सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से कहा है कि चुनावी बॉन्ड से जुड़ी हर वो जानकारी अदालत को दे जो उसने अभी तक नहीं दी है. ऐक्टिविस्ट एक नंबर बताए जाने की मांग कर रहे हैं जो यह बताएगा कि किस डोनर ने किस पार्टी को चंदा दिया था.
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सोमवार को चुनावी बॉन्ड के मामले पर एक और सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए बैंक को मामले से संबंधित हर जानकारी देने के लिए कहा. एनडीटीवी के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बैंक से कहा कि उसका रवैया उचित नहीं लग रहा है.
उन्होंने कहा, "एसबीआई का रवैया ऐसा लगा रहा है कि "आप हमें बताइए कौन सी जानकारी देनी है, हम वो दे देंगे. यह उचित नहीं लग रहा है. जब हमने कहा "सभी डिटेल्स", तो उसमें हर वो डाटा आता है जिसकी कल्पना की जा सकती है...हर जानकारी बाहर आनी चाहिए. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कुछ भी छुपाया ना जाए."
कौन सी जानकारी बाकी है
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक लाने वाले ऐक्टिविस्टों को कहना है कि अभी भी एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने नहीं आई है. ऐक्टिविस्टों का कहना है कि हर चुनावी बॉन्ड पर अक्षरों और नंबरों का एक यूनीक कोड होता है जिसकी मदद से यह पता किया जा सकता है कि किसके द्वारा खरीदे गए बॉन्ड को किस राजनीतिक दल ने भुनाया.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस कोड को सिर्फ पराबैंगनी रोशनी में देखा जा सकता है. पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि यह एक सुरक्षा फीचर है और यह ना तो बॉन्ड के बिकने के समय दर्ज होता है और ना बॉन्ड भुनाते समय राजनीतिक दल दर्ज करवाता है.
लेकिन याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक बॉन्ड के डोनरों और खरीदारों दोनों की जानकारी दर्ज करते समय एसबीआई दोनों को एक यूनीक नंबर देता है, जिसे मैच किया जा सकता है.
एसबीआई पर सख्ती
सोमवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को यह जानकारी भी देने के लिए कहा. इसके अलावा अदालत ने एसबीआई के अध्यक्ष को गुरुवार, 21 मार्च की शाम पांच बजे तक एक हलफनामा भी दायर करने के लिए कहा जिसमें यह लिखा होना चाहिए कि बैंक ने कोई जानकारी छुपाई नहीं है.
चुनावी बॉन्ड से किस पार्टी को मिला कितना चंदा
चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में राजनीतिक पार्टियों की कमाई को लेकर कई रोचक तथ्य सामने आए. जानिए किस पार्टी को कितना चंदा मिला और कैसे मिला.
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करीब 9,000 करोड़
सुप्रीम कोर्ट से मिले डाटा के मुताबिक 2017-18 से 2022-23 तक अलग अलग राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल मिलाकर 8,970.3765 करोड़ रुपयों का चंदा मिला.
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16,000 करोड़ से ज्यादा
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाने वाली गैर सरकारी संस्था एडीआर के मुताबिक एसबीआई से आरटीआई के जरिए हासिल किया गया डाटा दिखाता है कि मार्च, 2018 से जनवरी, 2024 के बीच 16,518.1099 करोड़ रुपयों के मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए.
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बीजेपी सबसे आगे
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक 8,970 करोड़ में से अकेले बीजेपी को 6,566.1249 करोड़ रुपए चंदा मिला. यह कुल धनराशि का करीब 73 प्रतिशत है.
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कांग्रेस अगले नंबर पर
कांग्रेस को 8,970 करोड़ में से 1,123.3155 रुपए चंदा मिला. यह कुल धनराशि का करीब 12 प्रतिशत है.
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तृणमूल को भी लाभ
सुप्रीम कोर्ट के डाटा के मुताबिक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 8,970 रुपयों में से 1,092.988 करोड़ रुपए मिले. बीजेडी को 774, डीएमके को 616.5, टीआरएस को 383.653, वाईएसआर कांग्रेस को 382.44, टीडीपी को 146, शिवसेना को 101.38 और 'आप' को 94.285 करोड़ रुपए मिले.
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सीपीएम ने नहीं लिया चंदा
सीपीएम ऐसी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी रही जिसने चुनावी बॉन्ड से चंदा नहीं लिया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि डाटा साफ दिखा रहा है कि इन बॉन्ड के जरिए अधिकांश चंदा उन्हीं पार्टियों को गया है जो केंद्र में और राज्यों में सत्ता में हैं.
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कॉर्पोरेट घरानों ने ज्यादा किया इस्तेमाल
डाटा ने यह भी दिखाया कि एक करोड़ मूल्य के बॉन्ड सबसे ज्यादा बिके. कुल बिके बॉन्ड में एक करोड़ मूल्य के बॉन्ड की संख्या में 54 प्रतिशत और मूल्य में 94 प्रतिशत हिस्सा था. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि यह इस बात का संकेत है कि इस गुमनाम चंदे के पीछे कॉर्पोरेट घरानों का बड़ा हाथ है.
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कॉर्पोरेट घरानों की पसंद
एडीआर ने अदालत को बताया कि कॉर्पोरेट घरानों से मिले चंदे में भी बीजेपी ही सबसे आगे है. अकेले 2022-23 में ही बीजेपी को कॉर्पोरेट घरानों से 1,294.1499 करोड़ रुपए मिले. इसके मुकाबले कांग्रेस को 171.0200 करोड़ रुपए मिले.
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सोमवार की सुनवाई में प्रशांत भूषण ने अदालत को यह भी बताया खरीदे गए और भुनाए गए बॉन्ड में मेल नहीं है और इसलिए उन्होंने अपील की कि अदालत राजनीतिक दलों को भी आदेश दे कि वो बॉन्ड भुनाने की जानकारी दें. लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और कहा कि इससे उसके मूल फैसले का रूप-परिवर्तन हो जाएगा.