्कि नारियल से बने ताजे पैनकेक और नूडल्स भी.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
पानी बिच प्यासे
अगर पानी के बीच घूमते घूमते प्यास लग जाए तो सबसे अच्छा विकल्प होगा नारियल पानी. अपनी नाव में चलते चलते ही एक दूसरी नाव से खरीदा और प्यास बुझा ली.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
मुस्कराते चेहरे
कई खरीददार चीजों की कीमत को लेकर खूब मोल भाव भी करते हैं. लेकिन दुकानदार अपना मूड खराब नहीं करते. सामान की कीमत लेते हैं और मुस्कान मुफ्त देते हैं.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
खरीददारी जरूरी नहीं
अगर कुछ शॉपिंग ना भी करनी हो तो भी इस बाजार का चक्कर जरूर लगाना चाहिए. समान ना सही इन खबसूरत नजारों की यादें तो आप पक्के तौर पर साथ ले कर लौटेंगे.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay
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भारत के चार राज्यों की रीटेलर एसोसिएशन करीब 90 हजार छोटे दुकानदारों का प्रतिनिधित्व करती हैं. उनके मुताबिक दुकानदारों की मासिक बिक्री में 10 से 60 फीसदी की गिरावट आ चुकी है.
अब बहुत से दुकानदार अपना वजूद बचाने के लिए तकनीक का सहारा भी ले रहे हैं. मसलन, गुजरात में रीटेल एसोसिएशन के अध्यक्ष हीरेन गांधी ने अपने सदस्यों से कहा है कि वॉट्सऐप ग्रुप बनाएं और ग्राहकों को उसमें जोड़कर 6 किलोमीटर के दायरे का ऑर्डर घर पर डिलीवर करें.
गांधी बताते हैं, ”लगभग 500 दुकानों ने ऐसे कदम उठाए हैं और अपने धंधे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.”