चीन के खिलाफ दक्षिण एशिया में भारत की "वैक्सीन कूटनीति"
२१ जनवरी २०२१
भारत अगले कुछ हफ्तों में दक्षिण एशियाई देशों को कोरोना वैक्सीन की लाखों खुराकें भेजने वाला है. जहां पड़ोसी देश से भारत को सराहना मिल रही है तो वहीं क्षेत्र में चीन की वचर्स्व वाली उपस्थिति को यह पीछे धकेल रहा है.
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सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की आपूर्ति भारत द्वारा मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल को शुरू हो गई है. इसके बाद म्यांमार और सेशल्स की मुफ्त वैक्सीन की खेप लेने की बारी आएगी. भारत जेनेरिक दवा का सबसे बड़ा निर्माता है और पड़ोसी देशों को वैक्सीन देकर दोस्ती को मजबूत करना चाहता है. नेपाल के स्वास्थ्य मंत्री हृदयेश त्रिपाठी के मुताबिक, "भारत सरकार ने वैक्सीन अनुदान करके सद्भावना दिखाई है. यह लोगों के स्तर पर हो रहा है, जनता ही है जो कोविड-19 के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुई."
भारत ऐसे समय में यह उदार रवैया अपना रहा है जब उसके संबंध नेपाल के साथ क्षेत्रीय विवाद के कारण तनावपूर्ण हुए, उसकी चिंता चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर भी है. चीन नेपाल पर आर्थिक प्रभाव भी डालने की कोशिश में जुटा हुआ है. चीन ने नेपाल को कोरोना महामारी से निपटने के लिए मदद का वादा किया है, वह नेपाल द्वारा सिनोफार्म की मंजूरी के इंतजार में है. नेपाल के औषधि प्रशासन विभाग के प्रवक्ता संतोष केसी के मुताबिक, "हमने उनसे मंजूरी के पहले और दस्तावेज और जानकारी मुहैया कराने के लिए कहा है."
बांग्लादेश को सिनोवैक बायोटेक से कोविड के टीके की 1,10,000 खुराकें मिलने वाली थी, लेकिन बांग्लादेश ने वैक्सीन की लागत मूल्य देने से इनकार कर दिया जिससे गतिरोध बन गया. इसके बदले बांग्लादेश ने भारत की ओर रुख किया और तत्काल आपूर्ति की मांग की, इसी के तहत बांग्लादेश को उसे एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड की 20 लाख खुराकें बतौर उपहार मिली.
बांग्लादेश के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, "भारत एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन बना रहा है जो बाकियों से अलग है. इसे सामान्य रूप से रखा जा सकता है और तय तापमान में ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है जो बांग्लादेश जैसे देश के लिए सुविधाजनक है."
सालों से भारत चीन की गति से मेल करने के लिए संघर्ष कर रहा है, श्रीलंका और नेपाल और मालदीव जैसे देशों में चीन बंदरगाहों, सड़कों और बिजली स्टेशनों के निर्माण के लिए निवेश कर रहा है. पर्यटन पर निर्भर ये देश टीकों के लिए बेताब हैं, जिससे इनकी अर्थव्यवस्था दोबारा उठ सके. सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत आने वाले तीन से चार हफ्तों में 1.2 करोड़ से लेकर 2 करोड़ टीके की खेप पड़ोसी देशों को मदद के तौर पर पहले चरण में देने की योजना बना रहा है. सूत्र ने बताया कि भारत इनमें से कुछ देशों में स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रशिक्षण और टीकाकरण अभियान के लिए बुनियादी ढांचे को तैयार करने में भी मदद कर रहा है.
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
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बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
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बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
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मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
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एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
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स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
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बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
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सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.