1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मन चांसलर का भारत दौरा: "सब चंगा सी"

रोजालिया रोमानिच
२५ अक्टूबर २०२४

भूराजनैतिक तनावों के बीच जर्मनी भारत के साथ सहयोग को गहरा बनाने पर जोर दे रहा है. लेकिन नई दिल्ली में सातवीं मंत्री स्तरीय बैठक के केंद्र में और भी बहुत कुछ था. दोनों देशों ने 27 सहयोग समझौतों पर दस्तखत किए.

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भारत में
दिल्ली में जर्मन चांसलर के स्वागत में कई जगहों पर बड़े बड़े बोर्ड लगे नजर आते हैंतस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

इन दिनों दिल्ली की सड़कों से गुजरते हुए जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की ठंडी नजरों से बचना मुमकिन नहीं. भारत की राजधानी के बड़े चौराहों पर जर्मनी से आए मेहमान के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे. ओलाफ शॉल्त्स और उनके कई मंत्री आपसी सहयोग को बढ़ाने के मकसद से एक बड़े आर्थिक प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंचे थे.  

शॉल्त्स-मोदी बैठक: जर्मनी में चार गुना ज्यादा भारतीय कामगारों को वीजा

भारत को लुभाने की कोशिश में जर्मनी

बैठक के अंत में दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के 27 दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए जिनमें शोध, अक्षय ऊर्जा और सुरक्षा समझौते शामिल हैं. शॉल्त्स ने यूरोपीय संघ के साथ 17 सालों से चल रही मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत में तेजी लाने पर जोर दिया. उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के बाद कहा, "अब इतने सालों की बातचीत को मुकाम तक पहुंचाने का समय आ गया है."

भारत और जर्मनी में सहयोग के 27 समझौते

01:51

This browser does not support the video element.

जर्मन सरकार ने भारत के कुशल कामगारों को जर्मनी आने के लिए प्रोत्साहित भी किया. इस समय करीब 1 लाख 40 हजार भारतीय जर्मनी में काम कर रहे हैं. जर्मनी उनकी संख्या बढ़ाना चाहता है, खासकर स्वास्थ्य और आईटी सेक्टर में. बैठक के बाद जर्मन चांसलर शॉल्त्स के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जर्मनी ने भारत के कुशल कामगारों को हर साल दिए जाने वाले वीजा की संख्या 20 हजार से बढ़ाकर 90 हजार करने का फैसला किया है. एक ओर दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में हर महीने 10 लाख नए प्रशिक्षित लोग श्रम बाजार में आ रहे हैं, तो जर्मनी में कुशल कामगारों की भारी कमी है.

आर्थिक मुद्दों पर चर्चा में पूंजी निवेश का मुद्दा प्रमुख रहा क्योंकि चीन में हो रहे राजनीतिक विकास के मद्देनजर जर्मनी अपने कारोबार को विस्तार देना चाहता है. लोकतांत्रिक भारत को वह अच्छा विकल्प समझता है. प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शॉल्त्स ने कहा, "भारत दक्षिण पूर्व एशिया में स्थिरता का एक स्तंभ है."

जर्मन चांसलर और भारतीय प्रधानमंत्री ने एक दूसरे के लिए भरपूर गर्मजोशी दिखाईतस्वीर: Markus Schreiber/AFP/Getty Images

बहुमुखी संभावनाओं का देश भारत

विशेषज्ञ जर्मन सरकार द्वारा भारत के नए मूल्यांकन की बात कर रहे हैं, हाल ही में तय नई भारत रणनीति से इसकी पुष्टि होती है. चीन के मामले में जर्मनी सुरक्षात्मक रवैया अपना रहा है जबकि भारत पर जर्मन सरकार का दस्तावेज व्यावहारिकता का कसीदा पढ़ने जैसा है. देश में बढ़ते राष्ट्रवाद की आलोचना सिर्फ हाशिए पर हुई. इसके बदले केंद्र में यह सवाल था कि नजदीकी के मौके का फौरी इस्तेमाल कैसे हो.

भारत के आर्थिक विकास के आंकड़े प्रभावित करने वाले हैं और यदि विकास की दर स्थिर रहती है तो भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को पीछे छोड़ सकता है. जर्मनी इसमें भारी मौके देखता है. लेकिन जर्मन अर्थव्यवस्था इस मौके का कितनी जल्दी फायदा उठाएगी, यह साफ नहीं है. पड़ोसी चीन में जर्मन निवेश अभी भी भारत के मुकाबले कई गुना है. बर्लिन के थिंक टैंक ग्लोबल सॉल्यूशन इनिशिएटिव के क्रिस्टियान कास्ट्रॉप कहते हैं, "अंत में जर्मनी को दोनों की जरूरत होगी. चीन में रुचि बनी रहेगी लेकिन भारत दिलचस्प खिलाड़ी होता जाएगा. भारत जैसा देश जर्मनी के लिए सिर्फ आर्थिक तौर पर नहीं, राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है."

भारत और जर्मनी हर दो साल में अंतर सरकारी परामर्श बैठक करते हैं जिसका मकसद बहु आयामी रिश्तों को और मजबूत करना हैतस्वीर: AP/picture alliance

इंडो पैसिफिक के इलाके की नई बड़ी ताकत भारत पश्चिम के नेताओं के साथ बातचीत में खुद को ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में देखता है. भारत ब्रिक्स और जी-20 संगठनों का सदस्य है और वह जर्मनी, जापान और ब्राजील की तरह सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का दावेदार है. भारतीय प्रधानमंत्री के उन देशों के साथ भी अच्छे संबंध हैं जिनके साथ दूसरे बात नहीं करते, जैसे कि रूस. 

व्यावहारिक नेता हैं मोदी और शॉल्त्स

नरेंद्र मोदी इस बात को बहुत महत्व देते हैं कि भारत तटस्थ रहेगा. अब तक भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की है. जर्मन-भारत शिखर सम्मेलन से ठीक पहले नरेंद्र मोदी रूस के कजान शहर में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेकर वापस लौटे हैं जहां उन्होंने फिर से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गले लगाया.

ओलाफ शॉल्त्स इसे व्यावहारिक नजरिए से देखते हैं. शायद इसलिए भी कि वे मोदी के कूटनीतिक संतुलन में एक मौका देखते हैं. भारतीय प्रधानमंत्री ने युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में मध्यस्थता की पेशकश की है. मोदी के प्रस्ताव पर शॉल्त्स ने कहा, "यह अच्छा है कि भारत जैसा एक देश इसमें आगे बढ़ने में मदद देने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है." जब चांसलर ने यह कहा कि इस युद्ध का आखिरकार अंत होना चाहिए तो मोदी ने सहमति में सिर हिलाया.

चांसलर ने चेतावनी दी कि ग्लोबल साउथ के भारत जैसे देशों के बढ़ते महत्व और उनके अलग नजरिए को समस्या नहीं समझा जाए. जर्मनी, यूरोप और पुराने औद्योगिक देशों को समझ लेना चाहिए कि भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील कल के विश्व के सहयोगी होंगे. चांसलर ने कहा कि इस पार्टनरशिप की तैयारी आज ही करनी होगी.

चीन लगातार अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है और भारत भी उसकी बराबरी करना चाहता है और वह इस दिशा में कदम भी उठा रहा हैतस्वीर: Jason Lee/REUTERS

भरोसे का संकेत है सैनिक सहयोग

चांसलर की ये बातें नई दिल्ली में पसंद की जा रही हैं, जहां जर्मनी से बहुत उम्मीदें हैं. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ऊम्मू सलमा बावा का कहना है कि भारत जर्मनी का पसंदीदा सहयोगी होना चाहता है. उम्मीदें अर्थव्यवस्था और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में हैं. शिखर सम्मेलन में एक समझौता ऐसा भी हुआ जो अधिकारियों और उद्यमों के बीच गोपनीय सूचनाओं के आदान प्रदान को संभव बनाएगा. इसके अलावा दोनों देश सैन्य क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाएंगे.

भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा और इंडो पैसिफिक में कारोबारी रास्ते की सुरक्षा के लिए अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाना चाहता है. साथ ही वह हथियारों की खरीद के मामले में रूस पर निर्भरता भी घटाना चाहता है. जर्मनी ने भारत को पनडुब्बियां बेचने की पेशकश की है. साथ ही इस समय भारतीय नौसेना के लिए छह पनडुब्बियां बनाने के समझौते पर भी बातचीत चल रही है. लंबे समय से जर्मनी हथियारों के निर्यात पर अपने सख्त कानूनों के कारण हिचकिचाता रहा है लेकिन अब सैनिक सहयोग के लिए तैयार होना दोनों देशों के संबंधों में नए भरोसे का प्रतीक है. जैसा कि नरेंद्र मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जर्मन में कहा, "आलेस क्ला, आलेस गूट" यानी सब ठीक, सब अच्छा. या कहें, "सब चंगा सी".

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें