बीएसपी सांसद दानिश अली ने बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी पर संसद के अंदर उन्हें गालियां देने और 'आतंकवादी' कहने का आरोप लगाया है. विपक्ष कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा है.
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बिधूड़ी के भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर विपक्ष के कई सांसदों ने साझा किया है. दानिश अली ने स्पीकर ओम बिरला को लिखे अपने पत्र की तस्वीर भी 'एक्स' पर साझा की है, जिसमें इन शब्दों का जिक्र किया गया है. अली ने स्पीकर से इस मामले की जांच कराने और इसे विशेषाधिकार समिति को सौंपने की अपील की है.
अली ने "एक्स" पर आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि उनका 'कैडर' जब एक सांसद को संसद में इस तरह के "शब्दों से अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता तो वो आम मुसलमानों के साथक्या करता होगा? यह सोच कर भी रूह कांप जाती है."
लोक सभा स्पीकर को चुनौती
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि स्पीकर ने बिधूड़ी के भाषण के उन अंशों को संसदीय रिकॉर्ड से काटने के आदेश दे दिए हैं. हालांकि बिधूड़ी के खिलाफ किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई की कोई घोषणा नहीं की गई है.
विपक्ष के कई नेताओं ने बिधूड़ी की निंदा की है और कहा है कि विपक्ष के सांसदों को सदन से आसानी से निलंबित कर दिया जाता है लेकिन सत्ता पक्ष के सांसदों के खिलाफ मांग करने के बावजूद भी कार्रवाई नहीं की जाती.
तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा ने बिरला को चुनौती देते हुए कहा कि वो चाहें तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन उन्हें यह बताना होगा कि वो बिधूड़ी के खिलाफ क्या कार्रवाई कर रहे हैं.
बीते कुछ महीनों में लोकसभा और राज्यसभा दोनों से ही विपक्ष के कई सांसदों को अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत निलंबित किया जा चुका है. अगस्त में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को सदन को "डिस्टर्ब" करने के लिए निलंबित कर दिया गया था.
निलंबन का लंबा सिलसिला
उससे पहले आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था. उन पर बीजेपी, बीजेडी और एआईएडीएमके के चार सांसदों ने एक प्रस्ताव में बिना उनकी अनुमति के उनका नाम जोड़ने का आरोप लगाया था.
क्या भारत लोकतंत्र के लिए परिपक्व नहीं है?
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2022 में 26 जुलाई को राज्यसभा में महंगाई पर तुरंत चर्चा करवाने की मांग कर रहे 19 सांसदों को एक साथ निलंबित कर दिया गया था, जो एक नया रिकॉर्ड था. उससे पहले के सालों में भी बड़ी संख्या में विपक्ष के सांसदों को संसद से निलंबित किया गया है.
दोनों सदनों में अध्यक्ष को यह अधिकार होता है कि वो सदन की कार्रवाई में बाधा डालने को आधार बना कर किसी सदस्य का खुद ही नाम ले सकते हैं और ध्वनि मत से प्रस्ताव पारित करा कर उसे निलंबित कर सकते हैं. यह प्रस्ताव संसदीय कार्य मंत्री भी दे सकते हैं. तब यह प्रस्ताव अध्यक्ष की जगह सरकार की तरफ से लाया गया माना जाता है.
भारत में संसद से किस किस को निकाला गया
संसद से किसी सांसद का निष्कासन एक बेहद गंभीर मामला है, लेकिन ऐसा नहीं है कि ऐसा भारत में कभी हुआ ना हो. जानिए कब, क्यों और किन सांसदों को संसद से निष्कासित किया गया.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
निष्कासन
भारत में सांसदों का संसद से निष्कासन एक बेहद दुर्लभ घटना है. संसद भारत के लोकतंत्र का केंद्र है इसलिए संविधान लाखों मतदाताओं द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को कई तरह की सुरक्षा और विशेषाधिकार देता है. अनुशासनात्मक कार्रवाई से सुरक्षा भी ऐसा ही एक विशेषाधिकार है, लेकिन जब संसद के नियमों और मर्यादा के गंभीर उल्लंघन का मामला हो तब संसद निष्कासन का कदम भी उठाती है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
शुरुआत ही बनी मिसाल
शुरुआत आजादी के तुरंत बाद ही हो गई थी. आजादी के बाद गठित हुई अस्थायी संसद के सदस्य कांग्रेस नेता हुच्चेश्वर गुरुसिद्ध मुद्गल पर 1951 में आरोप लगा था कि उन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिए थे. एक संसदीय समिति के आरोपों की पुष्टि करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मुद्गल को निष्कासित करने का प्रस्ताव लाए, लेकिन मुद्गल ने प्रस्ताव पारित होने से पहले ही संसद से इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: Indian Rail Bengal
आपातकाल के दौरान
1976 में आपातकाल के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी जन संघ के सदस्य थे. वो आपातकाल के खिलाफ एक सक्रीय कार्यकर्ता थे जैसी वजह से उन्हें विदेश में "भारत विरोधी प्रोपगैंडा" फैलाने के लिए राज्य सभा से निष्कासित कर दिया गया था.
तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMA Wire/IMAGO
पूर्व प्रधानमंत्री निष्कासित
आपातकाल खत्म होने के बाद जब चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार बनी तब नवंबर 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर लोक सभा में पूछे गए एक सवाल का जवाब देने के लिए जानकारी इकठ्ठा करने गए अधिकारियों को धमकाने और उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने के लिए लोक सभा से निष्कासित कर दिया गया था. हालांकि एक महीने बाद लोक सभा ने ही उनका निष्कासन वापस भी ले लिया था.
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एक प्रकरण, 11 सांसद
दिसंबर 2005 में 54 साल पुराने एच जी मुद्गल जैसा मामला दोबारा सामने आया. एक टीवी चैनल द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में कई पार्टियों के 11 सांसद संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते हुए नजर आए. इनमें से 10 लोक सभा के सदस्य थे और एक राज्य सभा का. सभी को उनके सदनों से निष्कासित कर दिया गया.
तस्वीर: Soumyabrata Roy/NurPhoto/IMAGO
सांसद निधि में भ्रष्टाचार
2005 में ही एक और स्टिंग ऑपरेशन में सात सांसद सांसद निधि से पैसे जारी करवाने के लिए ठेकेदारों इत्यादि से पैसे लेने की चर्चा करते नजर आए. इसमें भी लोक सभा और राज्य सभा दोनों के सदस्य शामिल थे. लोक सभा के सदस्यों को चेतावनी दी है लेकिन राज्य सभा के तत्कालीन सदस्य साक्षी महाराज को निष्कासित कर दिया गया.