एलआईसी के आईपीओ में देरी के बीच भारत सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत अब ओएनजीसी में हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है. योजना कंपनी में 1.5 प्रतिशत तक हिस्सेदारी बेच कर करीब 3000 करोड़ रुपए कमाने की है.
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ओएनजीसी ने स्टॉक एक्सचेंज को दी जानकारी में बताया है कि इसके लिए ऑफर फॉर सेल यानी बिक्री पेशकश 30 मार्च को खोली जाएगी और 31 मार्च को बंद कर दी जाएगी. इस दौरान कंपनी के करीब 9.43 करोड़ शेयर बिक्री के लिए पेश किए जाएंगे. ये कंपनी की कुल पेड-अप इक्विटी शेयर पूंजी के 0.75 प्रतिशत के बराबर है.
अगर अधिक बोली आई तो करीब 9.43 करोड़ अतिरिक्त इक्विटी शेयर भी बेचे जा सकते हैं. बोली शुरू करने के लिए हर शेयर का मूल्य 159 रुपए रखा गया है. ओएनजीसी ने बताया कि यह मूल्य बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी के शेयर के मौजूदा भाव से सात प्रतिशत कम है. मंगलवार को भाव 171.05 रुपए था.
ओएनजीसी भारत सरकार की सबसे बड़ी कच्चा तेल और गैस की कंपनी है. यह एक महारत्न कंपनी है जिसका भारत में तेल और गैस के कुल उत्पादन में 71 प्रतिशत का योगदान है. केंद्र सरकार की इसमें 60.41 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
सरकारी संपत्ति बेचे जाने पर विवाद
अगर बिक्री पेशकश सफल रही तो भारत सरकार को कई मुश्किलों से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में मदद मिलेगी. सरकारी खजाने के लिए संसाधन जुटाने के लिए सरकार ने विनिवेश का कदम उठाया था.
2020-21 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी उपक्रमों में हिस्सेदारी बेच कर और कुछ उपक्रमों का निजीकरण कर 2,100 अरब रुपए कमाने का लक्ष्य रखा था. इसके तहत सरकार ने मार्च में ही जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का आईपीओ लाने की भी तैयारी कर ली थी लेकिन बाजार में दिख रही मंदी की वजह से उसे टाल दिया गया.
लेकिन इसके टल जाने से सरकार इस वित्त वर्ष का विनिवेश का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगी, जिसका असर वित्तीय घाटे पर पड़ेगा. सरकार को उम्मीद है कि ओएनजीसी की बिक्री पेशकश से इसकी कुछ हद तक भरपाई हो पाएगी.
दूसरी तरफ सरकार के निजीकरण और विनिवेश कार्यक्रमों का विरोध भी हो रहा है. श्रम संगठनों का कहना है कि आर्थिक तनाव के इस दौर में सरकार अपने उपक्रमों को निजी क्षेत्र में बेच कर कर्मचारियों का आर्थिक जोखिम और बढ़ा रही है. कई और मुद्दों के साथ यह मुद्दा भी हाल ही में आयोजित किए गए दो दिवसीय भारत बंद के कारणों में शामिल था.
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन क्या है और क्यों मचा है बवाल
सरकार ने 6 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की घोषणा की है. इस योजना में बिजली से लेकर सड़क और रेलवे के क्षेत्रों में सरकारी संपत्ति को किराए पर दिया जाएगा. विपक्ष सरकार पर संपत्ति बेचने का आरोप लगा रहा है.
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राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन योजना
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 अगस्त को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन योजना (एनएमपी) की घोषणा की. इस योजना के तहत सरकार का दावा है कि वह सरकारी संपत्ति बेचेगी नहीं. सरकार का स्वामित्व बरकरार रहेगा. सरकार कहती है समझौते की तय सीमा के बाद संपत्ति सरकार को वापस सौंप दी जाएगी.
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लीज पर देकर कमाई
सरकार का दावा है कि वह अगले चार सालों तक कम इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों को लीज या किराए पर देकर छह लाख करोड़ रुपये जुटाना चाहती है. सरकार दावा कर रही है कि वह निजीकरण नहीं करेगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 21-22 के बजट भाषण में इसका जिक्र किया था.
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विपक्ष हमलावर
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि पिछले 70 सालों में जो भी देश की पूंजी बनी है उसे बेचने का फैसला किया गया है.
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कहां से कितना कमाएगी सरकार
इस योजना के दायरे में 12 मंत्रालयों और विभागों की 20 तरह की संपत्तियां आएंगी. जिनमें मूल्य के हिसाब से सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र की परियोजनाएं प्रमुख हैं. वित्त मंत्री के मुताबिक, संपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम का उद्देश्य नया बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करना है.
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छह लाख करोड़ की कमाई
करीब 26,700 किलोमीटर लंबाई की सड़क परियोजनाओं से 1.6 लाख करोड़ रुपए, रेलवे से 1.52 लाख करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे. पावर ट्रांसमिशन से 45,200 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे. बिजली उत्पादन से सरकार को 39,832 करोड़ रुपए मिल सकते हैं.
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हवाई अड्डे के जरिए भी कमाई
देश के 25 हवाई अड्डों के जरिए 20,782 करोड़ रुपए हासिल करने की योजना है. इसी तरह से बंदरगाहों का मुद्रीकरण कर 12,828 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है.
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"संपत्ति देश की है"
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की तरह इस योजना की आलोचना की है. ममता ने कहा है कि सरकार देश की संपत्ति बेचने की साजिश कर रही है. उन्होंने कहा कि यह नरेंद्र मोदी या बीजेपी की संपत्ति नहीं है.
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बीजेपी का पलटवार
विपक्षी दलों के बयान के बाद सरकार और बीजेपी के नेता राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन पर सोशल मीडिया के जरिए सफाई दे रहे हैं कि मुद्रीकरण का मतलब संपत्ति की बिक्री नहीं है. वित्त मंत्री का आरोप है कि यह कांग्रेस ही थी जिसने जमीन और खदान जैसे संसाधनों को बेचने पर 'रिश्वत' हासिल की. उन्होंने कहा कि 2008 में यूपीए सरकार ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को पट्टे पर देने के लिए आग्रह पत्र आमंत्रित किया था.