13 छात्राओं से रेप करने वाले प्रिंसिपल को मौत की सजा
५ अप्रैल २०२२
इंडोनेशिया की एक अदालत ने 13 छात्राओं से बलात्कार के दोषी प्रिंसिपल को मौत की सजा सुनाई है. पीड़ित कई छात्राएं बहुत कम उम्र की थीं.
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36 साल के प्रिंसिपल हेरी वीरावन को निचली अदालत ने इसी साल फरवरी में उम्रकैद की सजा सुनाई थी लेकिन बांडुंग शहर के हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए मौत की सजा सुनाई है. अभियोजन पक्ष ने उम्रकैद की सजा का विरोध किया था और मौत की सजा की मांग की थी. वीरावन एक इस्लामिक बोर्डिंग स्कूल का प्रिंसिपल था. पश्चिम जावा प्रांत के बांडुंग में हाईकोर्ट की वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित न्यायाधीश के बयान में कहा गया, "हम अभियोजकों की अपील को स्वीकार करते हैं. हम दोषी को मौत की सजा सुनाते हैं."
अदालत ने वीरावन की संपत्ति को जब्त करने का भी आदेश दिया ताकि उसका इस्तेमाल उन पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए किया जा सके जिनके साथ उसने यौन शोषण किया. पीड़ितों की उम्र 14 से 20 साल के बीच थी. वीरावन द्वारा यौन शोषण की शिकार हुईं आठ लड़कियां गर्भवती भी हो गईं थीं. वीरावन ने पांच साल के दौरान पीड़ितों का यौन शोषण किया था.
वीरावन को पिछले साल मई में बोर्डिंग स्कूल में बलात्कार के आरोपों के बाद गिरफ्तार किया गया था. जनवरी में अपने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान, वीरावन ने गलत काम करना स्वीकार किया और पीड़ितों से माफी मांगी थी. पीड़ितों में से एक के एक रिश्तेदार ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि सोमवार को दी गई सजा ने पीड़ितों को न्याय दिलाया है.
इस मामले के बाद इंडोनेशिया में धार्मिक बोर्डिंग स्कूलों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठे थे और संसद में एक ऐसे बिल लाने की मांग उठी थी जिससे ऐसे अपराधों को रोकने के लिए तेजी से कार्रवाई हो सके. कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम समूहों ने इस बिल का विरोध किया है. उनका कहना है कि यह बिल संलिप्तता को बढ़ावा देता है क्योंकि यह विवाहेतर यौन संबंध और समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं बनाता.
इंडोनेशिया में 25,000 से अधिक इस्लामिक बोर्डिंग स्कूल हैं, जिनमें लगभग 50 लाख छात्र-छात्राएं रहते हैं और पढ़ाई करते हैं.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
महिलाओं को क्यों नहीं है अपने ही शरीर पर अधिकार?
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दुनिया में 50 प्रतिशत महिलाओं को अपने ही शरीर पर अधिकार नहीं है. महिलाएं ऐसा लंबे समय से महसूस करती रही हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने इसे पहली बार उठाया है.
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अपने शरीर पर स्वायत्ता
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की इस रिपोर्ट में पहली बार महिलाओं के अपने ही शरीर पर स्वायत्ता की कमी के विषय को संबोधित किया है गया. अध्ययन का शीर्षक है "मेरा शरीर मेरा अपना है" और इसमें 57 देशों में महिलाओं के हालात पर रोशनी डाली गई है.
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हर दूसरी महिला पर है प्रतिबंध
रिपोर्ट के अनुसार चाहे यौन संबंध हों, गर्भ-निरोध हो या स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने का सवाल, इन 57 देशों में लगभग 50 प्रतिशत महिलाओं को कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है.
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कोई और लेता है फैसले
रिपोर्ट के लिए इन देशों में महिलाओं पर लगे उन प्रतिबंधों का अध्ययन किया गया है जो महिलाओं को बिना किसी डर के अपने शरीर से संबंधित फैसले लेने से रोकते हैं. कई प्रतिबंधों का नतीजा यह भी होता है कि महिलाओं के शरीर से जुड़े फैसले कोई और ले लेता है.
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महिलाओं के खिलाफ हिंसा
रिपोर्ट में इन 57 देशों में महिलाओं पर अंकुश लगाने के लिए बलात्कार, जबरन वंध्यीकरण या स्टेरलाइजेशन, कौमार्य परीक्षण और जननांगों को अंगभंग करने जैसे हमलों के बारे में भी बताया गया है.
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व्यापक असर
यूएनएफपीए ने कहा है कि शरीर पर स्वायत्ता की इस कमी की वजह से महिलाओं और लड़कियों को गंभीर क्षति तो पहुंचती ही है, इससे आर्थिक उत्पादकता भी कम होती है और स्वास्थ्य प्रणाली और न्यायिक व्यवस्था का खर्च भी बढ़ता है.
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कानून भी नहीं देता साथ
रिपोर्ट में 20 ऐसे देशों के बारे में बताया गया है जहां ऐसे कानून हैं जिनकी मदद से कोई बालात्कारी पीड़िता से शादी करके कानूनन सजा से बच सकता है. रिपोर्ट में 43 ऐसे देशों के बारे में भी बताया गया है जहां शादीशुदा जोड़ों के बीच बलात्कार को लेकर भी कोई कानून नहीं है. इसके अलावा 30 से भी ज्यादा ऐसे देश हैं जहां महिलाओं के घर से बाहर आने जाने पर तरह-तरह के प्रतिबंध हैं.
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सिर्फ आधे देशों में हैं सेक्स एजुकेशन
रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन किए गए देशों में से सिर्फ 56 प्रतिशत देशों में व्यापक सेक्स एजुकेशन उपलब्ध कराने को लेकर कानून या नीतियां हैं. यूएनएफपीए की निदेशक नटालिया कनेम कहती हैं, "इसका सारांश यह है कि करोड़ों महिलाओं और लड़कियों का अपने ही शरीर पर हक नहीं है. उनकी जिंदगी दूसरों के अधीन है." - एएफपी