भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन के कारण मुंबई में सैकड़ों प्रवासी मजदूर फंस गए हैं. उनके पास ना तो पैसा है और ना ही इतना भोजन कि आगे काम चल पाए. उनके पास अस्थायी रहने का ठिकाना छोड़ने के भी विकल्प सीमित है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तालाबंदी की घोषणा के बाद लाखों प्रवासी मजदूर किसी तरह से बसों में घुसकर, कई दिनों तक पैदल चलकर अपने पैतृक गांव तक पहुंचे. लेकिन 1.3 अरब की आबादी वाले देश में कई मजदूर जिनमें दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं, ट्रेनों के रुकने की वजह से फंस गए. मुंबई के भिवंडी में हथकरघा कपड़ा उद्योग के श्रमिक भी इसी तरह से फंस गए हैं. लॉकडाउन को एक हफ्ते से अधिक हो गया है, कई प्रवासी मजदूर मुफ्त भोजन के सहारे किसी तरह से गुजारा कर रहे हैं. कंपनियों, मिल मालिकों या स्थानीय प्रशासन की तरफ से प्रवासी मजदूरों को दिन में दो बार भोजन दिए जा रहे हैं.
एक बंद पड़े गेस्ट हाउस के बाहर दर्जनों मजदूर इकट्ठा होकर दोपहर के भोजन के लिए आपस में धक्का-मुक्की कर रहे हैं. इन मजदूरों को प्लास्टिक के थैले में रोटी और सब्जी दी जा रही है. अपनी प्यास बुझाने के लिए वे नल के पानी को पी रहे हैं. कुछ मजदूरों का हाल यह कि उन्होंने कई दिनों से स्नान तक नहीं किया है क्योंकि उनके पास साबुन खरीदने तक के पैसे नहीं है. यही नहीं कुछ मजदूर शौच भी खुले में कर रहे हैं क्योंकि शौचालय के इस्तेमाल के लिए पैसे देने पड़ते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मिल कर्मचारी मायाराम तिवारी कहते हैं, "या तो आप ट्रेनों को शुरू करें या फिर लॉकडाउन समाप्त करें जिससे हम काम कर सकें.”
तालाबंदी में मजदूरों की बेबसी की तस्वीरें
भारत में 24 मार्च से अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन है लेकिन उसके अगले दिन 25 मार्च से ही लोग पैदल अपने गांवों और कस्बों की तरफ जाने लगे. यह सिलसिला जारी है. देखिए...किस तरह से लोग जान जोखिम में डाल कर सफर कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
घर जाने की बेताबी क्या होती है जरा इन लोगों से पूछिए. यह समूह किसी भी तरह से अपने घर, अपने गांव जाना चाहता है. जिंदगी को लॉकडाउन से बचाने लोग सिर पर गठरी और गोद में बच्चा लिए निकल पड़े हैं.
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परेशान हाल मजदूर और उनके परिवार पिछले कुछ दिनों से इसी तरह से बदहवास हैं, पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद 21 दिनों का लॉकडाउन. उन्हें कोई भी गाड़ी नजर आती है तो वे उसे रुकने का इशारा करते हैं.
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कुछ लोगों के पैरों में चलते-चलते छाले पड़ गए हैं. हाथों में एक बैग है. पानी-बिस्कुट के सहारे वह सफर तय करना चाहते हैं.
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मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा में हजारों लोग किसी तरह से अपने घरों को पहुंचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि शहर में अब रहकर क्या करना जब कोई काम ही नहीं है.
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कई लोगों का कहना है कि वे पिछले कुछ दिनों से भरपेट खाना नहीं खा पाए हैं. उन्होंने बताया कि वे जहां काम करते थे, वहां से उन्हें पांच-पांच सौ रुपये देकर जाने को कह दिया गया.
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यह परिवार नोएडा में रहता था, लेकिन तालाबंदी की वजह से उसके पास काम नहीं है और ना ही इतने पैसे कि आगे का खर्च निकल पाए. इसलिए पति-पत्नी ने झांसी के लिए पैदल ही चलने का फैसला किया.
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कुछ दिनों पहले तक यह लोग इस शहर का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब उन्हें इस शहर में अपना भविष्य नजर नहीं आता है. वे कहते हैं, “कोरोना से पहले, हमें भूख मार डालेगी.“
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कई प्रवासी मजदूर छोटे बच्चे और महिलाओं के साथ सफर कर रहे हैं. सफर में जंगल से भी गुजरना होगा और सुनसान हाइवे से भी. खतरों के साथ उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सफर तय करना है.
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जो लोग अपने गांवों के लिए निकले हैं, उनके पास खाने-पीने का पर्याप्त इंतजाम नहीं है. ऐसे में कुछ लोग उन्हें खाने के पैकेट देकर मदद कर रहे हैं.
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राज्य सरकारों ने ऐसे लोगों के खाने पीने का इंतजाम किया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए बसों का इंतजाम किया है. दिल्ली सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे जहां हैं, वहीं रहें.
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तालाबंदी की वजह से ट्रेनें बंद हैं और राज्यों की सीमाएं सील हैं. सरकार का कहना है कि तालाबंदी घनी आबादी वाले देश में जरूरी है जहां सार्वजनिक अस्पतालों पर पहले से अधिक भार है. भिवंडी में कर्मचारियों का कहना है कि पुलिस दिन में कई बार आती है यह देखने के लिए कि तालाबंदी का पालन हो रहा है कि नहीं. कुछ मजदूर कपड़ा मिल में ही सो रहे हैं.
इलाके के डिप्टी पुलिस कमिश्नर राजकुमार शिंदे का कहना है कि स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें आश्वस्त किया है कि मजदूरों की देखभाल ठीक तरीके से हो रही है और सामुदायिक रसोई स्थापित की जा रही है जिससे मजदूरों के भोजन का इंतजाम किया जा सके. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर गिरिधर बाबू कहते हैं कि तालाबंदी जरूरी थी. वह कहते हैं, "मैं नहीं कह रहा कि कुछ लोगों को टाइफाइड हो जाए. लेकिन अगर लॉकडाउन नहीं होता तो और अधिक लोगों की मौत हो जाती .” बाबू कहते हैं कि उन्हें लगता है कि लॉकडाउन की वजह से पूरे समुदाय को लाभ मिला है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
प्रवासी मजदूरों के लिए इंतजाम
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत में तालाबंदी की गई. उसके बाद कई मजदूर काम और भोजन नहीं मिलने की वजह से अपने गांव की तरफ चल गए थे. लेकिन जो मजदूर अब दिल्ली में ही हैं उनके लिए खास इंतजाम किए गए हैं.
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पहले सड़क पर अब आश्रयों में
तालाबंदी की वजह से जो लोग सड़क पर आ गए थे और अपने अपने गांव चाहते थे अब उनके रहने के लिए दिल्ली में शिविरों का इंतजाम किया गया है. तालाबंदी के दूसरे ही दिन भारी संख्या में लोग अपने राज्य और गांव की तरफ चल दिए थे. जो लोग अब भी दिल्ली में रहना चाहते हैं उनके लिए सरकार ने राहत शिविर लगा कर हर तरह की सुविधा देने की कोशिश की है.
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काम ठप्प, संकट शुरू
कई मजदूरों का कहना था कि तालाबंदी की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गई, उनके पास इतने पैसे नहीं कि वे अपना खर्च निकाल पाएं. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से लोग अपने गांव की तरफ चल दिए. भारी संख्या में प्रवासियों का सड़क पर आना लॉकडाउन के मकसद को ही विफल बना रहा था. इसके बाद केंद्र ने एडवाइजरी जारी कर राज्यों से लोगों की ऐसी आवाजाही रोकने के लिए कहा.
तस्वीर: DW/S. Kumar
राहत शिविर
कई राज्यों में प्रवासी, दिहाड़ी मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए राहत शिविर लगाए हैं. जहां उनके लिए सोने, खाने-पीने की व्यवस्था की गई है.
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महामारी से बचाव जरूरी
सरकार की कोशिश है कि जो लोग जहां हैं वहीं रहें लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि वे आपदा के इस वक्त में अपने परिवार के साथ वापस लौट जाए. हालांकि सरकार ने गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की घोषणा की है, जिसके तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च ऐसे लोगों पर किए जाएंगे जो तालाबंदी की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
ड्रोन से नजर
तालाबंदी के दौरान कुछ इलाकों में लोग कानून की अनदेखी कर बाहर निकल जा रहे हैं. दिल्ली के एक ऐसे ही इलाके में ड्रोन के जरिए निगरानी रखी जा रही है. तालाबंदी को ना मानने और बेवजह सड़क पर आने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक सख्ती से कार्रवाई की जा रही है.
तस्वीर: DW/S. Kumar
भोजन वितरण
रोज कमाने और खाने वालों के लिए तालाबंदी किसी मुसीबत से कम नहीं है, दिल्ली और अन्य राज्यों में ऐसे लोगों के भोजन का इंतजाम किया गया और उन्हें मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है. कई एनजीओ और सामाजिक संगठन जरूरतमंदों के घरों तक राशन भी पहुंचा रहे हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
सुप्रीम कोर्ट में मामला
31 मार्च को मजदूरों के पलायन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है. सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार से कह चुका है कि वायरस से कहीं अधिक मौत घबराहट के कारण हो जाएगी. कोर्ट ने सरकार को प्रवासियों की काउंसलिंग की भी सलाह दी. कोर्ट ने ऐसे लोगों के लिए भोजन, आश्रय, पोषण और चिकित्सा सहायता के मामले में ध्यान रखने को कहा. कोर्ट ने कोरोना वायरस को लेकर फेक न्यूज फैलाने पर सख्ती से कार्रवाई करने को कहा.
तस्वीर: DW/M. Raj
जरूरतमंदों को भोजन
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 22 लाख से अधिक लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई थी. मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर सुनवाई की. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 6 लाख 60 हजार लोगों को आश्रय दिया गया है और अब कोई सड़क पर नहीं है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
सोशल डिस्टैंसिंग का संदेश नहीं पहुंचा!
सरकार ने तो सोशल डिस्टैंसिंग या सामाजिक दूरी बनाए रखने को कह दिया लेकिन जब लाखों लोग दिल्ली या अन्य राज्यों से अपने घरों की तरफ गए तो एक संदेश अप्रभावी साबित हुआ. आशंका है कि घर लौटने वालों की बड़ी भीड़ के साथ वायरस भी नए इलाक़ों तक पहुंचा हो.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
खतरों के साथ पहुंचे घर
कई प्रवासी मजदूर जान जोखिम में डालकर महानगरों से अपने गांव की तरफ निकल गए. कुछ पैदल गए और कुछ लोग इस तरह से जोखिम उठाकर अपने गांव तक पहुंचे.