विदेशों की नागरिकता चाहने वालों में सबसे ज्यादा भारतीय
विवेक कुमार
२८ मार्च २०२२
भारत छोड़कर विदेशों में बसना चाहने वालों की संख्या में तेज वृद्धि देखी जा रही है. एक ताजा रिपोर्ट कहती है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में भारत के धनी लोग देश छोड़ने के इच्छुक हैं.
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लोगों को दूसरे देशों की नागरिकता और वीजा दिलाने वाली ब्रिटेन स्थित अंतरराष्ट्रीय कंपनी हेनली ऐंड पार्टनर्स का कहना है कि गोल्डन वीजा यानी निवेश के जरिए किसी देश की नागरिकता चाहने वालों में भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
हेनली ग्लोबल सिटिजंस रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता नियमों के बारे में पूछताछ करने वालों में 2020 के मुकाबले 2021 में भारतीयों की संख्या 54 प्रतिशत बढ़ गई. 2020 में भी उससे पिछले साल के मुकाबले यह संख्या 63 प्रतिशत बढ़ी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे नंबर पर अमेरिका के लोग रहे जिनकी संख्या में 2020 के मुकाबले 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. इस सूची में ब्रिटेन तीसरे और दक्षिण अफ्रीका चौथे नंबर पर रहा. ब्रिटेन के लोगों की संख्या तो दोगुनी से भी ज्यादा हो गई.
धनी लोगों की चाह
हेनली ऐंड पार्टनर्स में अधिकारी डॉमिनिक वोलेक कहते हैं, "सबसे ज्यादा पूछताछ जिन देशों से आई, उनमें दुनिया के दक्षिणी हिस्से के देश ज्यादा हैं, सिवाय कनाडा के जो नौवें नंबर पर है. 2022 में भी हम ऐसा ही रूझान देख रहे हैं और शुरुआत में ही पूछताछ की संख्या को देखकर लग रहा है कि 2021 से भी ज्यादा वृद्धि हो सकती है.”
सर्वे: भारत में 80 प्रतिशत परिवारों में भोजन तक की समस्या
महामारी के आर्थिक असर पर किए गए एक सर्वे ने पाया है कि 2021 में करीब 80 प्रतिशत परिवार "खाद्य असुरक्षा" से जूझ रहे थे. सर्वे से संकेत मिल रहे हैं कि महामारी के आर्थिक असर दीर्घकालिक हो सकते हैं.
इस सर्वे के लिए 14 राज्यों में जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि 2021 में उन्हें किसी न किसी तरह की "खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. 25 प्रतिशत परिवारों को "भीषण खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. सर्वेक्षण भोजन का अधिकार अभियान समेत कई संगठनों ने मिल कर कराया था.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भोजन तक नहीं मिला
सर्वे में पाया गया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को या तो पर्याप्त खाना न हासिल होने की चिंता थी या वो पौष्टिक खाना नहीं खा पाए या वो सिर्फ गिनी चुनी चीजें खा पाए. 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर में सर्वे के पहले के महीने में भोजन खत्म हो गया था. करीब 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें या उनके परिवार में किसी न किसी को एक वक्त का भोजन त्यागना पड़ा.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भोजन मिला, लेकिन पोषण नहीं
सर्वेक्षण दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच कराया गया और इसमें 6,697 लोगों को शामिल किया गया. इनमें से 41 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनके भोजन की पौष्टिक गुणवत्ता महामारी के पहले के समय की तुलना में गिर गई. 67 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वो रसोई गैस का खर्च नहीं उठा सकते थे.
तस्वीर: DW
आय भी गिरी
65 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनकी आय महामारी के पहले की स्थिति के मुकाबले गिर गई. इनमें से 60 प्रतिशत परिवारों की मौजूदा आय उस समय के मुकाबले आधे से भी कम है. ये नतीजे दिखाते हैं कि महामारी के शुरू होने के दो साल बाद भी भारत में बड़ी संख्या में परिवारों की कमाई और सामान्य आर्थिक स्थिति संभल नहीं पाई है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
नौकरी चली गई
32 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनके कम से कम एक सदस्य की या तो नौकरी चली गई या उन्हें वेतन का नुकसान हुआ.
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इलाज पर खर्च
23 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन्हें इलाज पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ी. इन परिवारों में 13 प्रतिशत परिवारों के 50,000 से ज्यादा रुपए खर्च हो गए और 35 प्रतिशत परिवारों के 10,000 से ज्यादा रुपए खर्च हुए.
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कर्ज में डूबे
लगभग 45 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन पर कर्ज बकाया है. इनमें से 21 प्रतिशत परिवारों के ऊपर 50,000 रुपयों से ज्यादा का कर्ज है.
तस्वीर: DW/M. Raj
खोया बचपन
हर छह परिवारों पर कम से कम एक बच्चे का स्कूल जाना बंद हो गया. हर 16 परिवारों में से एक बच्चे को काम पर भी लगना पड़ा.
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महिलाओं पर ज्यादा असर
सर्वे में शामिल होने वालों में से 4,881 ग्रामीण इलाकों से थे और 1,816 शहरी इलाकों से. 31 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजातियों से थे, 25 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से, 19% सामान्य श्रेणी से, 15% ओबीसी और छह प्रतिशत विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों से थे. भाग लेने वाले लोगों में कम से कम 71% महिलाएं थीं.
वोलेक के मुताबिक ‘माइग्रेशन बाई इनवेस्टमेंट' यानी निवेश के जरिए दूसरे देशों में बसने की इच्छा रखने वालों में धनी लोगों की संख्या ही ज्यादा है. वह कहते हैं, "विदेशों में बसने के पारंपरिक फायदे तो हैं ही, निवेश के जरिए नागरिकता जैसी योजनाएं लोगों को अपने धन के निवेश में विविधता का विकल्प भी देती हैं.”
दक्षिण एशिया में हेनली ऐंड पार्टनर्स के अधिकारी निर्भय हांडा कहते हैं कि दक्षिण एशिया में निवेश के जरिए माइग्रेशन लगातार बढ़ रहा है और लोगों में इसकी स्वीकार्यता में भी वृद्धि देखी जा रही है. उन्होंने कहा, "धनी और अत्याधिक धनी निवेशक अपने परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए लगातार नए विकल्प खोज रहे हैं. 2020 के मुकाबले 2021 में हमने 52 प्रतिशत का इजाफा देखा है और 2022 भी बड़ी वृद्धि वाला साल होता दिख रहा है.”
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मध्यमवर्गीय भी इच्छुक
मेलबर्न स्थित माइग्रेशन एजेंट चमनप्रीत कहती हैं कि यही रूझान समाज के अन्य वर्गों में भी है. माइग्रेशन ऐंड एजुकेशन एक्सपर्ट्स की डायरेक्टर चमनप्रीत ने डॉयचे वेले को बताया, "विदेशों का वीजा चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. कोविड के दौरान, जबकि आना-जाना बंद था, तब भी लोग लगातार पूछताछ कर रहे थे. और इनमें स्टूडेंट्स से लेकर प्रोफेशनल तक हर तबके के लोग शामिल थे.”
ये हैं दुनिया के दस सबसे प्रसन्न देश
फिनलैंड को एक बार फिर दुनिया का सबसे प्रसन्न देश आंका गया है. लेकिन भारत की रैंकिंग खराब हो गई है. देखिए, यूएन द्वारा प्रायोजित हैपीनेस इंडेक्स में क्या पता चला?
तस्वीर: Michael Wheatley/All Canada Photos/picture alliance
पांचवीं बार सबसे खुश देश
फिनलैंड को लगातार पांचवीं बार दुनिया में सबसे खुश देश माना गया है. यह बात ध्यान देने लायक है कि यह रिपोर्ट यूक्रेन पर हमले से पहले तैयार की गई थी.
तस्वीर: Gabriel Trujillo/Addictive Stock/imago images
भारत में गिरावट
इस साल 146 देशों की सूची में भारत 136वें नंबर पर है. यह उन दस देशों में शामिल है जिनकी रैंकिंग में सबसे ज्यादा गिरावट आई है. अपने सारे पड़ोसी देशों के मुकाबले उसकी रैंकिंग सबसे खराब है. पाकिस्तान 121वें नंबर पर है जबकि चीन 72वें और बांग्लादेश 94वें नंबर पर है.
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सबसे निचले पायदान पर
अफगानिस्तान प्रसन्न देशों की सूची में सबसे नीचे है. उसके ठीक ऊपर लेबनान और जिम्बाब्वे बैठे हैं.
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टॉप 10 में आठ यूरोपीय
वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स के टॉप 10 देशों में आठ देश यूरोप के हैं. दूसरे नंबर पर डेनमार्क है. उसके बाद आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, लग्जमबर्ग, स्वीडन और नॉर्वे का नंबर है.
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इस्राएल और न्यूजीलैंड
इस सूची में नौवें नंबर पर इस्राएल है जबकि दसवां नंबर न्यूजीलैंड को मिला है.
तस्वीर: Ahmad Gharabli/AFP
सबसे बेहतर प्रदर्शन
इस साल बुल्गारिया, रोमानिया और सर्बिया की रैंकिंग में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया है. अमेरिका की रैंकिंग में तीन अंकों का सुधार हुआ है और वह 16वें नंबर पर आ गया है. फ्रांस 20वें नंबर पर है जो दस साल में उसकी सबसे अच्छी रैंकिंग है.
कनाडा की रैंकिंग में पिछले दस साल में बड़ी गिरावट आई है. 2012 में जब पहली हैपीनेस इंडेक्स रिपोर्ट जारी हुई थी तब वह पांचवें नंबर पर था. इस बार उसका नंबर 15 हो गया है.
तस्वीर: Michael Wheatley/All Canada Photos/picture alliance
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भारत सरकार के आंकड़े कहते हैं कि 2016 से 2021 के बीच आठ लाख से ज्यादा भारतीय अपनी नागरिकता त्याग कर विदेशी नागरिकता अपना चुके हैं. पिछले साल संसद को दी जानकारी में सरकार ने बताया था कि दिसंबर 2021 तक पांच साल में लगभग 6,10,000 लोग भारत की नागरिका छोड़ गए थे जिनमें से सबसे ज्यादा 42 प्रतिशत ने अमेरिका की नागरिकता हासिल की. 2021 के पहले नौ महीनों में ही 50 हजार से ज्यादा भारतीयों ने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण कर ली थी.
भारत छोड़कर जाने वालों की दूसरी पसंद कनाडा रहा जहां 2017 से 2021 के बीच 91 हजार भारतीय ने नागरिकता अपनी. तीसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया रहा जहां कि 86,933 भारतीय पांच साल में नागरिक बन गए. उसके बाद इंग्लैंड (66,193) और फिर इटली (23,490) का नंबर है.
यूके, अमेरिका भी छोड़ना चाहते हैं लोग
इस सूची में अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे धनी देश भी हैं जहां के लोग निवेश के जरिए दूसरे देशों की नागरिकता पाना चाहते हैं. रिपोर्ट कहती है कि बीते दो साल में उत्तरी गोलार्थ की भू-राजनीतिक परिस्थितियां बहुत ज्यादा अस्थिर हो गई हैं, जिसका असर इस सूची में नजर आ रहा है. हेनली के अमेरिका अध्यक्ष मेहदी कादरी कहते हैं, "2019 से 2021 तक पूछताछ करने वाले अमेरिकी लोगों की संख्या में 320 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. यह मांग अमेरिका में भू-राजनीतिक अस्थिरता के चलते बढ़ी है. साथ ही कई दक्षिण अमेरिकी देशों में राजनीतिक बदलाव, कोरोनावायर और इसका खराब प्रबंधन व यात्रा प्रतिबंधों के कारण आने-जाने में हुईं दिक्कतें भी शामिल हैं.”
ब्रिटेन के लोगों की विदेशी नागरिकता में बढ़ती दिलचस्पी के पीछे ब्रेक्जिट को भी एक महत्वपूर्ण कारक के तौर पर देखा जा रहा है. संस्था के लंदन प्रमुख स्टुअर्ट वेकलिंग कहते हैं, "यूरोप में सबसे ज्यादा पूछताछ करने वालों में अब भी ब्रिटिश नागरिक सबसे ऊपर हैं. 2020 के मुकाबले 2021 में इनमें 110 प्रतिशत का उछाल आया है. ज्यादातर लोग ब्रेक्जिट के बाद रहने और बसने आदि के विकल्पों से प्रेरित हैं.”
लेकिन यूरोप में सबसे ज्यादा बढ़त तुर्की में देखी गई है, जहां के 148 प्रतिशत ज्यादा लोगों ने विदेशों की नागरिकता पाने के बारे में पूछताछ की. हेनली ने कहा है कि तुर्की के लोगों की विदेशों में बसने की बढ़ती चाह को देखकर उसने तो देश में नया दफ्तर ही खोल लिया है.
ये हैं सबसे सस्ते शहर
टाइम आउट सर्वे में शहरों में रहने वाले लोगों से ही पूछा गया कि उनका शहर महंगा है या नहीं. और शहरवासियों के मुताबिक कौन से शहर हैं दुनिया में सबसे सस्ते, देखिए...
तस्वीर: Markus Mainka/Zoonar/picture alliance
मैनचेस्टर सबसे सस्ता
युनाइटेड किंग्डम के मैनचेस्टर में रहने वाले सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वहां रहना महंगा है. यानी 90 प्रतिशत लोगों को लगता है कि मैनचेस्टर एक सस्ता शहर है, जो सर्वेक्षण में शामिल किसी भी शहर से ज्यादा है.
तस्वीर: Alessandro Della Valle/KEYSTONE/picture alliance
जोहानिसबर्ग, बुडापेस्ट, मॉन्ट्रियाल
दक्षिण अफ्रीका में जोहानिसबर्ग, हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट और कनाडा का मॉन्ट्रियाल दूसरे नंबर पर हैं. यहां रहने वाले 17 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके शहर में रहना बड़ा महंगा है.
तस्वीर: Graham Hughes/AP/picture alliance
सेंट पीटर्सबर्ग, रूस
रूस का शहर सेंट पीटर्सबर्ग भी अपने लोगों को सस्ता होने का भाव देता है. वहां के सिर्फ 18 प्रतिशत लोगों ने इसे महंगा बताया.
तस्वीर: REUTERS
प्राग, चेक गणराज्य
प्राग के 76 प्रतिशत लोगों ने अपने शहर को सस्ता बताया. इस तरह सूची में प्राग छठे नंबर पर है.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
27 हजार लोगों के बीच सर्वे
इस सर्वे में 27 हजार लोगों से बात की गई. चूंकि यह सर्वे यूक्रेन युद्ध के शुरू होने से काफी पहले हुआ था, इसलिए अब लोगों की भावनाएं अलग हो सकती हैं. सर्वे में स्विट्जरलैंड के जूरिख को सबसे महंगा माना गया. वहां 99 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनका शहर बहुत महंगा है.
तस्वीर: Gaetan Bally/KEYSTONE/picture alliance
तेल अवीव
इस्राएल का तेल अवीव सबसे महंगे शहरों में दूसरे नंबर पर रहा.