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किसने धीमा किया भारत की विकास दर को

९ जनवरी २०२५

पिछले साल रिकॉर्ड तोड़ आर्थिक वृद्धि के बाद, भारत की नीति निर्धारण इकाइयां अब संभावित आर्थिक मंदी से निपटने में जुट गई हैं. वैश्विक चुनौतियां और घरेलू विश्वास की कमी ने हाल में चढ़े शेयर बाजार के असर को खत्म कर दिया है.

सूरत के हीरा कारोबारी
सूरत में हीरा बाजार भारी गिरावट झेल रहा हैतस्वीर: SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images

मंगलवार को एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वार्षिक विकास दर 6.4 फीसदी का अनुमान लगाया. यह चार साल में सबसे धीमी विकास दर है और सरकार के शुरुआती अनुमानों से कम है. निवेश और विनिर्माण में गिरावट को इस सुस्ती का कारण माना जा रहा है.

इमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की मुख्य अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा कहती हैं, "आपको एनिमल स्पिरिट को दोबारा जगाना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि खपत बढ़े. यह इतना आसान नहीं है," उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को अपने वित्तीय घाटे को बढ़ाने या ब्याज दरें कम करने की दिशा में सोचना चाहिए.

गिरती कॉर्पोरेट कमाई

2024 की दूसरी छमाही में कॉर्पोरेट कमाई में गिरावट और आर्थिक संकेतकों के खराब प्रदर्शन ने निवेशकों को पहले के सकारात्मक नजरिए पर दोबारा सोचने को मजबूर कर दिया है. इसके चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक लक्ष्यों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्र से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही है. इसकी वृद्धि दर 3.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 1.4 फीसदी से काफी बेहतर है. हालांकि, अन्य प्रमुख क्षेत्रों में गिरावट का डर बना हुआ है.

मैन्युफैक्चरिंग, जो अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाता है, की वृद्धि दर 9.9 फीसदी से घटकर 5.3 फीसदी पर आने की संभावना है. खनन क्षेत्र में भी सुस्ती देखने को मिल सकती है, जहां विकास दर 7.1 फीसदी से गिरकर 2.9 फीसदी तक सिमट सकती है.

निर्माण क्षेत्र, जो बुनियादी ढांचे के विकास में अहम योगदान देता है, की वृद्धि दर भी घटकर 8.6 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 9.9 फीसदी थी. इसी तरह बिजली और अन्य सेवाओं की वृद्धि दर 7.5 फीसदी से गिरकर 6.8 फीसदी तक सीमित हो सकती है.

इसके अलावा, जीडीपी में सबसे अधिक योगदान देने वाले क्षेत्र जैसे मैन्युफैक्चरिंग, व्यापार और होटल, वित्तीय सेवाएं और रियल एस्टेट भी धीमी वृद्धि का सामना कर सकते हैं. शहरी खपत पर भी इसका असर पड़ रहा है.

महंगाई ने शहरी गरीबों की क्रय शक्ति को कमजोर कर दिया है, जिससे उनकी खपत में गिरावट दर्ज की जा रही है. यह सब मिलकर अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर सकते हैं.

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल और उससे जुड़े वैश्विक व्यापार के अनिश्चित भविष्यने भारतीय अधिकारियों पर आर्थिक सुधार की मांग बढ़ा दी है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिसंबर में उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों के साथ कई बैठकें कीं. इन बैठकों में विकास दर को बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं के हाथ में ज्यादा पैसा देने और टैक्स-टैरिफ में कटौती जैसे सुझाव दिए गए.

स्टॉक मार्केट और निवेशकों की चिंता

सितंबर से नवंबर के बीच बेंचमार्क निफ्टी 50 इंडेक्स में 12 फीसदी की गिरावट हुई. हालांकि, 2024 के अंत तक यह 8.7 फीसदी की वृद्धि के साथ बंद हुआ लेकिन यह पिछले साल की 20 फीसदी की वृद्धि से काफी कम है.

पिछले महीने जारी आर्थिक सर्वे में कहा गया, "केंद्रीय बैंक की सख्त मौद्रिक नीति भी मांग को प्रभावित कर रही है."

दिसंबर में, प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक संजय मल्होत्रा को भारतीय रिजर्व बैंक का नया गवर्नर नियुक्त किया. उन्होंने शक्तिकांत दास की जगह ली, जिन्हें एक और कार्यकाल मिलने की संभावना जताई जा रही थी. मल्होत्रा ने हाल ही में कहा, "केंद्रीय बैंक एक ऊंचे विकास पथ का समर्थन करने का प्रयास करेगा."

महामारी के बाद के प्रयास

महामारी के दौरान, मोदी सरकार ने बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाया और गैरजरूरी खर्चों को सीमित रखा. इससे जीडीपी तो बढ़ी लेकिन वेतन और खपत में सुधार नहीं हुआ.

सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस के वरिष्ठ फेलो संजय कथूरिया कहते हैं, "भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह  6.5-7.5 फीसदी की विकास दर बनाए रख पाएगी या 5-6 फीसदी तक गिर जाएगी."

माधवी अरोड़ा कहती हैं कि भारत फिलहाल एक ऊहापोह की स्थिति में है, जहां लोग खर्च नहीं कर रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक रोजगार में सुधार नहीं होता और वेतन वृद्धि धीमी रहती है.

कर और टैरिफ में बदलाव की योजना

समाचार एजेंसी रायटर्स ने पिछले महीने बताया था कि सरकार कुछ तबकों के लिए टैक्स कम करने और अमेरिका से आयातित कृषि और अन्य उत्पादों पर टैरिफ कम करने की योजना बना रही है. यह कदम ट्रंप के साथ व्यापार समझौता करने के उद्देश्य से उठाए जा रहे हैं.

कथूरिया ने कहा, "भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में गहराई से जुड़ने के लिए टैरिफ को गंभीरता से सरल बनाना चाहिए." उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को अमेरिकी प्रशासन के कदम उठाने से पहले खुद कुछ सकारात्मक पहल करनी चाहिए.

कारोबार के मामले में भारत के दोस्त नहीं हैं ट्रंप

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रुपया हाल के हफ्तों में कई बार गिरकर अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया. 2024 में रुपये ने लगातार सातवें साल की गिरावटदर्ज की.

अर्थशास्त्री कहते हैं कि भारत को अपने निर्यात को और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए रुपये को और गिरने देना होगा. रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डिवेलपिंग कंट्रीज के प्रमुख सचिन चतुर्वेदी कहते हैं, "भारत को अमेरिका के लिए खुद से कुछ रियायतें घोषित करनी चाहिए, बजाय इसके कि नई प्रशासनिक नीतियों का इंतजार करे."

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)

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