1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जलवायु परिवर्तन के असर से हो रहा है पलायन

९ अगस्त २०१९

पानी की कमी का सामना कर रहे महाराष्ट्र के गांवों में बस महिलाएं और बुजुर्ग रह गए हैं. पुरुष गांव से जा चुके हैं. पानी की कमी के कारण गांव का नाम सुनकर ही कोई परिवार अपनी बेटी की शादी इन गांवों में करने को तैयार नहीं है.

Global Ideas Indien Dürre Migration 12
तस्वीर: Catherine Davison

मीरा सदगर ने तीन महीने से अपने पति को नहीं देखा है. दस साल पहले उनके पति एक फैक्ट्री में काम करने के लिए घर से करीब 200 किलोमीटर दूर चले गए. तब से वो कभी कभी घर आते है. पांच बच्चों की मां 35 वर्षीय मीरा सदगर क्या इस वजह से व्याकुल होती हैं? इसका जवाब है नहीं, क्योंकि महाराष्ट्र में पहाड़ियों के बीच मौजूद छोटे से गांव हटकरवाड़ी में ऐसा होना बेहद ही आम है.

गोद में एक तरफ बच्चे को लिए और दूसरी तरफ पानी का घड़ा पकड़े मीरा कहती हैं,"यहां हर घर में यही कहानी है. पूरे गांव में बस बूढ़े सास-ससुर, बहू और उसके बच्चे मिलेंगे. गांव के सब आदमी काम करने के लिए गांव से जा चुके हैं." आधिकारिक आंकड़ों की जानकारी तो नहीं है लेकिन गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि गांव की जनसंख्या पहले करीब 1,200 थी पर अब महज 250 के आसपास लोग यहां रहते हैं. लगातार पड़ रहे सूखे से पानी का संकट पैदा हो गया है. फसलों की पैदावार घट गई है जिससे गरीबी आने लगी है और लोग पलायन कर रहे हैं.

गांव में रह रहे 80 साल के गनपत बंदगार कहते हैं, "पहले यहां अच्छी बारिश हुआ करती थी. कभी-कभी तो एक ही दिन में दो-तीन बार बारिश हो जाती थी. अब तो यहां बारिश ही नहीं होती है." गनपत की पत्नी की मौत के बाद से वो अकेले रहते हैं. गर्मियों में ये गांव लगभग खाली हो जाते हैं. हर कोई अपने घर को छोड़कर शहरों की तरफ चला जाता है. गर्मियों में वहां निर्माण कार्यों या गन्ने की फैक्ट्री में आसानी से काम मिल जाता है.

गनपत बंदगार (गुलाबी पगड़ी में)तस्वीर: Catherine Davison

बंदगार अक्सर अकेलापन महसूस करते हैं और दुखी हैं कि गांव खाली होते जा रहे हैं. वो कहते हैं कि वो 80 साल से गांव में ही रह रहे हैं. उन्होंने अपना सारा जीवन यहीं व्यतीत किया है. उनके दो बेटे हैं. दोनों यहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर शहर की फैक्ट्री में काम करते हैं.

पानी की विकट समस्या

महाराष्ट्र के गांवों में कहानी लगभग एक जैसी है. सूखे और पैदावार की कमी से राज्य के 72 प्रतिशत जिले इस साल जूझ रहे हैं. यह गांव बीड जिले में पड़ता है. बीड में स्थित भारतीय मौसम विभाग के कार्यालय के मुताबिक यहां पिछले दस साल से बारिश में कमी दर्ज की जा रही है. फिलहाल यहां से होने वाला पलायन मौसमी पलायन है क्योंकि लोग छह से नौ महीने काम की तलाश में बाहर रहते हैं और बारिश के मौसम में वापस आकर पेड़ लगाते और खेती करते हैं.

अत्यंत सूखे से प्रभावित गांवों के लोगों ने शहरों में अपने लिए पक्की नौकरियां तलाश ली हैं. अब वो बारिश के मौसम में भी नहीं आते. वो बस अब छुट्टियां बिताने और गांव में रह रहे अपने परिजनों से मिलने के लिए गांव वापस आते हैं. गांव में 20 कुएं हैं और सब सूख गए हैं. पीने के पानी का जरिया सिर्फ एक बोरवैल है जिसमें 400 फीट पर पानी है. पानी निकालने के लिए बिजली से चलने वाला पंप लगा हुआ है. महिलाओं को समय पर पानी लेकर आना होता है क्योंकि बिजली की समस्या है. अगर बिजली चली जाएगी तो पानी भी नहीं मिलेगा.

तस्वीर: Catherine Davison

गांव तक आने का रास्ता बहुत संकरा और ऊबड़ खाबड़ है. इसलिए यहां पानी के टैंकर भी नहीं आ सकते. गांववालों के पास पानी का कोई बैकअप ही नहीं है. पानी की कमी के चलते हुए पलायन के क्षेत्र में काम करने वाले एक एनजीओ की सदस्य मेल्विन पंग्या के मुताबिक, "ये समस्या हर साल विकराल रूप धारण करती जा रही है. पहले यहां कभी-कभी अच्छी बारिश हो जाती थी लेकिन पिछले दो-तीन साल से तो बारिश ही नहीं हुई है. कुछ गांवों में तो सिर्फ बुजुर्ग लोग ही रह गए हैं क्योंकि पूरा परिवार पलायन कर गया है. अगर बारिश और पानी नहीं होगा तो वो क्या करेंगे. वो पलायन ही करेंगे. उनके पास कोई रास्ता ही नहीं बचेगा."

पानी के प्रबंधन के खराब उपायों से भी इलाके में पानी की समस्या गंभीर हुई है. जो गन्ना मिलें पलायन कर आए लोगों को रोजगार देती हैं उन्हें भी इस पलायन का कारण माना जाता है. दरअसल गन्ना उगाने के लिए कम से कम 2000 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए. यहां उतनी बारिश नहीं होती है. इसके चलते गन्ने की फसल में पानी देने के लिए भूजल का इस्तेमाल होता है. जिससे धरती में पानी की कमी हो रही है. गन्ना उगाने के लिए और दूसरी फसलों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा पानी चाहिए.

हालांकि इस गांव के लोग ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि उनकी समस्या की वजह बारिश की कमी ही है. वो यहां गन्ना उगाते ही नहीं हैं. वो बस बाजरा ही उगाते हैं. जिसके लिए कम पानी की जरूरत होती है. वो ज्यादा पैसा खर्च करके उगाए जाने वाली फसलों को उगाने का जोखिम नहीं ले सकते. क्योंकि अगर बारिश नहीं हुई तो ये बड़ा नुकसान  होगा.

मीरा अपने बच्चों के साथ.तस्वीर: Catherine Davison

एकाकी होता जा रहा जीवन

देशभर में चली लू के चलते इस साल भारत का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. इस लू के चलते महाराष्ट्र में नौ लोगों की मौत हो गई थी. आगे परिस्थितियां और भी खराब होने वाली है. जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे संगठन आईपीसीसी के मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में सूखा पड़ना आम बात होने वाली है. 2030 तक जलवायु परिवर्तन के चलते भारतीय उपमहाद्वीप का औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री तक बढ़ जाएगा. इसी साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक हर घर में नल से पानी पहुंचाने का वादा किया है. मोदी सरकार के फिर से चुने जाने पर उन्होंने वादा किया कि पानी की कमी के चलते हो रहे पलायन को रोकना उनकी पहली प्राथमिकताओं में से एक होगा. इस गांव के लोगों के लिए पांच साल इंतजार करना थोड़ा लंबा होगा.

गणेश सदगार 27 साल के हैं. पोस्ट ग्रैजुएट हैं और शादी करने के लिए पत्नी की तलाश में हैं. वो इसी गांव में रहते हैं और अब उन्हें लगता है कि शायद उनकी शादी नहीं हो पाएगी. जितनी भी लड़कियों से उनकी शादी की बात चलती है उनमें से कोई भी उनके गांव में आना नहीं चाहती है. उनका कहना है कि हर लड़की के घरवाले कह देते हैं कि उनकी बेटी बिना पानी के गांव में कैसे रहेगी. अगर कोई लड़की वाले उनका गांव देखने आ जाते हैं तो उन्हें पिलाने और हाथ धुलाने तक के लिए पानी नहीं होता है. ऐसे में वो एक बार आकर जाते हैं और फिर वापस नहीं आते हैं.

गणेश सदगार.तस्वीर: Catherine Davison

एक साल पहले उन्होंने भी 150 किलोमीटर दूर एक शहर में नौकरी करना शुरू कर दिया था. अब वो साल में एक या दो बार अपने माता पिता से मिलने और अपने खेतों को देखने गांव आते हैं. इस गांव में शादी कर आईं औरतें अक्सर अकेले ही रहती हैं क्योंकि उनके पति काम की तलाश में शहर चले जाते हैं. ये महिलाएं अपना घर संभालती हैं, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करती हैं और खेतों का काम भी करती हैं. मीरा कहती हैं, "मुझे अपने सारे काम खुद से करने होते हैं. पानी लाना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, खाना बनाना सब खुद से करना होता है. इस चक्कर में मुझे कभी पर्याप्त समय नहीं मिलता और मैं ठीक से खाना भी नहीं खा सकती." जब उनसे पूछा जाता है कि उनके पति कब वापस आएंगे तो वो कातर निगाहों से खेतों और बादल की तरफ देखकर कहती हैं कि वो आएंगे जब बारिश आएगी.

कैथरीन डेविडसन/ऋषभ शर्मा

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें