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काम की जगह पर हादसों के लिए कितना तैयार है भारत

आदिल भट
१२ जनवरी २०२४

भारत एक वैश्विक औद्योगिक केंद्र बनना चाहता है. लेकिन घातक या जिंदगी को खतरे में डालने वाली काम की जगहों और वहां होने वाले हादसे क्या भारत की इस उम्मीद पर पानी फेर रहे हैं?

मुंडका के कारखाने में लगी आग
नई दिल्ली के मुंडका इलाके की एक फैक्ट्री में भीषण आग लगने से 27 लोगों की जान चली गई.तस्वीर: Dinesh Joshi/AP Photo/picture alliance

मई 2022 में भारत की राजधानी नई दिल्ली के मुंडका इलाके में एक चार मंजिला इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में भीषण आग लग गई. इस हादसे में 27 लोगों की जान चली गई. इस्माइल खान की छोटी बहन मुस्कान भी उनमें शामिल थी. मुस्कान सिर्फ 21 साल की थी. वह दो साल से उस फैक्ट्री में काम कर रही थी. उसकी कमाई से परिवार के पांच लोगों की गुजर होती थी.

इस्माइल को आज भी उस दिन के बुरे सपने आते हैं. वह कभी-कभी आधी रात में चिल्लाते हुए उठते हैं. उन्हें लगता है मानो उनकी बहन मुस्कान बाहर निकलने की बेतहाशा कोशिश कर रही है क्योंकि इमारत आग की लपटों में घिरी हुई है.

इस्माइल इस तबाही के लिए फैक्ट्री मालिकों को जिम्मेदार मानते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "मेरी बहन आग से बच सकती थी, लेकिन वहां आपातकालीन स्थिति में बाहर निकलने का ऐसा कोई रास्ता नहीं था, जिसे आग लगने पर इस्तेमाल किया जाता. आग लगने पर बाहर निकलने का जो इकलौता रास्ता था, उसे भी बक्से से बंद कर दिया गया था.” इस्माइल समेत अन्य पीड़ितों के परिवार के लोग कंपनी पर मुकदमा कर रहे हैं.

वर्किंग पीपल्स कोलेशन, कामगारों के मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों का एक समूह है. उसने अपनी फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट में बताया कि कई सुरक्षा और श्रम कानूनों के उल्लंघनों के कारण मुंडका में फैक्ट्री दमकल विभाग की अनुमति के बिना ही चल रही थी.

डीडब्ल्यू ने इस मामले में फैक्ट्री मालिकों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील नितिन अहलावत से संपर्क किया. उन्होंने फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया. अहलावत ने कहा, "यह एक हादसा था, जो बिजली के शॉर्ट सर्किट की वजह से हुआ.”हालांकि उनका यह भी कहना था कि उन्हें आपातकालीन रास्ते को अवरुद्ध किए जाने की जानकारी नहीं थी.

औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण भारत में हर साल हजारों लोग मारे जाते हैं और विकलांग हो जाते हैं. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि बुनियादी सुरक्षा उपायों की कमी के कारण भारतीय कारखानों में हर दिन औसतन तीन कामगारों की मौत हो जाती है. साल 2021 में श्रम मंत्रालय ने संसद को बताया कि पिछले पांच साल में कारखानों, बंदरगाहों, खदानों और निर्माण स्थलों पर काम करते समय कम-से-कम 6,500 कर्मचारियों की मृत्यु हुई.

श्रमिक कार्यकर्ताओं और मजदूर संगठनों ने आशंका जताई कि यह आंकड़ा अधिक हो सकता है क्योंकि कई घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं की जाती हैं.

प्रशिक्षण का अभाव

अग्नि सुरक्षा उल्लंघनों के अलावा अपर्याप्त प्रशिक्षण भी काम की जगहों पर होने वाले हादसों का एक प्रमुख कारण है. 'सेफ इन इंडिया फाउंडेशन' ऑटोमोटिव उद्योगों में कामगारों की सुरक्षा पर काम करने वाली एक संस्था है. उसने 2022 की अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया कि इस क्षेत्र में होने वाले हादसों में हर साल हजारों कर्मचारी अपने हाथ और उंगलियां खो देते हैं.

ऑटोमोटिव विनिर्माण में कई श्रमिक प्रवासी हैं, जिनसे बहुत ज्यादा काम लिया जाता है. उन्हें कम वेतन दिया जाता है और पर्याप्त प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता है.

श्रम सुरक्षा कानूनों को कमजोर करना

भारत अपने 'स्टार्टअप इंडिया' जैसे कई कार्यक्रमों के साथ निवेश और इनोवेशन को प्रोत्साहित करते हुए एक वैश्विक औद्योगिक केंद्र बनने का लक्ष्य बना रहा है. हालांकि, नई दिल्ली में मुंडका की फैक्ट्री में आग जैसी घटनाएं अभी भी आम हैं. यह देखना बाकी है कि क्या देश के स्वास्थ्य और सुरक्षा मानक कायम रह सकते हैं.

भारत सरकार ने अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा कोड में सुधार के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ कार्यकर्ताओं का मानना ​​है कि इससे श्रमिकों को और अधिक जोखिम में डाल दिया गया है. भारत ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी स्थिति संहिता 2020 पेश की है. इस संहिता में खतरनाक कारखानों में ‘सुरक्षा समिति' की जरूरत में बदलाव शामिल था.

पहले, सभी कंपनियों के लिए श्रमिकों की संख्या की परवाह किए बिना एक सुरक्षा समिति बनाना अनिवार्य था. नए कोड के तहत सुरक्षा समिति का गठन सरकारी आदेश या अधिसूचना के बाद ही किया जाना है. कंपनियों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए सरकार ने कार्यस्थल निरीक्षण के प्रोटोकॉल में भी बदलाव किया है.

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श्रमिक कार्यकर्ता और सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस के महासचिव तपन सेन ने इन नए कानूनों की आलोचना की है. डीडब्ल्यू से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने कहा, "बेतरतीब और अनियोजित निरीक्षण लगभग पूरी तरह से बंद हो गया है. अब हम देख रहे हैं कि कोई निरीक्षण नहीं हो रहा है. अगर आप निरीक्षण करना भी चाहते हैं, तो आपको कंपनी के व्यक्ति को कुछ दिन पहले सूचित करना होगा और यह श्रमिकों के लिए असुरक्षित होगा.”

सेन का तर्क है कि नए कानून, अनुपालन सीमा को और भी कम कर देते हैं. मौजूदा समय में श्रम अधिकारी सुरक्षा नियमों के निरीक्षण और कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन नए कोड के तहत इसे बंद कर दिया जाएगा.

मुंडका में, इस्माइल और अन्य पीड़ितों के परिवार के सदस्य वित्तीय बोझ के बावजूद अपने मामलों को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनके साथ न्याय होगा और उनका जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई होगी.

 

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