भारत-जर्मन रिश्ते के तारों को जोड़ने की बड़ी कोशिश
थेरेसा सुस्की
२७ अप्रैल २०१८
भारत और जर्मनी के बीच रिश्ते सदियों से हैं. लेकिन अगर कोई इस बारे में शोध करना चाहे तो पुख्ता जानकारी और स्रोत तलाशना कई बार मुश्किल होता है. अब इसी मुश्किल को आसान करने की कोशिश हो रही है.
विज्ञापन
बर्लिन की हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान जब मैं भारत और जर्मनी के संबंधों के मौलिक स्रोतों पर काम करना चाहती थी तो मुझे बहुत परेशानी झेलनी पड़ी. बड़ा सवाल यह था कि मुझे ये स्रोत कहां से मिलेंगे? इसी सवाल से डॉ. आनंदिता वाजपेयी को भी जूझना पड़ा है, जो हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी में रिसर्च एसोसिएट हैं और वह भारत और पूर्वी जर्मनी की सांस्कृतिक राजनीति पर शोध कर रही हैं. वह कहती हैं कि उनका प्रोजेक्ट "शीत युद्ध के सालों के दौरान भारत में जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (जीडीआर) की मौजूदगी" उन गतिविधियों पर नजर डालता है जो दोनों देशों के बीच 1952 से 1972 के बीच राजनयिक संबंधों की कमी को कहीं ना कहीं पूरा करती हैं. इसकी एक बढ़िया मिसाल रवींद्रनाथ टैगोर के रूप में देखी जा सकती है जिन्हें आज भी जर्मनी में याद किया जाता है.
अगर जर्मनी में भारत को लेकर कोई शोध करना चाहता है तो उसे संबंधित सामग्री कैसे और कहां से मिलेगी? इस सवाल का जवाब है- आर्काइव में. जर्मनी में जानकारी को जमा करने और उसे क्रमबद्ध तरीके से संभाल कर रखने की लंबी परंपरा है. जर्मनी की विदेश प्रसारण सेवा डॉयचे वेले में ऐतिहासिक आर्काइव की प्रमुख डॉ कोर्डिया बाउमन कहती हैं कि "हमें 18वीं सदी से ही व्यवस्थित तरीके से तैयार लेखागारों में संभाल कर रखे गए स्रोत और जानकारी मिलती हैं." जर्मनी में कई तरह के आर्काइव हैं, जिनमें विभिन्न जानकारियां मौजूद हैं. इनमें स्टेट आर्काइव, चर्च आर्काइव, यूनिवर्सिटी आर्काइव, व्यापार और कारोबार आर्काइव के अलावा डॉयचे वेले जैसे आर्काइव संस्थानों के नाम लिए जा सकते हैं.
भारत में छप रहा है जर्मन अखबार
जर्मन भाषा विश्व की लोकप्रिय भाषाओं में शामिल है. विदेशी भाषा सीखने वालों के बीच इसका महत्वपूर्ण स्थान है. ऐसे में भारत अछूता कैसे रहे. राजस्थान की राजधानी जयपुर के जर्मन प्रेमी तो वहां से एक अखबार भी निकालते हैं.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
अद्भुत पहल
गुलाबी नगरी जयपुर का जर्मन भाषा में छपने वाला अखबार "वारुम निस्ट वियर'' जनवरी 2014 से लगातार प्रकाशित हो रहा है. इस अखबार को भारत भर में 3000 से ज़्यादा लोग पढ़ते हैं.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
पढ़ने वाले
अखबार तभी चल सकता है जब पढ़ने वाले हों. अखबार का पहला अंक जनवरी 2014 में जयपुर की एमिटी यूनिवर्सिटी में जर्मन भाषा सीख रहे नौ सौ विद्यार्थियों को समर्पित किया गया.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
व्यापक उत्साह
अखबार का प्रकाशन जयपुर का जर्मन स्पीकर्स क्लब करता है. इसमें जर्मन भाषा जानने वाले लेखक, जर्मन नेटिव स्पीकर्स, टूरिस्ट गाइड और अध्यापक के साथ जर्मन भाषा सीख रहे विद्यार्थी जुड़े हुए हैं.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
क्वॉलिटी
पेशे से जर्मन अध्यापक और अखबार के संपादक देवकरण सैनी ने पत्रकारिता के साथ साथ जर्मन भाषा में भी स्नातकोत्तर किया है. अखबार की प्रूफ रीडिंग बर्लिन के आंद्रेयास लेम्बके करते हैं.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
सीखने में मदद
अखबार जर्मन भाषा सीखने की इच्छा रखने वाले लोगों का मददगार बना है. समूह में अखबार पढ़ने के अलावा "संज्ञा ढूंढो" जैसी गतिविधियां से भाषा को सीखना काफी आसान हो जाता है
तस्वीर: DW/J. Sehgal
जर्मनी की खबर
अखबार जर्मनी में होने वाली गतिविधियों पर भी नजर रखता है. हाल ही में अखबार के प्रकाशकों और पाठकों द्वारा म्यूनिख में हुई गोलीबारी में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष कार्यक्रम हुआ.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
सामाजिक मकसद
अखबार के प्रकाशक हर हफ्ते विभिन्न समसामयिक विषयों पर विचार गोष्ठियां भी आयोजित करते हैं. पिछले दिनों जयपुर में जर्मनी के बाल फिल्मों का महोत्सव भी हुआ था.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
ऑनलाइन पर उपलब्ध
अखबार में भारत के समस्याओं को प्रमुखता दी जाती है साथ ही जर्मनी में होने वाले घटनाचक्र पर भी बेबाकी से चर्चा की जाती है. अखबार जर्मनस्पीकर्सक्लब.डॉट कॉम पर ऑनलाइन भी पढ़ा जा सकता है.
तस्वीर: DW/J. Sehgal
8 तस्वीरें1 | 8
लेकिन अगर भारत में कोई टैगोर के बारे में जानकारी जुटाना चाहता है, तो वह कहां से शुरुआत करे? टैगोर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी हस्ती थे. दुनिया के बहुत से हिस्सों में उन्हें न सिर्फ भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है, बल्कि साहित्य और अन्य कलाओं में उनके योगदान को भी खूब सराहा जाता है. इसलिए जर्मनी में उनकी मौजूदगी राजधानी बर्लिन के कई लेखागारों में आपको मिलेगी. इनमें विदेश मंत्रालय का राजनीतिक आर्काइव, संघीय आर्काइव, प्रूसियन सांस्कृतिक विरासत प्रतिष्ठान का आर्काइव और बर्लिन का संघीय आर्काइव शामिल है.
इस सिलसिले में "आधुनिक भारत पर जर्मन आर्काइव (MIDA)" एक अहम परियोजना है जिसकी शुरुआत 2014 में हुई. तीन जर्मन संस्थानों ने इसे शुरू किया जिनमें जॉर्ज ऑगस्ट यूनिवर्सिटी गोएटिंगन का सेंटर फॉर मॉडर्न इंडियन स्टडीज, हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी बर्लिन का इंस्टीट्यूट फॉर एशिया एंड अफ्रीकन स्टडीज और बर्लिन का लाइबनित्स सेंटर फॉर मॉडर्न ओरिएंट शामिल हैं. भारत से जुड़े विषयों पर काम कर रहे इन संस्थानों को पता है कि शोध में किस तरह की परेशानियां सामने आती हैं, इसलिए उन्होंने इस बारे में जानकारी जमा करने और उस तक पहुंच को आसान बनाने की ठानी है.
जानिए जर्मनी से क्या क्या मंगाता है भारत
भारत-जर्मनी के बीच कारोबारी और तकनीकी संबंधों का विस्तार हो रहा है. यहां तक कि जर्मनी के कुछ राज्य भारत से पशुओं के चारे का भी आयात करते हैं. जानिए दोनों देश एक दूसरे से क्या क्या खरीदते हैं.
राइन नदी के किनारे बसा जर्मनी का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य नॉर्थराइन-वेस्टफेलिया, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जर्मनी के साथ होने वाले कुल कारोबार का लगभग 24.11 फीसदी व्यापार इसी राज्य से होता है. पिछले कुछ सालों में निर्यात घटा है. दोनों पक्षों के बीच मशीनरी और कैमिकल्स का बड़ा व्यापार है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Prisma
बाडेन व्युर्टेमबर्ग
भारत के साथ ट्रेड वॉल्यूम में इस राज्य का दूसरा स्थान है. यह राज्य भारत के साथ रसायनी पदार्थ, कपड़ा, गाड़ी की मशीनरी आदि का कारोबार करता है. हालांकि यहां से होने वाला मशीनरी का निर्यात पिछले कुछ सालों में घटा है, लेकिन अब भी राज्य, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल और ऑप्टिकल उत्पादों में भारत के साथ खासा व्यापार कर रहा है.
तस्वीर: Imago/Hofer
बवेरिया
इंडो-बवेरियन कारोबारी संबंध दोनों देशों के रिश्तों का मजबूत आधार है. मशीनरी, बवेरिया के निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा है. इसके अलावा इलेक्ट्रिकल उत्पादों, कंप्यूटर, कपड़ा, रसायन, धातु का व्यापार होता है. जहां अन्य राज्यों के साथ भारत का कारोबार घटा, तो वहीं तमाम आर्थिक चुनौतियों के बावजूद बवेरिया के साथ आर्थिक साझेदारी मजबूत हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Hans
बर्लिन
बर्लिन और भारत के कारोबार में साल 2014 के बाद ही तेजी आई है. भारत को यहां से मशीनी उपकरण, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल और ऑप्टिकल उपकरण का निर्यात किया जाता है. वहीं भारत से यहां गारमेंट्स का आयात किया जाता है. कैमिकल्स और चमड़ा कारोबार दोनों पक्षों के बीच घटा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Schwarz
ब्रैंडनबर्ग
भारत और ब्रैंडनबर्ग के बीच व्यापार मॉडरेट दर से बढ़ा है. इस राज्य के साथ भारत मशीनरी और कैमिकल्स का कारोबार करता है. साथ ही लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों में यह भारत का बड़ा साझेदार है. इसके अलावा कैमिकल्स, इलेक्ट्रिकल, खाद्य उत्पादों और पशुओं का चारा भी इस व्यापार में शामिल है.
तस्वीर: DW/R. Oberhammer
ब्रेमेन
ब्रेमेन के साथ होने वाला मेटल कारोबार हाल के वर्षों में घटा है. इस राज्य के साथ भारत मोटरव्हीकल क्षेत्र, मशीनरी, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल और ऑप्टिकल प्रॉडक्ट्स में कारोबार करता है. हालांकि राज्य भारत से टैक्सटाइल, मेटल उत्पादों और चमड़ा उत्पादों का आयात करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Jaspersen
हैम्बर्ग
यहां ट्रेड वॉल्यूम घटा है. इसका बड़ा कारण व्हीकल्स निर्यात में आई कमी है जिसमें एयरबस प्लेन की विशेष बिक्री भी शामिल है. राज्य का भारत के साथ मुख्य रूप से कैमिकल्स, गारमेंट और कृषि उत्पादों (एग्रो-प्रॉडक्ट्स) का व्यापार होता है. हालांकि इन एग्रो-प्रॉडक्ट्स के कारोबार में कुछ मंदी जरूर आयी है.
तस्वीर: picture-alliance/HAFEN-FOTOS.DE/Petra Schumacher
हेसे
जर्मनी का बैंकिंग हब कहे जाने वाले हेसे प्रांत के साथ भारत के कारोबारी संबंधों का विस्तार हुआ है. दोनों पक्षों के बीच सबसे अधिक कारोबार रसायनों और दवाओं से जुड़ा हुआ है. इसके साथ ही यह राज्य भारत के साथ चमड़े का कारोबार भी करता है.
तस्वीर: picture-alliance/Dumont/G. Knoll
लोअर सेक्सनी
इस राज्य का कारोबार भारत के साथ घटा है. लेकिन मशीनरी कारोबार जस का तस बना हुआ है. भारत के साथ इसका मोटर व्हीकल और कैमिकल्स का कारोबार होता है लेकिन पिछले कुछ समय में गिरावट आई है. वहीं गारमेंट क्षेत्र में दोनों का कारोबार बढ़ा है.
तस्वीर: DW/A. Tauqeer
मैक्लेनबुर्ग वेस्ट-पोमेरेनिया
साल 2014 के आंकड़ों के मुताबिक भारत-जर्मनी की व्यापारिक साझेदारी में इसका हिस्सा 0.41 फीसदी का है. दोनों के बीच सबसे अधिक कारोबार मशीनरी क्षेत्र में होता है. इसके बाद लकड़ी व इलेक्ट्रिकल उत्पादों, ऑप्टिकल प्रॉडक्ट्स का स्थान आता है. साथ ही जर्मनी बड़े स्तर पर खाद्य पदार्थ और पशु चारा भारत से आयात करता है.
तस्वीर: DW/Shoib Tanha Shokran
राइनलैंड पैलेटिनेट
भारत के साथ इस राज्य का भी ट्रेड वॉल्यूम बढ़ रहा है. हालांकि साल 2010 से लेकर साल 2013 तक दोनों का ट्रेड वॉल्यूम घटा था लेकिन 2014 के बाद से माहौल सकारात्मक बना हुआ है. राज्य के साथ मुख्य कारोबार कैमिकल्स का है. इसके अलावा मशीनरी बेहद अहम है. साथ ही चमड़ा उत्पादों का भी बड़ा कारोबार दोनों में होता है.
तस्वीर: Imago/Westend61
सारलैंड
भारत के साथ इस राज्य का भी ट्रेड वॉल्यूम घटा है. दोनों के बीच होने वाले मेटल प्रॉडक्ट्स और मशीनरी कारोबार में तेजी से गिरावट आई है. इसके इतर दोनों पक्षों के बीच मोटर व्हीक्लस और कच्चे माल का व्यापार बड़ा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/U.Baumgarten
सेक्सनी
जर्मन के पूर्वी राज्यों पर नजर डालें तो सेक्सनी का भारत के साथ बड़ा व्यापार है. इस राज्य के साथ भारत का मशीनरी निर्यात बढ़ा है. मुख्य रूप से यह राज्य कागज, गाड़ी के पुर्जे का व्यापार करता है. इसके अलावा कैमिकल, मशीनरी, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल और ऑप्टिकल उत्पाद प्रमुख हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Burgi
सेक्सनी अनहाल्ट
भारत के साथ इस राज्य का व्यापार साल 2014 के बाद बढ़ा है. इस राज्य के साथ कैमिकल्स, मशीनरी उत्पादों, धातु में बड़ा कारोबार होता है. साथ ही भारत की दवा कंपनियों समेत धातु और कपड़ा क्षेत्र के लिए भी यहां बाजार सकारात्मक है.
तस्वीर: DW/M. Sileshi Siyoum
श्लेसविग होल्सटाइन
अन्य राज्यो की तुलना में इसका कारोबार भारत के साथ घटा है. राज्य, मुख्य रूप से भारत के साथ मशीनरी, कैमिकल्स, इलैक्ट्रिल उत्पादों और कंप्यूटर प्रोसेसिंग के क्षेत्र में व्यापार करता रहा है जिसमें कमी आई है. लेकिन टैक्सटाइल कारोबार साल 2014 के बाद बढ़ा है.
तस्वीर: picture alliance/akg-images
थ्युरिंजिया
इस जर्मन राज्य के साथ भारत का ट्रेड वॉल्यूम घटा है. इस राज्य के साथ भारत, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल, ऑप्टिकल प्रॉडक्ट, मशीनरी और इलैक्ट्रोनिक उत्पादों में व्यापार करता है. वहीं भारत से यह राज्य टैक्सटाइल्स और इलेक्ट्रिकल उत्पादों का आयात करता है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPHOTO
16 तस्वीरें1 | 16
इस प्रोजेक्ट का मकसद भारत और जर्मनी के संबंधों पर मुक्त रूप से उपलब्ध आंकड़ों के जरिए समृद्ध जानकारी मुहैया कराना है. अब तक इस डाटाबेस में 10 हजार फाइलें जमा हो चुकी हैं. इसके अलावा एक डिजिटल आर्काइव गाइड भी तैयार की जा रही है ताकि जर्मनी में भारत के बारे में सभी संबंधित विषयों के संग्रहों को एक साथ पेश किया जा सके. मीडा की रिसर्च एसोसिएट डॉ आनंदिता वाजपेयी कहती हैं कि यह प्रोजेक्ट आधुनिक भारतीय इतिहास और 1706 से लेकर 1989 तक भारत और जर्मनी के संबंधों के इतिहास को सूचीबद्ध करना चाहता है और उसका विश्लेषण भी. वह कहती हैं, "मीडा का मकसद भारत और जर्मनी के जटिल इतिहासों के साथ साथ दक्षिण एशिया के इतिहास के नए आयामों की भी पड़ताल करना चाहता है. जर्मन आर्काइव में मौजूद स्रोतों के जरिए इस तरह के नए परिपेक्ष्य के पर्दा हटाया जा सकता है. इन आर्काइव पर शायद अभी तक दक्षिण एशिया के स्कॉलरों का समुचित ध्यान नहीं गया है और वे पूरी तरह औपनिवेशक लेखागारों पर ही निर्भर हैं."
वापस टैगोर से जुड़ी रिसर्च पर लौटते हैं. मीडा डाटाबेस में अगर सर्च करें तो आपके सामने अलग अलग दस्तावेज आएंगे लेकिन वे सब आपस में जुड़े हैं जो विभिन्न जर्मन लेखागारों से लिए गए हैं. विदेश मंत्रालय के आर्काइव और संघीय आर्काइव के दस्तावेज बताते हैं कि टैगोर ने 1921, 1926 और 1930 में जर्मनी की यात्रा की थी. बर्लिन के संघीय स्टेट आर्काइव में तस्वीरों के साथ इन यात्राओं का ब्यौरा मौजूद है. 1921 में बर्लिन की यात्रा में टैगोर ने फ्रीडरिष विल्हेम यूनिवर्सिटी में "द मैसेज ऑफ द फॉरेस्ट" नाम से एक भाषण दिया था. इसी को अब हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है. टैगोर का यह भाषा शैलेक डिस्क पर रिकॉर्ड किया गया था और हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी के साउंड आर्काइव में जाकर आज भी इसे सुना जा सकता है.
जर्मनी में जब नाची राधा
जर्मनी के शहर श्टुटगार्ट में हुआ भारतीय फिल्म फेस्टिवल भारत के सिनेमा के बारे में ही नहीं, समाज के बारे में भी काफी कुछ बता गया. फेस्टिवल की एक झलक तस्वीरों के जरिए...
तस्वीर: DW/V. Kumar
इंडिया जैसा सीन हो गया
जर्मनी के हिसाब से यह अद्भुत नजारा है. हिन्दी फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर फिल्म का गाना राधा पूरे जोर से बज रहा है. सड़क के बीचोबीच मजमा लगा है. जर्मन, भारतीय और श्टुटगार्ट घूमने आए विदेशी सब के सब घेरा बनाकर एक लड़की को इंडियन गानों पर थिरकता देख रहे हैं. श्टुटगार्ट इंडियन फिल्म फेस्टिवल में आपका स्वागत है.
तस्वीर: DW/V. Kumar
भारत पसंद है
जर्मन लोग भारतीय लिबास में अच्छे लगते हैं. खासकर महिलाएं. वे सिर्फ भारतीय फिल्मों की दीवानी नहीं हैं. एक के बाद एक कई फिल्में देखने के बाद सुस्ताती ये दर्शक.
तस्वीर: DW/V. Kumar
जुबान पर चढ़ी जुबान
जुबान फिल्म के म्यूजिक ने सबका ध्यान खींचा. एक हकलाते युवा की गायक बनने की यात्रा को संगीत के जरिये पेश करती इस फिल्म को देखने के बाद सबकी जुबां पर इसका म्यूजिक चढ़ गया था.
तस्वीर: DW/V. Kumar
दर्शक
भारतीय फिल्मों को देखने चार दिन में 5000 से ज्यादा लोग सिनेमा हॉल पहुंचे.
तस्वीर: DW/V. Kumar
तीन पत्ती
13वें श्टुगार्ट फिल्म फेस्टिवल में कुल 60 भारतीय फिल्में दिखाई गईं. इनमें निल बटे सन्नाटा जैसी भारत में लोकप्रिय रही फिल्में भी थीं और पार्च्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी फिल्में भी.
तस्वीर: DW/V. Kumar
राजनीति कहां है
एक आयोजक ने कहा कि भारत से राजनीतिक फिल्में बहुत कम आती हैं जबकि वे ऐसी फिल्मों का इंतजार करते हैं.
तस्वीर: DW/V. Kumar
मुंबई की जुड़वां बहन
श्टुटगार्ट फिल्म फेस्टिवल का यह 13वां संस्करण था. श्टुटगार्ट मुंबई का ट्विन सिटी है. मुंबई में हर साल जर्मन वाइन फेस्टिवल होता है और यहां इंडियन फिल्म फेस्टिवल.
तस्वीर: DW/V. Kumar
थीथी बनी द बेेस्ट
राम रेड्डी की कन्नड़ फिल्म थीथी को सर्वोत्तम फिल्म चुना गया और जर्मन स्टार ऑफ इंडिया अवॉर्ड से नवाजा गया. मई में भारत में रिलीज हुई यह फिल्म ऐसे कलाकारों को लेकर बनाई गई है जो प्रफेशनल ऐक्टर्स नहीं हैं.
तस्वीर: Filmbüro Baden-Württemberg
अ फार आफ्टरनून
अ फार आफ्टरनून फिल्म की निर्देशक श्रूति हरिहर सुब्रमण्यन कहती हैं कि डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना आसान होता है जब आपको फंडिंग की दिक्कत ना हो. तब आप अच्छी फिल्में बना सकते हैं लेकिन भारत में इसके मौके ज्यादा नहीं हैं.
तस्वीर: DW/V. Kumar
द वर्लविंड
श्याम सुंदर चटर्जी की फिल्म द वर्लविंड दिखाई गई. चटर्जी एनिमेशन फिल्में बनाते हैं और कहते हैं कि फिलहाल भारत में एनिमेशन फिल्मों को कार्टून फिल्म ही समझा जाता है.
तस्वीर: DW/V. Kumar
जर्मन फिल्मकारों को पसंद भारत
जॉर्ज हाइंत्सेन और फ्लोरियान हाइंत्सेन भारत के एक बेहद पुराने सिनेमा हॉल पर डॉक्युमेंट्री बनाकर लाए हैं. उनका कहना है कि भारत में ना कहानियों की कमी है, ना सिनेमाई प्रतिभा की.
तस्वीर: DW/V. Kumar
कैसी हैं भारत की लड़कियां
यह मानुएला हैं, जिन्होंने भारत की टैक्सी ड्राइवर देवकी पर फिल्म बनाई है. मानुएला कहती हैं कि भारत की लड़कियां मजबूत हैं और उनकी कहानियां कहना जरूरी है. लेकिन मानुएला को अपनी भारत यात्राओं में महसूस हुआ कि जितना ज्यादा और तेजी से बदलाव होना चाहिए, वैसा हो नहीं रहा है.
तस्वीर: DW/V. Kumar
अगली बार के लिए सोच नहीं
अभिषेक बनर्जी शॉर्ट फिल्म 'अगली बार' के ऐक्टर हैं. वह बताते हैं कि नए फिल्मकारों के लिए भारत में सबसे बड़ा संघर्ष पहली फिल्म बनाना होता है और स्टार्स से बंधी इंडस्ट्री में नई कहानियों के लिए जगह बनाना आसान नहीं होता.
तस्वीर: DW/V. Kumar
13 तस्वीरें1 | 13
1959 में जब जीडीआर के तत्कालीन प्रधानमंत्री ऑटो ग्रोटेवॉल ने भारत का दौरा किया था, तो भाषण की यह रिकॉर्डिंग भी उनके साथ ले जाई गई थी. ग्रोटेवॉल टैगोर के जरिए भारत और जर्मनी के बीच सांस्कृतिक स्तर पर संबंधों को सघन करना चाहते थे. आनंदिता वाजपेयी कहती हैं, "सांस्कृतिक संबंध मजबूत बनाने के अहम निशान और साथ ही साथ भारत द्वारा जीडीआर को आधिकारिक मान्यता दिए जाने के बाद पूरे भारत में भारत-जीडीआर मैत्री समितियां बनाई गईं."
इस तरह मीडा डाटाबेस दक्षिण एशिया और जर्मनी, दोनों ही जगह शोधार्थियों के लिए स्रोत बन सकता है. साथ ही दुनिया भर के वे रिसर्चर भी इससे लाभ ले सकते हैं जिनकी दिलचस्पी इस तरह के इतिहासों में है. इसके अलावा जो लोग भारत और जर्मनी के सबंधों और इन दोनों देशों के साझा इतिहास को समझना और परखना चाहते हैं, उनके लिए यह डाटाबेस बहुत काम आ सकता है.
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए देखें: www.project-mida.de.