12 साल पहले सेना छोड़ चुके एक समलैंगिक मेजर के जीवन पर आधारित फिल्म की स्क्रिप्ट को सेना ने मंजूरी देने से इंकार कर दिया है. फिल्मकार ओनिर ने सवाल उठाया है कि क्या भारतीय सेना की नजर में समलैंगिक होना गैर कानूनी है.
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ओनिर ने यह स्क्रिप्ट भारतीय से एक संपेंगिक मेजर के जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाने के लिए लिखी थी. उन्होंने रक्षा मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र पाने के लिए स्क्रिप्ट भेजी क्योंकि मंत्रालय अब फिल्मों में सेना के चित्रण को लेकर ज्यादा सक्रीय हो गया है.
जुलाई 2021 में रक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी), सूचना और प्रसारण मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जरिए फिल्म निर्माता कंपनियों से कहलवाया था कि वो सेना पर कोई भी फिल्म, डॉक्यूमेंटरी या वेब सीरीज बनाने से पहले रक्षा मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र ले लें.
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56 देशों में स्वीकार्य
ओनिर ने स्क्रिप्ट दिसंबर 2021 में भेजी थी लेकिन मंत्रालय ने उसे मंजूरी देने से इंकार कर दिया है. ओनिर ने इस पर निराशा जताई है.
उन्होंने कहा है कि दुनिया के कम से कम 56 देशों में सेना में एलजीबीटीक्यूआई लोगों के होने को स्वीकार किया जाता है, लेकिन भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराध न समझे जाने के फैसले के बाद भी भारतीय सेना में यह आज भी गैर कानूनी है.
ओनिर कहते हैं कि वो यह फिल्म भारतीय सेना के पूर्व मेजर के जीवन पर बनाना चाहते थे जिन्होंने दो साल पहले खुद ही अपने जीवन के बारे में बताया. मेजर जे सुरेश ने 11.5 सालों तक भारतीय सेना में सेवाएं देने के बाद 2010 में सेना से इस्तीफा दे दिया था.
इस्तीफे की वजहों में से एक उनका समलैंगिक होना भी था. जुलाई 2020 में मेजर सुरेश ने एक ब्लॉग लिख कर और मीडिया संगठनों को साक्षात्कार देकर अपने समलैंगिक होने के बारे में खुल कर बताया.
सेना की दुनिया
उन्होंने बताया कि कि लगभग 25 साल की उम्र में जब वो खुद भी अपनी समलैंगिकता को स्वीकार करने से जूझ रहे थे, सेना की 'हाइपर स्ट्रेट' (अति विषमलैंगिक) दुनिया ने उनके लिए स्थिति और मुश्किल बना दी थी.
उन्हें ऐसा लगता था कि अगर वो सेना में किसी को अपनी समलैंगिकता के बारे में बताएंगे जो उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा, बल्कि मुमकिन है कि उन्हें बेइज्जत कर सेना से निकाल ही दिया जाएगा.
कई सालों की जद्दोजहद के बाद मेजर सुरेश ने धीरे धीरे हिम्मत जुटा कर अपने परिवार और दूसरे करीबी लोगों को अपने समलैंगिक होने के बारे में बताया और उसके बाद सेना से भी इस्तीफा दे दिया.
भारतीय सेना का समलैंगिकता के प्रति रवैया काफी विवादास्पद है. 2019 में उस समय सेना प्रमुख रहे जनरल बिपिन रावत ने कहा था भारतीय सेना भारत के कानून के ऊपर तो नहीं है, लेकिन इसके बावजूद सेना को समलैंगिकता मंजूर नहीं है.
उन्होंने कहा था कि सेना में समलैंगिकता सेक्स एक अपराध है और ऐसा करने वालों को सेना के कानून के तहत सजा दी जाएगी. सेना अधिनियम, 1950 में समलैंगिकता का जिक्र नहीं है लेकिन इसे अनुच्छेद 45 के तहत "अशोभनीय आचरण" के तहत डाला जा सकता है.
इसे अनुच्छेद 46 (अ) के तहत "क्रूर, अभद्र और अप्राकृतिक" आचरण के तहत भी डाला जा सकता है, जिस के लिए कोर्ट मार्शल या सात साल तक की जेल भी हो सकती है.
जैसा कि ओनिर ने कहा है, दुनिया के कई देशों ने अपनी सेनाओं में समलैंगिक लोगों का खुले तौर पर स्वागत किया है. इनमें अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और जर्मनी जैसे देश शामिल हैं.
समलैंगिकों के अधिकार छीन रहे हैं ये देश
युगांडा समलैंगिंकों को मौत की सजा देने का कानून बनाने जा रहा है. ब्रूनेई पहले ही ऐसा कर चुका है. दुनिया के 68 देशों में समलैंगिक संबंध अवैध हैं. लेकिन अब कई देश एलजीबीटी समुदाय को अधिकार देने के बाद उन्हें छीन रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Simicek
अमेरिका
अमेरिका ने इस साल से सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती पर रोक को लागू करना शुरू कर दिया है. 2016 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रांसजेंडरों को सेना में काम करने की अनुमति दी थी. लेकिन 2017 में राष्ट्रपति पद संभालने वाले डॉनल्ड ट्रंप ने इसे बदलने की घोषणा की. ट्रंप ने इस फैसले की एक बड़ी वजह दवाओं पर आने वाले खर्च को बताया.
तस्वीर: picture-alliance/AP/LM Otero
रूस
रूस में पिछले साल पहली बार तथाकथित "गे प्रोपेगैंडा" कानून के तहत एक नाबालिग पर जुर्माना किया गया. इस कानून का इस्तेमाल वहां एलजीबीटी समुदाय को दबाने के लिए किया जाता है. 2013 में बने इस कानून के तहत नाबालिगों में समलैंगिकता को बढ़ावा देने की कोशिश या फिर ऐसा कोई भी आयोजन गैरकानूनी है. इसे तहत वहां गे परेड रोकी गईं और समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया.
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पोलैंड
पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी के नेता यारोस्लाव काचिंस्की ने इस साल गे प्राइड मार्चों की आलोचना की और कहा कि इसे रोकने के लिए कानून लाया जाना चाहिए. कट्टरंपंथी लॉ एंड जस्टिस पार्टी ने एलजीबीटी समुदाय विरोधी अपने रुख को चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाया है. आलोचकों का कहना है कि इस वजह से समलैंगिकों के खिलाफ हिंसा के मामलों में इजाफा देखने को मिला है.
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया में समलैंगिक पुरुषों के बीच शारीरिक संबंधों पर प्रतिबंध लगाने वाले एक कानून का मसौदा तैयार किया गया है, जिस पर पिछले महीने संसद में विरोध के चलते मतदान नहीं हो पाया. इसके तहत विवाहेत्तर शारीरिक संबंध भी गैरकानूनी होंगे. गर्भपात कराने पर भी चार साल की सजा होगी. सिर्फ मेडिकल इमरजेंसी, बलात्कार या काले जादू के लिए जेल की सजा मिलने पर ही गर्भपात कराने की छूट होगी.
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नाइजीरिया
नाइजीरिया ने 2014 में एक बिल पास किया, जिसमें समलैंगिक सेक्स के लिए 14 साल की सजा का प्रावधान किया गया. अधिकारियों ने 2017 में समलैंगिक गतिविधियों के मामले में 43 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए. इनमें से ज्यादातर को निगरानी में रखा गया और उनका "यौन पुर्नवास" किया गया.
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मलेशिया
मलेशिया में एलजीबीटी समुदाय के लोगों को प्रताड़ित करने के मामले बढ़ रहे हैं. पिछले साल तेरेंगगानु राज्य में दो महिलाओं को आपस में शारीरिक संबंध कायम करने के लिए सार्वजनिक तौर पर बेंतों से पीटा गया. प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद का कहना है कि उनका देश समलैंगिक शादियों और एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों को स्वीकार नहीं कर सकता.
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चाड
अफ्रीकी देश चाड ने 2017 में नई दंड संहिता पर अमल करना शुरू किया, जिसमें समलैंगिक संबंधों के लिए छोटी कैद की सजाओं और जुर्माने का प्रावधान किया गया. इससे पहले वहां स्पष्ट तौर पर समलैंगिक संबंध गैरकानूनी नहीं थे. हालांकि अप्राकृतिक कृत्यों की निंदा करने वाला एक कानून जरूर था.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2012-0881/Sokol
स्लोवाकिया
स्लोवाकिया ने 2014 में अपने संविधान में पारंपरिक शादी की परिभाषा को जगह दी. 2015 में वहां पर एक जनमत संग्रह हुआ जिससे समलैंगिक शादियों और उनके द्वारा बच्चे गोद लेने पर रोक को और मजबूती मिलने की उम्मीद थी. लेकिन जनमत संग्रह में बहुत कम लोगों ने हिस्सा लिया जिसके कारण उसे मंजूरी नहीं मिल सकी. (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन/एके)