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राजनीतिइंडोनेशिया

दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में चुनाव

आरती एकावाती
१४ फ़रवरी २०२४

इंडोनेशिया के मतदाता 14 फरवरी को नए राष्ट्रपति और संसद का चुनाव कर रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल देश में इन चुनावों के जरिए दस साल में पहली बार नेतृत्व में बदलाव होगा.

इंडोनेशिया चुनाव
इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव, जर्मनी में रह रहे मतदाताओं ने किया मतदानतस्वीर: Arti Ekawati/DW

इंडोनेशिया के मतदाता बुधवार को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के अलावा संसद और स्थानीय विधायी निकायों के सदस्यों का भी चुनाव करेंगे. इसके लिए वे बैलेट पेपर के जरिए अपना वोट डालेंगे.

इंडोनेशिया एक द्वीपसमूह है, जो करीब 17 हजार द्वीपों से मिलकर बना है. यहां के 27 करोड़ लोगों में से 20.4 करोड़ लोगों ने वोट डालने के लिए रजिस्ट्रेशन किया है. ये मतदाता तीन अलग-अलग टाइम जोन में फैले हुए हैं. पूर्व में पापुआ से लेकर पश्चिम में पांच हजार किलोमीटर दूर सुमात्रा के सिरे तक.

 

इंडोनेशिया के चुनाव आयोग के मुताबिक, मतदाताओं में सबसे बड़ी हिस्सेदारी युवाओं की है. 55 फीसदी रजिस्टर्ड मतदाताओं की उम्र 17 से 40 साल के बीच है.

मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो (जोकोवी) अपना दूसरा कार्यकाल खत्म कर रहे हैं. कार्यकाल की सीमा तय होने के चलते अब वे राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते. इसलिए इन चुनावों के जरिए इंडोनेशिया को दस साल बाद नया राष्ट्रपति मिलेगा.

दौड़ में कौन शामिल?

राष्ट्रपति बनने के लिए तीन प्रत्याशी मैदान में हैं- गंजर प्रणोवो, अनीस बासवेदन और प्रबोवो सुबिआंतो. गंजर प्रणोवो और अनीस बासवेदन पूर्व गवर्नर हैं और 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं. वहीं, 72 साल के प्रबोवो सुबिआंतो मौजूदा रक्षा मंत्री हैं.

सुबिआंतो सेना की स्पेशल फोर्स में कमांडर रह चुके हैं. वे लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं. इससे पहले वे 2014 और 2019 में जोकोवी से चुनाव हार चुके हैं.

इस बार अपनी जीत की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सुबिआंतो ने मौजूदा राष्ट्रपति जोकोवी के लोकप्रिय बेटे जिब्रान राकाबुमिंग राका से हाथ मिलाया है. राका उनके साथी के तौर पर उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.

36 साल के राका, सुबिआंतो की आधी उम्र के हैं. फिलहाल वह सुरकार्ता शहर के मेयर हैं. कई विश्लेषकों का मानना है कि उन्हें साथ लेकर सुबिआंतो युवा पीढ़ी के ज्यादा वोट पाना चाहते हैं.

सुबिआंतो भी एक संभ्रांत राजनीतिक परिवार से आते हैं. वह तीन दशकों तक इंडोनेशिया पर राज करने वाले सैन्य तानाशाह सुहार्तो के दामाद थे. सुहार्तो को 1998 में सत्ता से बेदखल किया गया था.

सुहार्तो की तानाशाही के अंतिम दिनों में सुबिआंतो सेना प्रमुख के तौर पर काम कर रहे थे. तब उन पर अधिकारों के दुरुपयोग के आरोप लगे थे. हालांकि, वे आरोप साबित नहीं हुए. सुबिआंतो ने भी हमेशा इन आरोपों से इनकार किया है.

राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे उम्मीदवार, गंजर प्रणोवो केंद्रीय जावा प्रांत के पूर्व गवर्नर हैं. उनकी उम्मीदवारी को सत्ताधारी ‘इंडोनेशियन डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल' (पीडीआई-पी) ने समर्थन दिया है.

प्रणोवो ने मौजूदा कैबिनेट मंत्री महफूद मोहम्मद को अपने साथी के तौर पर उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. प्रणोवो ने मौजूदा राष्ट्रपति विडोडो की राजनीतिक कार्यशैली को अपनाया है. वे जमीनी आंदोलनों के जरिए सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.

इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के दावेदारतस्वीर: DW

राष्ट्रपति चुनाव के तीसरे उम्मीदवार हैं, अनीस बासवेदन जो इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के गवर्नर रह चुके हैं. उनके साथी के रूप में मुहैमिन इस्कंदर उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. इस्कंदर ‘इस्लामिक नेशनल अवेकनिंग पार्टी' (पीकेबी) के नेता हैं, जो देश की सबसे शक्तिशाली इस्लामिक पार्टियों में से एक है.

स्वतंत्र शोध संगठन ‘लिटबैंग कम्पास' के हालिया सर्वे के मुताबिक, सुबिआंतो बाकी दोनों उम्मीदवारों पर काफी बढ़त बनाए हुए हैं. उन्हें 39 फीसदी मतदाता समर्थन दे रहे हैं. वहीं, प्रणोवो को 18 फीसदी और बासवेदन को 16 फीसदी मतदाता समर्थन दे रहे हैं.

अहम चुनावी मुद्दे कौन से हैं?

राष्ट्रपति पद के तीनों प्रत्याशियों ने समावेशी विकास और कल्याण को लेकर लगभग एक जैसे वादे किए हैं. इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जोकोवी के दस साल के कार्यकाल को इंडोनेशिया के लिए स्थिरता और विकास के दशक के रूप में देखा जाता है.

तीनों उम्मीदवारों ने जोकोवी की ज्यादातर योजनाओं को जारी रखने का वादा किया है. इसमें खनन को बढ़ावा देना, सामाजिक कल्याण का विस्तार करना और 32 अरब डॉलर की लागत से नई राजधानी बनाने के काम को जारी रखना शामिल है.

उम्मीदवारों ने महात्वाकांक्षी आर्थिक विस्तार लक्ष्य निर्धारित किए हैं. लाखों नौकरियां पैदा करने का वादा किया है. हालांकि, वे इन लक्ष्यों को कैसे हासिल करेंगे, इस बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है.

कब आएंगे नतीजे?

इन चुनावों में 17 साल से अधिक उम्र के सभी इंडोनेशियाई नागरिक वोट डाल सकते हैं. दशकों के अधिनायकवादी शासन के बाद इंडोनेशिया ने 1998 में लोकतंत्र को अपनाया था. साथ ही समानता और एकता के राष्ट्रीय दर्शन को भी अपनाया था, जिसे पंचशिला कहा जाता है. यह देश के संविधान में भी निहित है.

दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद इंडोनेशिया संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष है. हालांकि, राजनीतिक पार्टियां अक्सर अपनी प्रचार रणनीति में धर्म का इस्तेमाल करती हैं.

इंडोनेशिया की संसद फैसले लेने के मामले में अधीनस्थ भूमिका निभाती है, क्योंकि वहां नीतियां बनाने की शक्ति राष्ट्र्रपति के हाथों में होती है.

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को कुल वोटों के 50 फीसदी और सभी राज्यों में 20 फीसदी वोट मिलने चाहिए. संसद में प्रवेश पाने के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी को कम से कम 4 फीसदी वोट मिलने चाहिए.

चुनाव आयोग की ओर से शुरुआती परिणाम 14 फरवरी की शाम को घोषित किए जाने की संभावना है. अंतिम नतीजों के सार्वजनिक होने में 35 दिन तक का समय लग सकता है.

अगर कोई भी उम्मीदवार 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाने में सफल नहीं होता है तो सबसे ज्यादा वोट पाने वाले दो प्रत्याशियों के बीच जून में दोबारा चुनाव कराया जाएगा. नए राष्ट्रपति अक्टूबर में शपथ लेंगे.

जिनके लिए आसान नहीं मतदान

स्वतंत्र मानवाधिकार संगठन, कोमनास एचएएम के मुताबिक, 17 समूह के लोगों को वोट डालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इनमें विकलांग, एलजीबीटीक्यू समुदाय, धार्मिक अल्पसंख्यक और स्वदेशी समुदाय शामिल हैं.

कोमनास एचएएम को उत्तरी सुमात्रा राज्य में एलजीबीटीक्यू समुदाय के खिलाफ भेदभाव होने के मामले मिले हैं. संगठन के एक अधिकारी ने स्थानीय मीडिया से कहा, "एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों ने वोट डालने में असुरक्षित महसूस किया क्योंकि क्षेत्रीय नेतृत्व ने मेदन को एलजीबीटीक्यू से मुक्त शहर घोषित करने का बयान दिया है.”

इंडोनेशिया के हिंदुओं का ज्वालामुखी त्योहार

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इंडोनेशियन नेशनल कमीशन फॉर डिसैबिलिटीज के किकिन पी. तारिगन ने कहा, "विकलांग लोगों के भी कम मतदान करने की संभावना है क्योंकि चुनाव आयोग ने विकलांग लोगों को मतदाता के रूप में रजिस्टर करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए.”

तारिगन ने डीडब्ल्यू को बताया कि पहुंच और मदद की कमी के चलते विकलांग लोगों को मतदाता के तौर पर रजिस्ट्रेशन कराने में दिक्कत हुई.

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