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चावल निर्यात बैन का किसानों पर क्या होगा असर?

९ अगस्त २०२३

भारत सरकार के करीबी किसान संगठनों का कहना है कि चावल निर्यात बैन से किसानों की आय पर सीधा असर पड़ेगा और उत्पादन भी कम होगा.

भारत किसान
भारत ने चावल के निर्यात पर रोक लगा रखी है.तस्वीर: Amit Dave/REUTERS

भारत में कुछ किसान संगठनों का कहना है कि बासमती के अलावा चावल की अन्य किस्मों पर प्रतिबंध के कारण देश में चावल की बुआई में कम से कम पांच फीसदी तक की कमी आ सकती है.

दुनिया की कुल सप्लाई का 40 फीसदी सप्लाई करने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है. पिछले महीने भारत सरकार ने आदेश जारी कर बासमती के अतिरिक्त अन्य हर तरह के चावल के निर्यात पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया था.

भारतीय जनता पार्टी से नजदीकी रखने वाले किसानों के संगठन भारतीय किसान यूनियन की महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा कहती हैं, "चावल निर्यात के प्रतिबंध का ऐलान तब किया गया जबकि बुआई चल रही थी. इसलिए किसानों को गलत संदेश गया.” बीकेएस राष्ट्र्य स्वयंसेवक संघ की किसान शाखा है.

किसानों को मदद की जरूरत

मिश्रा ने कहा कि सरकार को नये सीजन में बढ़ी हुई कीमत पर ज्यादा चावल खरीद कर किसानों को राहत पहुंचानी चाहिए. जून में भारत ने चावल के एमएसपी यानी न्यूनतम खरीद कीमत में भी वृद्धि की थी. अब नये मौसम में सरकार किसानों से 7 फीसदी ज्यादा यानी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल में चावल खरीदेगी.

चावल और गेहूं जैसे अनाजों के लिए एमएसपी का ऐलान हर साल किया जाता है. मिश्रा कहती हैं, "चूंकि सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, इसलिए उसे एमएसपी के ऊपर किसानों को बोनस का ऐलान करना चाहिए ताकि किसान अधिक दाम पर अपनी फसल बेच सकें.”

धान की बुआई जून-जुलाई में शुरू होकर मानसून के खत्म होने तक यानी अगस्त तक भी चलती रहती है. कटाई अक्टूबर में शुरू होती है. जब फसल मंडियों में आने लगती है तो सरकारी संस्था फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) किसानों से फसल खरीदना शुरू करती है. लेकिन बहुत से व्यापारी सीधे भी किसानों से फसल खरीदते हैं और फिर उसे निर्यात करते हैं.

महंगी हुई गेहूं

भारत में अनाज के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. मंगलवार को गेहूं की कीमत छह महीने के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गयी थी. डीलरों का कहना है कि त्योहारों के मौसम से पहले मांग में तेजी आने के कारण दाम बढ़ रहे हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई कम करने के लिए सरकार आयात कर में कटौती कर सकती है ताकि बढ़ते दामों का असर अगले साल होने वाले आम चुनाव पर ना पड़े.

गेहूं और चावल के बढ़ते दाम हर चीज को प्रभावित कर सकते हैं और सरकार द्वारा महंगाई कम करने के लिए की जा रही कोशिशों को धक्का लग सकता है. दिल्ली स्थित एक व्यापारी ना नाम ना छापने की शर्त पर कहा, "जो भी मुख्य उत्पादक राज्य हैं, वहां सप्लाई लगभग बंद हो गयी है. आटा मिल चलाने वाले सप्लाई को तरस रहे हैं.”

मंगलवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में गेहूं का दाम 25,446 रुपये प्रति मीट्रिक टन पर पहुंच गया था, जो 10 फरवरी के बाद सबसे ज्यादा है. पिछले चार महीने में ही कीमतों में 18 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है. मुंबई स्थित एक व्यापारी ने बताया कि महंगाई कम करने के लिए सरकार को अपने वेयरहाउस खोलने होंगे और बाजारों को सप्लाई उपलब्ध करानी होगी.

इन्हें नहीं रहना भारत के भरोसे

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1 अगस्त तक भारत के गोदामों में 2.83 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं जमा था जो पिछले साल के 2.66 करोड़ मीट्रिक टन से ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने वाले मुंबई के इस व्यापारी ने कहा, "कीमतें घटाने के लिए आयात जरूरी है. सरकार आयात के बिना सप्लाई नहीं बढ़ा सकती.”

पिछले हफ्ते ही खाद्य मंत्रालय के सबसे वरिष्ठ अधिकारी संजीव चोपड़ा ने कहा था कि सरकार गेहूं पर लगा 40 फीसदी का आयात कर कम करने या पूरी तरह खत्म करने पर विचार कर रही है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2023 में गेहूं का रिकॉर्ड 11.27 करोड़ मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था. भारत सालाना 10.8 करोड़ टन गेहूं का उपभोग करता है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

 

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