दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी वाले मामले में जमानत मिलने के बाद अब सीबीआई वाले केस में भी जमानत मिल गई है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ में उनकी गिरफ्तारी की वैधता को लेकर सर्वसम्मति नहीं थी.
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सुप्रीम कोर्ट के दो जजों, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए कहा कि ऐसा लगता कि इस मामले में सुनवाई "निकट भविष्य में" पूरी होगी. अदालत ने कहा कि केजरीवाल जमानत के 'ट्रिपल टेस्ट' को पूरा करते हैं और इसलिए उन्हें जमानत दी जाती है.
ट्रिपल टेस्ट उन तीन कसौटियों को कहा जाता है जिनके आधार पर जमानत याचिका का फैसला किया जाता है. यह तीन आधार हैं - सुनवाई के दौरान आरोपी के देश छोड़ कर भाग जाने का खतरा ना हो, उसके सबूतों से छेड़छाड़ करने का खतरा ना हो और वो गवाहों को प्रभावित करने की स्थिति में ना हो.
केजरीवाल को 10 लाख का जमानत मुचलका और 10-10 लाख की दो श्योरटी भरने के लिए कहा गया. उन्हें यह भी आदेश दिया गया कि वह इस मामले पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. हालांकि, दोनों जजों के फैसलों में सहमति बस यहीं तक सीमित थी. सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी पर दोनों जजों ने अलग-अलग राय सामने रखी.
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क्या केजरीवाल की गिरफ्तारी सही थी?
दरअसल सीएम केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं डाली थीं. एक में सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती दी गई थी और दूसरी में जमानत की मांग की गई थी. दूसरी याचिका को तो दोनों जजों ने स्वीकार कर लिया, लेकिन पहली याचिका पर दोनों ने अलग फैसला दिया.
'बार एंड बेंच' वेबसाइट के मुताबिक, न्यायमूर्ति कांत ने सीबीआई द्वारा केजरीवाल की हिरासत को वैध ठहराया. उन्होंने कहा, "अगर कोई व्यक्ति पहले से हिरासत में हो और एक अन्य मामले में जांच के लिए भी उसे हिरासत में रखने की जरूरत हो, तो उसे गिरफ्तार करने में कोई अड़चन नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "सीबीआई ने अपने आवेदन में दर्ज किया है कि हिरासत के लिए एक न्यायिक आदेश जारी हुआ था, इसलिए गिरफ्तारी जरूरी थी." न्यायमूर्ति कांत ने यह भी जोड़ा कि जब कोई मैजिस्ट्रेट वारंट जारी कर देता है, उसके बाद जांच एजेंसी को उसके लिए कोई कारण देने की जरूरत नहीं रह जाती है.
क्या है दिल्ली का आबकारी 'घोटाला'
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार जब नई आबकारी नीति लेकर आई थी, तब किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इसकी वजह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही जेल हो जाएगी. एक नजर इस नीति पर और इसमें कथित अनियमितताओं के आरोपों पर.
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2021 में आई नीति
दिल्ली की नई आबकारी नीति 'आप' सरकार ने 2021 में लागू की थी. इसके तहत दिल्ली सरकार को शराब की बिक्री के व्यापार से पूरी तरह बाहर निकालने की योजना बनाई गई थी. आम आदमी पार्टी के मुताबिक इस नीति का मकसद सरकार का राजस्व बढ़ाने के अलावा शराब की काला बाजारी खत्म करना, विक्रेताओं के लिए लाइसेंस के नियमों को लचीला बनाना और उपभोक्ताओं के अनुभवों को बेहतर बनाना था.
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घर पर डिलीवरी
नई नीति के तहत शराब की दुकानें सुबह तीन बजे तक खुली रखने और शराब की घर पर डिलीवरी करवाने जैसे नियम भी प्रस्तावित थे. साथ ही शराब विक्रेताओं को दामों में छूट देने की इजाजत भी दी गई थी.
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बढ़ी सरकार की कमाई
कुछ महीनों तक उपभोक्ताओं को शराब के दामों में भारी छूट भी मिली. नतीजतन शराब दुकानों के बाहर लंबी कतारें देखी गईं. एक रिपोर्ट के अनुसार इससे दिल्ली सरकार के रेवन्यू में 27 फीसदी की वृद्धि हुई और राज्य ने लगभग 8,900 करोड़ रुपए कमाए.
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जांच के आदेश
लेकिन नीति लागू होने से पहले ही दिल्ली के शराब बाजार में जो उथल पुथल शुरू हुई वो कई महीनों तक चलती रही. लगभग आधी दुकानें बंद हो गईं. अप्रैल 2022 में जब दिल्ली में नए मुख्य सचिव नरेश कुमार की नियुक्ति हुई तो उन्होंने नई नीति में जांच के आदेश दिए.
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अनियमितताओं के आरोप
जुलाई 2022 में मुख्य सचिव ने उप राज्यपाल वीके सक्सेना को एक रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने नीति में अनियमितताओं का दावा किया. इस रिपोर्ट में आरोप लगाए गए कि बतौर आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने शराब विक्रेताओं को लाइसेंस देने के बदले कमीशन और रिश्वत ली.
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कमीशन और रिश्वत
नरेश कुमार ने रिपोर्ट में यह भी कहा कि लाइसेंस फीस और शराब की कीमतों में नियमों को ताक पर रखकर छूट दी गई, जिससे सरकार को करीब 144 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ. यह भी दावा किया गया कि कमीशन और रिश्वत से मिली रकम का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ने फरवरी 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में किया.
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सीबीआई ने शुरू की जांच
मुख्य सचिव ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को भी अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस मामले में जांच करने के लिए कहा. इसी रिपोर्ट के आधार पर उप राज्यपाल ने पूरे मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी. सीबीआई ने अगस्त 2022 में सिसोदिया समेत 15 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया.
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उप-मुख्यमंत्री गिरफ्तार
आरोपियों में तत्कालीन एक्साइज कमिश्नर समेत तीन अफसर, दो कंपनियां और नौ कारोबारी शामिल थे. मनीष सिसोदिया के घर छापे मारे गए और कई बार पूछताछ के बाद 26 फरवरी 2023 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
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केजरीवाल की भूमिका
पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सीधे तौर पर इस मामले में नाम नहीं था लेकिन बाद में तेलंगाना के निजामाबाद से विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता को गिरफ्तार किया गया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कविता के अकाउंटेंट बुचीबाबू से भी इस मामले में पूछताछ की गई और उन्होंने ही केजरीवाल का नाम लिया.
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मुख्यमंत्री गिरफ्तार
सीबीआई की एफआईआर के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में अगस्त, 2022 में धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) का मामला दर्ज किया और 21 मार्च, 2024 को इसी मामले में केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया. तब से मुख्यमंत्री तिहाड़ जेल में हैं. 26 जून को उन्हें राउज एवेन्यू कोर्ट के परिसर से सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया.
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लेकिन न्यायमूर्ति भुयान इन बातों से सहमत नहीं थे. उन्होंने अपने अलग फैसले में कहा कि सीबीआई ने सिर्फ ईडी वाले मामले में केजरीवाल को मिली जमानत निष्फल करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया.
"पिंजरे में बंद तोता'
न्यायमूर्ति भुयान ने कहा कि सीबीआई को 22 महीनों तक केजरीवाल को गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं हुई थी और जैसे ही ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई गई, सीबीआई "सक्रिय हो गई" और उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
उन्होंने कहा, "सीबीआई का यह कदम गिरफ्तारी के समय पर गंभीर सवाल उठाते हैं और सीबीआई द्वारा यह गिरफ्तारी सिर्फ ईडी मामले में दी गई जमानत को निष्फल करने के लिए की गई थी."
न्यायमूर्ति भुयान ने एजेंसी को उस विशेषण की भी याद दिलाई, जो सुप्रीम कोर्ट ने ही साल 2013 में कथित कोयला घोटाला मामले में सुनवाई के दौरान सीबीआई को दी थी. उन्होंने कहा, "सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता होने की धारणा को दूर करना चाहिए और यह दिखाना चाहिए कि वो पिंजरे में नहीं है."
आम आदमी पार्टी की रोचक यात्रा
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भारत का सबसे युवा राजनीतिक दल है. 2012 में स्थापना से लेकर 2024 में केजरीवाल की गिरफ्तारी तक, 'आप' की यात्रा अन्य दलों से काफी अलग रही है.
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स्थापना
'आप' की स्थापना 26 नवंबर, 2012 को दिल्ली में हुई थी. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को ही उसका मुख्य संस्थापक और संचालक माना जाता है. पार्टी की स्थापना 'लोकपाल आंदोलन' के नाम से जाने जाने वाले भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के बाद हुई थी, जिसे केजरीवाल और उनके उस समय के कई साथियों ने शुरू किया था.
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कौन हैं केजरीवाल
केजरीवाल सिर्फ करीब 12 सालों से राजनीति में हैं. अपने करियर की शुरुआत में वो पेशे से इंजीनियर थे. उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में उनका यूपीएससी में चयन हो गया और वो भारतीय राजस्व सेवा में अफसर बन गए.
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एक्टिविज्म में प्रवेश
केजरीवाल ने आयकर विभाग में नौकरी करते हुए 1999 में 'परिवर्तन' नाम का संगठन शुरू किया, जिसका ध्येय था गवर्नेंस के कई क्षेत्रों में सुधार लाने की कोशिश करना. कई साल इसी बैनर के तले एक्टिविज्म करने के बाद, उन्होंने 2006 में आयकर विभाग से इस्तीफा दे दिया. उस समय वो दिल्ली में जॉइंट कमिश्नर थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आरटीआई कार्यकर्ता
इस दौरान केजरीवाल अपने कई साथियों के साथ सूचना के अधिकार की मांग करने वाले आंदोलन में जुट गए थे. 2006 में ही उन्हें सूचना के अधिकार के क्षेत्र में ही उनके काम के लिए रमोन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया.
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लोकपाल आंदोलन
2011 में यूपीए सरकार के खिलाफ घोटालों के आरोपों के बीच केजरीवाल ने कई और लोगों के साथ मिल कर भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए एक निष्पक्ष और मजबूत संस्था लोकपाल के गठन की मांग के लिए एक आंदोलन शुरू किया. आंदोलन का चेहरा महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे को बनाया गया, लेकिन आंदोलन का संचालन केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, संतोष हेगड़े समेत कई लोगों ने किया.
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आंदोलन से पार्टी
जब आंदोलन लोकपाल के गठन के लिए केंद्र सरकार को मजबूर करने में असफल रहा, तब केजरीवाल और कुछ साथियों ने राजनीति में कदम रखने का फैसला किया. उनके कई साथी इस मोड़ ओर उनसे अलग हो गए, लेकिन केजरीवाल और उनके समर्थकों ने नवंबर, 2012 में 'आम आदमी पार्टी' (आप) की स्थापना की.
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चुनावी सफलता
'आप' ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी पहली चुनावी परीक्षा में ही अच्छा प्रदर्शन किया और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. 'आप' ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया और सरकार बना ली. यह सरकार सिर्फ 49 दिनों तक चली. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. लेकिन 2015 में फिर से चुनाव हुए और 'आप' ने दिल्ली की 70 सीटों में 67 जीत कर भारी बहुमत से सरकार बनाई.
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विस्तार
दिल्ली में 2020 में 'आप' ने फिर से जीत दर्ज की और केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. इस बीच पार्टी ने दूसरे राज्यों में भी विस्तार करना शुरू कर दिया था. 2014 में पार्टी ने लोकसभा चुनाव भी लड़े और पंजाब से चार सीटों पर जीत दर्ज की. 2022 में पार्टी ने पंजाब में भी सरकार बना ली.
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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
2022 में ही 'आप' ने गुजरात विधानसभा में तीसरा स्थान हासिल कर लिया. अप्रैल, 2023 में चुनाव आयोग ने उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया. उसे गोवा में भी राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा प्राप्त है.
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आबकारी 'घोटाला'
2021 में दिल्ली में 'आप' की सरकार ने एक नई आबकारी नीति लागू की. जुलाई 2022 में मुख्य सचिव नरेश कुमार ने नीति में अनियमितताओं का दावा किया. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. सीबीआई ने धीरे धीरे इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल थे. मार्च, 2024 में प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में केजरीवाल को भी हिरासत में ले लिया.
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कथित आबकारी नीति घोटाला मामले में सीबीआई ने अगस्त 2022 में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी और 26 फरवरी को सिसोदिया को गिरफ्तार किया था.
इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अलग से जांच कर रहा है. मार्च, 2024 में ईडी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी गिरफ्तार कर लिया था. जून में ईडी की हिरासत में से सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.