सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अविवाहित महिलाएं भी आपसी सहमति से 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भपात कराने की हकदार हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं. कोर्ट ने कहा विवाहित, अविवाहित महिलाओं के बीच का अंतर असंवैधानिक है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक महिला की वैवाहिक स्थिति उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अविवाहित महिलाएं भी 24 सप्ताह के भीतर अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करने की हकदार होंगी. कोर्ट के इस फैसले का अर्थ यह है कि अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार हासिल हो गया है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाते हुए कहा, "मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है."
औसतन 22.5 साल की उम्र में शादी कर रही हैं भारतीय महिलाएं
ताजा सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में महिलाएं औसतन 22.5 साल की उम्र में शादी कर रही हैं. कानूनी तौर पर महिलाओं के लिए शादी करने की न्यूनतम उम्र 18 है और सरकार अब इसे बढ़ा कर 21 करना चाह रही है.
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22 के बाद शादी कर रही हैं महिलाएं
महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय ने 2020 के आंकड़े अभी जारी किए हैं. आंकड़ों में निकल कर आया है कि देश में महिलाएं औसतन 22.5 साल की उम्र में शादी कर रही हैं. ग्रामीण इलाकों में यह औसत 22.2 साल है जबकि शहरों में 23.9 साल है.
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जम्मू-कश्मीर में सबसे बेहतर स्थिति
जम्मू और कश्मीर में यह आंकड़ा 26 साल है, जो सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है. राज्य में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा महिलाएं 21 की उम्र के बाद ही शादी कर रही हैं. यह भी सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है.
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21 के बाद ही शादी कर रही हैं महिलाएं
राष्ट्रीय स्तर पर करीब 70 प्रतिशत महिलाएं 21 की उम्र के बाद ही शादी कर रही हैं. करीब 28 प्रतिशत 18 से 20 साल के बीच में शादी कर रही हैं, जबकि लगभग दो प्रतिशत महिलाओं की 18 साल से भी कम उम्र में शादी कर दी जा रही है.
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झारखंड, पश्चिम बंगाल को लेकर चिंता
21 की उम्र के बाद शादी करने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या झारखंड और पश्चिम बंगाल में है, जहां करीब 46 प्रतिशत महिलाएं 21 की उम्र के बाद शादी कर रही हैं.
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18 साल से कम में भी ब्याही जा रहीं लड़कियां
झारखंड में 5.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी आज भी 18 साल से कम की उम्र में कर दी जा रही है, जो कानूनी रूप से प्रतिबंधित है. पश्चिम बंगाल में भी यह आंकड़ा 4.7 प्रतिशत है. केरल में यह आंकड़ा शून्य है और राष्ट्रीय स्तर पर 1.9 है.
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शहर, गांव में फर्क
ग्रामीण इलाकों में करीब 33 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 से 20 साल की उम्र में हो गई, जबकि शहरों में यह आंकड़ा 18.6 प्रतिशत है. हर राज्य में 21 साल के बाद शादी करने वाली महिलाओं की संख्या शहरी इलाकों में ज्यादा पाई गई.
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सबको समान अधिकार
साथ ही कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी नियम 3 बी का भी विस्तार कर दिया है. 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के भ्रूण के गर्भपात का अधिकार अब तक सिर्फ विवाहित महिलाओं को था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार के खिलाफ माना है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि किसी महिला को 20 हफ्ते के ज्यादा के गर्भ को गिराने से मना इस आधार पर करना कि वह अविवाहित है, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा.
एमटीपी एक्ट के प्रावधानओं की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया है. एमटीपी एक्ट के मुताबिक सिर्फ बलात्कार पीड़ित, नाबालिग या फिर उन महिलाओं को 24 हफ्ते तक अबॉर्शन की इजाजत है जो मानसिक रूप से बीमार हो. कानून के मुताबिक सहमति से बने संबंध से ठहरे गर्भ को सिर्फ 20 हफ्ते तक गिराया जा सकता है.
बलात्कार पीड़ितों के गर्भपात के अधिकार की ओर उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न और बलात्कार पीड़ितों की श्रेणी में आ सकती हैं. क्योंकि यह काफी संभव है कि पति द्वारा गैर-सहमति वाले कार्य के कारण एक महिला गर्भवती हो सकती है. कोर्ट ने कहा अगर इस तरह से विवाहित महिलाएं जबरन गर्भवती होती हैं तो वह भी बलात्कार माना जाएगा.
कोर्ट ने कहा, "कोई भी महिला यह कहे कि वह जबरन गर्भवती हुई है तो उसे बलात्कार माना जा सकता है."
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रेगनेंसी बनी रहे या फिर गर्भपात कराया जाए यह महिला के अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मामला है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 25 साल की अविवाहित युवती की याचिका पर आया है. याचिकाकर्ता युवती सहमति से सेक्स से गर्भवती हुई थी और उसने बाद में दिल्ली हाईकोर्ट से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी, जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर नहीं किया था. युवती ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसपर कोर्ट ने दिल्ली एम्स के मेडिकल बोर्ड के अधीन गर्भपात कराने की इजाजत दी थी. बोर्ड ने पाया था कि महिला के जीवन को खतरा हुए बिना गर्भपात किया जा सकता है.
क्या गर्भनिरोधक गोलियां बढ़ाती हैं वजन?
गर्भनिरोध के कई तरीके हैं जैसे गर्भनिरोधक गोलियां, आई-पिल, कंडोम, कॉपर टी, इत्यादि. लेकिन जितने ज्यादा तरीके, उतने ज्यादा मिथक. आइए, दूर करें गर्भनिरोध से जुड़ी कुछ गलतफहमियाों को.
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गर्भनिरोधक गोलियों से बढ़ता है वजन.
किसी जमाने में यह बात सच थी लेकिन आज की गर्भनिरोधक गोलियां वजन पर कोई असर नहीं करती हैं.
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लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों से गर्भधारण में होती है दिक्कत.
नहीं. आप जब गर्भ धारण करना चाहें, गोलियों का सेवन बंद कर सकती हैं, कोई समस्या नहीं होगी.
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पीरियड्स की समस्याओं के लिए नहीं लेनी चाहिए गर्भनिरोधक गोली.
डॉक्टर अक्सर पीरियड्स के अनियमित होने पर गर्भनिरोधक गोली लेने की सलाह देते हैं. इनसे पीरियड्स को नियमित करने में मदद मिलती है.
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आई-पिल से होता है गर्भपात
आई-पिल या इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल का काम गर्भधारण को रोकना है. अगर आप गर्भवती हैं, तो इसका आप पर कोई असर नहीं होगा.
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स्तनपान के दौरान गर्भनिरोधक गोलियों की जरूरत नहीं पड़ती.
प्रसव के बाद जितना जल्दी हो सके गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन शुरू किया जा सकता है. स्तनपान गर्भ निरोधन का काम नहीं करता.
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कंडोम के इस्तेमाल से मिलता है कम आनंद.
कंडोम में लेटेक्स की बेहद पतली परत का इस्तेमाल किया जाता है और ल्यूब्रिकैंट का भी, जिससे पुरुष या महिला के आनंद में कोई कमी नहीं आती.
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दो कंडोम से मिलती है ज्यादा सुरक्षा.
गर्भ धारण को रोकने के लिए एक ही कंडोम काफी है. दो के इस्तेमाल से वे फट सकते हैं और फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.
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कंडोम का इस्तेमाल केवल पुरुष कर सकते हैं.
बाजार में फीमेल कंडोम भी उपलब्ध हैं, जिन्हें महिलाएं इस्तेमाल कर सकती हैं. ये भी पुरुषों वाले कंडोम की ही तरह लेटेक्स से बने होते हैं.