विकास के स्थायी उपायों को बढ़ावा देने के लिए इंडो-जर्मन साझेदारी में एक अरब यूरो के प्रोजेक्ट पर सहमति बन गई है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल मई में जर्मन चांसलर के साथ इस मसौदे पर हस्ताक्षर किए थे.
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विकास के हरित और स्थायी मॉडलों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मई में जर्मनी में आयोजित जी7 सम्मेलन के दौरान जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. नवंबर आते आते दोनों देशों ने जलवायु संकट के खिलाफ एक अरब यूरो की लागत वाली योजनाओं पर सहमति बना ली है.
इन योजनाओं का मकसद भारत के उन कदमों को मजबूत बनाना है जिससे देश सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण तरीके से साफ ऊर्जा की ओर बढ़ सके. यह निवेश उन योजनाओं में होगा जिनसे भारत में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का विस्तार हो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ईको-फ्रेंडली और सुरक्षित बनाया जा सके, और शहरों का स्थायी, जलवायु-अनुरुप और समावेशी विकास हो.
सहयोग परियोजनाओं पर सहमति के बाद जर्मनी की विकास मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने जर्मन राजधानी बर्लिन में भारत के साथ साझेदारी की अहमियत के बारे में कहा, "एक वैश्विक समुदाय के रूप में हमारे सामने जो कठिनाइयां हैं उनका सामना करने में भारत हमारा एक अहम पार्टनर है."
पेरिस जलवायु समझौता हो या कोई भी दूसरा वैश्विक लक्ष्य, विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में एक भारत के साथ लिए बिना कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा. इस पर विकास मंत्री ने कहा, "विश्व जलवायु सम्मेलन के दौरान हुई मुश्किल बातचीत ने साफ दिखा दिया कि हमें भारत जैसे प्रमुख पार्टनरों के साथ ठोस कदम उठाने होंगे. अगर जलवायु को बचाने के लिए तेजी से और बड़े बदलाव लाने हैं तो इस दिशा में आगे बढ़ना ही रास्ता है."
निर्णायक भूमिका में रहेगा भारत
एक तरक्की करती हुए विशाल अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं के सफल होने या ना होने में निर्णायक भूमिका होती जा रही है. हाल ही में संपन्न हुए विश्व जलवायु सम्मेलन में भारत ने 2030 तक अपने लिए लक्ष्य तय किया है कि वह गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा का उत्पादन 500 गीगावॉट करेगा. यह अभी के ग्रीन पावर के मुकाबले करीब तीन गुनी बढ़ोत्तरी होगी. 2070 तक तो भारत ने क्लाइमेट न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है जिसके अंतर्गत 2.6 करोड़ हेक्टेयर के इलाके में जंगलों को रीस्टोर करना होगा.
दुनिया के सबसे ज्यादा अनसस्टेनेबल महानगर
दुनिया के कई महानगर तेजी से बढ़ती आबादी, दूषित हवा, पानी की कमी और मौसमी परिवर्तनों से जूझ रहे हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने भारी दबाव झेलने वाले अनसस्टेनेबल महानगरों की लिस्ट तैयार की है.
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1. दार ए सलाम
तंजानिया के इस सबसे बड़े शहर की आबादी अभी 75 लाख है. लेकिन 2050 तक यह 118 फीसदी बढ़कर 1.64 करोड़ हो सकती है. मौसमी बदलावों के कारण आने वाले बरसों में यह महानगर खूब बारिश का सामना करेगा.
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2. नैरोबी
केन्या की राजधानी नैरोबी में फिलहाल 52 लाख लोग रहते हैं. 2050 तक इस मेगासिटी की आबादी दोगुनी होकर 1.04 करोड़ होने का अनुमान है. जलवायु में हो रहे बदलाव नैरोबी के सामने सूखे का संकट खड़ा करेंगे.
तस्वीर: Tony Karumba/AFP/Getty Images
3. किन्शासा
डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो की राजधानी किन्शासा की आबादी भी 2050 तक 84 फीसदी बढ़कर 2.9 करोड़ हो सकती है. यह महानगर सूखे से संघर्ष करने की राह पर है
तस्वीर: REUTERS
4. लागोस
नाइजीरिया की वित्तीय राजधानी कहे जाने वाले लागोस के 1.55 करोड़ बाशिंदे अभी ही बेहद दूषित हवा से जूझ रहे हैं. आने वाले 28 साल में शहर की आबादी करीब दोगुनी हो जाएगी और मौसम बेहद गर्मी और खूब बारिश लाएगा.
तस्वीर: Adeyinka Yusuf/AA/picture alliance
5. खारतूम
सूडान की राजाधानी खारतूम भी तीन दशकों के भीतर दोगुनी आबादी देखेगी. 2050 में इस शहर की जनसंख्या 1.12 करोड़ पहुंच सकती है. दूषित हवा से हांफता ये महानगर भविष्य में गर्मी और सूखे से भी जूझेगा.
तस्वीर: AFP/Getty Images
6. लुआंडा
अफ्रीकी देश अंगोला की राजधानी लुआंडा भी आबादी में 62 फीसदी इजाफा देखेगी. फिलहाल 90 लाख लोगों को रिहाइश देने वाला यह महानगर मौसमी बदलावों के कारण खूब गर्मी और खूब बारिश झेल सकता है.
तस्वीर: Manuel Luamba/DW
7. कराची
1.69 करोड़ की आबादी वाला कराची पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर है. 2050 तक यह तटीय महानगर ढाई करोड़ लोगों का बसेरा होगा. दूषित हवा से जूझ रहे कराची में मौसमी बदलाव खूब गर्मी और फिर खूब बारिश ला सकते हैं.
तस्वीर: IMAGO/Xinhua
8. लाहौर
पाकिस्तानी पंजाब प्रांत की राजधानी और देश का दूसरा बड़ा शहर लाहौर बीते एक दशक से भयानक वायु प्रदूषण का सामना कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि 2050 तक लाहौर की गर्मियां बहुत ही दुश्वार होंगी. तब 2.14 करोड़ लोगों को इससे जूझना होगा.
तस्वीर: Tanvir Shahzad/DW
9. सूरत
भारत की डायमंड सिटी कहा जाने वाला गुजरात का सूरत शहर अभी 79 लाख लोगों का बसेरा है. शहर वायु प्रदूषण की चपेट में है. आने वाले 28 साल में इस महानगर की आबादी 1.20 करोड़ होने का अनुमान है. वक्त बीतने के साथ सूरत का मौसम गीला और गर्म होता जाएगा.
तस्वीर: EatthTime (Google)
10. अहमदाबाद
गुजरात का सबसे बड़ा शहर अहमदाबाद भी 2050 तक 1.30 करोड़ लोगों का आशियाना होगा. अभी शहर की आबादी करीब 85 लाख है. मौसमी बदलाव अहमदाबाद में और ज्यादा तपिश पैदा करेंगे.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
नंबर 11 से 18 तक
अनसस्टेनेबल मेगासिटीज की लिस्ट में अहमदाबाद के बाद हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, पुणे, बेंगलुरू और ढाका जैसे दक्षिण एशियाई महानगर हैं. दिल्ली और कोलकाता जहां बढ़ती तपिश झेलेंगे. वहीं पुणे ज्यादा बारिश झेलेगा और बाकी महानगर गर्मी और बारिश से संघर्ष करेंगे.
तस्वीर: DW
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जर्मन चांसलर शॉल्त्स ने 2030 तक भारत को उसके जलवायु संबंधित लक्ष्यों को हासिल करने में कम से कम 10 अरब यूरो की मदद का वादा किया था. उसी आश्वासन को ठोस प्रोजेक्ट के रूप में अमली जामा पहनाने की शुरुआत इस एक अरब यूरो के परियोजनाओं पर सहमति के साथ हुई है. इस राशि का एक बड़ा हिस्सा जर्मन केंद्र सरकार की एक एजेंसी केएफडब्ल्यू विकास बैंक (KfW) से आसान शर्तों के साथ कर्ज के रूप में दिया जाएगा और बाद में भारत इसे वापस लौटाएगा.
भारत में शुरु होने वाली जर्मनी की सभी नई संयुक्त परियोजनाएं किसी ना किसी तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए लगाई जाएंगी. आने वाले सालों में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ऐसे प्रोजेक्टों की संख्या और दायरा लगातार बढ़ाते जाने की योजना है.
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साफ ऊर्जा के मामले में जर्मनी का लक्ष्य
अगर हर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके को मिला कर देखें तो हाल के सालों में जर्मन-भारत साझेदारी की मदद से सालाना करीब 10 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया है. इसके अलावा जर्मनी की मदद से भारत में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन, ट्रांसमिशन और स्टोरेज क्षमता को काफी उन्नत किया गया है.
भारत में अब तक अक्षय ऊर्जा से बनी बिजली करीब 4 करोड़ लोगों तक पहुंची है. अगले 15 सालों में भारतीय शहरों की आबादी आज के 37 करोड़ से बढ़ कर 51 करोड़ होने का अनुमान है. ऐसे में जर्मनी शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर करने में भारत की मदद करना चाहता है.
जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ढांचा कई दशकों से काफी मजबूती से शहरी भागदौड़ का बोझ उठाता आया है. 2023 तक भारत विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन सकता है. चीन, अमेरिका और यूरोप के बाद कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में भारत का विश्व में चौथा स्थान है. साथ ही देश जलवायु परिवर्तन से बहुत ज्यादा प्रभावित है और आज भी अत्यंत गरीबी और कुपोषण का सामना भी करता है. इस लिहाज से जर्मनी और भारत मिलजुल कर विकास की ऐसी कहानी लिखना चाहते हैं जिसमें समाज के कमजोर तबके को भी हिस्सा मिले.
कांच के फर्श वाला मेट्रो स्टेशन, पांव तले प्रदर्शनी
ग्रीस के ऐतिहासिक एथेंस शहर में एक नया मेट्रो स्टेशन खोला गया है, जो अपने आप में एक पूरा संग्रहालय है. इस स्टेशन का फर्श कांच का है और चलते वक्त नीचे ऐतिहासिक चीजें दिखाई देती हैं.
तस्वीर: Louiza Vradi/REUTERS
पांव तले इतिहास दिखाता स्टेशन
एथेंस के इस स्टेशन में फर्श कांच का है और पांव तले नजर आती हैं हजारों साल पुरानी चीजें.
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चौथी सदी की इमारत
इस स्टेशन को ईसापूर्व चौथी सदी की इमारत में ही बनाया गया है, जो खुदाई में मिली थी. चारों तरफ सिरामिक की बनी चीजें हैं, जिन्हों कांच की दीवारों, फर्श और छत के तले रखा गया है.
तस्वीर: Louiza Vradi/REUTERS
प्राचीन घर में होने जैसा
इस स्टेशन को अक्टूबर में ही जनता के लिए खोला गया है. पुरातत्वविद स्टेला क्रिसलाकी कहती हैं कि यहां आने वाले यात्रियों को प्राचीन पिरायस घर में होने का अहसास मिलेगा.
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छोटी प्रदर्शनी
यह स्टेशन एक छोटे संग्राहलय या प्रदर्शनी जैसा है, जहां प्राचीन जीवन की झलक पेश की गई है. पुरातन सिंचाई व्यवस्था से लेकर कुएं और औजारों तक हजारों चीजें यहां दिखाई गई हैं.
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अहम स्टेशन
यह स्टेशन एथेंस की सबसे व्यस्त बंदरगाह को एयरपोर्ट से जोड़ता है, लिहाजा बड़ी संख्या में विदेशी इस स्टेशन से गुजरेंगे.
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जमीन के नीचे काम
जब खुदाई चल रही थी तो कुओं के भीतर पुरातत्वविदों को प्राचीन चीजें मिलीं. वे रस्सियों के सहारे कुओं में उतरते थे और वहां काम करते थे.
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73 करोड़ यूरो
यह शायद पहला ऐसा स्टेशन है जिसे बनाने में पुरातत्वविदों और इंजीनियरों ने बराबर भूमिका निभाई है, जिसके निर्माण पर 73 करोड़ यूरो का खर्च आया है.
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दस साल की यात्रा
जमीन से 17 मीटर नीचे इस स्टेशन को खुदाई से लेकर तैयार करने तक में दस साल लगे हैं. इस लाइन पर कुल छह स्टेशन हैं जिनके लिए 7.6 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई है.