भारत की निकहत जरीन ने 52 किलो भार वर्ग में महिलाओं की वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रचा है. उन्होंने अपने मुक्कों से मेडल ही नहीं जीता बल्कि उनके खेल के कपड़ों पर ऊंगली उठाने वालों पर भी मुक्का जड़ा है.
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25 साल की निकहत जरीन ने तुर्की के इस्तांबुल में महिला विश्व चैंपियनशिप के फ्लाइवेट (52 किलोग्राम) वर्ग में थाईलैंड की खिलाड़ी जिटपॉन्ग जुटामास को 5-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीता है. इस तरह से वह नई चैंपियन बन गईं हैं.निकहत गोल्ड मेडल जीतने वाली पांचवीं भारतीय महिला हैं. उनसे पहले एमसी मैरीकॉम ने छह बार गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. मैरीकॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में चैंपियनशिप जीती थी. उसके बाद सरीता देवी 2006, जेन्नी आरएल 2006 और लेखा केसी 2006 में खिताब अपने नाम किया.
निकहत की कहानी
निकहत ने चार साल बाद भारत को महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक दिलाया है. निजामाबाद (तेलंगाना) में जन्मी निकहत की कहानी संघर्ष भरी है. उन्होंने बॉक्सिंग के रिंग में तो संघर्ष किया ही है बल्कि अपने रढ़िवादी रिश्तेदारों से भी मुकाबला किया. उनके पिता मोहम्मद जमील एक जमाने में फुटबॉल और क्रिकेट के खिलाड़ी थे. उनकी चार बेटियां हैं और वे चाहते थे कि उनकी एक बेटी खिलाड़ी बने.
तीसरे नंबर की बेटी निकहत के लिए पिता ने एथलेटिक्स को चुना और निकहत ने इसमें बढ़िया प्रदर्शन किया. लेकिन एक चाचा की सलाह पर बॉक्सिंग रिंग में उन्होंने 14 साल की उम्र में उतरने का फैसला किया और वर्ल्ड यूथ बॉक्सिंग चैंपियन का ताज पहना. इसी के साथ निकहत का सफर शुरू हो गया.
मेसी रहे सबसे कमाऊ खिलाड़ी
2022 में दुनिया के जो दस सबसे धनी खिलाड़ी हैं, उनके पास कुल मिलाकर 90 करोड़ डॉलर यानी 70 अरब रुपये हैं. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक खिलाड़ियों की अनुमानित लगभग कमाई रही...
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10 अरब रुपये
लियोनेल मेसी, फुटबॉलर, स्पेन
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9.4 अरब रुपये
लेब्रॉन जेम्स, बास्केटबॉल, अमेरिका
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8.9 अरब रुपये
क्रिस्टियानो रोनाल्डो, फुटबॉल, पुर्तगाल
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7.3 अरब रुपये
नेमार, फुटबॉल, ब्राजील
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7.2 अरब रुपये
स्टीफन करी, बास्केटबॉल, अमेरिका
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7.1 अरब रुपये
केविन ड्यूराँ, बास्केटबॉल, अमेरिका
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7 अरब रुपये
रॉजर फेडरर, टेनिस, स्विट्जरलैंड
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6.9 अरब रुपये
कनेलो अल्वारेज, बॉक्सिंग, मेक्सिको
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6.5 अरब रुपये
टॉम ब्रैडी, अमेरिकन फुटबॉल, अमेरिका
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6.2 अरब रुपये
यानिस आंतेतकुंपो, ग्रीस, बास्केटबॉल
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निकहत के पिता जमील ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा, "विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतना एक ऐसी चीज है जो मुस्लिम लड़कियों के साथ-साथ देश की हर लड़की को जीवन में बड़ा हासिल करने का लक्ष्य रखने के लिए प्रेरणा का काम करेगी. एक बच्चा, चाहे वह लड़का हो या लड़की, उसे अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है और निकहत ने अपना रास्ता खुद बनाया है."
निकहत की दो बड़ी बहनें डॉक्टर हैं. जमील आगे कहते हैं, "मुझे निकहत की ट्रेनिंग के साथ-साथ उसकी छोटी बहन, जो बैडमिंटन खेलती है, उसके प्रशिक्षण पर समय देना पड़ता था. जब निकहत ने हमें बॉक्सर बनने की अपनी इच्छा के बारे में बताया, तो हमारे मन में कोई झिझक नहीं थी. लेकिन कभी-कभी हमारे रिश्तेदार या दोस्त बोलते कि एक लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शॉर्ट्स पहनना पड़े. लेकिन हम जानते थे कि निकहत जो चाहेगी, हम उसके सपने को सच करने के लिए समर्थन करेंगे."
निकहत की मां परवीन सुलताना ने कहा कि उनकी बेटी बहुत आगे तक जाएगी और एक दिन ओलंपिक में भाग लेगी. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निकहत जरीन को स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई दी है. उन्होंने मनीषा मौन और परवीन हुड्डा को कांस्य पदक जीतने पर बधाई दी है.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने निकहत जरीन को बधाई देते हुए कहा, "यह गर्व का क्षण है कि निकहत राज्य सरकार के प्रोत्साहन से बॉक्सिंग में विश्व चैंपियन बनकर खड़ी हुई." चैंपियनशिप जीतने के बाद निकहत काफी भावुक हो गईं और खुशी से रिंग में उछलने लगी. जुटामास के खिलाफ यह निकहत की दूसरी जीत है. इससे पहले उन्होंने 2019 में थाईलैंड ओपन में भी शिकस्त दी थी.
चपला, चंचला, चोलिता
दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में महिलाओं की कुश्ती बड़ी मशहूर है. स्कर्ट पहन कर कुश्ती करने वाली 'चोलिता' अपने प्रतिद्वंद्वी को ही नहीं समाज में मौजूद कई तरह के भेदभाव को भी पटखनी दे रही हैं.
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WWE से भी पुरानी
बोलिविया में महिलाओं की इस फ्री स्टाइल रेसलिंग को 'फाइटिंग चोलिताज' कहा जाता है. माना जाता है कि बोलिविया के अल आल्तो इलाके में इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई.
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परंपरागत पोशाक
कुश्ती के खास कपड़ों के उलट फाइटिंग चोलिता अपनी पारंपरिक पोशाक पहन कर लड़ती हैं. ग्रीक-रोमन शैली की यह कुश्ती लड़ने वाली महिलाएं लात और घूसों से कोई परहेज नहीं करतीं.
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बेदम करने तक
लुचा लिब्रे समुदाय की महिलाओं के बीच होने वाली इस फाइट में प्रतिद्वंद्वी को बेदम करना होता है. मुकाबला चित करने या फिर प्रतिद्वंद्वी के हार मानने पर ही खत्म होता है.
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अखाड़े के बाहर भी अखाड़ा
मुकाबले के दौरान अगर कोई फाइटर अखाड़े से बाहर भी चली जाए तो उसका पीछा किया जाता है और खास सीमा के अंदर उसे पटखनी दी जाती है. अगर कोई मैदान छोड़ दे तो उसे हारा घोषित किया जाता है.
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कहां फंस गया
कभी कभार लड़ाई के दौरान महिलाएं इतनी आक्रामक हो जाती हैं कि वह पुरुष रेफरी को भी नहीं बख्शती हैं. कई लोगों का मानना है कि अमेरिका की WWE रेसलिंग बोलिविया की फाइटिंग चोलिताज की नकल है.
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संडे के संडे
इस फ्री स्टाइल रेसलिंग के लड़ाकों को 'टाइटन्स ऑफ द रिंग' कहा जाता है. इसमें महिला और पुरुषों की अलग अलग श्रेणी होती है. मुकाबले हर इतवार होते हैं.
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जीत की हुंकार
विजयी महिला को करीब 30 डॉलर तक का ईनाम मिलता है. रेसलिंग करने वाली ज्यादातर महिलाएं सोमवार से शनिवार तक दूसरे काम करती हैं.
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दशकों चला अपमान
बोलिविया की मूल निवासी यह महिलाएं अपने लंबी स्कर्ट, खास हैट और बड़े गहनों वाले पहनावे के कारण दूर से पहचान में आ जाती थीं. कई दशकों तक चोलिता को कई सार्वजनिक जगहों पर जाने की मनाही रही.
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पहलवानी से सशक्तिकरण
रेसलिंग के कारण चोलिता को एक नई पहचान मिली. पहले जिन्हें घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार का शिकार बनना पड़ता था, आयमारा और ऐसे मूल समुदायों की महिलाएं रेसलर बन कर अपने को सशक्त बना रही हैं.
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ऐसे पता चली कहानी
फाइटिंग चोलिताज नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के जरिये बोलिविया की यह कहानी दुनिया के सामने आई. 2006 में बनी उस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को सम्मानित भी किया गया.