1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

महंगाई ने तोड़ी जर्मनी में छोटे किसानों की कमर

एलिजाबेथ शूमाखर
१६ दिसम्बर २०२२

यूक्रेन में युद्ध से पहले, पशुपालन उद्योग उन तमाम उद्योगों में से एक था जिसे जर्मन सरकार बहुत टिकाऊ बनाना चाहती थी. लेकिन अब स्थिति यह हो गई है कि कई जैविक फ्री-रेंज फार्म अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

यूक्रेन में युद्ध से पहले, पशुपालन उद्योग उन तमाम उद्योगों में से एक था जिसे जर्मन सरकार बहुत टिकाऊ बनाना चाहती थी. लेकिन अब स्थिति यह हो गई है कि कई जैविक फ्री-रेंज फार्म अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यूक्रेन में युद्ध से पहले, पशुपालन उद्योग उन तमाम उद्योगों में से एक था जिसे जर्मन सरकार बहुत टिकाऊ बनाना चाहती थी. लेकिन अब स्थिति यह हो गई है कि कई जैविक फ्री-रेंज फार्म अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.तस्वीर: Elizabeth Schumacher/DW

"यह सिर्फ आर्थिक रूप से ही संभव नहीं है. बिना किसी तरह के हस्तक्षेप के. हम जलवायु परिवर्तन के लिए तो तैयार थे, पर इसके लिए नहीं.” यह कहना है 39 वर्षीय थॉमस बोलिग का जो कि पश्चिमी जर्मनी के बॉन शहर में एक छोटे फार्म विटफेल्डर होफ के मालिक हैं. वो कहते हैं, "यह जमीन कम से कम 1600 ईस्वी से खेती के लिए इस्तेमाल हो रही है और शायद इस इलाके में तभी से कृषि अस्तित्व में है.”

इस आधुनिक फार्म की स्थापना उनके पिता ने 1982 में की थी. बोलिग ने 2019 में इसकी जिम्मेदारी संभाली तो उन्होंने तय किया कि वो इसे ऑर्गेनिक और फ्री-रेंज फार्म में बदल देंगे. वो मुस्कराते हुए कहते हैं कि इस बदलाव को लेकर उनके पिता बहुत उत्साहित नहीं थे लेकिन धीरे-धीरे वो भी बोलिग की बात मान गए. यहां ज्यादातर काम तो बोलिग खुद ही करते हैं लेकिन उनके पिता भी कभी-कभी उनका हाथ बंटा देते हैं. बोलिग के यहां दो पूर्णकालिक कर्मचारी काम करते हैं जबकि उनकी पत्नी एक फार्मस्टैंड चलाती हैं.

बोलिग बताते हैं कि सामान्य खेत को ऑर्गेनिक फार्मिंग में बदलना एक बड़ा उपक्रम था. ऐसा करने के लिए तमाम अन्य चीजों के अलावा कानूनी तौर पर पशुओं की संख्या में कमी करना, बड़े स्टाल्स बनाना, चिकेन की एक बिल्कुल अलग नस्ल रखना और उनके लिए महंगे चारे की व्यवस्था करना जैसे उपाय शामिल हैं. बोलिग कहते हैं, "अब मुझे डर है कि यूक्रेन में युद्ध के कारण बढ़ रही महंगाई के चलते आधे-अधूरे बने ये तबेले कहीं खंडहर न बन जाएं.” जर्मनी के संघीय सांख्यिकी दफ्तर के मुताबिक यहां निर्माण सामग्री की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं, पिछले साल की तुलना में औसतन 16.5 फीसद ज्यादा.

फार्म को ऑर्गेनिक और फ्री-रेंज बनाने का मतलब है कि सूअरों को ज्यादा जगह और देखभाल मिलेगी. इसकी वजह से इसे चला पाना ज्यादा महंगा हो जाता है. तस्वीर: Elizabeth Schumacher/DW

बड़े बदलाव की योजना

जर्मन किसान संघ डीबीवी के अध्यक्ष योआखिम रुकविड स्थिति की गंभीरता की चर्चा करते हुए कहते हैं, "भवन निर्माण सामग्री की कीमतों से ज्यादा तो खाद की कीमतें बढ़ गई हैं, करीब चार गुना हो गई हैं. चारे की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है, डीजल की कीमतें भी काफी बढ़ गई हैं.” इसके अलावा, पशुओं के लिए ताजा हवा और उचित स्थान के मानक भी कानूनी तौर पर ज्यादा हैं. जर्मन किसान संघ का कहना है कि बाड़ों और तबेलों को बदलने से उनके परिचालन की लागत 80 फीसद तक बढ़ जाएगी जिसमें पशुओं की देखभाल और उनके चारे की कीमत भी शामिल है.

साल 2030 तक कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने जैसी मौजूदा जर्मन सरकार की कई महत्वाकांक्षी पर्यावरण नीतियों की तरह, फार्मिंग को भी ज्यादा टिकाऊ बनाने के लिए नए कृषि कानून बनाए गए लेकिन अब यह क्षेत्र प्राथमिकता सूची में नीचे आ गया है. रुकविड कहते हैं, "पशु कल्याण के मामले में चीजें एक ठहराव की स्थिति में आ गई हैं.” रुकविड यूरोपीय संघ के आयोग ‘ऑर्गेनिक एक्शन प्लान' के भी इसलिए आलोचक थे क्योंकि वो इसे ‘यूरोप में खाद्य सुरक्षा को खतरे' में डालने वाले कदम के रूप में देखते हैं.

इस योजना में नाटकीय रूप से कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाना, यह सुनिश्चित करना कि यूरोपीय संघ की कृषिभूमि का कम से कम 25 फीसद हिस्सा जैविक खेती के लिए आरक्षित रखा जाए और जीएमओ के उपयोग को प्रतिबंधित करना जैसी बातें शामिल हैं. रुकविड ने तो जर्मन कृषि मंत्री चेम ओएज्देमीर के लिए बहुत ही कठोर शब्दों का भी इस्तेमाल किया था जिन्होंने इस साल की शुरुआत में मांस उत्पादों के लिए एक नई लेबलिंग प्रणाली की घोषणा की थी जिसमें उनके पर्यावरणीय प्रभाव और पशु कल्याण के स्तर के बारे में जानकारी दी जानी थी.

डी साइट अखबार से बातचीत में रुकविड ने बताया कि स्थिरता नियमों को पूरा करने के लिए जरूरी बदलाव के लिए किसानों को दी जा रही एक अरब यूरो की सहायता पर्याप्त नहीं है. वो कहते हैं, "अभी किसी किसान के पास इसके लिए पैसा नहीं है.”

ऑर्गेनिक मुर्गी पालन में एक बिल्कुल ही नई प्रजाति की मुर्गियों में पैसा लगाने की जरूरत है. तस्वीर: Elizabeth Schumacher/DW

लागत में 60-80 फीसदी की बढ़ोत्तरी

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की गठबंधन सरकार इसके बदले उपभोक्ताओं के बैंक खातों को सही करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है क्योंकि अक्टूबर में महंगाई दर 10.4 फीसद तक पहुंच गई. खाद्य पदार्थों की कीमतों की बात करें तो महंगाई दर 21 फीसद से भी ज्यादा हो गई है. डीबीवी अध्यक्ष रुकविड के मुताबिक, कीमतें बढ़ने से बोलिग जैसे सुअर पालक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. सुअर पालने वाले किसानों का जिक्र करते हुए रुकविड कहते हैं कि खाद्य सामग्री और बाड़ों के निर्माण में आने वाली लागत की वजह से किसानों का इस क्षेत्र में बने रहना बड़ा मुश्किल है. वो कहते हैं, "आने वाले वर्षों में पशुपालन उद्योग में लगे ज्यादातर किसान अपना काम-धाम समेटने वाले हैं.”

किसान बोलिग कहते हैं, "उपकरणों और उनके रखरखाव की कीमतें 60-80 फीसद तक बढ़ चुकी हैं. इन बढ़ी कीमतों के बावजूद ग्राहक इन पशुओं को दोगुने दाम पर खरीदने को तैयार नहीं हैं. सुपरमार्केट इत्यादि में ऑर्गेनिक खाद्य सामग्री बिक ही नहीं पा रही है.” बोलिग के बयान से उन शोधों की पुष्टि होती है जिनमें कहा गया है कि साल 2022 में जर्मन नागरिकों ने अपने निजी बजट में काफी कटौती की है और इसके लिए वो कम कीमत वाली सुपरमार्केटों में जाकर सस्ती चीजें खरीद रहे हैं. स्थानीय मीडिया में ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि खुदरा व्यापारी पशु कल्याण के नाम पर अतिरिक्त कीमत चुकाने को तैयार नहीं हैं और किसानों से कह रहे हैं कि वो अपने उत्पादों को सस्ते दरों पर बेचें, अन्यथा वो उनसे सामान नहीं खरीदेंगे.

ज्यादातर मामलों में ऑर्गेनिक फ्री-रेंज फार्मिंग की ओर आने का मतलब है, जानवरों की संख्या में नाटकीय कमी. इससे मुनाफे पर असर पड़ता है. तस्वीर: Elizabeth Schumacher/DW

सरकारी प्राथमिकताओं में बदलाव जरूरी

किसान बताते हैं कि बड़े नॉन-ऑर्गेनिक खाद्य उत्पादकों को आसमान छूती कीमतों से कुछ हद तक संरक्षण मिला रहता है क्योंकि ये लोग वितरकों के साथ इन चीजों की कीमतें एक साल पहले ही तय कर लेते हैं. लेकिन छोटे किसानों को इसका नुकसान होता है क्योंकि कीमतें बढ़ने के साथ वो मुनाफा कमाने के लिए अपने स्तर पर वस्तुओं के दाम नहीं बढ़ा पाते. 

कहा जाता है कि ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत है जो समाज के लिए तो महत्वपूर्ण हैं लेकिन उनका करियर बहुत आकर्षक नहीं माना जाता. लेकिन महंगाई वाली समस्या इससे भी कहीं ज्यादा जटिल है. बोलिग कहते हैं कि कई अन्य क्षेत्रों की तरह छोटे पशुपालक भी अपना व्यापार सही तरह से चलाने के लिए कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे हैं.

ऐसी स्थिति में जबकि उपभोक्ता और सुपरमार्केट दोनों ही बेहतर पशु कल्याण के नाम पर अतिरिक्त पैसा नहीं देना चाहते हैं, तो बिना किसी सरकारी मदद के छोटे पशुपालक कैसे जिंदा रह पाएंगे, यह सवाल महत्वपूर्ण है. बोलिग कहते हैं, "मुझे लगता है कि राजनेता सही कह रहे हैं. उन्होंने महसूस किया है कि हमें मदद की जरूरत है, लेकिन प्राथमिकताओं को फिर से तय करने की जरूरत है. जैसे, आपके पास जितनी ज्यादा जमीन है, आपको उतनी ज्यादा सरकारी मदद यानी सब्सिडी मिल रही है. वास्तव में यह गरीब किसानों की कीमत पर अमीर किसानों को पुरस्कृत करने जैसा है.”

हालांकि बोलिग शॉल्त्स की सेंटर लेफ्ट सरकार की इस बात के लिए सराहना करते हैं कि उसने महंगाई को देखते हुए गैस कीमतों को कम करने जैसे कई कदम उपभोक्ताओं के हित में उठाए हैं लेकिन उन्हें इस बात पर अभी भी संदेह है कि सरकार ने किसानों के हित में कुछ अच्छा किया है. नए पर्यावरण कानूनों के बारे में वो कहते हैं, "हम इस तरह के बदलावों के बारे में योजना बनाने में सक्षम होते थे लेकिन अब सब कुछ अनिश्चित है.”

उत्तर प्रदेश में कामयाब हो रही है सारसों को बचाने की योजना

06:01

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें