आईडीएमसी ने चेतावनी दी है कि भारत में विकास की महत्वाकांक्षी योजनाएं सबसे उपेक्षित तबके के घरों को उजाड़ रही हैं और इनके चलते असमानता और तनाव का माहौल बढ़ा है.
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जेनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटर सेंटर आईडीएमसी ने गुरुवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में विकास के महत्वाकांक्षी मौजूदा मॉडल के चलते विस्थापन, असमानता और तनाव की चुनौतियां पैदा हो रही हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास परियोजनाओं के चलते हर साल 1 करोड़ से ज्यादा लोग अपने घरों से विस्थापित हो रहे हैं और इनकी सबसे बड़ी तादाद भारत में है.
बांध, खनन, ऊर्जा, हाईवे और एयरपोर्ट जैसी परियोजनाओं के चलते भारत में 1950 से लेकर 2005 तक 6 करोड़ 50 लाख लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा और इसके महज पांचवें हिस्से से भी कम लोगों का पुनर्वास हो सका है. इसके कारण लोगों में पैदा हुआ असंतोष प्रदर्शनों, हड़तालों और हिंसक तनावों की वजह बना है. भारत की विकास परियोजनाओं को आने वाले 15 सालों में 1.1 करोड़ हेक्टेयर जमीन की जरूरत है. आईडीएमसी ने आगाह किया है इसके लिए जमीन का अधिग्रहण देशभर में तनाव को और भी बढ़ाने का काम करेगा.
मॉडल गांवों के जरिए विकास
आजादी के सात दशक बाद भी भारत के गांवों की तस्वीर बहुत ज्यादा नहीं बदली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की है, लेकिन सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने पर भी राजनीति हो रही है.
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मोदी की पसंद
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बदलाव लाने के लिए कई पहलकदमियां की हैं. स्वच्छता अभियान में प्रमुख लोगों को शामिल करने के अलावा उन्होंने सांसदों से अपने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लेने का भी आग्रह किया. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के जिस जयापुर गांव को गोद लिया है उसकी 100 फीसदी आबादी हिंदू है.
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विपक्ष का चुनाव
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उनके बेटे और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं. प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र इत्र नगरी कन्नौज के सैय्यदपुर सकरी गांव को गोद लिया जहां 85 फीसदी मुस्लिम बसते हैं.
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परंपरा पर जोर
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुश्तैनी चुनाव क्षेत्र रायबरेली में उड़वा को चुना है जबकि उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर को गोद लिया है. 1857 में भारत की आजादी की पहली लड़ाई में यहां के लोग अंग्रेजों की गोलियों का निशाना बने थे. इन्हें इलाके में शहीदों के गांव के रूप में जाना जाता है.
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सड़कें नहीं
सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने में सबसे ज्यादा सियासत उत्तर प्रदेश में हो रही है. इस प्रांत ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं. विकास के साथ गांवों में भी समृद्धि आई है लेकिन संरचनाओं का सही विकास नहीं हुआ है. बच्चे अभी भी पैदल चलकर कई किलोमीटर दूर स्कूलों में जाते हैं.
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नई तकनीक
आधुनिक तकनीक गांवों तक भी पहुंची है. किसानों को खेतों में काम करते समय मोबाइल फोन पर बातें करते देखना बड़ी बात नहीं है. मोबाइल फोन ने उन्हें तत्काल सूचना पाने की नई संभावनाएं भी दी हैं.
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खेतों में मस्ती
कितनी आसान बना दी है मोबाइल ने जिंदगी. खेतों पर फसल कटवाने के बाद फसल की रखवाली करना बहुत बोरियत भरा होता था. अब यह समय मोबाइल या टैबलेट पर गाना सुनते हुए या फिल्म देखते हुए काटा जा सकता है.
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संरचना का अभाव
कभी गांवों में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी या उपले का इस्तेमाल होता था. अब वहां भी गैस खरीदने की हैसियत हो गई है लेकिन उपभोक्ताओं को पहुंचाने के साधन नहीं हैं. लोगों को गाड़ियों या साइकिल पर गैस का सिलेंडर लाना होता है.
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पैसा आया रोड नहीं
किसानों के पास पैसा आया, कारें उनके पहुंच में आईं हैं. लेकिन गांवों में रोड नहीं बने हैं. गांवों का विकास करने के लिए सांसदों को बहुत श्रम करना होगा. गांवों की काया पलटने के लिए उन्हें रहने योग्य भी बनाना होगा.
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गृह मंत्री का गांव
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के जिस गांव बेंती को गोद लिया है उसकी करीब ढाई हजार की आबादी पिछड़ों और दलितों की है. बेंती के लोग राजनाथ सिंह के इस फैसले से बेहद खुश हैं. अब वहां जल्द ही बैंक की शाखा खुलेगी.
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पलायन रुके
डिश एंटेना ने टेलिविजन को गांव गांव तक पहुंचा दिया है. उसकी वजह से आधुनिक विकास की खबरें पहुंची हैं और लोगों की उम्मीदें जगी हैं. अब जरूरत है विकास का ढांचा बनाने की ताकि गांव रहने लायक हों और लोग शहरों की ओर न भागें.
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कब पटेंगी दूरियां
राजीव गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा प्रधानमंत्रियों के परिवार में दिल्ली में पैदा हुई और वहीं रहती भी हैं. गांवों को कर्मभूमि बताने वाले उनके जैसे नेताओं को सोचना होगा कि गांवों का विकास कैसे हो. ये घर क्या हमेशा फूस के ही रहेंगे.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 100 'स्मार्ट सिटीज' बनाने का सपना भी बड़े पैमाने पर विस्थापन बढ़ाएगा. रिपोर्ट कहती है, ''विकास परियोजनाओं की वजह से हो रहा विस्थापन सबसे गरीब और उपेक्षित तबकों को प्रभावित करता है और विडंबना यह है कि यह विकास, हालातों को बेहतर बनाने के बजाय असमानता को भयानक स्तर पर बढा रहा है. इसके चलते तनाव के हालात पैदा हो रहे हैं और कुछ जगह तो हिंसात्मक तनाव पैदा हुआ है.''
गुजरात, केरल और झारखंड और राजधानी दिल्ली की 9 परियोजनाओं पर हुए सर्वेक्षण के आधार पर इस रिपोर्ट का कहना है कि विकास परियोजनाएं नियमों के मुताबिक मुआवजा और पुनर्वास मुहैया कराने में नाकाम रहती हैं और प्रभावित समुदायों को भारी नुकसान पहुंचाती हैं. रिपोर्ट का कहना है कि भारत में भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं में पारदर्शिता का भरपूर अभाव है. लोगों को ना ही उचित मुआवजा मिलता है और ना ही पुनर्वास और नई आजीविकाओं का प्रबंध किया जाता है.
हालांकि भूमि अधिग्रहण के लिए 19 वीं शताब्दी के पिछड़े कानून को बदलकर 2013 में पर्याप्त मुआवजा देने के मकसद से एक नया कानून पास किया गया. लेकिन एक्टिविस्टों का कहना है कि यह नया कानून भी मुश्किल से ही लागू हो पा रहा है क्योंकि इसे लागू किए जाने के लिए राज्य के कानूनों में भारी बदलावों की जरूरत है. दूसरी ओर ग्रामीण विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव हुकुम सिंह का कहना है, ''यह नया कानून बहुत व्यापक और निष्पक्ष है. हमें इस बात पर ध्यान देना है कि यह पूरी तरह लागू हो पाए.''