यूक्रेन युद्ध पूरा एक साल खिंच गया है. भारत युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं है लेकिन इस एक साल में भारत के रुख ने वैश्विक व्यवस्था में उसकी स्थिति को कैसा आकार दिया है?
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यूक्रेन युद्ध के इतने लंबे समय तक चलते रहने का असर सिर्फ रूस, यूक्रेन और यूरोप पर ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा है. रूस और यूक्रेन में जानमाल के नुकसान के अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है और साथ ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कई समीकरण बदल गए हैं.
भारत ने पिछले एक साल में कई बार युद्ध की निंदा की है लेकिन यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की आलोचना नहीं की है. संयुक्त राष्ट्र में जब भी रूस के खिलाफ पश्चिमी देश कोई बड़ा प्रस्ताव ले कर आए तो भारत ने प्रस्ताव पर मतदान की प्रक्रिया से ही खुद को बाहर कर लिया.
बढ़ा रूस के साथ व्यापार
पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए लेकिन भारत ने रूस से कच्चे तेल और अन्य सामान की खरीद बढ़ा दी. रूस ने भी भारत को तेल सस्ते दामों पर दिया. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एक साल में भारत में रूस से आयातित होने वाले तेल की मात्रा में 16 गुना का उछाल आया है. लेकिन इस व्यापार से ज्यादा दिलचस्प रही भारत द्वारा अपनी स्थिति की अभिव्यक्ति.
जानकार इसे बेहद महत्वपूर्ण मान रहे हैं. नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव का मानना है कि यूक्रेन युद्ध ने भारत की कूटनीति के लिए सही मायनों में एक ऐसे दौर की शुरुआत की है जिसमें भारत ने खुद को कई तरह के हितों के बीच खड़ा पाया है.
राव ने डॉयचे वेले को बताया, "ऐसे में निष्पक्ष रह कर भारत को वैश्विक साउथ की आवाज बनने की विश्वसनीयता मिली है. इससे भारत को गुटनिरपेक्षता की जड़ों वाले लोकतंत्र की अपनी छवि को और तेज करने में मदद मिली है. साथ ही इससे भारत को पश्चिम के साथ सहयोग के विस्तार का भी मौका मिला है. और इन सब के बीच में भारत आज भी रूस का विश्वसनीय दोस्त और साझेदार बना हुआ है."
पश्चिम के साथ पेचीदा रहा रिश्ता
इस एक साल में भारत का रवैया पश्चिमी देशों को काफी असहज करने वाले रहा और उन देशों ने कभी नरम तो कभी हलके गरम अंदाज में भारत को अपनी असहजता दिखाने की कोशिश भी की. लेकिन भारत ने पश्चिमी खेमे के हिसाब से ना चलने की अपनी दृढ़ता को बिना झिझके सामने रखा.
पश्चिमी देशों ने जब कहा कि रूस से व्यापार कर भारत रूस की लड़ाई को वित्त पोषित कर रहा है तब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है उससे ज्यादा गैस यूरोप एक दिन में रूस से खरीदता है.
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इसके अलावा सितंबर, 2022 में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन की शीर्ष बैठक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "यह युद्ध का युग नहीं है" कहना भी एक महत्वपूर्ण संदेश रहा.
विदेश मामलों के जानकार और हार्ड न्यूज पत्रिका के संपादक संजय कपूर कहते हैं कि भारत की सफलता यह है कि ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ साथ वो भी रूस और पश्चिमी खेमों के बीच में खड़ा रह सका है.
उन्होंने बताया, "भारत ने जो स्वतंत्र रुख अपनाया उससे दुनिया भारत को ऐसी नजर से देख रही है जैसा पहले नहीं था...यूरोपीय नेता जो रूस से तेल खरीदने के लिए भारत से नाराजगी दिखा रहे हैं वो ये नहीं जानते कि भारतीय रिफाइनरियां उसी रूसी तेल को अमेरिका और ब्रिटेन को बेच रही हैं.
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बदल रहा है पश्चिम का नजरिया
और अब स्थिति यह है कि अमेरिका और यूरोप के नेता संकेत दे रहे हैं कि उन्होंने भारत की स्थिति से समझौता कर लिया है. अमेरिका और जर्मनी के नेताओं ने कह दिया है कि उन्हें भारत के रूसी तेल खरीदने से कोई समस्या नहीं है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने हाल ही में म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में जयशंकर के ही उस बयान को दोहराया जिसमें जयशंकर ने कहा था कि यूरोप को अपनी इस सोच को बदलना होगा कि उसकी समस्या सारी दुनिया की समस्या है लेकिन दुनिया की कोई दूसरी समस्या यूरोप की समस्या नहीं है.
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स्वस्ति राव का मानना है कि अमेरिका को दिख रहा है कि भारत द्वारा सस्ते दामों पर रूस का तेल खरीदने से रूस की कमाई घट रही है. उन्होंने बताया, "रूसी तेल अगर अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार से अचानक गायब हो जाएगा तो तेल के दामों में बहुत अस्थिरता आ जाएगी. दाम ज्यादा बढ़ जाएंगे तो यूरोप भी अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के नए रास्ते समय रहते नहीं ढूंढ पाएगा."
कुछ अन्य जानकार भारत की भूमिका की सीमाएं भी देख रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा का कहना है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से भारतीय विदेश नीति ने अपनी सामरिक स्वायत्तता का दृढ़तापूर्वक प्रदर्शन किया.
भविष्य की तैयारी
मनीकंट्रोल वेबसाइट पर छपे एक लेख में सचदेवा ने लिखा, "रूस और पश्चिम दोनों भारत को अपनी तरफ देखना चाहेंगे, विशेष रूप से तब जब भारत के पास जी20 की अध्यक्षता है. इसके आगे इस संघर्ष में भारत की भूमिका सीमित ही होने की संभावना है."
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लेकिन जैसे जैसे युद्ध खिंचता चला जा रहा है, स्थितियां बदलती जा रही हैं और अब सभी देशों की भविष्य की संभावनाओं पर भी नजर है. स्वस्ति राव मानती हैं कि युद्ध का अंत जो भी हो, इतना तय है कि रूस की शक्ति कम जरूर होगी, और यह भारत के सामरिक हित में नहीं है.
उन्होंने बताया, "भारत चीन के प्रति अपनी चिंताओं का रूस के जरिए संतुलन करता आया है. लेकिन अगर रूस और कमजोर हुआ तो उसके चीन पर निर्भरता बढ़ जाएगी और फिर वो भारत के लिए यह भूमिका नहीं निभा पाएगा. रूस के कमजोर होने से भारत की रक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा क्योंकि भारत अभी भी तरह तरह के हथियारों और सैन्य उपकरण के लिए रूस पर निर्भर है."
राव कहती हैं कि इस वजह से भारत अपने रक्षा आयात में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है और इसके अलावा भारत अलग अलग सामरिक चर्चाओं के प्रति भी खुला रवैया रखने की कोशिश कर रहा है. इसके सबसे प्रत्यक्ष उदाहरणों में से भारत की नाटो के साथ पहली बार होने वाली औपचारिक बातचीत है, जिसका मार्च में आयोजन किया जाना है.
यूक्रेन युद्ध का एक साल
24 फरवरी, 2022 की सुबह रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस युद्ध की वजह से हजारों सैनिकों और नागरिकों की मौत हो चुकी है. तस्वीरों के जरिए देखिए कौन कौन से मोड़ लिए यूक्रेन युद्ध ने.
तस्वीर: Anatolii Stepanov/AFP/Getty Images
करोड़ों के लिए एक काला दिन
24 फरवरी, 2022 की सुबह यूक्रेन की राजधानी कीव में कई लोग इस तरह के धमाकों की आवाज पर नींद से जागे. रूस ने एक व्यापक हमले की शुरुआत कर दी थी. यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक देश द्वारा दूसरे देश पर सबसे बड़ा हमला था. यूक्रेन में तुरंत मार्शल लॉ लगा दिया गया. हमलों में सिविलियन स्थानों को भी निशाना बनाया गया और जल्द ही मौत का सिलसिला शुरू हो गया.
तस्वीर: Ukrainian President s Office/Zuma/imago images
बेरहम गोलीबारी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक "विशेष सैन्य अभियान" की बात की और कहा कि उनका लक्ष्य है यूक्रेन के डोनियेत्स्क और लुहांस्क इलाकों पर कब्जा कर लेना. डोनियेत्स्क के मारियोपोल शहर में लोगों को कई हफ्तों तक बेसमेंटों में छिपे रहना पड़ा. कई तो मलबे के नीचे ही दब कर मर गए. मार्च में एक रूसी हवाई हमला तो एक ऐसे थिएटर पर किया गया था जहां हजारों लोगों ने शरण ली हुई थी.
तस्वीर: Nikolai Trishin/TASS/dpa/picture alliance
पलायन
यूक्रेन युद्ध ने एक एक ऐसे जबरन उत्प्रवास को जन्म दिया है जो यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी संस्था के मुताबिक 80 लाख से भी ज्यादा लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं. अकेले पोलैंड ने ही 15 लाख लोगों को लिया है, जो यूरोपीय संघ के किसी भी सदस्य देश से ज्यादा बड़ी संख्या है.
तस्वीर: Anatolii Stepanov/AFP
बूचा की त्रासदी
कुछ ही हफ्तों के बाद यूक्रेन की सेना देश के उत्तर और उत्तर-पूर्वी इलाकों में से रूसी सेना को खदेड़ने में सफल रही. राजधानी कीव को कब्जाने की रूस की योजना विफल हो गई. इन इलाकों के मुक्त होने के बाद कथित रूसी क्रूरता की हदें सामने आने लगीं. कीव के पास बसे शहर बूचा से यातनाएं दे कर मारे गए लोगों के शवों की तस्वीरें पूरी दुनिया में देखी गईं. अधिकारियों ने 461 मौतें दर्ज कीं.
तस्वीर: Carol Guzy/ZUMA PRESS/dpa/picture alliance
क्रामातोर्स्क में मौत और बर्बादी
डोंबास में मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ गई. अधिकारियों ने नागरिकों को सुरक्षित इलाकों में चले जाने के लिए कहा लेकिन रूसी मिसाइलों ने क्रामातोर्स्क जैसे शहरों में जाते हुए लोगों को भी निशाना बनाया. अप्रैल में क्रामातोर्स्क के रेलवे स्टेशन पर सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचने की उम्मीद लगाए 61 से भी ज्यादा लोग मारे गए और 120 लोग घायल हो गए.
रूसी हवाई हमलों के बीच यूक्रेन में करोड़ों लोगों ने खुद को बचाने के लिए किसी न किसी जगह पर शरण ली है. युद्ध के मोर्चे के करीब रहने वाले लोगों के लिए बेसमेंट उनके दूसरे घर की तरह हो गए. बड़े शहरों में रहने वाले लोगों ने भी मिसाइलों से बचने के लिए अलग अलग स्थानों पर शरण ली है. कीव (तस्वीर में) और खारकीव में सबवे स्टेशन सुरक्षित ठिकानों की भी भूमिका अदा कर रहे हैं.
तस्वीर: Dimitar Dilkoff/AFP/Getty Images
जापोरिशिया में परमाणु खतरा
हमले के बाद के शुरुआती हफ्तों में ही रूस ने यूक्रेन के दक्षिणी और पूर्वी इलाकों के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था. जंग दक्षिणपूर्व में स्थित जापोरिशिया परमाणु संयंत्र तक भी पहुंची और वो तब से रूसी नियंत्रण में है. अंतरराष्ट्रीय एटॉमिक ऊर्जा एजेंसी ने संयंत्र के पास विशेषज्ञों को भेजा और उसके आस पास के इलाकों में एक सेफ जोन घोषित किए जाने की मांग की.
तस्वीर: Str./AFP/Getty Images
मारियोपोल में हताशा
रूसी सेना ने मारियोपोल पर तीन महीनों तक कब्जा बनाए रखा और गोलीबारी और रसद को पहुंचने से रोक कर दिखा. आसोव्स्टाल स्टील संयंत्र को शहर में यूक्रेन के आखिरी दुर्ग के रूप में देखा जा रहा था. वहां हजारों सैनिकों और नागरिकों ने शरण ली हुई थी. लेकिन मई में लंबे चले एक हमले के बाद रूसी सैनिकों ने इस संयंत्र को भी कब्जे में ले लिया और 2,000 से भी ज्यादा लोगों को बंदी बना लिया.
तस्वीर: Dmytro 'Orest' Kozatskyi/AFP
प्रतिरोध का प्रतीक
रूस ने ब्लैक सी के स्नेक द्वीप को युद्ध के पहले दिन ही अपने कब्जे में ले लिया था. यूक्रेन और रूसी सैनिकों के बीच बातचीत की एक रिकॉर्डिंग इंटरनेट पर वायरल हो गई थी. उसमें यूक्रेनी सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था. अप्रैल में यूक्रेनी सैनिकों ने दावा किया कि उन्होंने मॉस्क्वा नाम के रूसी युद्धपोत को डुबा दिया है. जून में यूक्रेन ने कहा कि उसने रूसियों को द्वीव से खदेड़ दिया है.
तस्वीर: Ukraine's border guard service/AFP
मरने वालों की संख्या स्पष्ट नहीं
युद्ध में कितने लोग मारे गए यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कम से कम 7,200 नागरिक मारे जा चुके हैं और 12,000 घायल हुए हैं. यह संख्या इससे कहीं ज्यादा भी हो सकती है. मारे गए यूक्रेनी सैनिकों की संख्या भी स्पष्ट नहीं है. दिसंबर में यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोदोल्याक ने अनुमान लगाया था कि यह संख्या 13,000 तक जा सकती है. निष्पक्ष आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
तस्वीर: Raphael Lafargue/abaca/picture alliance
यूक्रेन के लिए अहम मोड़
यूक्रेन को पश्चिमी हथियार दिए जाना युद्ध के शुरुआती दिनों से काफी चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन शुरू में कीव को सिर्फ कुछ ही हथियार मिले थे. हीमार्स नाम के अमेरिकी रॉकेट लॉन्चर से मदद जरूर मिली. इनकी वजह से यूक्रेन की सेना ने रूसी तोपों को गोला बारूद की सप्लाई बंद कर देने में मदद की है. संभव है कि उनका यूक्रेन के सफल जवाबी हमलों में भी योगदान रहा है.
तस्वीर: James Lefty Larimer/US Army/Zuma Wire/IMAGO
मुक्त कराए जाने पर राहत
सितंबर के शुरू में यूक्रेन की सेना ने खारकीव में एक सफल जवाबी हमला किया. हैरान रूसी फौजें तुरंत वापस लौट गईं और अपने पीछे उपकरण, गोला बारूद और कथित युद्ध अपराधों के सबूत भी छोड़ गईं. यूक्रेन की सेना दक्षिण में खेरसों को भी आजाद कराने में सफल रही और वहां रहने वाले लोगों ने यूक्रेनी सिपाहियों के आने पर उनका खूब स्वागत किया.
तस्वीर: Bulent Kilic/AFP/Getty Images
क्रीमिया के पुल पर धमाका
अक्टूबर के शुरू में कर्च स्ट्रेट से होकर क्रीमिया तक पहुंचने वाले रूस द्वारा बनाए गए पुल पर एक बड़ा धमाका हुआ और पुल आंशिक रूप से ध्वस्त हो गया. रूस का दावा है कि धमाका यूक्रेन से आ रहे विस्फोटकों से लदे एक ट्रक की वजह से हुआ, लेकिन यूक्रेनी अधिकारियों ने ऐसे किसी हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
ऊर्जा व्यवस्था पर बड़े हमले
क्रीमिया पुल पर हमले के कुछ ही दिनों बाद रूस ने यूक्रेन की ऊर्जा व्यवस्था पर पहली बार बड़े पैमाने पर हमला किया. लवीव से लेकर खारकीव तक इलाकों में बिजली चली गई. तब से इस तरह के हमले आम हो गए हैं. ऊर्जा संयंत्रों और अन्य सार्वजनिक संपत्ति को हुए भारी नुकसान की वजह से यूक्रेन में लोगों को लगभग रोज बिजली में कटौती और पानी की कमी का सामना करना पड़ा है.
तस्वीर: Genya Savilov/AFP/Getty Images
यूरोपीय एकीकरण
यूक्रेन के हालात और युद्ध की जानकारी देने वाले राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के रोज के वीडियो संदेशों को करोड़ों लोग देखते हैं. जेलेंस्की ना सिर्फ अपने देश के लोगों को एक करने में सफल रहे हैं बल्कि उन्हें पश्चिमी समर्थन भी मिला है. उनके नेतृत्व में यूरोपीय एकीकरण काफी अच्छी तरह से आगे बढ़ा है और यूक्रेन अब यूरोपीय संघ की सदस्यता की तरफ अग्रसर है.
तस्वीर: Kenzo Tribouillard/AFP
'लेपर्ड दो' टैंक की उम्मीद
यूक्रेन कितनी सफलता से मुकाबला करता है यह उसे मिलने वाली मदद पर काफी निर्भर करता है. अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों के एक समूह ने एक अरब डॉलर की मानवीय, वित्तीय और सैन्य मदद का प्रस्ताव दिया है. भारी हथियार भेजने पर पश्चिम में काफी बहस हुई, मुख्य रूप से रूस की प्रतिक्रिया को लेकर चिंताओं की वजह से. लेकिन अब यूक्रेन को पश्चिमी टैंक मिलेंगे, जिनमें से अधिकांश जर्मनी में बने 'लेपर्ड दो' टैंक होंगे.
तस्वीर: Ina Fassbender/AFP/Getty Images
बाख्मुत: बर्बाद हो चुका एक शहर
बाख्मुत को लेकर महीनों से भीषण लड़ाई चल रही है. 2023 की शुरुआत में यूक्रेन के सैनिकों ने बाख्मुत के पास स्थित शहर सोलेदार पर से अपने नियंत्रण खो दिया. तब से बाख्मुत को बचाए रखना और मुश्किल हो गया है. जनवरी में जर्मनी की गुप्तचर सेवा ने बताया कि यूक्रेन की तरफ रोज सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं. लेकिन माना जा रहा है कि रूस की तरफ इससे भी ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं. (दानीलो बिलेक, फिलिप बोल)