शहर से लौटे गांव, अब हो रहे हैं संपत्ति के लिए झगड़े
५ जून २०२०
प्रवासियों के गांव लौटने के साथ पैतृक संपत्ति और खेती की जमीन को लेकर परिवार में झगड़े हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 20 मई तक संपत्ति विवाद को लेकर 80,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं हैं.
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लॉकडाउन के बाद लाखों मजदूर शहरों से पलायन कर गांव की ओर लौट गए. शहरों में काम धंधा बंद होने के बाद उन्हें गांव जाना पड़ा लेकिन अब गांवों में नया विवाद खड़ा होता जा रहा है. दरअसल मजदूरों के गांव लौटने के साथ घर और खेती की जमीन को लेकर विवाद पैदा हो रहा है. पैतृक संपत्ति को लेकर परिवारों में नया झगड़ा छिड़ गया है.
घनी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में लाखों मजदूर लॉकडाउन लागू होने और उसके आगे बढ़ने के बाद अपने गांव की ओर लौट गए. हजारों लोगों ने गांव वापस लौटने के लिए परिवहन सेवा का सहारा नहीं मिलने पर पैदल ही जाने का फैसला किया तो कइयों ने साइकिल और ट्रक के सहारे अपने गांव पहुंचने की कोशिश की.
मई महीने में सरकार ने मजदूरों के लौटने के लिए बस और ट्रेन सेवा चलाने का फैसला किया, जिस कारण लाखों की संख्या में प्रवासी अपने गांव और कस्बे तक पहुंच पाए. शहरों में रहने वाले प्रवासियों के पास ना तो खाने के लिए पैसे बचे थे और ना ही वे मकान का किराया देने के लिए समर्थ थे. नया पलायन गांवों में सीमित मात्रा में मौजूद संसाधनों पर तनाव पैदा कर रहा है.
बलिया के रतसर कलां की प्रधान स्मृति सिंह कहती हैं कि वे गांव लौटने वाले करीब एक हजार लोगों को क्वारंटीन करने और पारिवारिक कलह को निपटाने के बीच फंसी हुई है. स्मृति सिंह के मुताबिक, "संपत्ति को लेकर झगड़ा हर रोज हो रहा है. ये सभी मामले एक ही समान है." वह बताती है कि ज्यादातर घर लौटने वाले परिवार अपने रिश्तेदारों से पैतृक घर और संपत्ति को लेकर झगड़ा कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को यूपी के दो पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मई महीने की एक से लेकर बीस तारीख के बीच पुलिस ने 80,000 से अधिक संपत्ति विवाद की शिकायतें दर्ज की. अप्रैल में 38,000 शिकायतें दर्ज की गई थी. पुलिस का कहना है राज्य में जनवरी से लेकर मार्च के बीच घर के मालिकाना हक, व्यावसायिक संपत्ति और खेती की जमीन को लेकर 49,000 शिकायतें दर्ज की गई थी. पुलिस अधिकारी ने बताया कि वे इन मामलों पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं है. उसके मुताबिक ऐसे मामले और बढ़ेंगे क्योंकि प्रवासियों का लौटना जारी है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
किसानों के लिए केंद्र की सौगात
देश का किसान अपनी उपज को अब कहीं भी बेच सकेगा. केंद्र सरकार ने बुधवार 3 जून को प्रमुख कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे से बाहर करने के फैसले पर मुहर लगा दी. अब अपनी मर्जी से उपज बेच पाएंगे किसान.
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किसानों के 'अच्छे दिन'
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने "द फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस ऑर्डिनंस, 2020" पर मुहर लगा दी. इस अध्यादेश की मदद से किसान और प्रोसेसिंग यूनिट और कारोबारियों के बीच करार आधारित खेती को बढ़ावा मिलेगा.
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मंडी से आजादी
कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों को मंजूरी देते हुए केंद्र सरकार ने तीन अध्यादेशों के मसौदों को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दी है. मंडी कानून से राहत देने के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कानून बनाने का फैसला किया है. सरकार का कहना है कि उसने 50 साल पुरानी किसानों की मांग को पूरा किया है.
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उपज का बेहतर मूल्य
सरकार का कहना है कि ये कदम देश के किसानों की मदद करने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने में भी मददगार साबित होंगे. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक जो प्रतिबंध किसानों पर अपने उत्पादन को बेचने के लिए लगे थे, वे अब उससे आजाद हो गए हैं. उन्होंने कहा कि मंडियां रहेंगी, राज्य का एपीएमसी कानून रहेगा लेकिन एपीएमसी के बाहर किसान से कंपनी उत्पाद खरीद सकती है.
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एक देश, एक कृषि बाजार
अध्यादेश का मूल उद्देश्य एपीएमसी बाजारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के अतिरिक्त अवसर मुहैया कराना है जिससे कि उन्हें प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में अपने उत्पादों की अच्छी कीमतें मिल सकें.
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घर से भी उपज बेचना मुमकिन
सरकार का कहना है कि किसान के पास अब सुविधा होगी कि वह अपनी उपज घर से भी बेच पाएगा. मंडी के बाहर वह किसी कंपनी, प्रोसेसिंग फर्म या किसी अन्य संस्था को अपनी फसल बेच पाएगा और इस पर कोई कर भी नहीं लगेगा.
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किसानों को लाभ
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के जरिए अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर कर दिया गया है. अब किसान अपनी योजना के मुताबिक इसका भंडारण और बिक्री कर सकता है. इस व्यवस्था से निजी निवेशक अत्यधिक नियमों के भय से मुक्त हो जाएंगे.