दशकों में पहली बार खुशी से झूम रहे हैं किसान और सरकार
२९ अप्रैल २०२२
दशकों में ऐसा हुआ है कि भारत के गेहूं किसान, गेहूं व्यापारी और सरकार सभी खुश हैं. कारण है अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की बढ़ी कीमतें और भारत का बंपर गेहूं निर्यात.
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दस साल में शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि किसान राजेन सिंह पवार सरकार की बजाय किसी निजी कंपनी को अपना गेहूं बेचा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें आसमान पर हैं और भारतीय किसानों को उसका भरपूर फायदा हो रहा है.
रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद दो बड़े गेहूं उत्पादक देशों के यहां से सप्लाई नहीं हो रही है, लिहाजा भारत जैसे देशों के किसानों के गेहूं की मांग बढ़ गई है और उन्हें अपने माल की रिकॉर्ड कीमत मिल रही है. ऐसा तब हुआ है जबकि पवार और उनके साथियों की फसल भी बंपर हुई है. यानी एक तरफ कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं तो उनके पास बेचने के लिए भी रिकॉर्ड गेहूं है.
मध्य प्रदेश में रहने वाले 55 साल के पवार कहते हैं, "बहुत वक्त बाद ऐसा हुआ है कि ट्रेडर हमारे गेहूं के लिए एमएसएपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से ज्यादा पैसा देने को भी तैयार हैं. भारत के बढ़ते गेहूं निर्यात ने हम जैसे किसानों की बड़ी मदद की है जिन्हें अपनी फसल पर बहुत अच्छा मुनाफा मिल रहा है.”
सुनहरा मौका
पिछले कुछ हफ्तों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 50 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. उससे पहले हालत ऐसी थी कि भारत को गेहूं निर्यात करने में खासा संघर्ष करना पड़ता था. न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के कारण किसानों से तुलनात्मक रूप से ऊंचे दाम पर खरीदा गया गेहूं अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए महंगा होता था और उसके खरीददार कम होते थे.
पुतिन के युद्ध का दुनिया पर असर
रूस के यूक्रेन पर हमले का असर पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है. खाने पीने की चीजों और ईंधन की कीमतें आसमान पर हैं. कुछ देशों में तो महंगाई के कारण लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
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यूक्रेन के कारण महंगाई
जर्मनी में लोगों की जेब पर यूक्रेन युद्ध का असर महसूस हो रहा है. मार्च में जर्मनी की मुद्रास्फीति दर 1981 के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.
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केन्या में लंबी लाइन
केन्या के नैरोबी में पेट्रोल पंपों के सामने लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. तेल महंगा हो गया है और सप्लाई बहुत कम है. इसका असर खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की बाकी चीजों पर भी नजर आ रहा है.
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तुर्की में ब्रेड हुई महंगी
रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है और रूसी उत्पादों पर लगे प्रतिबंधों के कारण गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है. यूक्रेन भी गेहूं के पांच सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. नतीजतन कई जगह ब्रेड महंगी हो गई है.
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इराक में गेहूं बस के बाहर
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से इराक में गेहूं के दाम आसमान पर हैं. इराक ने फिलहाल यूक्रेन के मुद्दे पर निष्पक्ष रुख अपनाया हुआ है. हालांकि देश में पुतिन समर्थक पोस्टर बैन कर दिए गए हैं.
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लीमा में प्रदर्शन
पेरू की राजधानी लीमा में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करते लोगों की पुलिस से खासी झड़प हुई. सरकार ने कुछ समय के लिए कर्फ्यू भी लगाकर रखा था लेकिन जैसे ही कर्फ्यू हटाया गया, प्रदर्शन फिर शुरू हो गए.
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श्रीलंका में संकट
श्रीलंका इस वक्त ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. पहले से ही खराब देश की आर्थिक हालत को यूक्रेन युद्ध ने और ज्यादा बिगाड़ दिया है और लोग अब सड़कों पर हैं.
स्कॉटलैंड में लोगों ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया. पूरे युनाइटेड किंग्डम में ट्रेड यूनियनों ने बढ़ती महंगाई का विरोध किया है. पहले ब्रेक्जिट, फिर कोविड और अब यूक्रेन युद्ध ने लोगों की हालत खराब कर रखी है.
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मछली पर मार
ब्रिटेन के राष्ट्रीय डिश फिश एंड चिप्स पर यूक्रेन युद्ध का असर नजर आ रहा है. सालभर में 38 करोड़ ‘फिश एंड चिप्स’ खाने वाले ब्रिटेन में अब रूस से आने वाली व्हाइट फिश और खाने का तेल इतना महंगा हो गया है कि लोगों को इससे मुंह मोड़ना पड़ा है. फरवरी में यूके की मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत थी.
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नाइजीरिया के लिए मौका
यूक्रेन युद्ध को नाइजीरिया के उत्पादक एक मौके की तरह देख रहे हैं. वे रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. देश के सबसे धनी व्यक्ति अलीको दांगोट ने हाल ही में नाइजीरिया का सबसे बड़ा खाद कारखाना खोला है.
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लेकिन एक के बाद एक कई ऐसे कारक काम कर रहे हैं जिनके कारण सारे खाने किसानों और गेहूं व्यापारियों के फायदे में फिट बैठ रहे हैं. एक तो वैसे ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कमी है, उस पर भारतीय रुपये बहुत कमजोर हो गया है और फिर भारत में परिवहन आदि की सुविधाएं बेहतर हुई हैं. जिनका नतीजा मुनाफे के रूप में सामने आ रहा है. इसीलिए ओलम एग्रो इंडिया नामक कृषि उत्पाद कंपनी के उपाध्यक्ष नितिन गुप्ता कहते हैं, "भारत को अपना अतिरिक्त गेहूं निर्यात करने के लिए यह सुनहरा मौका है.”
रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं के सबसे बड़े उत्पादकों में से हैं. लेकिन उनके बीच युद्ध के कारण काला सागर से सप्लाई रूट प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों ने भी गेहूं की कमी की स्थिति को गंभीर कर दिया है.
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सरकार को बड़ी बचत
भारत के गेहूं निर्यात में वृद्धि का एक नतीजा यह भी होगा कि इस साल भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) कम गेहूं खरीदेगा. वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करता है और इस साल यह कीमत 20,150 रुपये प्रति टन है. दशकों में पहली बार ऐसा होगा कि एफसीआई की खरीद में भारी कमी होगी. यानी भारत सरकार को भारी बचत होगी. पिछले साल भारत ने 43.34 टन गेहूं खरीदा था और इस पर 856 अरब रुपये खर्च किए थे.
ये खाएं - सेहत और दुनिया दोनों बचाएं
2050 तक दुनिया की आबादी दस अरब को पार कर जाएगी. ऐसे में खाने की आदतें ना बदलीं तो खाना उगाना ही मुश्किल हो जाएगा. इसलिए जरूरी है कि खाने के ऐसे विकल्पों को चुना जाए जो सेहत के लिए भी अच्छे हैं और पर्यावरण के लिए भी.
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बदलें अपनी आदतें
दुनिया भर में सबसे ज्यादा खेती गेहूं, चावल और मक्के की होती है. जाहिर है, ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी खपत भी सबसे ज्यादा है. लेकिन जिस तेजी से दुनिया की आबादी बढ़ रही है, कुछ दशकों में सभी को गेहूं-चावल मुहैया कराना मुमकिन नहीं रह जाएगा. संयुक्त राष्ट्र की संस्था WWF ने कुछ ऐसी चीजों की सूची जारी की है जिनसे हम कुदरत को होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं.
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नारंगी टमाटर
क्या जरूरी है कि टमाटर लाल ही हो? दुनिया भर में उगने वाली सब्जियों की सूची में लाल टमाटर सबसे ऊपर है. लेकिन नारंगी टमाटर सेहत और पर्यावरण दोनों के लिहाज से बेहतर हैं. इनमें विटामिन ए और फोलेट की मात्रा लगभग दोगुना होती है और एसिड आधा. स्वाद में ये लाल टमाटरों से ज्यादा मीठे होते हैं.
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अखरोट
इंसान 10,000 सालों से अखरोट खाता आया है और आगे भी इसे खाता रह सकता है. बादाम इत्यादि की तुलना में अखरोट में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल ज्यादा होते हैं. ये विटामिन ई और ओमेगा 3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत होते हैं.
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कुट्टू
भारत में इसे व्रत के दौरान खाया जाता है. कुछ लोग कुट्टू के आटे की रोटी बनाते हैं, तो कुछ इसकी खिचड़ी. पश्चिमी दुनिया में अब इसे सुपरफूड बताया जा रहा है और गेहूं का एक बेहतरीन विकल्प भी. सुपरमार्केट में अब बकवीट यानी कुट्टू से बनी ब्रेड और पास्ता भी बिक रहे हैं.
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दालें
इंसान ने जब खेती करना शुरू किया तब तरह तरह की दालें उगाईं. आज जितनी तरह की दालें भारत में खाई जाती हैं, उतनी शायद ही किसी और देश में मिलती हों. शाकाहारी लोगों के लिए ये प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत हैं. मीट की तुलना में दालें उगाने पर 43 गुना कम पानी खर्च होता है.
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फलियां
इन्हें उपजाने से जमीन की गुणवत्ता बेहतर होती है. ये जंगली घास को दूर रखती है, इसलिए अन्य फसलों के साथ इसे लगाने से फायदा मिलता है. साथ ही ये मधुमक्खियों को भी खूब आकर्षित करती हैं. सेहत के लिहाज से देखा जाए तो ये फाइबर से भरपूर होती हैं.
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कैक्टस
ये सब जगह तो नहीं मिलता, इसलिए हर कहीं खाया भी नहीं जाता. लेकिन वक्त के साथ इसकी मांग बढ़ रही है. इसके फल को भी खाया जा सकता है, फूल को भी और पत्तों को भी. सिर्फ इंसान के खाने के लिए ही नहीं, जानवर के चारे के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और बायोगैस बनाने के लिए भी.
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टेफ
भारत में अब तक इस अनाज का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है. मूल रूप से यह इथियोपिया में मिलता है जहां इसका आटा बनाया जाता है और फिर डोसे जैसी रोटी बनाई जाती है जिसे वहां इंजेरा कहते हैं. हाल के सालों में यूरोप और अमेरिका में इसकी मांग बढ़ी है. यह ऐसा अनाज है जिस पर आसानी से कीड़ा नहीं लगता. यह सूखे में भी उग सकता है और ज्यादा बरसात होने पर भी.
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अलसी
कहते हैं रोज एक चम्मच अलसी के बीज खाने चाहिए. इससे पेट भी साफ रहता है और खून में वसा और चीनी की मात्रा भी नियंत्रित रहती है. यूरोप में ऐसे कई शोध चल रहे हैं जिनके तहत प्रोसेस्ड फूड में गेहूं की जगह अलसी के आटे के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है, खास कर केक और मफिन जैसी चीजों में.
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राजमा
इनका जितना इस्तेमाल उत्तर भारत में होता है, उतना ही मेक्सिको और अन्य लातिन अमेरिकी देशों में भी. अगर इन्हें अंकुरित कर खाया जाए तो इनमें मौजूद पोषक तत्व तीन गुना बढ़ जाते हैं. ये प्रोटीन से भरपूर होते हैं और इसलिए मीट का एक अच्छा विकल्प भी.
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कमल ककड़ी
एशियाई देशों में इसका खूब इस्तेमाल होता है. कमल के पौधे की इसमें खास बात होती है कि उसे बहुत ज्यादा रखरखाव की जरूरत नहीं होती. इसे थोड़े ही पानी की जरूरत होती है और इसलिए पर्यावरण के लिए यह एक कमाल का पौधा है.
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अनुमान है कि इस साल एफसीआई की खरीद 30 फीसदी तक घट सकती है. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इससे कम सरकारी पैसा अतिरिक्त गेहूं के रूप में गोदामों में बंद होगा. दिल्ली स्थित ट्रेडर राजेश पहाड़िया जैन बताते हैं कि भारत ने 330 डॉलर से 350 डॉलर यानी 25,000 से 27,000 रुपये प्रति टन के मूल्य के निर्यात ऑर्डर बुक किए हैं. भारत के अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्वियों के मुकाले यह 50 डॉलर प्रति टन तक सस्ता है. मार्च में भारत ने 78.5 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है जो कि पिछले साल से 275 प्रतिशत ज्यादा है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2022-23 में भारत का निर्यात 1.20 करोड़ टन तक जा सकता है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
कहीं रोटी और पराठा ही तो आपको बीमार नहीं कर रहा?
इंसान सदियों से रोटी खाता आ रहा है, इसलिए यह सोचना भी मुश्किल है कि किसी को रोटी से एलर्जी हो सकती है. बहुत से लोग गेहूं में मिलने वाले प्रोटीन ग्लूटेन को पचा नहीं सकते. जानिए ग्लूटेन एलर्जी के लक्षणों के बारे में.
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पाचन में दिक्कत
किसी को अक्सर कब्ज रहती है, तो किसी को दस्त. बहुत से लोग गैस की शिकायत करते हैं, कुछ को एसिडिटी की समस्या रहती है. अगर आपके साथ भी ऐसा है, तो 3-4 हफ्ते के लिए गेहूं वाले उत्पाद खाना बंद करें और देखें कि क्या कोई फर्क पड़ता है. अगर आपको बदलाव महसूस होता है, तो यह ग्लूटेन एलर्जी का संकेत है.
अगर आप लंबे समय से कोशिश कर रहे हैं लेकिन गर्भधारण नहीं हो रहा है, तो इसके पीछे भी ग्लूटेन एलर्जी का हाथ हो सकता है. केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी इसका उतना ही असर देखा गया है.
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लाल चकत्ते
ऐसा किसी भी तरह की एलर्जी में हो सकता है. त्वचा का लाल होना पहला संकेत होता है कि शरीर में कुछ ऐसा गया है, जिसे वह स्वीकार नहीं रहा. चकत्ते होने पर पहले ठीक से सोचें कि आपके खानपान में हाल फिलहाल में क्या बदलाव हुए हैं. फिर उस चीज को कुछ दिनों के लिए ना खाएं और देखें कि इससे फर्क पड़ता है या नहीं.
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बातें भूलना
अगर आपको लगता है कि आप भुलक्कड़ होते चले जा रहे हैं, बात बात पर असमंजस में पड़ जाते हैं, आपके लिए कहीं भी ज्यादा देर तक ध्यान लगाना मुश्किल हो रहा है, तो जरूरी है कि आप डॉक्टर के पास जाएं. केवल भुलक्कड़ होना ग्लूटेन एलर्जी का संकेत नहीं है लेकिन इसे टेस्ट कराने की एक वजह जरूर है.
तस्वीर: Fotolia/Doc Rabe Media
हाथों पैरों का सो जाना
यह एक आम समस्या है और डायबटीज के मरीजों में भी काफी देखने को मिलती है लेकिन यदि बाकी के संकेतों के साथ साथ आपके साथ ऐसा भी हो रहा है, तो इस ओर ध्यान दें. जौं, बाजरा और कुट्टू के आटे में ग्लूटेन नहीं होता. इन विकल्पों को भी आजमा कर देखें.
तस्वीर: Colourbox/N. Sangkeaw
सिरदर्द
ग्लूटेन एलर्जी वाले अधिकतर लोग सिरदर्द और माइग्रेन जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं. हर तरह के इलाज करने के बाद भी अगर सिरदर्द ठीक नहीं हो रहा है, तो बहुत मुमकिन है कि आपकी खाने की आदतें इसके लिए जिम्मेदार हैं. कुछ दिन रोटी, ब्रेड इत्यादि का सेवन छोड़ कर देखें और डॉक्टर को इस बारे में बताएं.
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जोड़ों में दर्द
उंगलियों, घुटनों और कूल्हों में दर्द और जोड़ों में सूजन भी ग्लूटेन एलर्जी के कारण होती है. लंबे समय से जोड़ों के दर्द की समस्या हो, तो डॉक्टर से सलाह ले कर ग्लूटेन फ्री डाइट अपना कर देखें. शायद कुछ आराम मिल सके.
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थकावट
अगर ठीक ठाक खाना खाने के बाद भी आपको चक्कर आते हैं, सिर भारी रहता है और आप थका हुआ सा महसूस करते हैं, तो यह भी ग्लूटेन एलर्जी की ओर इशारा करता है. अपनी जांच कराएं. अगर ब्लड प्रेशर या खून की कमी इसका कारण नहीं है, तो ग्लूटेन एलर्जी की जांच की ओर बढ़ें.
तस्वीर: Colourbox
ध्यान न लगना
खास कर बच्चों में यह देखा जाता है कि वे क्लास में ध्यान नहीं लगा पाते. इसे एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर कहा जाता है. बचपन में ही ग्लूटेन एलर्जी का पता लगना जरूरी भी है ताकि एक स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सके.
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डिप्रेशन
अवसाद के कई कारण हो सकते हैं. लेकिन अगर खाना इसे बिगाड़ रहा है, तो जरूरी है कि इससे निजात पाया जाए. अगर आप इस सूची में दिए गए 4-5 लक्षणों से प्रभावित हैं, तो डॉक्टर से सलाह लें.