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15 जून के बाद बढ़ सकता है मानसून का असर

९ जून २०२२

मौसम विभाग ने कहा है कि भारत में मानसून का असर जून के मध्य तक बढ़ने की संभावना है. मानसून का इंतजार गर्मी से राहत और धान, कपास, मक्का, सोयाबीन, गन्ना और मूंगफली जैसे उत्पादों की बुवाई के लिए भी किया जा रहा है.

Indien | Hitzewelle
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW

मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने बताया, "हमारे विस्तृत रेंज पूर्वानुमान के मुताबिक, बारिश संबंधि गतिविधि के 15 जून से बढ़ने की संभावना है. बारिश के उस दौर में केंद्रीय भारत और देश के उत्तरी मैदानी इलाकों में बारिश होगी."

भारत में होने वाली कुल बारिश के करीब 70 प्रतिशत के जिम्मेदार मानसून को देश की कृषि आधारित व्यवस्था का जीवन आधार माना जाता है. इस साल केरल के तट पर मानसून का आगमन सामान्य समय से दो दिन पहले 29 मई को ही हो गया, लेकिन उसके बाद से इसकी गति धीमी हो गई.

पहली जून को चार महीने लंबे मानसून मौसम की शुरुआत हो गई लेकिन तब से लेकर अभी तक औसत से 42 प्रतिशत कम बारिश हुई है. आईएमडी के मुताबिक औसत या सामान्य बारिश का मतलब होता है 96 से लेकर 104 प्रतिशत तक बारिश. इसके लिए पूरे मौसम की बारिश को 50 साल की औसत बारिश यानी 87 सेंटीमीटर से तुलना कर देखा जाता है.

महापात्रा ने बताया कि इस साल अभी तक मानसून जहां तक पहुंच गया है उन इलाकों में से देश के दक्षिणी, पूर्वी और उत्तरपूर्वी राज्यों में सामान्य से लेकर अधिक बारिश हो चुकी है. उन्होंने बताया, "आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम, दक्षिणी पश्चिम बंगाल, मेघालय, सिक्किम और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में अधिक बारिश हुई है."

इस साल धान की फसल का भविष्य तय करने में मानसून की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी. अगर खूब बारिश हुई तो भारत धान के वैश्विक व्यापार में अपनी अच्छी जगह बरकरार रख पाएगा. भारत में खेती जितने इलाके में होती है उसके लगभग आधे क्षेत्रफल में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है. ये इलाके सिंचाई के लिए मानसून की बारिश पर ही निर्भर रहते हैं.

भारत की अर्थव्यवस्था में खेती का करीब 15 प्रतिशत योगदान है लेकिन देश की 1.3 अरब आबादी के आधे से ज्यादा हिस्से का जीवन इस पर निर्भर है. देश में इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है और उत्तर और मध्य भारत के राज्यों में बेसब्री से मानसून का इंतजार किया जा रहा है.

सीके/एए (रॉयटर्स)

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