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भारत में मॉनसून की देरी हुई दूर: रिपोर्ट

२८ जून २०२४

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मॉनसून की बारिश भारत के तीन-चौथाई हिस्से तक पहुंच गई है और समय से पूरे देश को छू लेने वाली है. यह बारिशें धान, कपास, सोया, सोयाबीन, गन्ना आदि जैसी फसलों के लिए बेहद जरूरी होती हैं.

दिल्ली में बारिश में भीगते लोग, वाहन और पशु
दिल्ली में बारिश एक तरफ हीटवेव से राहत तो दूसरी तरफ जलभराव और हादसे लाई हैतस्वीर: Arun Sankar/AP Photo/picture alliance

मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक समाचार एजेंसी को बताया है कि मॉनसून के बादल देश के तीन-चौथाई इलाके पर छा गए हैं. इस साल मॉनसून की शुरुआत और फिर आगे बढ़ने में देर हुई थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मॉनसून की बारिश जल्द ही समय रहते पूरे भारत को ढक लेगी.

अपना नाम ना बताने की शर्त पर मौसम विभाग के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, "मॉनसून तेजी से उत्तर भारत में फैल रहा है और पूरे देश तक समय पर पहुंच जाएगा." 

रफ्तार पकड़ती बारिश

मौसम विभाग ने एक आधिकारिक बयान में बताया कि गुरुवार को मॉनसून राजस्थान के और ज्यादा इलाकों, मध्य प्रदेश के अधिकांश इलाकों, उत्तर प्रदेश और बिहार के अतिरिक्त इलाकों और लगभग पूरे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में फैल गया.

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विभाग के डाटा के मुताबिक एक जून के बाद से देश में 19 प्रतिशत कम बारिश हुई थी, क्योंकि मॉनसून की आगे बढ़ने की गति कम हो गई थी. दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को छोड़ कर लगभग पूरे देश में बारिश की कमी देखी गई. उत्तरपश्चिमी भारत के कई इलाकों में तो भीषण हीटवेव चल रही थी, जिसमें कई लोगों की जान भी चली गई.

लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. एक और मौसम अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि बारिश रफ्तार पकड़ रही है और अगले 15 दिनों में देश के अधिकांश हिस्सों में अच्छी बारिश होगी, जिससे गर्मियों की फसलों को लगाने में मदद मिलेगी. अधिकारी ने यह भी बताया कि बारिश की मौजूदा कमी जुलाई के मध्य तक काफी दूर हो जाएगी. 

मॉनसून की बारिश भारत के आर्थिक विकास के लिए, विशेष रूप से खेती के लिए, बेहद जरूरी होती है. यह एक जून के आस पास दक्षिण भारत से शुरू होती है और फिर पश्चिमी, पूर्वी और मध्य भारत होते हुए लगभग आठ जुलाई तक पूरे देश पर छा जाती है.

भारत को खेती के लिए और जलाशयों को फिर से भरने के लिए जिस बारिश की जरूरत होती है, उसका लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मॉनसून से आता हैं. इसी बारिश की बदौलत किसान धान, कपास, सोयाबीन, गन्ना आदि जैसी फसलें लगाते हैं.

बारिश के बाद त्रासदी

लेकिन मानसून के आते ही दूसरी समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं जो प्रशासनिक नाकामी की पोल खोल देती हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जैसे शहर भी थोड़ी सी बारिश सह नहीं पाते और जलभराव, लंबे ट्रैफिक जाम जैसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं.

दिल्ली हवाई अड्डे पर हुए हादसे को लेकर विपक्ष ने जिम्मेदारी तय करने की मांग की हैतस्वीर: AP Photo/picture alliance

गुरुवार की बारिश में भी दिल्ली का यही हाल हुआ. जगह जगह से जलभराव, पेड़ों के गिरने और अन्य नुकसान की खबरें आईं. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल नंबर एक के बाहर छत का एक हिस्सा ढह गया, जिसके नीचे दब कर कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए.

जलवायु परिवर्तन का बारिश पर असर

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कम से कम आठ लोग घायल हो गए. टर्मिनल से सभी उड़ानें भी रद्द कर की गईं. घायल लोगों को अस्पताल ले जाया गया है. नागरिक उड्डयन मंत्री के राममोहन नायडू ने एक्स पर लिखा कि बचाव कार्य अभी भी चल रहा है.

विपक्ष ने केंद्र सरकार को निशाना बनाते हुए सवाल उठाया है कि इस त्रासदी की जिम्मेदारी कौन लेगा. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 मार्च को इस टर्मिनल का उद्घाटन किया था. खरगे ने बीते 10 सालों में इसी तरह ढह जाने वाले ढांचों के बारे में भी बताया.

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