सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिना तय प्रक्रिया के किसी का घर तोड़ देना असंवैधानिक है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कई राज्यों में सरकारी एजेंसियों द्वारा लोगों के घरों पर बुलडोजर चलवा देने के मामले सामने आ चुके हैं.
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'बुलडोजर न्याय' के नाम से मशहूर हो चुकी दंडात्मक कार्रवाई करने वाली सरकारों को स्पष्ट संकेत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि भले ही कोई व्यक्ति किसी अपराध के आरोपों का सामना क्यों ना कर रहा हो, बिना तय प्रक्रिया का पालन किए उसके घर और निजी संपत्ति को तोड़ देना असंवैधानिक है.
अदालत ने यह भी कहा कि अगर व्यक्ति दोषी पाया गया हो, तब भी ऐसा करना असंवैधानिक ही होगा और ऐसा करना सरकार द्वारा कानून अपने हाथ में ले लेने के बराबर होगा.
'दुर्भावना' से प्रेरित
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस तरह के कई मामलों पर एक साथ फैसला देते हुए यह भी कहा किसी का घर तोड़ देने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को मिला आश्रय का अधिकार भी प्रभावित होता है.
इसके अलावा ऐसा कदम आरोपी के पूरे परिवार के खिलाफ सामूहिक कदम भी बन जाता है और "संविधान के तहत इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती."
पीठ ने आगे कहा, "जब किसी ढांचे को अचानक ढहाने के लिए चुन लिया जाता है और उसके आसपास की बाकी इमारतों को छोड़ दिया जाता है, ऐसे में दुर्भावना बिलकुल स्पष्ट हो जाती है और यह माना जा सकता है कि यह कदम अवैध ढांचे को गिराने के लिए नहीं बल्कि उस व्यक्ति को अदालत से सजा दिलवाने के पहले ही सजा देने के लिए किया गया."
अदालत ने आदेश दिया कि ऐसे में ढांचे को गिराने वाले अधिकारियों को इस कदम के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए और मुआवजे समेत अन्य उपायों के जरिए उनकी जवाबदेही तय की जाए.
अप्रैल, 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद चलता रहा बुलडोजर. देखिए जहांगीरपुरी से आंखों देखा हाल, इस फेसबुक लाइव में.
इस तरह के कई मामलों में देखा गया है कि सरकारी अधिकारियों ने कहा था कि मकान इसलिए तोड़ा गया क्योंकि वह अवैध था. इस बात का भी सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और स्पष्ट कहा कि कोई संपत्ति अवैध है या नहीं इसका फैसला न्यायपालिका करेगी और कार्यपालिका उसकी जगह यह फैसला नहीं कर सकती.
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सुप्रीम कोर्ट ने तय की विस्तृत प्रक्रिया
इसलिए बिना तय प्रक्रिया का पालन किए अगर सरकारी एजेंसियां किसी की संपत्ति को तोड़ देती हैं तो यह अन्यायपूर्ण होगा. प्रक्रिया को तय करने के लिए पीठ ने 12-सूत्रीय दिशा निर्देश भी दिए. इनके मुताबिक अगर संपत्ति को तोड़ने का आदेश दे दिया गया है तो फैसले के खिलाफ अपील करने का समय भी देना पड़ेगा.
भारत में इन मुद्दों से खड़ा हुआ विवाद
भारत में बीते कुछ अर्से से हर रोज एक नया विवाद जन्म ले रहा है. ज्यादातर विवाद दो धर्मों के बीच होते हैं. खान-पान, पहनावा और प्रार्थना स्थल को लेकर देश के कई हिस्सों में विवाद पैदा हो चुके हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
कर्नाटक का हिजाब विवाद
जनवरी 2022 में कर्नाटक के उडुपी में एक कॉलेज में छह छात्राओं के हिजाब पहनकर आने से रोकने पर विवाद खड़ा हो गया था. कॉलेज प्रशासन ने लड़कियों को हिजाब पहनकर कॉलेज में आने से मना कर दिया. जिसके खिलाफ लड़कियों ने विरोध प्रदर्शन किया. मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य प्रथा का हिस्सा नहीं है.
तस्वीर: Money SHARMA/AFP
मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर मचा शोर
महाराष्ट्र में अप्रैल के महीने में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में प्रार्थनाओं की आवाज को सीमा के भीतर रखने को लेकर अभियान चलाया था. उन्होंने कहा था कि अगर मस्जिदों ने ऐसा नहीं किया तो उनके समर्थक विरोध जताने के लिए मस्जिदों के बाहर हिंदू मंत्रोच्चार करेंगे. महाराष्ट्र की करीब 900 मस्जिदों ने अजान की आवाज कम करने की सहमति दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Mahyuddin
उत्तर प्रदेश में लाउडस्पीकरों पर कार्रवाई
उत्तर प्रदेश में सभी धार्मिक स्थलों से करीब 1.29 लाख लाउडस्पीकर उतारे गए या फिर उनकी आवाज को तय मानकों के मुताबिक कम किया गया. यूपी सरकार ने 23 अप्रैल को धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने के आदेश जारी किए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश पर राज्य सरकार ने पूरे प्रदेश में यह अभियान चलाया. सरकारी कार्रवाई मंदिर, मस्जिद और अन्य संस्थानों के लाउडस्पीकरों पर हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
हिंसक घटनाएं
रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान दो समुदायों के बीच कई जगहों पर हिंसक झड़प हो गई थी. दिल्ली के जहांगीरपुरी में दो समुदायों के बीच झड़प हुई और माहौल तनावपू्र्ण हो गया. इसके अलावा मध्य प्रदेश के खरगोन, मुंबई की आरे कॉलोनी में एक धार्मिक यात्रा के दौरान दो समुदायों के लोगों के बीच हिंसा हुई. कर्नाटक के हुबली में भी एक व्हाट्सऐप संदेश को लेकर बवाल मच गया था.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
बुलडोजर पर सवाल
उत्तर प्रदेश में हाल के महीने में कई मामले सामने आए जिनमें ऐसे आरोपियों के घर पर प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिया जिनका नाम किसी तरह के मामले में दर्ज हुआ. बुलडोजर चलाने को लेकर सवाल भी खड़े हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. कोर्ट में यूपी सरकार ने हलफनामा देकर कहा कि नियमों के मुताबिक कार्रवाई की गई है.
तस्वीर: Ritesh Shukla/REUTERS
यूपी की तर्ज पर एमपी में भी बुलडोजर चला
मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी पर दंगों के बाद प्रशासन ने कई मकान और दुकानों पर बुलडोजर चलवाकर तोड़ दिया. खरगोन प्रशान ने दंगों के एक दिन बाद 12 अप्रैल को कम से 45 मकानों और दुकानों पर बुलडोजर चलाकर कार्रवाई की थी. यहां भी सवाल उठे कि बिना नोटिस के प्रशासन ने कार्रवाई क्यों की.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी
एक टीवी बहस के दौरान बीजेपी की प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की जिसके बाद अरब जगत से इस पर विरोध दर्ज कराया गया. इसके बाद बीजेपी ने नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से निकाल दिया और बयान से किनारा कर लिया. टिप्पणी के विरोध में कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हुईं.
तस्वीर: Vipin Kumar/Hindustan Times/imago
मुस्लिमों के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी
दिसंबर 2021 में हरिद्वार में एक धर्म संसद हुई थी और इस धर्म संसद में देश के मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए. इस धर्म संसद में हिंदू राष्ट्र की स्थापना की बात कही गई और मीडिया और कोर्ट के खिलाफ भी आपत्तिजनक बयान दिए गए थे.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
कन्हैयालाल का कत्ल
राजस्थान के उदयपुर में 28 जून को एक दर्जी कन्हैयालाल को इस सिर्फ दो मुसलमान व्यक्तियों ने धारदार हथियार से मार डाला क्योंकि उन्होंने नूपुर शर्मा के समर्थन में व्हॉट्सऐप स्टेटस लगाया था. कन्हैयालाल इस मामले में गिरफ्तार हो चुके थे और शिकायतकर्ता और उनके बीच पुलिस ने समझौता करा लिया था, उन्होंने पुलिस से जान मारने की धमकी मिलने की शिकायत की थी. हत्या के विरोध में राजस्थान में तनाव का माहौल बन गया.
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तोड़ने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी करना होगा, रजिस्टर्ड डाक से भेजना होगा, संपत्ति के बाहर चिपकना होगा, नोटिस जारी होने के बाद आगे की कार्रवाई से पहले कम से कम 15 दिनों का समय और नोटिस दे देने के बाद कम से कम सात दिनों का समय देना होगा.
नोटिस में उल्लंघन के बारे में विस्तार से जानकारी देनी होगी और प्रभावित पक्ष के सुनवाई की तारीख भी बतानी होगी. साथ ही कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट को भी नोटिस की सूचना देनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट इस तरह के कई मामलों की एक साथ सुनवाई कर रहा था. इन मामलों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारों के अलावा केंद्र सरकार के खिलाफ भी शिकायत की गई थी.
सितंबर में अंतरिम कदम के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने बिना उससे इजाजत लिए किसी भी संपत्ति को तोड़ने पर बैन लगा दिया था. अक्टूबर में पीठ ने इन मामलों में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.