कश्मीरी समुदाय के एक स्थानीय नेता के मुताबिक हाल ही में एक स्कूल शिक्षिका की हत्या होने के बाद से इलाके के लगभग सौ परिवार कश्मीर छोड़कर जा चुके हैं.
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कश्मीरी हिंदू समुदाय के बहुत से लोग अब वहां डर के साये में जी रहे हैं क्योंकि हाल के दिनों में कई लोगों की निशाना बनाकर हत्याएं की गई हैं. मंगलवार को उग्रवादियों ने 36 वर्षीय शिक्षिका रजनी बाला की कुलगाम जिले के सरकारी स्कूल के सामने ही गोली मारकर हत्या कर दी थी.
उत्तरी कश्मीर के बारामूला में हिंदू कश्मीरी पंडित कॉलोनी के अध्यक्ष अवतार कृष्ण बट कहते हैं कि मंगलवार की घटना के बाद से कॉलोनी में रहने वाले 300 परिवारों में से लगभग आधे जा चुके हैं. उन्होंने बताया, "कल की हत्या के बाद वे लोग भयभीत थे. हम भी कल तक चले जाएंगे क्योंकि फिलहाल हम सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं. हमने सरकार से आग्रह किया था कि हमें कश्मीर के बाहर कहीं बसा दिया जाए.”
धीरे-धीरे कश्मीर लौट रहे हैं पर्यटक
कश्मीर में आतंकवाद का संकट और राजनीतिक तनाव कम नहीं हुआ है, लेकिन पर्यटन एक बार फिर धीरे धीरे पांव जमाने की कोशिश कर रहा है. देखिए कैसे कई जगहों से आए पर्यटक चारों तरफ गिरी हुई बर्फ का अनुभव ले रहे हैं.
तस्वीर: Rifat Fareed/DW
पर्यटकों को लेकर आया 2021
तालाबंदी के एक लंबे पड़ाव के बाद 2021 में कश्मीर में पर्यटक लौट कर आ रहे हैं. ये इलाके के पर्यटन उद्योग के लिए एक नाटकीय बदलाव है, क्योंकि इसने बीते डेढ़ साल में कोरोना वायरस महामारी और केंद्र द्वारा लागू किए गए प्रतिबंधों की दोहरी मार झेली है.
तस्वीर: Rifat Fareed/DW
फिर खिला गुलमर्ग
कश्मीर की पहाड़ियों में ऊंचाई पर बसे गुलमर्ग में काफी बर्फ पड़ती है जिसकी वजह से इसे पूरे एशिया में स्कीइंग जैसे सर्दियों के खेलों के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक के रूप में जाना जाता है. गुलमर्ग एक बार फिर बर्फ की चादर से ढंक गया है और इसके होटल पर्यटकों से भर रहे हैं.
तस्वीर: Rifat Fareed/DW
हर मौसम में गुलजार
गुलमर्ग को करीब 100 साल पहले अंग्रेजों ने पर्यटन के लिए विकसित किया था. यहां देश-विदेश से पर्यटक हर मौसम में आते हैं. सर्दियों में यहां स्की, ट्रेक और स्नोबोर्डिंग की जाती है. गर्मियों में पर्यटक इसके चारागाहों, घाटियों और सदाबहार पेड़ों के जंगलों की खूबसूरती का आनंद लेते हैं.
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पसर गया था वीराना
2019 में कश्मीर की स्वायत्ता के अंत और सुरक्षा-संबंधी अभूतपूर्व प्रतिबंधों के लागू होने के बाद गुलमर्ग एक भूतिया शहर में तब्दील हो गया था. प्रतिबंधों के तहत कश्मीर में संचार व्यवस्था भी ठप हो गई थी, लेकिन अब तस्वीर धीरे धीरे बदल रही है.
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भीषण आर्थिक तंगी
प्रतिबंधों की वजह से आम लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, कई नौकरियां चली गईं और गंभीर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. कश्मीर की पहले से कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमरा गई. स्कूल-कॉलेज बंद होने से लाखों छात्रों का भी नुकसान हुआ. कश्मीर चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का अनुमान है कि अगस्त 2020 तक इलाके में करीब 5.3 अरब डॉलर मूल्य का आर्थिक नुकसान हो चुका था और लगभग पांच लाख नौकरियां खत्म हो गई थीं.
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महामारी का एक फायदा
गुलमर्ग को महामारी से एक फायदा भी हुआ है. महामारी के शुरूआती दिनों में तो विदेश यात्रा बिलकुल बंद थी और बीते कुछ महीनों में यह शुरू तो हुई है लेकिन सीमित स्तर पर. ऐसे में वो लोग जो अमूमन पर्यटन के लिए विदेश चले जाते वो गुलमर्ग आ गए.
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एक अच्छा संकेत
15 महीनों में पहली बार सभी होटल फरवरी के अंत तक के लिए पूरी तरह से भर गए हैं. एक पर्यटन अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "जनवरी और फरवरी के लिए हमारे पास गुलमर्ग में 100 प्रतिशत बुकिंग है, जो एक अच्छा संकेत है. हम उम्मीद करते हैं कि यह ट्रेंड और बेहतर होगा." कई पर्यटकों का कहना है कि वो इस समय गुलमर्ग इसलिए आए हैं क्योंकि यूरोप जैसी जगहों पर कोविड को लेकर यात्रा संबंधी प्रतिबंध लगे हुए हैं.
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स्थानीय नागरिकों का कहना है कि पुलिस ने श्रीनगर में सुरक्षा बढ़ा दी है और उन इलाकों को सील कर दिया है जहां कश्मीर पंडित सरकारी कर्मचारी रहते हैं. स्थानीय प्रशासन ने लोगों के घर छोड़कर भागने पर कोई टिप्पणी नहीं की है. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने पिछले महीने ही लोगों को भरोसा दिलाया था कि कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे.
घाटी छोड़ना चाहते हैं हिंदू
उग्रवादी कश्मीरी पंडितों और अन्य तबकों के लोगों को चुन-चुन कर निशानाबना रहे हैं. पिछले महीने ही स्थानीय सरकारी दफ्तर में काम करने वाले एक कश्मीरी पंडित को उनके कार्यालय में घुसकर गोली मार दी गई थी. उस हत्या के बाद स्थानीय लोग और पीड़ित के सहकर्मियों ने विरोध प्रदर्शन किया था और लोगों को कश्मीर घाटी के बाहर कहीं बसाने की मांग की थी.
बुधवार को कश्मीर घाटी के पुलिस प्रमुख विजय कुमार ने मीडिया को बताया कि उस हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को मार दिया गया है. रॉयटर्स से बातचीत में कुमार ने कहा, "हमने उन सभी उग्रवादियों को मार दिया है जो पिछली हत्याओं को लिए जिम्मेदार थे.” 1989 में कश्मीर में उग्रवाद की शुरुआत से ही कश्मीर पंडित मारे जाने या भाग जाने को मजबूर हैं. मुस्लिम बहुल कश्मीर में रहने वाले करीब ढाई लाख पंडित 1989 के बाद से घाटी छोड़कर जा चुके हैं.
आहें भरता कश्मीर का कालीन उद्योग
कश्मीर गलीचे का कभी दुनिया में नाम था. हजारों लोगों को रोजी रोटी देने वाला ये उद्योग आज मुश्किल में है. पत्रकार गुलजार बट ने श्रीनगर में देखा कि किस हाल में हैं रंग, डिजाइन और बारीकी के लिए मशहूर कालीन बुनने वाले कारीगर.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
कश्मीरी हस्तकला
कश्मीरी कालीन हाथ से बुना जाने वाला गलीचा है जो कश्मीरी हस्तकला के साथ निकट रूप से जुड़ा है.
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ईरान से आई कला
कश्मीर के कालीन उद्योग की शुरुआत 15वीं सदी में हुई बताते हैं. कश्मीर के सुलतान जैनुल आबदीन ईरान से कारीगर लाए थे.
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सिल्क और ऊन
कश्मीरी गलीचे की खासियत ये है कि इसमें ऊन और तसर का इस्तेमाल किया जाता है. खास ये भी है कि बुनाई गांठ डालकर होती है.
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बुनाई के औजार
गलीचे की बुनाई के लिए जिन औजारों का इस्तेमाल होता है उनमें लोहे का कंघा, ब्लेड और कैंची शामिल है.
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लकड़ी के बीम
जिस करघे पर कालीन बुनी जाती है उसमें लकड़ी को दो बीम होते हैं. इस बीच बीम के लिए धातु का इस्तेमाल भी होने लगा है.
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गलीचे का डिजाइन
कालीन बनाने के लिए जिस डिजाइन का इस्तेमाल होता है उसे तालीम कहते हैं. वह कागजों पर होता है जिसे बुनाई के दौरान धागों के बीच टांग दिया जाता है.
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अहम बाजार
कश्मीर के गलीचों का खास बाजार जर्मनी सहित यूरोप के देशों में है. हाल के सालों में कालीन के निर्यात में भारी गिरावट आई है.
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गिरता कारोबार
उद्योग संघ के आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में करीब 80 करोड़ का निर्यात हुआ था तो 2017-18 में ये गिरकर 22 करोड़ रह गया.
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रोजगार पर आफत
श्रीनगर के आलमगरी और गुलशन बाग इलाकों में अभी भी कुछ बुनकर बचे हैं. ज्यादातर बुनकरों ने रोजगार छोड़ दिया है. जो बचे हैं वे बदहाल हैं.
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कोरोना की मार
कश्मीर के कालीन उद्योग पर कोरोना की मार भी पड़ी है. लॉकडाउन ने खासी तबाही मचाई है. कारोबार अभी तक फिर से पटरी पर नहीं आ पाया है.
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टूटे फूटे घर
बचे हुए कारीगर अपने टूटे फूटे घरों में रहते हैं और रोजमर्रा की जिंदगी चलाना मुश्किल हो रहा है. कारीगर महीने में 2000 से 3000 रुपये कमाते हैं.
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भारतीय जनता पार्टी के लिए कश्मीर पंडित बड़ा मुद्दा रहे हैं और नरेंद्र मोदी सरकार चाहती है कि कश्मीरी पंडितों की घर वापसी हो. इसी कोशिश के तहत हाल के सालों में 3,400 से ज्यादा हिंदुओं को कश्मीर में सरकारी नौकरियां दी गई हैं. लेकिन अब ये कश्मीर घाटी से बाहर कहीं बसाए जाने की मांग कर रहे हैं.
एक प्रदर्शनकारी अमित ने कहा, "हम यहां सुरक्षित नहीं हैं. हमारे सहयोगी को उसके दफ्तर में गोली मार दी गई. हमारी मांग है कि हमें यहां से कहीं और बसाया जाए क्योंकि यहां तो कभी ना कभी हत्या होती रहती है.”
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मुस्लिम भी हैं निशाने पर
उग्रवादियों ने सिर्फ हिंदुओं को निशाना नहीं बनाया है बल्कि पिछले कुछ महीनों में कई मुस्लिम भी निशाना बनाकर की गई हत्याओं का शिकार हुए हैं. पिछले हफ्ते ही एक श्रीनगर में रहने वाली एक टीवी कलाकार को गोली मार दी गई थी. 35 वर्षीय अमरीन बट को उग्रवादियों ने नजदीक से गोली मारी. घटना में उस कलाकार का 10 वर्षीय भतीजा भी घायल हो गया था. बट सोशल मीडिया पर भी खासी सक्रिय थीं.
जम्मू कश्मीर में 1990 के दशक में हथियारबंद आंदोलन की शुरुआत के बाद हिंदुओं को निशाना बनाया गया. हजारों कश्मीरी हिंदू प्रांत छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में चले गए. उनके घर वीरान पड़े हैं और खस्ताहाल हैं.
तस्वीर: Gulzar Bhat
दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले के हाल गांव में कश्मीरी हिंदुओं के परिवार रहते थे. पत्रकार गुलजार बट ने गांव का दौरा किया और स्थानीय वास्तुकला में बने टूटे फूटे घरों की तस्वीरें ली.
तस्वीर: Gulzar Bhat
1990 के पहले हाल गांव में करीब 100 कश्मीरी हिंदू परिवार रहते थे. तकरीबन सारे इस बीच गांव छोड़ चुके हैं. अब इस इलाके में सिर्फ एक हिंदू परिवार रहता है.
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बहुत से कश्मीरी हिंदू परिवारों ने इलाके में असुरक्षा के कारण अपना घरबार और जायदाद बेच दिया. जिन लोगों ने घर नहीं बेचा, उनके घर अब बहुत ही बुरी हालत में हैं.
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कश्मीर में हमलों के कारण कश्मीरी हिंदू अपना घर बार और जायदाद छोड़कर भाग गए. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 62,000 कश्मीरी हिंदू भारत के दूसरे हिस्सों में शरणार्थी हैं.
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5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया और प्रांत को दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया. लेकिन कश्मीरी हिंदुओं की वापसी नहीं हो पाई है.
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इस साल फरवरी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रवासी कश्मीरी हिंदुओं के लिए दस टाउनशिप बनाने की घोषणा की थी. लेकिन उसके निर्माण की दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है.
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जम्मू कश्मीर का पुलवामा का इलाका चरमपंथियों का गढ़ रहा है. इलाके में शांति अभी तक वापस नहीं लौटी है. देश के दूसरे हिस्सों में शांति में रह रहे कश्मीरी वहां वापस लौटने से घबरा रहे हैं.
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कश्मीरी हिंदुओं के घर छोड़कर भागने के बाद उनके मकान जर्जर हालत में हैं और पूरी तरह से ढह गए हैं. उन्हें रिहायश के लायक बनाना आसान नहीं होगा. यहां नए घर ही बनाने होंगे.
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जवाब में सुरक्षाबलों ने भी अपने अभियान तेज कर दिए हैं. वे अब सिर्फ उग्रवादियों को नहीं बल्कि उनके मुखबिरों को भी निशाना बना रहे हैं. इस साल 78 कथित उग्रवादियों को मारा जा चुका है. पिछले साल 193 कथित उग्रवादियों को मारा गया था जबकि 2020 में सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए संदिग्ध उग्रवादियों की संख्या 232 थी.